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भारत में रोजगार प्राप्ति – एक राष्ट्रीय प्राथमिकता के रूप में

Lokesh Pal October 06, 2025 05:00 63 0

संदर्भ:

भारतीय उद्योग परिसंघ (CII) के अनुसार, भारत की कार्यशील आयु वर्ग की जनसंख्या अगले 25 वर्षों में 133 मिलियन तक बढ़ने का अनुमान है, जो वैश्विक कार्यबल वृद्धि में 18% का योगदान देगा। हालाँकि, यह जनसांख्यिकीय लाभांश समयबद्ध है और कार्यबल 2043 तक अपने चरम पर पहुँचने की उम्मीद है।

राष्ट्रीय प्राथमिकता के रूप में रोजगार सृजन का महत्त्व:

  • समानता और समावेशन में केंद्रीय भूमिका: गुणवत्तापूर्ण रोजगार लाखों लोगों को गरीबी से बाहर निकाल सकता है और क्षेत्रीय तथा सामाजिक असमानताओं को कम कर सकता है, जिससे समावेशी विकास सुनिश्चित हो सकता है।
  • विकास और आर्थिक लचीलापन: भारत जैसी उपभोग-संचालित अर्थव्यवस्था में, बेहतर वेतन वाले श्रमिकों का आधार बढ़ने से घरेलू माँग में वृद्धि होती है, जिससे दीर्घकालिक विकास स्थिर होता है।

रोजगार सृजन में चुनौतियाँ:

  • खंडित नीतिगत परिदृश्य: अनेक केंद्रीय और राज्य पहलें मौजूद हैं, लेकिन उन्हें एकीकृत करने वाला कोई एकीकृत रोजगार ढाँचा अनुपलब्ध है।
  • कम रोजगार क्षमता: कौशल अंतराल और गलत पाठ्यक्रम के कारण स्नातकों का एक बड़ा वर्ग रोजगार के योग्य नहीं रह जाता है।
  • अनौपचारिक कार्यबल का प्रभुत्व: भारत का 80% से अधिक कार्यबल अनौपचारिक है, जिसके पास रोजगार की सुरक्षा, लाभ और सामाजिक संरक्षण का अभाव है।
  • श्रम बाजार घर्षण: अंतर-राज्यीय प्रवासन मुद्दे, लाभों की पोर्टेबिलिटी की कमी और लिंग आधारित मानदंड जैसी बाधाएँ गतिशीलता को प्रतिबंधित करती हैं।
  • डेटा की कमी: रोजगार संबंधी आँकड़ें अक्सर पुराने और अधूरे होते हैं, जिससे नीति नियोजन सक्रिय होने की बजाय प्रतिक्रियात्मक हो जाता है।
  • क्षेत्रीय असमानताएँ: रोजगार के अवसर शहरी क्षेत्रों में ही केंद्रित रहते हैं, जिससे ग्रामीण और अविकसित जिले पिछड़ जाते हैं।

दीर्घकालिक रोजगार सृजन के लिए किए जाने वाले उपाय:

  • एकीकृत राष्ट्रीय रोजगार नीति: एक राष्ट्रीय रोजगार नीति (एनईपी) लागू की जानी चाहिए जो उच्च रोजगार क्षमता वाले क्षेत्रों की पहचान करेगी, व्यापार, औद्योगिक, शिक्षा और श्रम नीतियों को संरेखित करेगी तथा एआई और रोबोटिक्स में तकनीकी कौशल को एकीकृत करते हुए लैंगिक और क्षेत्रीय असमानताओं को दूर करेगी।
    • उपाय स्वरूप सचिवों के एक अधिकार प्राप्त समूह द्वारा निगरानी सुनिश्चित की जा सकती है तथा जिला योजना समितियाँ स्थानीय स्तर पर कार्यान्वयन का काम संभालेंगी।
  • श्रम बाजार की गतिशीलता को मजबूत करना: श्रम-प्रधान क्षेत्रों को बढ़ावा देकर माँग और आपूर्ति के अंतर को कम करने की आवश्यकता है।
    • स्नातकों की रोजगार क्षमता में सुधार लाने तथा उन्हें उभरते बाजार की आवश्यकताओं के अनुरूप बनाने के लिए कॉलेज पाठ्यक्रम की नियमित समीक्षा की जानी चाहिए।
  • श्रम संहिताएँ और गतिशीलता सुधार: चारों श्रम संहिताओं को व्यवसायों के लिए स्पष्ट संक्रमण दिशानिर्देशों के साथ समय पर लागू किया जाना चाहिए।
    • प्रवासन नीतियों को राज्यों के मक्षही श्रमिकों की सुगम आवाजाही के लिए तैयार किया जाना चाहिए, जिससे “रोजगार के लिए एक भारत” का निर्माण हो सके।
  • रोजगार सृजन के लिए क्षेत्रीय लक्ष्य: वस्त्र, पर्यटन, कृषि प्रसंस्करण, स्वास्थ्य सेवा और रियल एस्टेट जैसे क्षेत्रों को बड़े पैमाने पर रोजगार सृजन में सक्षम बनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
    • वित्त, प्रौद्योगिकी, कौशल और बाजार पहुँच के माध्यम से एमएसएमई क्षेत्र को मजबूत करने की आवश्यकता है।
    • शहरी रोजगार संकट को दूर करने के लिए चुनिंदा शहरों में पायलट शहरी रोजगार गारंटी कार्यक्रम शुरू किया जाना चाहिए।
  • गिग अर्थव्यवस्था का दोहन: गिग अर्थव्यवस्था, जिसमें 80 लाख से 1.8 करोड़ श्रमिक कार्यरत हैं, 2030 तक बढ़कर 9 करोड़ हो सकती है।
    • गिग और प्लेटफॉर्म श्रमिकों के लिए एक राष्ट्रीय नीति को क्षेत्रीय विस्तार को प्रोत्साहित करते हुए श्रमिक संरक्षण, निष्पक्ष अनुबंध और शिकायत निवारण सुनिश्चित करना चाहिए।
  • नौकरी की गुणवत्ता में सुधार: बेहतर वेतन, सुरक्षित परिस्थितियाँ और सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा के माध्यम से नौकरी की गुणवत्ता में सुधार की आवश्यकता है।
    • ग्रामीण इंटर्नशिप, स्थानीय बीपीओ केन्द्रों, दूरस्थ कार्य सुविधाओं और डिजिटल बुनियादी ढांचे के विस्तार के माध्यम से अविकसित जिलों में रोजगार सृजन के लिए लक्षित कार्यक्रम शुरू करने की आवश्यकता है, ताकि ग्रामीण-शहरी विभाजन को कम किया जा सके।
  • महिलाओं की भागीदारी: रोजगार-संबद्ध प्रोत्साहन (ELI) योजना के माध्यम से महिलाओं के रोजगार को प्रोत्साहित करने, आंगनवाड़ी और आशा कार्यकर्ताओं की भूमिकाओं को औपचारिक बनाने, तथा कार्यबल की निरंतर भागीदारी का समर्थन करने के लिए बाल तथा वृद्ध देखभाल बुनियादी ढांचे का विस्तार करने के उपाय किए जाने चाहिए।
  • मजबूत रोज़गार डेटा प्रणाली: वास्तविक समय के लिए एक समर्पित टास्क फोर्स, साक्ष्य-आधारित नीति-निर्माण को सक्षम बनाने के लिए अनौपचारिक तथा ग्रामीण कार्यबल को कवर करते हुए उच्च-गुणवत्ता वाले रोजगार डेटा को बनाए रखा जाना चाहिए।

निष्कर्ष:

समन्वित सुधारों को लागू करके, लोगों में निवेश और समान अवसर सुनिश्चित करके, भारत अपनी जनसांख्यिकीय क्षमता को वास्तविक लाभांश में परिवर्तित कर सकता है, तथा 2047 तक विकसित भारत के विजन को साकार कर सकता है।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न

प्रश्न. एक सुसंगत रोज़गार नीति के बिना, भारत का जनसांख्यिकीय लाभांश, जनसांख्यिकीय बोझ में बदल सकता है। भारत में रोज़गार सृजन में बाधा डालने वाली प्रमुख चुनौतियों पर चर्चा कीजिए। एक एकीकृत राष्ट्रीय रोज़गार नीति के माध्यम से समावेशी एवं सतत रोज़गार सुनिश्चित करने के लिए प्रमुख उपाय सुझाइए।

(10 अंक, 150 शब्द)

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