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शंघाई सहयोग संगठन की बैठक हेतु विदेशमंत्री जयशंकर का पाकिस्तान दौरा

Lokesh Pal October 05, 2024 05:00 73 0

संदर्भ : 

विदेश मंत्री एस जयशंकर पाकिस्तान के आमंत्रण पर शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के शासनाध्यक्षों की बैठक में भाग लेने के लिए 15-16 अक्टूबर को दो दिवसीय इस्लामाबाद का दौरा करेंगे।

शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) का अवलोकन :

  • उत्पत्ति : वर्ष 1996 में एक उप-क्षेत्रीय समूह शंघाई फाइव के रूप में स्थापित किया गया था।  जिसमें चीन, रूस, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान और ताजिकिस्तान शामिल हैं। यह संगठन मुख्य रूप से सीमा सुरक्षा और विश्वास-निर्माण उपायों पर ध्यान केंद्रित करता है।
  • शंघाई सहयोग संगठन में परिवर्तन : 15 जून 2001 को चीन के शंघाई शहर में शंघाई सहयोग संगठन की औपचारिक रूप से स्थापना की गई, जिसमें उज्बेकिस्तान को एक नए सदस्य के रूप में शामिल किया गया।

वर्तमान सदस्य देश  :

  • पूर्ण सदस्य (10) : भारत, ईरान, कजाकिस्तान, चीन, किर्गिस्तान, पाकिस्तान, रूस, ताजिकिस्तान, बेलारूस और उज्बेकिस्तान।
  • हालिया विस्तार : बेलारूस पूर्ण सदस्य के रूप में शामिल हो गया है।
  • पर्यवेक्षक राज्य : अफगानिस्तान और मंगोलिया, को शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) में गैर-मतदान पर्यवेक्षक का दर्जा प्राप्त है, इसमें शामिल हैं, लेकिन दोनों देश इस संगठन के पूर्ण भागीदार नहीं हैं।

शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के गठन के कारण : 

  • वर्ष 1991 में यूएसएसआर के विघटन के साथ ही चीन और रूस के बीच पांच मध्य एशियाई गणराज्य उभरकर अस्तित्व में आए। तदुपरांत, इस क्षेत्र को उग्रवाद और कट्टरपंथ जैसे खतरों का सामना करना पड़ा , जिससे रूस और चीन दोनों को चुनौती मिली।
  • शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की स्थापना इन सुरक्षा चिंताओं को दूर करने, आतंकवाद, अलगाववाद और कट्टरपंथी विचारधाराओं का मुकाबला करने के लिए सहयोग को बढ़ावा देने के लिए की गई थी।
  • इसका मुख्य उद्देश्य क्षेत्र में अमेरिकी प्रभाव को फैलने से रोकना तथा पश्चिमी प्रभुत्व को सीमित करते हुए एक वैकल्पिक विश्व व्यवस्था को बढ़ावा देना था।

शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) का महत्व : 

  • सुरक्षा सहयोग : उग्रवाद, अलगाववाद और आतंकवाद से बढ़ते खतरों, विशेष रूप से मध्य एशिया में, एकीकृत दृष्टिकोण की आवश्यकता है।
    • शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) कट्टरपंथी विचारधाराओं से निपटने के लिए खुफिया जानकारी साझा करने, संयुक्त सैन्य अभ्यास और रणनीतिक योजना बनाने में सहायता करता है।
    • इन चुनौतियों का प्रभावी ढंग से समाधान करने में इस संगठन का क्षेत्रीय आतंकवाद-रोधी ढांचा (आरएटीएस) महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • आर्थिक और व्यापारिक पहल : चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) जैसी पहल, जो बुनियादी ढांचे के विकास और कनेक्टिविटी पर केंद्रित है, शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के सदस्य देशों के आर्थिक उद्देश्यों के साथ भलीभाँति संरेखित है। इस प्रकार यह संगठन व्यापार, ऊर्जा सहयोग और निवेश को बढ़ावा देता है।

बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था को बढ़ावा देना :

  • शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) रूस और चीन के लिए एक वैकल्पिक विश्व व्यवस्था की वकालत करने हेतु एक महत्वपूर्ण मंच है, जो पश्चिमी प्रभाव का मुकाबला करने के लिए सक्षम है।
  • इस संगठन के सदस्य देश बहुपक्षीय ढांचे को बढ़ावा देकर, क्षेत्रीय समाधान खोज सकते हैं और अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं में पश्चिमी प्रभुत्व को कम कर सकते हैं।

शंघाई सहयोग संगठन के सदस्य देशों के विविध दृष्टिकोण :

  • रूस का लक्ष्य सोवियत संघ के विघटन के बाद मध्य एशिया में अपना प्रभाव बनाए रखना, अपनी सीमाओं को सुरक्षित रखना, क्षेत्रीय सुरक्षा खतरों का समाधान करना तथा अपनी वैश्विक उपस्थिति को पुनः स्थापित करना है।
  • चीन बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) जैसी पहलों के माध्यम से अपनी केंद्रीयता को बढ़ावा देता है, तथा विशेष रूप से मध्य एशिया में प्रभाव बढ़ाने और सीमाओं को सुरक्षित करने पर ध्यान केंद्रित करता है, जिससे रूस के प्रभुत्व को संतुलित किया जा सके।
  • मध्य एशियाई गणराज्य सुरक्षा और आर्थिक सहयोग के लिए शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) का उपयोग करते हैं, प्राकृतिक संसाधनों के निर्यात के लिए भारत जैसे विकल्पों की तलाश करके चीन से परे साझेदारी में विविधता लाते हैं।
  • भारत भी वैश्विक दक्षिण में अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) का लाभ उठाता है। भारत इसके माध्यम से खनिजों और ऊर्जा तक पहुँच के लिए मध्य एशिया के साथ बेहतर संपर्क की मांग करता है। यह पश्चिमी आधिपत्य के विकल्प के रूप में एक बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था को भी बढ़ावा देता है।

शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की आंतरिक चुनौतियाँ :

1. क्षेत्र की वर्तमान स्थिति :

  • क्षेत्र में सत्ता संघर्ष : शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) वर्तमान में अपने सदस्य देशों के बीच भू-राजनीतिक तनाव के कारण बढ़े हुए सत्ता संघर्ष में फंसा हुआ है।
  • रूस-यूक्रेन युद्ध का प्रभाव : यूक्रेन में चल रहे संघर्ष ने वैश्विक स्थर पर रूस को कमजोर कर दिया है, जिससे मध्य एशिया और अन्य शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के सदस्यों के बीच प्रभाव डालने की उसकी क्षमता सीमित हो गई है।
  • बढ़ता उग्रवाद और नागरिक संघर्ष : मध्य एशियाई क्षेत्र में बढ़ता उग्रवाद और नागरिक अशांति सदस्य देशों के लिए महत्वपूर्ण सुरक्षा चुनौतियां पेश कर रही हैं।
  • मध्य पूर्व संघर्ष : ईरान और इजरायल का संघर्ष इसमें जटिलता की एक और परत जोड़ता है, जिससे क्षेत्रीय सुरक्षा गतिशीलता पर और अधिक दबाव पड़ता है।
  • रूस पर अमेरिकी प्रतिबंध : रूस पर अमेरिकी प्रतिबंध अन्य शंघाई सहयोग संगठन के सदस्यों के साथ उसके सहयोग में बाधा डालते हैं और प्रभावी रूप से नेतृत्व करने की उसकी क्षमता को सीमित करते हैं।

2. सदस्य देशों के बीच आंतरिक संघर्ष

  • चीन-रूस : आर्थिक निवेश और बेल्ट एंड रोड पहल के कारण इस संगठन में रूसी प्रभुत्व से अधिक चीनी प्रभाव देखा जा सकता है। 
    • वर्ष 2017 में भारत और पाकिस्तान को शामिल करने से यह शक्ति संघर्ष स्पष्ट  हुआ, जिसमें रूस ने भारत का तथा चीन ने पाकिस्तान का समर्थन किया।
  • भारत और अन्य सदस्य : भारत और पाकिस्तान के साथ-साथ भारत और चीन के बीच चल रहे तनाव ने शंघाई सहयोग संगठन की चुनौतियों को और बढ़ा दिया है, जिससे संगठन की  एकीकृत दृष्टिकोण से विकास करने की क्षमता सीमित हो गई है।

3. विविध रणनीतिक हित

समान उद्देश्यों के बावजूद, सदस्य देशों (जैसे, भारत, मध्य एशियाई गणराज्य, चीन और रूस आदि) के भिन्न-भिन्न रणनीतिक हित शंघाई सहयोग संगठन की व्यापक परिवर्तन करने की क्षमता को सीमित करते हैं।

  • मौजूदा चुनौतियों के बावजूद, शंघाई सहयोग संगठन महत्वपूर्ण बना हुआ है क्योंकि यह सदस्य देशों के बीच सहयोग और संवाद की संभावना को बढ़ाता है, जिससे उन्हें वैश्विक मंच पर अपना प्रभाव दिखाने का अवसर मिलता है, भले ही पूर्णतः सफल परिणाम सीमित क्यों न हों।

निष्कर्ष :

पठानकोट और उरी में हुए आतंकवादी हमलों के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच संवाद की ऐतिहासिक कमी को देखते हुए शंघाई सहयोग संगठन अत्यधिक महत्वपूर्ण है। शंघाई सहयोग संगठन की आगामी बैठक में विदेश मंत्री की भागीदारी दोनों देशों के बीच संबंधों की मौजूदा दरार को कम करने का अवसर प्रदान करती है, जिससे संभावित रूप से बेहतर संचार और अधिक स्थिर क्षेत्रीय वातावरण के लिए भविष्य में सहयोग को बढ़ावा मिलेगा।

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