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असम में बाढ़

Lokesh Pal July 09, 2024 05:30 106 0

संदर्भ :

भारत के पूर्वोत्तर भाग में प्रवाहित होने वाली ब्रह्मपुत्र नदी में प्रत्येक वर्ष बाढ़ आने की संभावना रहती है, ब्रह्मपुत्र नदी का यह बाढ़ अपने पीछे मौत और विनाश की कहानी छोड़ जाती है।

  • हालाँकि, हाल के वर्षों में बाढ़ की वजह से होने वाली तबाही में बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है।

प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रासंगिकता : बाढ़, असम में बाढ़ के कारण, असम पर बाढ़ का प्रभाव आदि।

मुख्य परीक्षा के लिए प्रासंगिकता : बाढ़, असम बाढ़- कारक, प्रभाव और उपाय किए जाने की आवश्यकता आदि।

बाढ़ के बारे में :

  • बाढ़ जल का अतिप्रवाह है जो आमतौर पर सूखी भूमि को जलमग्न कर देता है।
  • “बहते जल ” के अर्थ में, यह शब्द ज्वार के प्रवाह के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है।
  • बाढ़ के तीन सामान्य प्रकार हैं:
  • फ़्लैश फ्लड:
    • तीव्र एवं व्यापक वर्षा के कारण।
  • नदी की बाढ़:
    • यह तब होता है जब लगातार बारिश या बर्फ पिघलने से नदी का जलस्तर अपनी क्षमता से अधिक हो जाता है।
  • तटीय बाढ़:
    • उष्णकटिबंधीय चक्रवातों और सुनामी से जुड़े तूफानी लहरों के कारण। 

असम में प्रत्येक वर्ष बाढ़ आने के कारण 

ब्रह्मपुत्र:

  • अवस्थिति: असम हिमालय की तलहटी में स्थित है और यहाँ ब्रह्मपुत्र और बराक नामक दो घाटियाँ स्थित हैं।
  • विशाल क्षेत्र: यह नदी असम में लगभग 650 किलोमीटर की लंबाई और 5.46 किलोमीटर की औसत चौड़ाई में बहती है, जिससे यह बाढ़ के मैदानों में बहने वाली प्रमुख नदी बन जाती है।
  • अवसादन: कैलाश पर्वतमाला (उच्च ऊँचाई ) से आने वाली यह नदी असम (कम ऊंचाई) में प्रवेश करते समय अत्यधिक अवसादनग्रस्त हो जाती है।
    • ढलान के समतल होने के कारण, वेग में अचानक गिरावट आती है और नदी के पहाड़ी इलाकों से एकत्रित भारी मात्रा में तलछट और अन्य मलबे को नदी के तल पर जमा करती है, जिससे इसका स्तर बढ़ जाता है।
    • गर्मियों के दौरान, ग्लेशियरों के पिघलने के साथ मिट्टी के कटाव के कारण तलछट में वृद्धि होती है।

मानसून:

  • तीव्र मानसून: राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के अनुसार, वार्षिक वर्षा औसतन 2900 मिमी होती है, जिसमें अधिकतम वर्षा जून और जुलाई में होती है।
    • असम के जल संसाधन मंत्रालय का कहना है कि ब्रह्मपुत्र बेसिन में वार्षिक वर्षा का 85% हिस्सा मानसून के महीनों में होता है।
    • इसके अलावा, अप्रैल और मई में आंधी-तूफान के कारण घाटी में अच्छी मात्रा में वर्षा होती है, जिसके कारण जून में भारी वर्षा के दौरान बाढ़ आ जाती है।

नदी तट का कटाव:

  • आवश्यकता: जैसे-जैसे तलछटी नदियाँ अपनी सहायक नदियों के साथ राज्य से होकर गुजरती हैं, वे अपने साथ किनारों से मिट्टी और तलछट का कटाव करती जाती हैं।
    • जैसे-जैसे क्षेत्र बढ़ता है, मिट्टी का कटाव होता है और नदियाँ फैलती हैं और जिसके परिणामस्वरूप बाढ़ आती है।
    •  नदियों के किनारे की भूमि का यह कटाव असम के लिए एक गंभीर समस्या के रूप में उभरा है।
    • गाँवों की संख्या में कमी लोगों के विस्थापन का एक प्रमुख कारण है।
      • असम में कुछ स्थानों पर तट कटाव के कारण ब्रह्मपुत्र नदी की चौड़ाई 15 किलोमीटर तक बढ़ गई है।

मानव हस्तक्षेप:

  • तटबंधों का निर्माण:
    • तटबंधों का निर्माण नदी के मार्ग को सीमित करने के लिए किया जाता है। हालाँकि, असम में समय के साथ यह समाधान एक अतिरिक्त चुनौती बन गया है।
    • असम में बाढ़ को नियंत्रित करने के लिए तटबंधों का निर्माण पहली बार वर्ष 1960 के दशक में शुरू किया गया था।
      • छह दशक बाद, इनमें से ज़्यादातर तटबंध या तो अपनी उपयोगिता खो चुके हैं या फिर खराब हालत में हैं। कई तटबंध तो बाढ़ में बह गए है।
      • प्रत्येक वर्ष, जब मानसून के सीजन में, नदी का जल इन अवरोधों को तोड़ देता है और घरों और ज़मीनों को जलमग्न कर देता है।
  • जनसंख्या में बढ़ोत्तरी:
    • राज्य में जनसंख्या वृद्धि ने राज्य की पारिस्थितिकी पर अधिक दबाव डाला है।
    • ब्रह्मपुत्र बोर्ड की एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2011 की जनगणना के आँकड़े के अनुसार ब्रह्मपुत्र नदी घाटी का जनसंख्या घनत्व काफी बढ़ गया है।
    • जल शक्ति मंत्रालय के अंतर्गत कार्यरत एक बोर्ड ब्रह्मपुत्र और बराक नदी घाटी की निगरानी करता है तथा ब्रह्मपुत्र बेसिन के अंतर्गत आने वाले राज्यों को भी इस निगरानी प्रक्रिया के तहत कवर करता है।

जलवायु परिवर्तन :

  • राज्य सरकार की रिपोर्ट: इसके तहत यह अनुमान लगाया गया है कि अत्यधिक वर्षा की घटनाओं में 38% की वृद्धि होगी।
  • कारक: मानसून के दौरान लगातार कम या सामान्य वर्षा के स्थान पर भारी वर्षा तथा बढ़ते तापमान के कारण ग्लेशियरों के पिघलने के कारण उत्पन्न समस्याएँ:
  • हिमालय से आने वाली नदियाँ असम में प्रवेश करने से पहले ही अधिक जल और गाद लेकर आएँगी, जहाँ पहले से ही लगातार बारिश के कारण छोटी नदियाँ उफान पर होगी।
    • जिससे निचले इलाकों में बार-बार बाढ़ आने की संभावना बढ़ जाती है।
  • बाढ़ की स्थिति को अत्यधिक विनाशकारी बनाने वाले अन्य कारक: वनों की कटाई, पहाड़ो का खनन, अतिक्रमण, आर्द्रभूमि का विनाश, राज्य में जल निकासी व्यवस्था का अभाव, अनियोजित शहरी विकास, बांधों का निर्माण, जलविद्युत परियोजनाएँ, सिंचाई परियोजनाएँ आदि।

असम पर बाढ़ का प्रतिकूल प्रभाव:

  • काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान:
    • एक आधिकारिक बयान में कहा गया है कि ब्रह्मपुत्र नदी के खतरे के निशान से ऊपर बहने के कारण काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान का 15 प्रतिशत से अधिक हिस्सा जलमग्न हो गया है।
    • इस वर्ष अब तक राष्ट्रीय उद्यान में बाढ़ के कारण एक तेंदुए सहित कम से कम पांच जानवर की मृत्यु हो गई।
    • हालाँकि, लगातार आने वाली बाढ़ ने राष्ट्रीय उद्यान के लिए समस्याएँ खड़ी करनी शुरू कर दी हैं।
  • एनएच-37: जब बाढ़ का पानी एक निश्चित स्तर पर पहुँच जाता है, तो जानवर कार्बी आंगलोंग पहाड़ियों में सुरक्षित, ऊँची ज़मीन की ओर चले जाते हैं। हालाँकि, उन्हें पार्क के बीच से गुजरने वाले एनएच-37 को पार करना पड़ता है, जिससे सड़क दुर्घटनाओं में उनकी की मौत हो जाती है।
  • बुनियादी ढाँचे पर प्रभाव:
    • कई स्थानों पर रेलवे ट्रैक पर जल भर जाने से ट्रेन सेवाएं बाधित हो जाती है।
    • सभी परिवहन साधन ठप हो जाते है, सिवाय नावों के।
    • भोजन और पीने योग्य जल आसानी से उपलब्ध नहीं होता।
      • सड़कों और पुलों को गंभीर क्षति पहुँचती है।
  • पशुओं पर प्रभाव:
    • शिकारियों द्वारा हत्या: जानवरों को शिकारियों द्वारा भी शिकार जाता है जो उनकी कमज़ोरी-लाचारी का फ़ायदा उठाते हैं।
    • मानव-पशु संघर्ष: बाढ़ के दौरान जानवर भी गाँवों की ओर प्रवास करते हैं, जिससे मानव-पशु संघर्ष होता है।

पूर्वोत्तर क्षेत्र में बाढ़ के लाभ:

  • निचले इलाकों का उत्थान: प्रत्येक वर्ष ब्रह्मपुत्र और उसकी सहायक नदियाँ अरबों टन तलछट लाती हैं, मुख्य रूप से पूर्वी हिमालय से। 
    • इससे निचले इलाकों का उत्थान हुआ और नदी तल नियमित रूप से समायोजित हुआ है।
  • पारिस्थितिकी तंत्र का पुनरुद्धार: बाढ़ से व्यवधान और क्षति होती है, लेकिन इससे मछलियों की संख्या में वृद्धि होती है और काजीरंगा सहित ब्रह्मपुत्र के आसपास बाढ़ के मैदानों के पारिस्थितिकी तंत्र का पुनरुद्धार होता है।
  • राज्य का स्वरूप: असम का सम्पूर्ण भूदृश्य लाखों वर्षों में सक्रिय मानसूनी वातावरण तथा विशाल नदियों की सहायता से आकार ग्रहण कर पाया है, जो हिमालय की ऊँचाइयों से अपक्षयित तलछटों को अपने साथ ले जाती हैं।

आगे की राह:

  • सूचना संचार: यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि अधिक विश्वसनीय जानकारी उपलब्ध कराई जाए ताकि तैयारियों में सुधार किया जा सके और निवासियों/आम लोगों को सतर्क किया जा सके।
    • विशेषज्ञों ने संकेत दिया है कि विश्वसनीय और तीव्र चेतावनी प्रणालियों के लिए इस क्षेत्र को अधिक संस्थागत और तकनीकी रूप से उन्नत प्रणालियों की आवश्यकता है।
  • काजीरंगा की सुरक्षा: पशु गलियारों को सुरक्षित करने और कार्बी पहाड़ियों तक सुरक्षित मार्ग सुनिश्चित करने पर जोर दिया जाना चाहिए।
  • कार्बी आंगलोंग पहाड़ियों के महत्त्व को पहचानने वाले परिदृश्य-स्तरीय संरक्षण दृष्टिकोण की आवश्यकता है।
    • कार्बी आंगलोंग के ऊँचे इलाके, जहाँ जानवर शरण लेते हैं, बाढ़ के दौरान पार्क की जीवन रेखा का स्वरूप ग्रहण कर लेते हैं।
  • स्लुइस गेट का निर्माण: ब्रह्मपुत्र और अन्य नदियों की सहायक नदियों पर स्लुइस गेट का निर्माण किया जाना चाहिए। यह एक प्रभावी कदम साबित होगा।
    • स्लुइस गेट के वाल्व एक दिशा को सील करने के लिए डिज़ाइन किए जाते हैं और आमतौर पर नदियों और नहरों में पानी के स्तर और प्रवाह दर को नियंत्रित करने के लिए उपयोग किए जाते हैं। इनका उपयोग अपशिष्ट जल उपचार संयंत्रों में भी किया जाता है।
  • अन्य उपाय: उपायों के प्रभावी कार्यान्वयन का अध्ययन करने हेतु तथा निगरानी करने हेतु असम में एक आपदा प्रबंधन केंद्र स्थापित किया जाना चाहिए।

मुख्य परीक्षा पर आधारित प्रश्न :

प्रश्न: प्राकृतिक और मानवजनित कारकों सहित असम में बाढ़ के बहुआयामी कारणों की जाँच करें। मौजूदा बाढ़ प्रबंधन रणनीतियों की प्रभावशीलता पर चर्चा करें और दीर्घकालिक शमन और लचीलेपन के लिए व्यापक उपाय सुझाएँ। (15 अंक, 250 शब्द)

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