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शोषण का अंत करें: सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय और बाल तस्करी

Lokesh Pal December 24, 2025 05:00 20 0

संदर्भ:

हाल ही में दिए गए एक निर्णय में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने बाल तस्करी की “बेहद चिंताजनक वास्तविकता” पर प्रकाश डाला है। निर्णय में इस बात पर जोर दिया गया है कि मौजूदा कानूनों के बावजूद, संगठित गिरोह बच्चों का शोषण करना जारी रखे हुए हैं, जिसके लिए अधिक सशक्त और संवेदनशील कानूनी प्रतिक्रिया की आवश्यकता है।

न्यायिक रुख

  • संवैधानिक उल्लंघन: न्यायालय ने घोषित किया कि मानव तस्करी गरिमा और शारीरिक अखंडता के आधारों पर प्रहार करती है, और बच्चों को शोषण से बचाने के राज्य के वादे का उल्लंघन करती है।
  • संगठित नेटवर्क: न्यायाधीशों ने नाबालिगों की भर्ती, परिवहन और उन्हें शरण देने में शामिल अपराध गिरोहों की जटिल, बहुस्तरीय संरचना पर प्रकाश डाला है।
  • कानूनी मिसाल: पीठ ने अनैतिक व्यापार (निवारण) अधिनियम के तहत तस्करों की सजा को बरकरार रखा और पुनः पुष्टि की कि यौन शोषण एक गंभीर आपराधिक अपराध है।

संवैधानिक आधार

  • अनुच्छेद 23: मानव तस्करी और जबरन श्रम पर रोक लगाता है।
  • अनुच्छेद 24: कारखानों आदि में बालकों के नियोजन पर रोक लगाता है।

बाल गवाही के लिए दिशानिर्देश

  • संवेदनशीलता और लचीलापन: अदालतों को बच्चे की गवाही को सहानुभूति के साथ सुनना चाहिए, यह स्वीकार करते हुए कि आघात के कारण पीड़ितों के बयानों में सटीकता या स्पष्टता की कमी हो सकती है।
  • असंगतता पर विश्वसनीयता: मामूली असंगतताओं के आधार पर पीड़ित पर अविश्वास नहीं जताया जाना चाहिए। न्यायालय ने निर्णय दिया कि बच्चे का बयान किसी सह-अपराधी के बयान की तुलना में “पीड़ित गवाह” के बयान के समान महत्व रखता है।
  • आघात-आधारित न्याय: इस निर्णय में साक्ष्यों के मूल्यांकन के तरीके में बदलाव अनिवार्य किया गया है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कानूनी प्रक्रिया द्वारा बच्चों को और अधिक पीड़ित न किया जाए।

प्रवर्तन अंतराल

  • कम दोषसिद्धि दर: 2018 और 2022 के बीच 10,000 से अधिक दर्ज मामलों के बावजूद, दोषसिद्धि दर निराशाजनक रूप से 8% बनी हुई है
  • विधायी आवश्यकताएँ: मानव तस्करी विरोधी व्यापक विधेयक पारित करने और मानव तस्करी विरोधी विशेष इकाइयों को अधिक सशक्त बनाने की तत्काल आवश्यकता है।
  • डिजिटल विकास: न्यायालय ने चेतावनी दी कि मानव तस्करी अब एक “रूप बदलने वाली बुराई” है जो डिजिटल क्षेत्रों में फल-फूल रही है, जिसके लिए आधुनिक हस्तक्षेप रणनीतियों की आवश्यकता है।

रोकथाम और पुनर्वास

  • मुआवजे से परे: प्रभावी पुनर्वास के लिए केवल एक बार के वित्तीय भुगतान के बजाय दीर्घकालिक पुनर्वास पर ध्यान केंद्रित करना आवश्यक है।
  • शिक्षा एक ढाल के रूप में: शिक्षा के अधिकार (RTE) अधिनियम द्वारा अनिवार्य रूप से बच्चों को 14 वर्ष की आयु तक स्कूल में रखना एक प्राथमिक निवारक उपाय के रूप में उद्धृत किया गया है।
  • सामूहिक जिम्मेदारी: जबरन श्रम और यौन तस्करी के नेटवर्क को खत्म करने की जिम्मेदारी सरकार और नागरिक समाज दोनों पर समान रूप से है।

आगे की राह

  • मुआवज़े से परे समग्र पुनर्वास: मानव तस्करी से बचे पीड़ितों का प्रभावी पुनर्वास केवल आर्थिक सहायता तक सीमित नहीं होना चाहिए, बल्कि इसमें निरंतर मनोवैज्ञानिक परामर्श, आघात-संवेदी देखभाल तथा सामाजिक पुनर्समावेशन शामिल होना चाहिए, ताकि गरिमा और दीर्घकालिक पुनर्प्राप्ति सुनिश्चित की जा सके।
  • डिजिटल सतर्कता और साइबर पुलिसिंग की आवश्यकता: मानव तस्करी के तेजी से ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्मों की ओर स्थानांतरित होने के साथ, मजबूत डिजिटल निगरानी, ऑनलाइन ग्रूमिंग के विरुद्ध कार्रवाई तथा साइबर अपराध प्रवर्तन को सुदृढ़ करना, विकसित हो रहे तस्करी नेटवर्कों का मुकाबला करने के लिए अत्यंत आवश्यक है।
  • विधायी अंतराल और तात्कालिक कानूनी सुधार: एक व्यापक कानून के अभाव में, एंटी-ट्रैफिकिंग विधेयक को शीघ्र पारित किया जाना आवश्यक है, ताकि प्रवर्तन एजेंसियों को स्पष्ट अधिकार, अंतर-एजेंसी समन्वय और पीड़ित-केंद्रित प्रक्रियाओं के साथ सशक्त किया जा सके।

निष्कर्ष

सर्वोच्च न्यायालय का यह निर्णय पीड़ित-केंद्रित न्याय और व्यवस्थागत सुधारों को प्राथमिकता देने के लिए एक महत्वपूर्ण निर्देश है। मानव तस्करी को प्रभावी ढंग से समाप्त करने के लिए, भारत को कड़े कानूनों और जमीनी स्तर पर उनके कार्यान्वयन के बीच की खाई को कम करना होगा, जिसके लिए कठोर दंड व्यवस्था, डिजिटल सतर्कता और शिक्षा की आवश्यकता है।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न: भारत में बाल तस्करी एक ‘स्तरित संगठित अपराध’ के रूप में संचालित होती है। पीड़ितों को ‘पीड़ित गवाह’ मानने के सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश से कम दोषसिद्धि दर के लिए जिम्मेदार साक्ष्य संबंधी चुनौतियों का समाधान कैसे होता है, इस पर चर्चा कीजिए।

(10 अंक, 150 शब्द)

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