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महिलाओं पर अत्यधिक गर्मी का प्रभाव

Lokesh Pal July 16, 2024 05:15 108 0

संदर्भ:

अत्यधिक गर्मी हमारे ग्रह के लिए, विशेषकर महिला आबादी के लिए आने वाले वर्षों में जोखिम पैदा कर सकती है।

प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रासंगिकता : ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स, अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन आदि।

मुख्य परीक्षा के लिए प्रासंगिकता : महिलाओं पर अत्यधिक गर्मी का प्रभाव, मौजूदा लैंगिक असमानताओं को उजागर करने वाली सामाजिक-आर्थिक चुनौतियाँ आदि।

अत्यधिक गर्मी:

  • अब तक के ऐतिहासिक  रिकॉर्ड पर सबसे गर्म वर्ष 2023 था।
  • मई-जून 2024 के दौरान भारत के कई हिस्सों में रिकॉर्ड तोड़ तापमान दर्ज किया गया था।
  • महिलाओं को अत्यधिक गर्मी ने असमान रूप से प्रभावित किया है, जिसका मुख्य कारण असमान शक्ति गतिशीलता, लिंग मानदंड और संसाधनों तक असमान पहुंच है, जैसा कि ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स में दर्शाया गया है, जो भारत को नीचे से 18वें स्थान पर रखता है।
  • वैश्विक महिला आबादी के आंकड़ों के अनुसार, भारत दुनिया की छह में से एक से अधिक महिलाओं का घर है अतः आँकड़े विचारणीय हैं क्योंकि भारतीय उपमहाद्वीप में अत्यधिक गर्मी अब उनकी वास्तविकता बन चुकी है।

संबंधित तथ्य :

  • एडीबी (राइजिंग एबव द हीट) की हालिया रिपोर्ट में एशिया और प्रशांत क्षेत्र में महिलाओं पर अत्यधिक गर्मी के असमान प्रभाव पर प्रकाश डाला गया है।
  • उदाहरण के लिए, शहरों में अनौपचारिक बस्तियों में रहने वाली महिलाओं (जो हाशिये पर और झुग्गी-झोपड़ियों में रहती हैं) को बढ़ते तापमान के कारण अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
  • उनके घर ऊष्मा कक्षों में बदल सकते हैं, क्योंकि अनौपचारिक शहरी इलाकों में प्रयुक्त सामग्री, जैसे टिन, एस्बेस्टस और प्लास्टिक, ऊष्मा को रोक लेती हैं।
  • महिलाओं को खराब अवसंरचना व हवारहित रसोई में भी काम करना पड़ता है, खाना बनाते समय उन्हें बहुत ज़्यादा गर्मी का सामना करना पड़ता है। बढ़ते तापमान के कारण उनके लिए समय की कमी और देखभाल का बोझ और भी बढ़ जाता है।
  • गर्मी के तनाव के कारण उत्पादकता में कमी आती है , महिलाएं घर पर अपने हिस्से का अवैतनिक कार्य पूरा करने के लिए भी काफी अधिक समय और समस्याओं का सामना करती हैं।
  • अर्शट-रॉक की ‘स्कोर्चिंग डिवाइड’ रिपोर्ट के अनुसार, भारत में गर्म लहरों के कारण उत्पादकता में होने वाली हानि से प्रतिदिन देखभाल कार्य में 90 मिनट की अधिक हानि होती है।
  • इससे समय के उपयोग के पैटर्न में पहले से मौजूद लिंग अंतर में वृद्धि होती है; खाना पकाने, सफाई करने और पानी और ईंधन लाने जैसे अवैतनिक कार्यों में, महिलाएं पुरुषों की तुलना में प्रति दिन ढाई गुना अधिक मिनट खर्च करती हैं (राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय 2019 डेटा)।
  • दिलचस्प बात यह है कि भारत में गर्मी के कारण महिलाओं की उत्पादकता में होने वाली दो तिहाई से अधिक हानि अवैतनिक श्रम के क्षेत्र में होती है।
  • यह नुकसान तापजन्य तनाव से जुड़ी अवसर लागत को भी दर्शाता है कि महिलाएं अतिरिक्त आय अर्जित कर सकती थीं, कौशल हासिल कर सकती थीं, या पर्याप्त आराम कर सकती थीं परंतु अत्यधिक गर्मी के कारण वो इससे वंचित रही। 

चिंताजनक रूप से व्याप्त:

  • शहरी अनौपचारिक महिला मजदूरों को कठोर मौसम का सामना करना पड़ता है, चाहे वे बाज़ारों, सड़कों, निर्माण स्थलों, लैंडफिल या यहां तक ​​कि अपने नियोक्ता के घरों में ही कोई काम क्यों न कर रही हों।
  • अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (‘बदलती जलवायु में कार्य’) की रिपोर्ट के अनुसार, अपने व्यावसायिक परिवेश के कारण, ये दिहाड़ी मजदूर – सड़क विक्रेता, वेतनभोगी घरेलू सहायक, निर्माण मजदूर और सफाई कर्मचारी – जलवायु संबंधी चरम स्थितियों के प्रति संवेदनशील होती हैं।
  • पर्याप्त ऊर्जा की कमी के कारण स्थिति और भी खराब हो जाती है  अतः इन्हें हवादार स्थानों, पंखों, एयर कंडीशनरों या कूलरों जैसी शीतलन सुविधाओं के अभाव में ही जीवन यापन करना पड़ता है।
  • घनी आबादी वाले शहरी क्षेत्रों में हरियाली और ठंडक के अन्य प्राकृतिक साधन भी सार्वजनिक उपभोग के लिए तेजी से अनुपलब्ध होते जा रहे हैं।
  • इसके अलावा, पानी की कमी और बिजली में उतार-चढ़ाव के कारण हाइड्रेटेड रहने और आरामदायक रहने की चुनौती बढ़ जाती है।
  • केवल शहरी क्षेत्रों में ही नहीं बल्कि ग्रामीण भारत में भी स्थिति उतनी ही गंभीर है।
  • यदि गर्मी से प्रभावित ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाली एक महिला की दैनिक दिनचर्या पर विचार करें तो ज्ञात होता है कि वह अपनी सुबह की शुरूआत और शाम का अंत गर्म चूल्हे पर बायोमास का उपयोग करके खाना पकाने से करती है, और इसके परिणामस्वरूप होने वाली बीमारियों का बोझ भी उसे उठाना पड़ता है।
  • चूंकि 56.8% ग्रामीण भारतीय परिवार बायोमास पर खाना पकाते हैं (एनएफएचएस-5), इसलिए इस सार्वजनिक स्वास्थ्य खतरे की सीमा को स्वीकार करना आवश्यक है।
  • महिलाओं के दिन में गर्मी के तनाव के कारण काम के घंटे भी लंबे होते हैं।
  • अगर वह एस्बेस्टस या टिन की छत वाले आवासीय क्षेत्र में घर से काम करती है, तो उसके लिए दिन चढ़ने के साथ ही तापमान असहनीय हो सकता है, जिससे काम करना असुरक्षित हो सकता है।

निष्कर्ष:

अत्यधिक गर्मी भारत में महिलाओं की उत्पादकता व उनके स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है, मौजूदा लैंगिक असमानताओं को बढ़ाती है और विशेष रूप से अनौपचारिक और ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य, उत्पादकता और सुरक्षा संबंधी महत्वपूर्ण चुनौतियां उत्पन्न करती है।

 

मुख्य परीक्षा पर आधारित प्रश्न :

प्रश्न : भारत में महिलाओं पर अत्यधिक गर्मी का प्रभाव केवल एक पर्यावरणीय मुद्दा नहीं है, बल्कि एक जटिल सामाजिक-आर्थिक चुनौती है जो मौजूदा लैंगिक असमानताओं को उजागर करता है। शहरी और ग्रामीण दोनों संदर्भों में महिलाओं पर अत्यधिक गर्मी के बहुआयामी प्रभावों का आलोचनात्मक विश्लेषण करें।

 (15 अंक, 250 शब्द)

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