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दुर्लभ बीमारियों से निपटने हेतु आवश्यक प्रयास तथा निहित समस्याएँ

Lokesh Pal March 08, 2025 05:30 4 0

संदर्भ:

भारत ने हाल ही में 28 फरवरी को दुर्लभ रोग दिवस-2025 मनाया, जिसमें बेहतर स्वास्थ्य नीतियों और रोगी देखभाल की आवश्यकता पर बल दिया गया।

राष्ट्रीय दुर्लभ रोग नीति (NPRD), 2021

  • मुख्य बिंदुदशकों के संघर्ष के पश्चात उपचार और सहायता के लिए एक रूपरेखा प्रदान करते हुए राष्ट्रीय दुर्लभ रोग नीति (NPRD), 2021 प्रस्तुत की गई थी।
  • प्रयास: पात्र मरीजों के इलाज के लिए 11 राज्यों में 12 उत्कृष्टता केंद्रों  (COE) का एक नेटवर्क स्थापित किया गया।

कार्यान्वयन संबंधी चुनौतियाँ

  • वित्तपोषण की कमी: दुर्लभ बीमारियों के निदान हेतु अत्यधिक धन की आवश्यकता होती  है, जिससे अधिकांश रोगियों के लिए इलाज तक पहुँच कठिन हो जाती है। दीर्घकालिक देखभाल का समर्थन करने के लिए कोई संरचित वित्तपोषण तंत्र मौजूद नहीं है।
    • लाइसोसोमल स्टोरेज डिसऑर्डर (LSD) रोगियों के लिए ₹50 लाख की एकमुश्त वित्तीय सहायता अपर्याप्त है
    • लगभग 40 LSD रोगियों की यह सहायता समाप्त हो चुकी है, जिसके कारण वे उपचार से वंचित रह गए हैं
    • दुर्लभ विकारों से ग्रस्त 30% बच्चे उपचार के अभाव में अपने पाँचवे जन्मदिवस के पूर्व ही मर जाते हैं।
  • पहुँच में कमी: भारत में 450 से ज़्यादा दुर्लभ बीमारियाँ हैं, लेकिन उनमें से 50% से भी कम के लिए उपचार उपलब्ध है। लाइसोसोमल स्टोरेज डिसऑर्डर (LSD) को ग्रुप 3(a) विकारों के अंतर्गत वर्गीकृत किया गया है, जिसके लिए आजीवन प्रबंधन की आवश्यकता होती है
  • कार्यान्वयन में बाधाएँ: भारतीय औषधि महानियंत्रक (DCGI) ने एंजाइम रिप्लेसमेंट थेरेपी (ERT) को एक प्रभावी उपचार के रूप में मंजूरी दी है।
    • स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने दुर्लभ रोग के रोगियों के उपचार के लिए 12 केंद्रों को पैनल में शामिल किया, जिनमें से 577 LSD रोगियों को तत्काल उपचार के लिए पंजीकृत किया गया।
  • संरचित निगरानी का अभाव: उपलब्ध चिकित्सा और वित्तपोषण के बावजूद, संरचित निगरानी की कमी के कारण केवल कुछ ही रोगियों को उपचार प्राप्त हो पाता है
  • विलंब: संसदीय समर्थन के बावजूद संस्थागत हस्तक्षेप में विलंब जारी है
  • निधियों का उपयोग न होना: स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा 12 उत्कृष्टता केंद्रों को स्वीकृत ₹143.19 करोड़ का उपयोग नहीं हो पाया है, जिससे उपचारों तक पहुँच में देरी हो रही है। उत्कृष्टता केंद्रों  (COE) में जवाबदेही और पारदर्शिता की कमी से अक्षमताएँ बढ़ रही हैं।
  • शामिल नहीं: एसिड स्फिंगोमाइलेनेज डेफिसिएंसी (ASMD) जैसी स्थितियाँ, चिकित्सकीय रूप से अनुमोदित उपचारों के बावजूद राष्ट्रीय दुर्लभ रोग नीति (NPRD) के अंतर्गत शामिल नहीं की जाती हैं।
    • भारत में 32 ASMD रोगी सरकारी सहायता से वंचित हैं।

आगे की राह

  • सतत वित्तपोषण: वर्तमान ₹50 लाख की सीमा से अधिक एक समर्पित दुर्लभ रोग निधि की स्थापना करें। दीर्घकालिक उपचार के लिए निरंतर वित्तीय सहायता सुनिश्चित करें।
  • दुर्लभ रोगों पर राष्ट्रीय कार्यक्रम: उपचार अंतराल को कम करने के लिए राष्ट्रीय दुर्लभ रोग नीति (NPRD) के तहत ₹974 करोड़ की पहल को लागू करें। समय पर हस्तक्षेप के लिए बच्चों, विशेष रूप से लाइसोसोमल स्टोरेज डिसऑर्डर (LSD) ग्रस्त बच्चों को प्राथमिकता दें
  • समताउपचार में देरी को रोकने के लिए उत्कृष्टता केंद्रों  को धन का वितरण शीघ्र करना। रोगियों की तीव्र देखभाल के लिए उत्कृष्टता केंद्रों  में सुव्यवस्थित संचालन लागू करना।
  • उचित कार्यान्वयन:  वित्त उपयोग और रोगी उपचार को सुनिश्चित करने के लिए एक मज़बूत निगरानी प्रणाली स्थापित करें। जवाबदेही के लिए वास्तविक समय की ट्रैकिंग के साथ एक स्वतंत्र निरीक्षण निकाय बनाएँ

निष्कर्ष

यह सुनिश्चित करने के लिए तत्काल सुधार की आवश्यकता है, कि दुर्लभ रोग के रोगियों को जीवन रक्षक उपचारों तक निरंतर, समय पर और समान पहुँच प्राप्त हो सके। नीति क्रियान्वयन में देरी रोगियों को उनके जीवन के अधिकार से वंचित करने के समान है, विशेष रूप से उन  बच्चों को जो अनिश्चितता से मुक्त भविष्य के हकदार हैं।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न

राष्ट्रीय दुर्लभ रोग नीति (NPRD), 2021 के बावजूद वित्तपोषण और प्रशासनिक अक्षमताओं के कारण दुर्लभ रोग से प्रभावित रोगियों के लिए उपचार तक पहुँच एक चुनौती बनी हुई है। नीतिगत समस्याओं का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिए तथा एक स्थायी वित्तपोषण तंत्र के लिए उपाय सुझाइए।

(15 अंक, 250 शब्द)

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