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मणिपुर में जातीय हिंसा

Lokesh Pal September 18, 2024 05:45 4 0

संदर्भ: 

मणिपुर में हिंसा के लगभग एक साल के बाद भी अशांति की समस्या बनी हुई है क्योंकि मेइती और कुकी समुदायों के मध्य जातीय हिंसा अभी भी जारी है। वर्तमान सूचनाओं के अनुसार वहाँ का संघर्ष बढ़ता जा रहा है, ड्रोन और रॉकेट बमों के इस्तेमाल की खबरें आ रही हैं, जिससे इस संघर्ष के समाधान के प्रयास और अधिक जटिल हो गए हैं।

पृष्ठभूमि 

  • पिछले वर्ष, मुख्य रूप से इम्फाल घाटी में रहने वाले मैतेई समुदाय और आसपास की पहाड़ियों में रहने वाले कुकी समुदाय के मध्य संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हो गई थी।
  • एक वर्ष बीत जाने के बावजूद भी इस जातीय संघर्ष में किसी भी प्रकार का सुधार नहीं हो पाया है, संघर्ष की वजह से प्रशासनिक कार्य प्रभावित हो रहे हैं।
  • अविश्वास इतना गहरा है कि मैतेई समुदाय पहाड़ियों से विस्थापित हो गए है, जबकि कुकी समुदाय घाटी से दूर निवास कर रहे हैं। कुकी क्षेत्रों में केंद्रीय पुलिस बलों की उपस्थिति है, जबकि मणिपुरी पुलिस, जिस पर मैतेई के प्रति पक्षपात का आरोप है, को कुकी क्षेत्रों के लोग अनुमति नहीं देते हैं। इस क्षेत्र में अर्धसैनिक बलों की तैनाती के बावजूद, हिंसा अभी भी जारी है।

मणिपुर की वर्तमान स्थिति

  • सामुदायिक अविश्वास: मैतेई और कुकी दोनों ही समुदायों के मध्य गहरा अविश्वास कायम है, जिससे जातीय आधार पर गंभीर ध्रुवीकरण हो रहा है। ध्रुवीकरण पुलिस सहित सरकारी अधिकारियों तक फैला हुआ है, जिनसे निष्पक्ष रहने की उम्मीद की जाती है, लेकिन लेकिन आरोप है कि उन्होंने ही पक्षपात दिखाया है। 

उदाहरण के लिए, मणिपुरी पुलिस पर मैतेई समुदाय का पक्ष लेने का आरोप लगाया गया है।

  • हथियारों की उपलब्धता: जब हिंसा शुरू हुई, तो पुलिस स्टेशनों से हथियार लूट लिए गए थे। इतना ही नहीं प्रभावित क्षेत्र में भारत-म्यांमार सीमा से हथियारों की आसान उपलब्धता से स्थिति और खराब हो गई है। हाल ही में तकनीकी प्रगति ने संघर्ष को और बढ़ा दिया है, जिसमें ड्रोन और अन्य आधुनिक हथियारों का उपयोग किया जा रहा है।
  • गलत व भ्रामक सूचनाओं का दुष्प्रचार: गलत सूचनाओं का  दुष्प्रचार के निरंतर प्रयासों ने नफरत को बढ़ावा दिया है और इसकी वजह से कभी-कभी हिंसा में अचानक वृद्धि भी हुई है। अधिकांश हितधारक झूठी कहानियों को फैलाने में शामिल हैं, जिसमें सोशल मीडिया इन हानिकारक और भ्रामक कहानियों को फैलाने के लिए एक प्राथमिक मंच के रूप में काम कर रहा है।
  • सुरक्षा बलों की तैनाती: निम्नलिखित कारणों से सुरक्षा बलों की तैनाती के बावजूद स्थिति काफी हद तक अपरिवर्तित बनी हुई है:
    • जटिल भूभाग: मणिपुर का जटिल भूभाग, जिसमें दूरदराज और ऊबड़-खाबड़ इलाके शामिल हैं, व्यापक जमीनी कवरेज चुनौती बना हुआ है।
    • पुलिस का ध्रुवीकरण : स्थानीय पुलिस से समर्थन की कमी के कारण अर्धसैनिक बलों की प्रभावशीलता में बाधा आती है। मणिपुरी पुलिस का ध्रुवीकरण और कथित पक्षपात केंद्रीय बलों की प्रभावशीलता में बाधा डालता है, क्योंकि महत्वपूर्ण खुफिया जानकारी अक्सर साझा नहीं की जाती है।
  • विद्रोही समूहों की संलिप्तता: घाटी में स्थित म्यांमार के विद्रोही समूह भी संघर्ष में शामिल हैं। इसके अतिरिक्त, कुकी विद्रोही समूह, जैसे कुकी एसओओ, हिंसा में सक्रिय रूप से भाग ले रहे हैं। जिरीबाम में हुई एक घटना सहित हाल की घटनाओं में कुकी और मीतेई विद्रोही समूहों, जैसे यूएनएलएफ-पाम्बेई, दोनों की संलिप्तता देखी गई है। 
  • नागरिक समाज संगठनों की भूमिका: नागरिक समाज संगठन संघर्ष समाधान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं; हालाँकि, इस मामले में, उन्होंने स्थिति को और जटिल बनाने का कार्य किया है। मैतई और कुकी दोनों समुदाय अंतर-समुदाय संवाद और समझ को बढ़ावा देने के बजाय अपने-अपने समूहों और आख्यानों का समर्थन करते हैं। इसने ध्रुवीकरण में योगदान दिया है।
  • माँग : कुकी समुदाय पृथक प्रशासन की मांग कर रहा हैं, जबकि मैतेई समुदाय मणिपुर की क्षेत्रीय अखंडता को बनाए रखने पर जोर दे रहा है और राज्य के किसी भी विभाजन का विरोध करते हैं।

प्रस्तावित समाधान

A. हिंसा नियंत्रण करना 

  • सैन्य कार्रवाई
    • भारत-म्यांमार सीमा को सील करना: संघर्ष क्षेत्रों में हथियारों की तस्करी को रोकने के लिए सीमा को पूरी तरह से सील अर्थात प्रतिबंधित करने के उपायों को लागू करना।
    • आंतरिक क्षेत्र वर्चस्व: सशस्त्र बदमाशों को रोकने और उनके संचालन को बाधित करने के लिए इम्फाल घाटी के भीतर सैन्य उपस्थिति और नियंत्रण को बढ़ाना।
    • खुफिया-आधारित ऑपरेशन: हथियारों और युद्ध जैसे भंडार को बरामद करने के लिए कूटनीतिक खुफिया जानकारी के आधार पर महत्वपूर्ण ऑपरेशन चलाना। हिंसा को कम करने के लिए प्रभावी हथियार वसूली प्रयास आवश्यक हैं।

B. विश्वास बहाली 

  • सामुदायिक सहभागिता: मैतेई और कुकी दोनों समुदायों को शामिल करने के लिए एक संरचित प्रक्रिया शुरू करने चाहिए। उनकी विशिष्ट शिकायतों को उजागर करना और उन्हें हल करने की दिशा में कदम उठाना चाहिए। साथ ही यह सुनिश्चित करना कि दोनों समुदायों की चिंताओं को ईमानदारी से शामिल किया जाए ताकि विश्वास का निर्माण हो सके।
  • शांति और सुलह आयोग: तटस्थ सदस्यों से बना एक आयोग स्थापित करना चाहिए, जो दोनों समुदायों को स्वीकार्य हो। इस आयोग को शांति और सुलह को सुविधाजनक बनाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।

C. कानूनी और प्रशासनिक कार्रवाई

  • निष्पक्ष व त्वरित जाँच : हिंसा के दौरान हुई घटनाओं से संबंधित जांच करना आवश्यक है। अधिकारियों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि आयोगों द्वारा की जा रही जांच बिना किसी देरी के पूरी हो। इसके अतिरिक्त, केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को हस्तांतरित मामलों को समय पर हल करवाया जाना चाहिए। इन मामलों का प्रभावी ढंग से प्रबंधन करने से केंद्र सरकार में जनता का विश्वास मजबूत होगा।
  • मुआवजा: संघर्ष से प्रभावित व्यक्तियों और परिवारों को मुआवजा प्रदान करवाया जाना चाहिए। वित्तीय सहायता उन लोगों के लिए महत्वपूर्ण है जिन्होंने नुकसान उठाया है और यह उपचार प्रक्रिया में मदद कर सकता है।

D. व्यापक सामुदायिक सहभागिता

  • बहु-हितधारक भागीदारी
    • व्यापक भागीदारी को प्रोत्साहित करना : समाधान प्रक्रिया में समाज के सभी वर्गों को शामिल करना। इसमें राज्य के बाहर के नागरिक समाज संगठन और मीडिया आउटलेट शामिल हो सकते हैं।
    • मीडिया की भागीदारी: जागरूकता बढ़ाने और शांति प्रक्रिया में भागीदारी को सुविधाजनक बनाने के लिए मीडिया का उपयोग किया जाना चाहिए। हालाँकि संघर्ष को संबोधित करने की प्राथमिक ज़िम्मेदारी सरकार की है, लेकिन व्यापक और स्थायी समाधान के लिए सामाजिक भागीदारी महत्वपूर्ण है।

निष्कर्ष :

मणिपुर में जातीय हिंसा को हल करने के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता है जो दीर्घकालिक सुलह प्रयासों के साथ तत्काल सुरक्षा उपायों को संतुलित कर सकता है। स्थायी शांति सामुदायिक भागीदारी और एक तटस्थ शांति आयोग जैसे विश्वास-निर्माण पहलों पर निर्भर करती है। कानूनी मामलों का त्वरित समाधान और पीड़ितों को मुआवज़ा देने से सरकार में विश्वास बहाल होगा, जबकि संघर्ष के स्थायी समाधान के लिए व्यापक सामाजिक भागीदारी आवश्यक है।

LGBTQIA+  समुदाय से संबंधित मुद्दे

भारत में LGBTQIA+ समुदाय के सामने आने वाली चुनौतियाँ:

  • भेदभाव: रोज़गार, आवास, स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा में अनुभव किया जाता है।
  • सामाजिक कलंक: होमोफोबिया और ट्रांसफोबिया हाशिए पर जाने और मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को जन्म देते हैं।
  • हिंसा और दुर्व्यवहार: सार्वजनिक स्थलों पर हिंसा की उच्च दर, विशेष रूप से ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को प्रभावित करती है।
  • सीमित पहुँच: शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और रोज़गार जैसी मूलभूत सेवाओं तक सीमित पहुंच।
  • कानूनों का अभाव: यौन अभिविन्यास या लिंग पहचान से संबंधित विशिष्ट भेदभाव-विरोधी कानूनों का अभाव।
  • अपर्याप्त प्रतिनिधित्व: राजनीति और मीडिया में सीमित या आबादी के अनुपात में, अपर्याप्त उपस्थिति।
  • कार्यान्वयन अंतराल: मौजूद सुरक्षा को खराब तरीके से लागू किया जाता है।
  • ग्रामीण चुनौतियाँ: ग्रामीण क्षेत्रों में सहायता और संसाधनों तक पहुँच की कमी।

भेदभाव के परिणाम:

  • उच्च ड्रॉपआउट दरें: LGBTQIA+ युवाओं को अक्सर स्कूलों में भेदभाव का सामना करना पड़ता है, जिसके कारण उच्च ड्रॉपआउट दरें होती हैं।
  • गरीबी: सीमित नौकरी के अवसर गरीबी और शोषण में योगदान करते हैं।
  • मानसिक स्वास्थ्य: अवसाद, चिंता और मादक द्रव्यों के सेवन की बढ़ी हुई दरें।
  • बेघर होना: कई LGBTQIA+ युवा परिवार द्वारा अस्वीकार किए जाने के कारण बेघर होने का अनुभव करते हैं।

मुख्य परीक्षा पर आधारित प्रश्न :

प्रश्न: भारत में LGBTQ+ समुदाय के सामने आने वाली कानूनी और सामाजिक चुनौतियों की जाँच करें। इन मुद्दों को हल करने के लिए क्या उपाय अपनाए जा सकते हैं?

(15M, 250 शब्द)

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