प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: दंड प्रक्रिया संहिता, भारत निर्वाचन आयोग की धारा 144
मुख्य परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: चुनाव आयोग और आदर्श आचार संहिता से जुड़ी चुनौतियाँ
सन्दर्भ:
हाल ही में, मतदान के समय पर प्रतिबंधों के खिलाफ याचिका सार्वजनिक भागीदारी से संबंधित विषयों पर वैध सवाल उठाती है।
चुनाव प्रतिबंधात्मक आदेश को चुनौती देना:
चुनाव प्रतिबंधात्मक आदेश: चुनाव के समय प्रतिबंधात्मक आदेश पर शायद ही कभी सवाल उठाए जाते हैं, भले ही वे पूर्ण प्रतिबंध के समान हों जो सभी सभाओं पर रोक लगाते हैं।
आदेश को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई: मौजूदा आम चुनाव से पहले अनधिकृत बैठकों और जुलूसों को रोकने के लिए प्रतिबन्ध लागू करने को कई कार्यकर्ताओं द्वारा भारत के उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी गई है।
आवेदन प्रक्रिया में असमानता: राजनीतिक दल नियमित रूप से रैलियों, सार्वजनिक बैठकों और रोड शो के लिए अनुमति माँगते हैं।
समान अनुमतियाँ माँगते समय नागरिक समाज समूहों को अक्सर गैर-जिम्मेदारी या इनकार का सामना करना पड़ता है।
चिंताएँ: अधिकारियों का लक्ष्य चुनाव अभियानों के दौरान सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखना है।
व्यापक आदेशों और आवेदनअस्वीकृतियों की संवैधानिकता के संबंध में वैध प्रश्न उठता है।
नागरिक समाज की गतिविधियों पर प्रभाव: प्रतिबंधात्मक आदेश के कारण याचिकाकर्ता मतदाता जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करने में असमर्थ हैं।
यह मतदाताओं को चुनाव उम्मीदवारों और हलफनामों में किए गए खुलासों के बारे में सूचित करने के प्रयासों में बाधा डालता है।
धारा 144 पर प्रश्नचिन्ह:
धारा 144: यह कानून भारत में किसी भी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश के मजिस्ट्रेट को एक निर्दिष्ट क्षेत्र में चार या अधिक लोगों के इकट्ठा होने पर रोक लगाने का आदेश पारित करने का अधिकार देता है।
धारा 144 की सीमाएँ: धारा 144 व्यक्तियों को कार्यों को निर्देशित करने या विशिष्ट गतिविधियों में शामिल होने से रोकने का अधिकार देती है।
अदालती फैसलों ने इस शक्ति को सीमित कर दिया है, खासकर सभाओं और सार्वजनिक कार्यक्रमों के संदर्भ में।
धारा 144 आदेशों की प्रतिबंधात्मक प्रकृति: धारा 144 के तहत आदेश आम तौर पर सभाओं को सीमित करते हैं और इस दौरान की जाने वाली सार्वजनिक गतिविधियों के लिए अनुमति की आवश्यकता होती है।
इस तरह के प्रतिबंध लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में जनता की भागीदारी में बाधक बन सकते हैं।
न्यायिक प्रतिक्रिया: अदालतें विशेष रूप से मतदाता शिक्षा गतिविधियों से संबंधित व्यापक धारा 144 आदेशों की वैधता पर सवाल उठाती हैं।
अंतरिम आदेश सार्वजनिक समारोहों के लिए आवेदनों के समय पर प्रसंस्करण का निर्देश देते हैं।
चुनाव प्रभाव: बहस इस बात पर उठती है कि क्या चुनाव सार्वजनिक भागीदारी पर पूर्ण प्रतिबंध को उचित ठहराते हैं।
भारतीय चुनाव आयोग (ईसीआई) की भूमिका और ऐसे प्रतिबंधों पर इसके संभावित प्रभाव पर सवाल उठाया गया है।
चिंताएँ उठाई गईं: इस बात पर बहस कि क्या चुनाव-संबंधी शक्तियाँ सार्वजनिक गतिविधियों पर व्यापक प्रतिबंधों को उचित ठहरा सकती हैं।
नामित प्राधिकारियों से ECI को वैधानिक शक्तियों का संभावित स्थानांतरण संवैधानिक प्रश्न उठाता है।
निष्कर्ष
अंततः यह मामला सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने और लोकतांत्रिक भागीदारी सुनिश्चित करने के बीच नाजुक संतुलन पर प्रकाश डालता है। चुनावों के दौरान विवेकाधीन शक्तियों की सीमा और नागरिक स्वतंत्रता पर उनके प्रभाव को निर्धारित करने के लिए आगे की जाँच की आवश्यकता है।
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