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76वें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या : राष्ट्र के नाम राष्ट्रपति का संबोधन

Lokesh Pal January 27, 2025 05:15 72 0

संदर्भ:

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 76वें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्र को संबोधित करते हुए भारत की उपलब्धियों पर प्रकाश डाला।

राष्ट्रपति अभिभाषण के मुख्य अंश:

  • संविधान एक जीवंत दस्तावेज : राष्ट्रपति ने संविधान की मजबूती का श्रेय भारत के हजारों साल पुराने नागरिक गुणों को दिया, जिसने इसे राष्ट्र का प्रभावी ढंग से मार्गदर्शन करने में सक्षम बनाया है।
    • उन्होंने मसौदा समिति के अध्यक्ष डॉ. बी.आर. अंबेडकर और संविधान सभा के अन्य सदस्यों को उनके दूरदर्शी योगदान के लिए श्रद्धांजलि दी।
  • संवैधानिक मूल्य: महामहिम राष्ट्रपति मुर्मू ने अपने संबोधन के माध्यम से भारत के संवैधानिक मूल्यों और इसके सभ्यतागत लोकाचार के बीच अंतर्निहित संबंध पर प्रकाश डाला।
    • इसके अलावा उन्होंने न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के सिद्धांतों को भारतीय परंपराओं में गहराई से निहित बताया गया, जो देश के लोकतांत्रिक ढांचे को मजबूत करते हैं।
  • संविधान सभा में महिलाओं का प्रतिनिधित्व : राष्ट्रपति ने संविधान सभा की उन 15 महिला सदस्यों का सम्मान किया जिन्होंने ऐसे समय में भारत के भाग्य को आकार देने में योगदान दिया जब दुनिया के अधिकांश हिस्सों में महिलाओं की समानता एक जटिल मुद्दा बनी हुई थी।
  • राष्ट्र निर्माण में महिलाओं की भूमिका: उन्होंने राष्ट्र निर्माण में भारतीय महिलाओं द्वारा की गई प्रगति पर प्रकाश डाला, देश की प्रगति में उनकी केंद्रीय भूमिका की पुष्टि की।
  • प्रतिनिधि चरित्र: राष्ट्रपति ने संविधान सभा की समावेशी प्रकृति की सराहना की, जिसने देश भर के समुदायों और क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व किया, जिसने देश की विविधता को प्रदर्शित किया।
  • औपनिवेशिक कानूनों को भारतीय न्यायशास्त्र की परंपराओं में ढालना :  उन्होंने केंद्र सरकार के सुधारों की सराहना की, विशेष रूप से औपनिवेशिक युग के आपराधिक कानूनों को भारतीय न्यायशास्त्र की परंपराओं में निहित तीन नए कानूनों से बदलने की।
    • इन सुधारों के पीछे “दूरदर्शिता की दुस्साहसता” को भारत की कानूनी और प्रशासनिक प्रणालियों को पुनः प्राप्त करने की दिशा में एक कदम के रूप में देखा गया।

‘एक राष्ट्र एक चुनाव’ के मुद्दे पर राष्ट्रपति का दृष्टिकोण  :

  • सुशासन: राष्ट्रपति ने इस प्रस्ताव को बढ़ावा देने के तरीके के रूप में समर्थन दिया:
    • शासन में निरंतरता: चुनावों में देरी के कारण होने वाले लगातार व्यवधानों को कम करने में मदद मिलेगी।
    • नीति स्थिरता: इसके माध्यम से वर्तमान चुनावी चक्रों के कारण नीतिगत पक्षाघात को रोकने में मदद मिलेगी।
    • संसाधन दक्षता: बार-बार होने वाले चुनावों से जुड़े वित्तीय बोझ और संसाधनों के विचलन को कम करना।
  • विधायी स्थिति: सरकार द्वारा पेश किए गए एक साथ चुनाव कराने संबंधी मसौदा विधेयक की वर्तमान में संसद की एक संयुक्त समिति द्वारा समीक्षा की जा रही है।
  • संवैधानिक चिंताएँ: विपक्षी दलों का तर्क है कि यह प्रस्ताव संविधान के संघीय ढांचे को कमजोर करके संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन करता है। यह विकेंद्रीकृत शासन के सिद्धांतों का खंडन करता है, जो राज्यों को स्वायत्त रूप से कार्य करने की अनुमति देता है।
  • केंद्रीकरण के आरोप: कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने आरोप लगाया है कि यह योजना “एक राष्ट्र, एक पार्टी” एजेंडे को दर्शाती है, जिसका उद्देश्य लोकतांत्रिक बहुलवाद और विपक्षी दलों की लोकतंत्र में, आवाज़ों को कमज़ोर करना है।
    • आलोचकों को डर है कि एक साथ चुनाव कराने से भारत के लोकतंत्र की विविधता और संघीय प्रकृति कमजोर हो सकती है।
  • विवादास्पद रुख: एक साथ चुनाव कराने के विचार को राष्ट्रपति के समर्थन की आलोचना इस आधार पर की जा रही है कि वह पक्षपातपूर्ण राजनीतिक बहस के केंद्र में नजर आ रही हैं। 
    • आलोचकों का तर्क है कि ऐसे मामले विवादास्पद और राजनीतिक रूप से आवेशित होने के कारण, उन्हें निर्वाचित प्रतिनिधियों और सार्वजनिक चर्चा के लिए छोड़ देना ही बेहतर है।

निष्कर्ष:

भारत के प्रथम नागरिक के रूप में, राष्ट्रपति से विभाजनकारी राजनीतिक मुद्दों पर तटस्थ रहने की अपेक्षा की जाती है। अतः कुछ विवादास्पद व राजनैतिक मुद्दों पर सरकार को राष्ट्रपति की संवैधानिक निष्पक्षता की धारणा से समझौता करने से बचने के लिए सावधानी से कदम उठाना चाहिए।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न. भारत के राष्ट्रपति ने अपने गणतंत्र दिवस के संबोधन में सुशासन को फिर से परिभाषित करने के साधन के रूप में एक साथ चुनाव कराने की वकालत की। भारतीय संघीय ढांचे में एक साथ चुनाव लागू करने की संभावनाओं का आलोचनात्मक विश्लेषण करें।

(15 अंक, 250 शब्द)

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