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अनुच्छेद 370 समाप्ति के पांच वर्ष : कश्मीर में पाकिस्तान की प्रतिक्रिया

Lokesh Pal August 09, 2024 05:30 58 0

संदर्भ: 

अनुच्छेद 370 को समाप्त किये गये अगस्त में पांच वर्ष पूर्ण हो चुके हैं। कश्मीर में किए गए संवैधानिक परिवर्तन ने इस मुद्दे को भारत और पाकिस्तान के बीच संबंधों के लिए अप्रासंगिक बना दिया है जिससे यह चर्चा में है। 

 

प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: अनुच्छेद 370, भारत और पाकिस्तान के बीच 1972 का द्विपक्षीय समझौता, मानचित्र आदि।

मुख्य परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद कश्मीर मुद्दा, जम्मू में सीमा पार आतंकवाद, कश्मीर में उग्रवाद, आदि।

धारा 370 की समाप्ति के पाँच वर्ष बाद की स्थिति :

  • पश्चिम के साथ भारत की बढ़ती साझेदारी ने कश्मीर प्रश्न का अंतर्राष्ट्रीयकरण करने के पाकिस्तान और चीन के प्रयासों को विफल करने में मदद की है।
  • इसका मतलब यह नहीं है कि यह मुद्दा पाकिस्तान के साथ संघर्ष के खाके से गायब हो गया है।
  • जबकि कश्मीर में स्थानीय सुरक्षा के मुद्दे महत्वपूर्ण बने हुए हैं, दिल्ली कश्मीर प्रश्न की वैश्विक महत्ता को महत्वपूर्ण रूप से कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।
  • जब से दिल्ली ने 1948 में इस मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र में ले जाने का निर्णय लिया है, तब से भारत की कश्मीर नीति पर अंतर्राष्ट्रीय आयाम का भारी प्रभाव पड़ा है।
  • बांग्लादेश के अलग होने के बाद शिमला में 1972 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुए द्विपक्षीय समझौते ने इस मुद्दे में तीसरे पक्ष की भूमिका को समाप्त नहीं किया।
  • पाकिस्तानी सेना, जिसने जुल्फिकार अली भुट्टो और इंदिरा गांधी द्वारा हस्ताक्षरित शिमला समझौते को अस्वीकार कर दिया था, ने 1980 के दशक के उत्तरार्ध में कश्मीर अशांति के अवसर का लाभ उठाया और इस प्रश्न का अंतर्राष्ट्रीयकरण करने के प्रयास को नवीनीकृत किया।
  • शीत युद्ध के बाद मानवाधिकारों के पक्ष में तथा राज्य संप्रभुता के राजनीतिक अवमूल्यन के पक्ष में बने वैश्विक वातावरण ने पाकिस्तान को एक शक्तिशाली दोहरी रणनीति प्रदान की – कश्मीर में उग्रवाद का समर्थन करना तथा भारत पर अनुकूल समझौते के लिए दबाव डालने हेतु वैश्विक हस्तक्षेप की मांग करना।
  • सीमापार आतंकवाद के कारण उत्पन्न होने वाले लगातार सैन्य संकटों ने परमाणु स्तर तक उनके बढ़ने के बारे में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चिंता पैदा की हैं हालांकि दोनों ही देश परमाणु हथियारों से लैस हैं
  • इससे कश्मीर प्रश्न और भावी परमाणु प्रसार के खतरों पर नए वैश्विक ध्यान आकर्षित हो रहा है।
  • सीमापार आतंकवाद, कश्मीर में अशांति, भारत के परमाणु कार्यक्रम पर अस्थायी प्रतिबंध आदि भारत के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक बड़ी चुनौती थी।
  • अतः 1990 के दशक की अस्थिर गठबंधन सरकारों के लिए अनेक समस्याओं को सुलझाते हुए आर्थिक सुधारों को आगे बढ़ाना आसान नहीं था।
  • भारत ने 2000 के दशक में स्थिर आर्थिक विकास और अमेरिका के साथ बेहतर संबंधों की बदौलत इनमें से कई कठिनाइयों पर विजय प्राप्त की।
  • जॉर्ज डब्ल्यू बुश प्रशासन ने वाशिंगटन की कश्मीर सक्रियता को समाप्त कर दिया और भारत के साथ परमाणु विवाद को हल करने का एक तरीका खोज निकाला।
  • लेकिन पाकिस्तान के सीमा पार आतंकवाद और कश्मीर में राजनीतिक संकट पैदा करने की उसकी क्षमता से निपटने की समस्याएँ हमेशा बनी रही।
  • भारत सरकार द्वारा 1990 के दशक में कश्मीर मुद्दे को पाकिस्तान के साथ द्विपक्षीय एजेंडे में बरकरार रखा गया।
  • तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और जनरल परवेज़ मुशर्रफ़ ने 2004-07 के दौरान इसका समाधान खोजने के लिए अनेक प्रयास किये जो अपनी पूर्णता को प्राप्त न हो सके।
  • 2008 में मुशर्रफ़ के सत्ता से बेदखल होने के बाद, उनके उत्तराधिकारी जनरल अशफ़ाक कयानी ने सहमत रूपरेखा को अस्वीकार कर दिया और सीमा पार आतंकवाद को फिर से शुरू कर दिया।
  • हालांकि एनडीए सरकार कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान के साथ बातचीत की शर्तों पर फिर से बातचीत करने के स्पष्ट उद्देश्य के साथ सत्ता में आई थी।
  • इसमें सीमा पार आतंकवाद के खिलाफ़ सैन्य प्रतिरोध को बढ़ाने, कश्मीर में आतंकवादी समूहों के साथ बातचीत को समाप्त करने और इस बात पर ज़ोर देने का प्रयास शामिल था कि बातचीत और आतंकवाद परस्पर प्रभावी नहीं हो सकते हैं।
  • अगस्त 2019 में कश्मीर में संवैधानिक यथास्थिति को बदलना इस रणनीति का मुख्य उद्देश्य था।
  • लेकिन कुछ ही समय बाद इस मुद्दे को पाकिस्तान से चुनौती मिल गई, जिसने कश्मीर मुद्दे को यूएनएससी के एजेंडे में डालने के लिए चीन का रुख किया।
  • हालांकि, भारत सरकार ने वाशिंगटन और पेरिस की मदद से इस कदम को निष्क्रिय कर दिया
  • इसके बाद, पश्चिम और इस्लामी दुनिया में भारत की नई साझेदारी ने पाकिस्तान और उसके भारत विरोधी उद्देश्यों के लिए अंतरराष्ट्रीय समर्थन के लंबे समय से चले आ रहे ठिकानों को बेअसर करने में मदद की।
  • इस प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाने में, भारत के पक्ष में आर्थिक शक्ति संतुलन का लगातार विकास हो रहा है, जिसका सकल घरेलू उत्पाद आज पाकिस्तान की तुलना में लगभग 10 गुना अधिक है।
  • पाकिस्तान के गहरे होते अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक विभाजन ने उसकी आर्थिक कमजोरी को और मजबूत किया है, जिससे भारत के लिए पाकिस्तान की चुनौती पहले की तुलना में कम महत्वपूर्ण हो गई।
  • कश्मीर के मामले में दिल्ली द्वारा अपने संवैधानिक बदलावों को वापस लिए जाने तक भारत के साथ बातचीत करने से इनकार करके, इस्लामाबाद ने खुद को एक कूटनीतिक स्थिति में बंद कर लिया है, जिससे बाहर निकलना उसके लिए मुश्किल हो गया है।
  • यह तो तय है कि पाकिस्तान के कुछ नागरिक नेताओं, खासकर नवाज शरीफ, ने व्यावहारिक आधार पर भारत के साथ बातचीत को फिर से शुरू करने में रुचि दिखाई है।
  • मौजूदा सेना प्रमुख असीम मुनीर के पूर्ववर्ती कमर जावेद बाजवा ने भारत के साथ बातचीत में लचीलापन दिखाने का संकेत दिया था।
  • लेकिन इमरान खान के तीव्र विरोध ने दोनों पक्षों के बीच एक अस्थायी औपचारिक बातचीत को फिर से शुरू करना भी मुश्किल बना दिया है।
  • हालांकि 5 अगस्त, 2019 के धारा 370 की समाप्ति के निर्णय  के बाद से भारत के लिए पाकिस्तान से निपटना अपेक्षाकृत आसान रहा है। 
  • भले ही वर्तमान में, कश्मीर क्षेत्र में पाकिस्तानी सेना कमज़ोर हो, लेकिन वह पूरी तरह से खत्म नहीं हुई है। कश्मीर में फिर से शुरू हुई राजनीतिक समस्या निश्चित रूप से अंतर्राष्ट्रीय ध्यान आकर्षित करेगी।
  • कश्मीर में आंतरिक सुलह के प्रयासों में तेज़ी लाना, फिर से शुरू हुए सीमा पार आतंकवाद का मुक़ाबला करना और पाकिस्तानी राजनीति के विभिन्न तत्वों से जुड़ना भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा प्राथमिकताओं में सबसे ऊपर होना चाहिए।

निष्कर्ष: 

अतः 5 अगस्त, 2019 के धारा 370 की समाप्ति के निर्णय  के बाद से भारत के लिए पाकिस्तान से निपटना अपेक्षाकृत आसान रहा है। हालांकि वर्तमान में, भारत ने कश्मीर पर अंतर्राष्ट्रीय ध्यान कम कर दिया है, लेकिन पाकिस्तान के साथ चुनौतियों और घरेलू अशांति के कारण निरंतर रणनीतिक सतर्कता की आवश्यकता है।

 

मुख्य परीक्षा पर आधारित प्रश्न:

 प्रश्न: अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद कश्मीर मुद्दे पर भारत के रुख को आकार देने में अंतर्राष्ट्रीय साझेदारी की भूमिका का विश्लेषण करें। 

(10 अंक, 150 शब्द)

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