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भारत में संपत्ति कर का विकास : एक समग्र अवलोकन

Lokesh Pal December 24, 2024 05:45 12 0

संदर्भ :

भारत में संपत्ति और विरासत करों को लागू करने में ऐतिहासिक और वर्तमान चुनौतियाँ विद्यमान हैं, जैसे- कर चोरी, उच्च प्रशासनिक लागत और पूँजी पलायन का जोखिम आदि । ये चुनौतियाँ ऐसे करों को लागू करने संबंधी पूर्व प्रयासों में भी रही हैं, जिसमें वर्ष 1985 में संपदा शुल्क का उन्मूलन और वर्ष 2015 में संपत्ति कर शामिल हैं।

संपत्ति कराधान का इतिहास

  • स्विट्जरलैंड : संपत्ति कराधान कोई नवीन अवधारणा नहीं है। यह 19वीं शताब्दी से चली आ रही है, जब स्विट्जरलैंड के बेसल शहर ने 1840 ई. में इस प्रकार का एक कर प्रस्तुत किया था।
  • अन्य राष्ट्र : अन्य राष्ट्रों ने भी इसका अनुसरण किया, जिसमें 1892 में नीदरलैंड और 1911 में स्वीडन शामिल हैं।
  • भारत : भारत वर्ष 1957 में इस सूची में शामिल हुआ, जब वित्त मंत्री टी. टी. कृष्णमचारी ने संपत्ति कर लागू किया।
  • उन्मूलन : हालाँकि, समय के साथ इस कर को लगाने वाले देशों की संख्या कम हो गई है। उदाहरण के लिए, कर लगाने वाले OECD राष्ट्रों की संख्या वर्ष 1990 में 12 से घटकर 2017 में चार हो गई। भारत ने 2015 में इसे समाप्त कर दिया। 

नोट : संपत्ति कर करदाताओं के स्वामित्व वाली कुछ संपत्तियों, जैसे- स्टॉक, रियल एस्टेट और व्यवसायों के मूल्य पर लगाया जाता है, जो मुख्य रूप से समाज के धनी वर्ग को लक्षित करता है। इस कर का मुख्य उद्देश्य आय असमानता को कम करना तथा करदाताओं के बीच समानता को बढ़ावा देना है। 

संपत्ति कराधान पर नए सिरे से चर्चा 

  • हाल के वर्षों में, आय असमानता पर बढ़ती चिंताओं के कारण संपत्ति पर कर लगाने का विचार पुनः सामने आया है। 
  • थॉमस पिकेटी द्वारा अध्ययन : अर्थशास्त्री थॉमस पिकेटी और उनके सहयोगियों द्वारा किए गए एक अध्ययन में भारत में असमानता में तीव्र वृद्धि पर प्रकाश डाला गया है, मुख्य रूप से वर्ष 2014-15 के बाद। 
    • इस शोध स्पष्ट है, कि 2022-23 में शीर्ष 1% आय अर्जित करने वाले लोगों के पास देश की आय का 22.6% तथा इसकी संपत्ति का 40.1% हिस्सा होगा | यह आँकड़ा दक्षिण अफ्रीका, ब्राजील और संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे देशों से भी अधिक है।
  • भारत के लिए पिकेटी की सिफारिशें : पिकेटी और उनके सह-लेखकों ने ₹10 करोड़ से अधिक की शुद्ध संपत्ति पर 2% वार्षिक कर और उसी सीमा से ऊपर की संपत्ति पर 33% विरासत कर का प्रस्ताव रखा है।

कर चोरी और पूँजी पलायन 

  • कर चोरी का इतिहास : 7वीं शताब्दी ईसा पूर्व का एक प्राचीन मिस्र का पपीरस एक व्यक्ति की कहानी बताता है, जो अपनी संपत्ति का कम मूल्यांकन करके विरासत करों से बचने का प्रयास करता है। इस प्रकार  की चोरी की सज़ा कोड़े मारना था । 
  • पूँजी पलायन : आधुनिक विश्व में, पूँजी की गतिशीलता जटिलता की एक और बिंदु है। उच्च कर पूँजी पलायन का कारण बन सकते हैं, जहाँ धनी व्यक्ति दुबई जैसे कर-अनुकूल क्षेत्राधिकारों में बसने के लिए देश छोड़ देते हैं। 
    • नॉर्वे का उदाहरण : यह नॉर्वे जैसे देशों में देखा गया है, जहाँ संपत्ति करों में वृद्धि के कारण कई उच्च-निवल-मूल्य वाले व्यक्ति प्रवास कर गए। 
  • भारत का उदाहरण : भारत में भी विदेश में प्रवास और बसने वाले धनी व्यक्तियों की संख्या में वृद्धि देखी गई है। 2023 में वित्तीय और कर-संबंधी कारणों का हवाला देते हुए लगभग 5,100 भारतीय करोड़पति विदेश चले गए।
  • भारत में संपत्ति की अनूठी प्रकृति : भारत में संपत्ति का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा भूमि, अचल संपत्ति और सोने से जुड़ा हुआ है।
    • इन परिसंपत्तियों को आसानी से भुनाया नहीं जा सकता, जिससे प्रश्न उठता है कि व्यवहार में संपत्ति कर कैसे लागू किया जाएगा।
  • संपत्ति कर के विरुद्ध तर्क : यह देखते हुए कि भारत में संपत्ति सृजन अभी भी अपने प्रारम्भिक चरण में है, ऐसे कर लगाने से आर्थिक प्रगति में बाधा आ सकती है।
    • यह व्यक्तियों के लिए अधिक धन कमाने और निवेश करने की प्रेरणा को कम कर सकता है, जिससे देश की वृद्धि धीमी हो सकती है।
    • इसके अतिरिक्त, यह निजी संपत्ति सृजन और उद्यमशीलता को हतोत्साहित करके अपने समाजवादी अतीत से दूर जाने की दिशा को बदल सकता है।

चुनौतियाँ और पूर्व अनुभव

  • कार्यान्वयन की चुनौतियाँ : संपत्ति करों की अपील के बावजूद, उनका कार्यान्वयन कठिनाइयों से परिपूर्ण है।
  • लक्ष्य प्राप्ति में संपत्ति शुल्क अप्रभावी : 1985 में, जब वित्त मंत्री वी. पी. सिंह ने संपत्ति शुल्क (विरासत कर) को समाप्त कर दिया, तो उन्होंने कहा कि इसका क्रियान्वयन अपेक्षित रूप से महँगा था और इसकी राजस्व प्राप्ति न्यूनतम थी, जिसमें लगभग ₹20 करोड़ एकत्र किए गए थे।
    • उन्होंने स्वीकार किया, कि कर आय असमानता को कम करने और राज्य विकास परियोजनाओं का समर्थन करने के अपने अपेक्षित लक्ष्यों को प्राप्त करने में विफल रहा है।
  • लक्ष्य प्राप्ति में संपत्ति कर अप्रभावी : इसी प्रकार जब 2015 में संपत्ति कर को समाप्त कर दिया गया था, तो वित्त मंत्री अरुण जेटली ने 2013-14 में कर से ₹1,008 करोड़ की न्यूनतम राजस्व प्राप्ति पर प्रकाश डाला था, जो सरकार के कुल कर राजस्व का 0.1% से भी कम था। 
    • उन्होंने तर्क दिया, कि उच्च प्रशासनिक लागत और निम्न आय वाले करों को अधिक कुशल विकल्पों से प्रतिस्थापित किया जाना चाहिए। 

आगे की राह

  • जीएसटी का अनुपालन : जीएसटी अनुपालन को मजबूत करना आवश्यक है, क्योंकि कई उत्पाद अभी भी इसके दायरे से बाहर हैं।
  • आयकर प्रणाली में सुधार : आयकर प्रणाली को सुव्यवस्थित और सरल बनाने से कार्यकुशलता बढ़ सकती है, कर आधार व्यापक हो सकता है तथा करदाताओं पर अनुपालन का बोझ कम हो सकता है।
  • विलासिता उपभोग कर लगाना : विलासिता उपभोग कर लगाने से उच्च-स्तरीय वस्तुओं और सेवाओं को लक्षित किया जा सकता है, जिससे अधिक राजस्व उत्पन्न हो सकता है; साथ ही असमानता को दूर किया जा सकता है।

निष्कर्ष

संपत्ति कर संबंधी चर्चाएँ जटिल है, जिसमें कर चोरी और पूँजी पलायन जैसी चुनौतियों के साथ असमानता को कम करने की क्षमता को संतुलित करना शामिल है। हालाँकि यह सामाजिक कार्यक्रमों के लिए संसाधन जुटा सकता है, लेकिन भारत में इसका क्रियान्वयन संपत्ति की प्रकृति और प्रशासनिक लागतों के कारण जटिल है; साथ ही समता और आर्थिक विकास के मध्य संतुलन बनाना महत्त्वपूर्ण बना हुआ है।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न 

जबकि संपत्ति कर को असमानता वृद्धि के एक समाधान के रूप में प्रस्तावित किया जाता है, इसके कार्यान्वयन में कई चुनौतियाँ विद्यमान हैं। भारत में संपत्ति कर की व्यवहार्यता का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिए, इसके ऐतिहासिक अनुभव, वैश्विक रुझानों, आर्थिक विकास और सामाजिक समता संबंधी प्रभावों पर विचार कीजिए ।

(15 अंक, 250 शब्द)

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