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पारिस्थितिकी, विश्व की स्थायी अर्थव्यवस्था के रूप में

Lokesh Pal May 14, 2025 05:15 11 0

संदर्भ:

पारिस्थितिकी ही स्थायी अर्थव्यवस्था है – यह केवल एक कथन नहीं, बल्कि एक महत्त्वपूर्ण सिद्धांत है। यह हमें यह स्मरण कराता है, कि मानव कल्याण और समृद्धि पारिस्थितिक संतुलन और पर्यावरणीय स्वास्थ्य से अटूट रूप से जुड़ी हुई हैं।

पारिस्थितिकी अर्थव्यवस्था के समान

  • व्याख्या: सुंदरलाल बहुगुणा द्वारा दिया गया यह कथन कि “पारिस्थितिकी विश्व की स्थायी अर्थव्यवस्था है” मानव समृद्धि और पारिस्थितिक स्वास्थ्य के आपसी निर्भरता को उजागर करता है।
  • अर्थव्यवस्था पारिस्थितिकी पर निर्भर है: प्राकृतिक संसाधनों के दोहन या संरक्षण के बिना आर्थिक विकास संभव नहीं है।
  • बढ़ती आवश्यकताएँ: यह संदेश जलवायु परिवर्तन और जैव विविधता की हानि जैसे बढ़ते मुद्दों के कारण निरंतर और अधिक महत्त्वपूर्ण होता जा रहा है।

प्रकृति और संधारणीयता को समझना

  • वैज्ञानिक समझ: प्रकृति की प्रणालियों का ज्ञान पर्यावरणीय संकटों से निपटने में सहायता करता है।
  • पारिस्थितिक स्थिरता: दीर्घकालिक अस्तित्व और विकास पारिस्थितिक प्रणालियों के संतुलन पर निर्भर करता है।
  • संधारणीयता: पर्यावरण संरक्षण करते हुए आर्थिक विकास को भी बढ़ावा देना शामिल है।

प्रकृति से मानव का अलगाव

  • बढ़ता अलगाव: समय के साथ, मानव सभ्यता अपनी प्रकृति से और दूर होती जा रही है।
  • जैव विविधता पर परिणाम: यह अलगाव जैव विविधता की हानि का एक महत्त्वपूर्ण कारण है, जैसा कि आईपीबीईएस परिवर्तनकारी (IPBES Transformative) परिवर्तन रिपोर्ट में स्पष्ट किया गया है।
  • वैश्विक स्तर पर शोषण: अन्य प्रजातियों के विपरीत, मनुष्य संसाधनों का शोषण वैश्विक और पूर्वानुमानात्मक स्तर पर करता है।

स्थानीय उपयोग से वैश्विक प्रतिस्पर्धा तक

  • प्रारंभिक संसाधन उपयोग: प्रारंभिक मनुष्य मुख्य रूप से संसाधनों का उपयोग स्थानीय स्तर पर अपनी जीवित रहने की आवश्यकतों के लिए करते थे।
  • माँग का विस्तार: जैसे-जैसे समाज विकसित हुआ, संसाधनों की माँग स्थानीय से राष्ट्रीय और अंततः वैश्विक स्तर तक विस्तृत हो गई।
  • पर्यावरण शोषण: यह परिवर्तन बड़े पैमाने पर पर्यावरणीय शोषण का कारण बना, जो प्राकृतिक दुनिया में अनुपम है।

आधुनिक चुनौतियाँ और विरोधाभास

  • जलवायु परिवर्तन का तीव्र होना: मानवीय गतिविधियाँ जलवायु परिवर्तन को तीव्र कर रही हैं और पारिस्थितिकी तंत्र पर आवश्यकता से अधिक दबाव डाल रही हैं।
  • प्राकृतिक समाधान: निम्न प्रयास किए जा रहे हैं:
    • जैव विविधता को पुनर्स्थापित करना
    • जलवायु परिवर्तन से निपटना
    • संधारणीयता को बढ़ावा देना
  • शोषण और निर्भरता का विरोधाभास: विरोधाभास यह है, कि मनुष्य एक ओर प्रकृति का शोषण करते जा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर अपने अस्तित्व के लिए उसी पर निर्भर भी हैं, जिससे गहन पारिस्थितिक असंतुलन उत्पन्न हो रहा है।

परिप्रेक्ष्य में बदलाव

  • अर्थव्यवस्था की नींव के रूप में पारिस्थितिकी: पारिस्थितिक तंत्र को केवल समझने की बजाय, मनुष्यों को यह स्वीकार करना चाहिए कि पारिस्थितिकी आर्थिक समृद्धि की आधारशिला है।
  • संरक्षण की ओर अग्रसर होना: यह बदलाव अल्पकालिक शोषण की बजाय दीर्घकालिक संरक्षण और प्रबंधन पर केंद्रित होना चाहिए।
  • पारिस्थितिक स्वास्थ्य और विकास: पारिस्थितिक स्वास्थ्य को जीवित रहने के लिए आवश्यक समझा जाना चाहिए, न कि आर्थिक विकास में बाधा के रूप में।

प्रकृति से पुनः जुड़ाव की तत्काल आवश्यकता

  • परिवर्तन की चिंताजनक गति: हालाँकि जलवायु परिवर्तन और जैव विविधता की हानि कोई नए मुद्दे नहीं हैं, लेकिन इन परिवर्तनों की गति अब अत्यधिक चिंताजनक हो गई है।
  • अपूरणीय क्षति: अतीत की असतत प्रथाओं ने पर्यावरण को अपूरणीय क्षति पहुँचाई है।
  • जीवनशैली में बदलाव: वर्तमान पर्यावरणीय संकटों से निपटने के लिए व्यक्तिगत और सामूहिक जीवनशैली में बदलाव आवश्यक है।

संरक्षण के लिए भावनात्मक जुड़ाव

  • मनुष्य की अद्वितीय भावनात्मक क्षमता: मनुष्य में प्रकृति से भावनात्मक स्तर पर पुनः जुड़ने की एक अद्वितीय क्षमता है।
  • भावनाओं के माध्यम से संरक्षण: संरक्षण प्रयासों को केवल वैज्ञानिक समझ पर निर्भर न रहते हुए, इस भावनात्मक संबंध को संलग्न करना चाहिए।
  • पारिस्थितिकी एक स्थायी अर्थव्यवस्था है: यह पहचानना, कि पारिस्थितिकी एक स्थायी अर्थव्यवस्था है, वैश्विक संरक्षण प्रयासों को निरंतर बनाए रखने के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।

निष्कर्ष

पारिस्थितिकी को अर्थव्यवस्था के केंद्र में रखना हमारे पर्यावरण के प्रति दृष्टिकोण को परिवर्तित करता है। केवल भावनात्मक जुड़ाव, व्यक्तिगत उत्तरदायित्व और दीर्घकालिक चिंतन के जरिए ही मानवता जलवायु संकट के बीच वास्तव में संधारणीय भविष्य सुनिश्चित कर सकती है।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न

“पारिस्थितिकी ही स्थायी अर्थव्यवस्था है।” इस कथन के संदर्भ में, पारंपरिक आर्थिक विकास मॉडल, जो पारिस्थितिकी महत्त्व को नजरअंदाज करते हैं, की समीक्षा कीजिए। भारत अपनी आर्थिक महत्त्वाकांक्षाओं को पारिस्थितिक आवश्यकताओं के साथ किस प्रकार संतुलित कर सकता है?

(15 अंक, 250 शब्द)

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