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राजकोषीय संघवाद : खनिजों पर राज्यों का कर लगाने का अधिकार

Lokesh Pal July 27, 2024 05:00 92 0

संदर्भ: 

हाल ही में, राजकोषीय संघवाद को न्यायिक चर्चा में प्रमुख स्थान मिला है ऐसा अक्सर नहीं होता है इसलिए यह चर्चा का विषय बना हुआ है।  

प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: खान एवं खनिज (विकास एवं विनियमन) अधिनियम, 1957, सातवीं अनुसूची, अनुच्छेद 246, अनुच्छेद 254, आदि। 

मुख्य परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: खनिज अधिकारों पर कर लगाने की राज्यों की क्षमता, राजकोषीय संघवाद की न्यायिक चर्चा के प्रावधान आदि।

राजकोषीय संघवाद:

  • हाल ही में, सर्वोच्च न्यायालय के एक निर्णय में 8:1 के भारी बहुमत से कहा गया कि राज्य खनिज अधिकारों और खनिज-युक्त भूमि पर कर लगा सकते हैं। यह वास्तव में एक ऐतिहासिक निर्णय है, क्योंकि यह संसद के हस्तक्षेप से उनके विधायी क्षेत्र की रक्षा करता है। 
  • दशकों से यह माना जाता रहा है कि केंद्रीय कानून, खान एवं खनिज (विकास एवं विनियमन) अधिनियम, 1957 के प्रचलन के कारण राज्यों को अपनी भूमि से निकाले गए खनिज संसाधनों पर कोई भी कर लगाने का अधिकार नहीं है।
  • यद्यपि खनिज अधिकारों पर कर लगाने का अधिकार राज्यों को सातवीं अनुसूची की राज्य सूची में प्रविष्टि 50 के माध्यम से प्रदान किया गया है, फिर भी इसे “खनिज विकास से सम्बन्धित संसद द्वारा कानून द्वारा लगाए गए किसी भी प्रतिबंध के अधीन” बनाया गया है।

केंद्र सरकार के तर्क

  • केंद्र सरकार ने तर्क दिया कि उसके 1957 के कानून का अस्तित्व ही राज्यों के खनिज अधिकारों पर कर लगाने की शक्ति पर एक सीमा थी। 

न्यायायल के तर्क 

  • लेकिन भारत के मुख्य न्यायाधीश डॉ. डी.वाई. चंद्रचूड़ ने खंडपीठ की ओर से लिखते हुए अधिनियम के प्रावधानों की जांच की और निष्कर्ष निकाला कि इसमें ऐसी कोई सीमा नहीं है।
  • अतः 1957 के अधिनियम द्वारा परिकल्पित रॉयल्टी को किसी भी प्रकार से कर नहीं माना गया।
  • संघ को उम्मीद थी कि एक बार रॉयल्टी को कर के रूप में स्वीकार कर लिया गया, तो वह पूरी तरह से क्षेत्र पर कब्जा कर लेगा और इस तरह खनिज अधिकारों पर कर लगाने के लिए राज्यों के दायरे को खत्म कर देगा।
  • हालांकि, न्यायालय ने रॉयल्टी को खनिज अधिकारों के अनुकूल एक संविदात्मक विचार के रूप में देखना चुना।
  • साथ ही, इसने फैसला सुनाया कि राज्य प्रविष्टि 49 के तहत खनिज युक्त भूमि पर कर लगा सकते हैं, जो भूमि पर कर लगाने की एक सामान्य शक्ति है।

भारतीय संविधान में अनुच्छेद 246:

  • अनुच्छेद 246 संसद् तथा राज्य विधान-मंडलों द्वारा बनाई गई विधियों की विषय-वस्तु।
    1. खंड (2) और (3) में किसी बात के होते हुए भी, संसद को सातवीं अनुसूची की सूची 1 में (जिसे इस संविधान में “संघ सूची” कहा गया है) सूचीबद्ध किसी भी विषय के सम्बन्ध में कानून बनाने की अनन्य शक्ति है।
    2. खंड (3) में किसी बात के होते हुए भी, संसद को खंड (1) के अधीन रहते हुए, किसी राज्य के विधानमंडल को भी, सातवीं अनुसूची की सूची 3 में (जिसे इस संविधान में “समवर्ती सूची” कहा गया है) प्रगणित किसी भी विषय के सम्बन्ध में कानून बनाने की शक्ति है।
    3. खंड (1) और (2) के अधीन रहते हुए, किसी राज्य के विधानमंडल को सातवीं अनुसूची की सूची 2 में (जिसे इस संविधान में ‘राज्य सूची’ कहा गया है) प्रगणित किसी भी विषय के सम्बन्ध में ऐसे राज्य या उसके किसी भाग के लिए कानून बनाने की अनन्य शक्ति है।
    4. संसद को भारत के राज्यक्षेत्र के किसी ऐसे भाग के लिए किसी विषय के सम्बन्ध में कानून बनाने की शक्ति है जो राज्य में सम्मिलित नहीं है, भले ही वह विषय राज्य सूची में सूचीबद्ध हो।

भारतीय संविधान में अनुच्छेद 254:

  • अनुच्छेद 254, संसद द्वारा बनाए गए कानूनों और राज्यों के विधानमंडलों द्वारा बनाए गए कानूनों के बीच असंगतता से सम्बन्धित प्रावधान करता है। 
    1. यदि किसी राज्य के विधानमंडल द्वारा बनाई गई विधि का कोई उपबंध संसद द्वारा बनाई गई विधि के किसी उपबंध के, जिसे अधिनियमित करने के लिए संसद सक्षम है, या समवर्ती सूची में प्रगणित किसी विषय के  सम्बन्ध में किसी विद्यमान विधि के किसी उपबंध के प्रतिकूल है, तो खंड (2) के उपबंधों के अधीन रहते हुए, संसद द्वारा बनाई गई विधि, चाहे वह ऐसे राज्य के विधानमंडल द्वारा बनाई गई विधि से पहले या बाद में पारित की गई हो, या, यथास्थिति, विद्यमान विधि, अभिभावी होगी और राज्य के विधानमंडल द्वारा बनाई गई विधि, प्रतिकूलता की सीमा तक शून्य होगी।
    2. जहां किसी राज्य के विधानमंडल द्वारा समवर्ती सूची में सूचीबद्ध विषयों में से किसी के  सम्बन्ध में बनाई गई विधि में कोई ऐसा उपबंध अंतर्विष्ट है जो उस विषय के  सम्बन्ध में संसद द्वारा पहले बनाई गई किसी विधि या किसी विद्यमान विधि के उपबंधों के विरुद्ध है, वहां ऐसे राज्य के विधानमंडल द्वारा इस प्रकार बनाई गई विधि, यदि वह राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित रखी गई है और उसे उसकी अनुमति प्राप्त हो गई है तो वह उससे सम्बन्धित राज्य में अभिभावी होगी:
      1. परंतु इस खंड की कोई बात संसद को किसी भी समय उसी विषय के सम्बन्ध में कोई कानून बनाने से नहीं रोकेगी, जिसके अंतर्गत राज्य के विधानमंडल द्वारा बनाए गए कानून में परिवर्धन, संशोधन, परिवर्तन या निरसन करने वाला कानून भी है।

  • 53. तेलक्षेत्रों और खनिज तेल संसाधनों; पेट्रोलियम और पेट्रोलियम उत्पादों; अन्य तरल पदार्थों और पदार्थों का विनियमन और विकास, जिन्हें संसद ने विधि द्वारा खतरनाक रूप से ज्वलनशील घोषित किया है।
  • 54. खानों का विनियमन और खनिज विकास उस सीमा तक जिस सीमा तक संघ के नियंत्रण के अधीन ऐसा विनियमन और विकास संसद द्वारा विधि द्वारा लोकहित में समीचीन घोषित किया गया है।
  • 50. खनिज विकास से सम्बन्धित संसद द्वारा कानून बनाकर अधिरोपित किसी भी सीमा के अधीन खनिज अधिकारों पर कर लगाना शामिल है।

  • उद्देश्य और प्रकृति:
    • रॉयल्टी: संसाधनों के उपयोग के लिए भुगतान।
    • कर: सरकार को अनिवार्य योगदान।
    • उदाहरण:
      • रॉयल्टी: कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) खदानों से कोयला निकालने के लिए राज्य सरकारों को रॉयल्टी का भुगतान करती है।
      • कर: आयकर दायरे में आने वाला प्रत्येक कामकाजी व्यक्ति केंद्र सरकार को आयकर का भुगतान करता है।
  • कानूनी आधार:
    • रॉयल्टी: आमतौर पर अनुबंधों या समझौतों पर आधारित होती है।
    • कर: संविधान और विशिष्ट कानूनों द्वारा लगाया जाता है। 
    • उदाहरण:
      • रॉयल्टी: ओएनजीसी तेल निष्कर्षण के लिए राज्यों को पूर्व-निर्धारित दरों पर रॉयल्टी का भुगतान करती है, जो समझौतों के अनुसार निर्धारित होती है। 
      • कर: जीएसटी अर्थात वस्तु एवं सेवा कर एक ऐसा कर है जो जीएसटी अधिनियम के माध्यम से लगाया जाता है, जिसे संवैधानिक संशोधन के बाद लागू किया गया है।
  • दरों में लचीलापन:
    • रॉयल्टी: दरों को अपेक्षाकृत आसानी से समायोजित किया जा सकता है।
    • कर परिवर्तन सम्बन्धी प्रावधान : दरों को बदलने के लिए विधायी प्रक्रिया की आवश्यकता होती है।
    • उदाहरण:
      • रॉयल्टी: खान मंत्रालय रॉयल्टी दरों में संशोधन कर सकता है, जैसा कि 2022 में कोयला रॉयल्टी दरों के लिए किया गया था।
      • कर: आयकर स्लैब या दरों को बदलने के लिए वित्त विधेयक पारित करने की आवश्यकता होती है, जो आमतौर पर वार्षिक बजट में किया जाता है।
  • संवैधानिक स्थिति:
    • रॉयल्टी प्रावधान : संविधान में स्पष्ट रूप से रायल्टी प्रावधानों का उल्लेख नहीं किया गया है।
    • कर: संविधान में स्पष्ट रूप से परिभाषित और वर्गीकृत किया गया है।
    • उदाहरण:
      • रॉयल्टी: संविधान में खनिज रॉयल्टी का सीधे तौर पर उल्लेख नहीं किया गया है; इसे खान और खनिज अधिनियम जैसे कानूनों द्वारा विनियमित किया जाता है। 
      • कर: संविधान की 7वीं अनुसूची में विभिन्न प्रकार के करों और उनके लगाने की शक्तियों का स्पष्ट उल्लेख है 
      • उदाहरण के लिए, आयकर के लिए संघ सूची में प्रविष्टि 82।

सुचनाओं का संग्रह:

  • राजकोषीय संघवाद और स्वायत्तता के समर्थक विशेष रूप से इस तथ्य का स्वागत करेंगे कि यह निर्णय राज्यों के लिए एक महत्वपूर्ण नया कराधान मार्ग खोल सकता है, तथा यह टिप्पणी कि राज्यों की कराधान शक्तियों में किसी भी प्रकार की कमी से लोगों को कल्याणकारी योजनाएं और सेवाएं प्रदान करने की उनकी क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। 
  • हालांकि, न्यायमूर्ति बी. वी. नागरत्ना द्वारा अपनी असहमति के पक्ष में तर्क दिया गया कि यदि न्यायालय केंद्रीय कानून को राज्य की कराधान शक्तियों पर एक सीमा के रूप में मान्यता नहीं देता है, तो इसके अवांछनीय परिणाम होंगे क्योंकि राज्य अतिरिक्त राजस्व प्राप्त करने के लिए अस्वस्थ प्रतिस्पर्धा में प्रवेश करेंगे, जिसके परिणामस्वरूप खनिजों की लागत में असमान और असमन्वित वृद्धि होगी; और खनिजों के खरीदारों को बहुत अधिक भुगतान करना पड़ेगा, जिससे औद्योगिक उत्पादों की कीमत में वृद्धि होगी।
  • इसके अलावा, राष्ट्रीय बाजार का उपयोग मध्यस्थता के लिए किया जा सकता है।
  • इन निहितार्थों को देखते हुए, यह संभव है कि केंद्र राज्यों की कराधान शक्ति पर स्पष्ट सीमाएं लगाने के लिए कानून में संशोधन करने की मांग करे या ​उन्हें खनिज अधिकारों पर कर लगाने से भी रोक दे। 
  • हालांकि, इस तरह के कदम से खनन गतिविधियां पूरी तरह से कर के दायरे से बाहर हो सकती हैं, क्योंकि बहुमत ने यह भी माना है कि संसद के पास खनिज अधिकारों पर कर लगाने की विधायी क्षमता का अभाव है।

निष्कर्ष:

अतः इस मुद्दे की गंभीरता को देखते हुए, सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले से राज्यों को खनिज अधिकारों पर कर लगाने का अधिकार मिलता है, जिससे राजकोषीय संघवाद और राज्य स्वायत्तता बढ़ती है, लेकिन संभावित आर्थिक असंतुलन और शोषण के बारे में चिंताएं भी पैदा होती हैं अतः संतुलित दृष्टिकोण के साथ चिंताओं का निराकरण करना आवश्यक है। 

मुख्य परीक्षा पर आधारित प्रश्न: 

प्रश्न: खनिज अधिकारों पर कर लगाने के राज्यों के अधिकार पर संसदीय प्रतिबंधों के प्रभावों की जाँच करें। साथ ही स्पष्ट करें कि ये सीमाएँ राज्यों की वित्तीय स्वायत्तता को किस प्रकार प्रभावित कर सकती हैं? 

(15 अंक, 250 शब्द)

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