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लिंग-उत्तरदायी बजट : महिला सशक्तिकरण का साधन

Lokesh Pal January 20, 2025 05:00 5 0

संदर्भ:

जैसे-जैसे केंद्रीय बजट की पेशी (फरवरी) का समय नजदीक आ रहा है, महिला सशक्तिकरण के उद्देश्य से संसाधनों के आवंटन के मूल्यांकन में लिंग-उत्तरदायी बजट (जीआरबी) के महत्व का विश्लेषण करना एक महत्त्वपूर्ण विषय बनता जा रहा है।

जेंडर बजटिंग (Gender Budgeting) : 

  • जेंडर बजटिंग एक राजकोषीय दृष्टिकोण है जो बजटीय प्रक्रिया के सभी चरणों में, लिंग परिप्रेक्ष्य को एकीकृत करता है, जिसका उद्देश्य लैंगिक समानता को बढ़ावा देना और यह सुनिश्चित करना है कि सार्वजनिक संसाधन महिलाओं और पुरुषों के बीच समान रूप से आवंटित किए जाएं।

लिंग संवेदनशील बजट {Gender Responsive Budgeting (GRB)} :

  • भारत में लिंग संवेदनशील बजट (जीआरबी) भी एक रणनीतिक दृष्टिकोण है, जो लैंगिक समानता को बढ़ावा देने और यह सुनिश्चित करने के लिए बजट प्रक्रिया में लिंग परिप्रेक्ष्य को एकीकृत करता है कि सार्वजनिक संसाधन महिलाओं की विशिष्ट आवश्यकताओं को पूरा करें।

लिंग संवेदनशील बजट का महत्त्व :

  • महिला सशक्तिकरण में बजट की भूमिका: बजट महिलाओं की शिक्षा, स्वास्थ्य और कौशल विकास पर केंद्रित कार्यक्रमों के लिए वित्तीय संसाधन आवंटित करता है, जिससे उनमें आर्थिक स्वतंत्रता को बढ़ावा मिलता है।
    • महिला सशक्तिकरण में सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक आयाम शामिल होते हैं। जिनमें से प्रत्येक लैंगिक समानता को बढ़ावा देने और महिलाओं को उनकी पूरी क्षमता तक पहुंचने में सक्षम बनाने हेतु महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • जेंडर बजट पहल की शुरुआत : जेंडर बजट स्टेटमेंट (जीबीएस) पेश करने की पहल 2005-2006 की शुरुआत में ही शुरू कर दी गई थी।
    • जेंडर बजट स्टेटमेंट जैसी प्रभावी पहल, संसाधन आवंटन हेतु लैंगिक असमानताओं को दूर करने में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हुआ है।
  • आवंटन का प्रतिशत : पिछले कुछ वर्षों में लिंग संवेदनशील बजट (Gender Responsive Budgeting) के लिए आवंटन लगातार केंद्रीय बजट के 4-5.5% के बीच रहा है।
    • यद्यपि 4-5.5% तक आवंटन का यह स्तर एक स्वागत योग्य कदम है, तथापि इसमें सुधार की अभी भी काफी गुंजाइश है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि बजटीय प्रावधान महिलाओं की आवश्यकताओं और प्राथमिकताओं को बेहतर ढंग से हल करने में सक्षम हो सकें।

लिंग संवेदनशील बजट पर कोविड-19 महामारी का प्रभाव:

  • आवश्यकता अनुरूप अपर्याप्त : कोविड-19 महामारी के बाद तैयार किया गया 2023-24 का बजट महिलाओं और लैंगिक अल्पसंख्यकों को अपना जीवन फिर से शुरू करने के लिए पर्याप्त सहायता प्रदान करने में विफल रहा।
  • रोजगार का ह्रास : कई महिलाओं को प्रभावित परिवार के सदस्यों की देखभाल की ज़िम्मेदारी उठाने के लिए अपनी नौकरी या रोजगार को छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा।
  • पुनः एकीकरण की चुनौती: महामारी के कम होने के बाद भी बड़ी संख्या में महिलाओं को कार्यबल में वापस लौटने के लिए संघर्ष करना पड़ा, जिसके परिणामस्वरूप दीर्घकालिक आर्थिक और सामाजिक चुनौतियाँ उभरने लगी थी।

लिंग बजट प्रकोष्ठ (Gender Budget Cell):

  • जेंडर बजट सेल की स्थापना: मंत्रालय और विभाग स्तर पर लिंग संवेदनशील बजट (Gender Responsive Budgeting) की सुविधा के लिए, सभी मंत्रालयों और विभागों को जेंडर बजट सेल (जीबीसी) स्थापित करने का निर्देश दिया गया। जेंडर बजट सेल के कार्यों को सुव्यवस्थित करने हेतु उनके लिए एक चार्टर भी विकसित किया गया है। 
  • जेंडर बजट सेल की जिम्मेदारियाँ
    • लिंग संबंधी मुद्दों का विश्लेषण: अपने-अपने मंत्रालयों/विभागों की प्रमुख योजनाओं और कार्यक्रमों द्वारा संबोधित लिंग-संबंधी पहलुओं की जांच करना।
    • निष्पादन लेखा परीक्षा: लिंग के दृष्टिकोण से इन योजनाओं और कार्यक्रमों की प्रभावशीलता का मूल्यांकन करने के लिए लेखा परीक्षा आयोजित करना या कमीशन करना।
      • इन पहलों के प्रभाव को बढ़ाने के लिए आगे नीतिगत हस्तक्षेप का सुझाव देना।
    • दस्तावेज तैयार करना : अपने-अपने मंत्रालयों द्वारा कवर किए गए क्षेत्रों या सेवाओं से संबंधित लिंग परिप्रेक्ष्य पर दस्तावेज तैयार करना।

लिंग संवेदनशील बजट से जुड़ी चुनौतियाँ:

  • समरूपीकरण: लिंग-संवेदनशील बजट (जीआरबी) को महिलाओं को एक समरूप समूह के रूप में देखने से आगे बढ़कर हाशिए पर पड़े समुदायों की महिलाओं की विशिष्ट आवश्यकताओं को रेखांकित करने की ओर विकसित करने की आवश्यकता है।
    • उदाहरण के लिए: ₹100 करोड़ का बजट परिव्यय, जिसमें से 20% (₹20 करोड़) महिलाओं के लिए आवंटित किया गया है। विशिष्ट डेटा के अभाव में, यह स्पष्ट नहीं है कि आवंटन से शहरी महिलाओं को लाभ मिलता है, जिनकी पहले से ही संसाधनों तक बेहतर पहुँच है या ग्रामीण और हाशिए पर रहने वाली महिलाओं को, जो महत्वपूर्ण नुकसान का सामना करती हैं।
  • हाशिए पर पड़ी महिलाओं का अपर्याप्त प्रतिनिधित्व: एक अध्ययन में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि मुस्लिम महिलाओं को लिंग-संवेदनशील बजट (जीआरबी) में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं मिलता है, जबकि उन्हें कई तरह की असुविधाओं और बहिष्कारों का सामना करना पड़ता है। इन चुनौतियों में शामिल हैं :
    • गरीबी
    • पितृसत्तात्मक व्यवस्था 
    • धार्मिक प्रतिबंध
  • अल्पसंख्यक महिलाओं की उपेक्षा: मुस्लिम महिलाएँ उन नीतिगत ढाँचों में काफी हद तक अदृश्य रहती हैं जिनका उद्देश्य सामाजिक-धार्मिक समुदायों के विकास का समर्थन करना है। अतः इस प्रकार अनेक चुनौतियों के बावजूद, विकासपरक नीतियाँ अक्सर उनकी विशिष्ट आवश्यकताओं को प्रभावी ढंग से संबोधित करने में विफल रहती हैं।

आगे की राह :

  • लक्षित नीतिगत हस्तक्षेप: एक अध्ययन में मुस्लिम महिलाओं के समक्ष आने वाली विशिष्ट चुनौतियों पर अधिक ध्यान केंद्रित करने के लिए लिंग-संवेदनशील बजट (जीआरबी) की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित किया गया है। उनके सामाजिक-आर्थिक और सांस्कृतिक बहिष्कारों को रेखांकित करने के लिए लक्षित उपाय विकसित करने पर ध्यान दिया जाना चाहिए।
  • मूल्यांकन और निगरानी: कार्यान्वित नीतियों का नियमित मूल्यांकन उनके प्रभाव और प्रभावशीलता का मूल्यांकन करने के लिए आवश्यक है।
  • राज्य-स्तरीय प्रगति: भारत के कुछ राज्यों ने लिंग-संवेदनशील बजट (जीआरबी) को लागू करने में महत्वपूर्ण प्रगति की है। उदाहरण के लिए, केरल और कर्नाटक ने केवल जेंडर बजट स्टेटमेंट (जीबीएस) पेश करने से आगे बढ़कर लैंगिक समानता को आगे बढ़ाने के लिए विशिष्ट प्राथमिकताओं की पहचान की है।
    • अन्य राज्यों ने भी यह सुनिश्चित करने के लिए अनेक लिंग संवेदनशील तंत्र स्थापित किए हैं कि बजटीय आवंटन महिलाओं को सशक्त बनाने वाली योजनाओं का समर्थन करने में योगदान दे सकें।
  • लिंग-संवेदनशील योजना: फेमिनिस्ट पॉलिसी कलेक्टिव द्वारा लिंग रिपोर्ट के लेखक नेसार अहमद ने लिंग-संवेदनशील बजट (जीआरबी) को लिंग संवेदनशील बजट से आगे विकसित करने की आवश्यकता पर जोर दिया है।
    • वे सभी क्षेत्रों में लिंग-संवेदनशील योजना और कार्यक्रमों की वकालत करते हैं, जिनमें लिंग-तटस्थ माने जाने वाले क्षेत्र भी शामिल हैं।
  • लिंग-संवेदनशील कार्य योजनाओं का निर्माण: अहमद का सुझाव है कि मंत्रालयों को महिलाओं की विशिष्ट आवश्यकताओं के आधार पर लिंग-संवेदनशील कार्य योजनाएँ विकसित करनी चाहिए। इन योजनाओं में निम्नलिखित प्रावधानों को शामिल किया जाना चाहिए:
    • विकास अंतराल की पहचान करना।
    • लिंग की द्विआधारी प्रकृति को संबोधित करना और लिंग अल्पसंख्यकों पर ध्यान केंद्रित करना।
    • विविधता को पहचानना और एक अंतर्संबंधी दृष्टिकोण को अपनाना।
    • एससी/एसटी, डीएनटी और अल्पसंख्यक महिलाओं जैसे हाशिए पर पड़े समूहों द्वारा सामना किए जाने वाले भेदभाव और बहिष्कार के मुद्दों से निपटना।
  • लिंग-विभाजित डेटा : समाज के हाशिए पर पड़े वर्गों के सामने आने वाली चुनौतियों का समाधान करने के लिए, लिंग-विभाजित डेटा एकत्र करने की तत्काल आवश्यकता है।
    • महिलाओं और उनकी ज़रूरतों पर सटीक डेटा के बिना, संसाधनों को प्रभावी ढंग से आवंटित करना और विकास प्रक्रिया में महिलाओं को मुख्यधारा में लाना सुनिश्चित करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
  • एक सशक्त निगरानी की आवश्यकता : बजट में हाल ही में योजनाओं के समूहीकरण के साथ, परिणामों को ट्रैक करने के लिए एक मज़बूत निगरानी ढाँचा स्थापित करना महत्वपूर्ण है। इस तरह के तंत्र अधिकारियों को आवंटन की प्रभावशीलता का आकलन करने और आवश्यक समायोजन करने में सक्षम बनाएंगे।
  • मैक्रो-पितृसत्ता में जीआरबी को संदर्भ में रखना: रितु दीवान का तर्क है कि लिंग-संवेदनशील बजट (जीआरबी) को मैक्रो-पितृसत्ता राज्य के संदर्भ में रखना चाहिए। इसमें आवंटन और राजस्व-उगाही दोनों के संदर्भ में राज्य की वित्तीय अभिव्यक्ति की जांच करना शामिल है।

मैक्रो पितृसत्तात्मक राज्य:

मैक्रो-पितृसत्तात्मक राज्य एक सामाजिक संरचना को संदर्भित करता है जहां पितृसत्तात्मक मानदंड और मूल्य शासन, अर्थशास्त्र और नीति-निर्माण की व्यापक प्रणालियों के भीतर गहराई से अंतर्निहित होते हैं।

निष्कर्ष :

लैंगिक मुद्दों के प्रति अपनी संवेदनशीलता के लिए पहचानी जाने वाली वित्तमंत्री से इस साल अपने सातवें बजट में लिंग-संवेदनशील बजट (जीआरबी) के लिए आवंटन बढ़ाने की उम्मीद है। ऐसे कदम देश में लैंगिक समानता के ढांचे को काफी मजबूत कर सकते हैं।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न. लिंग-उत्तरदायी बजट (जीआरबी) की अवधारणा और भारत में महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देने में इसकी भूमिका की चर्चा करें। संघ स्तर पर इसके कार्यान्वयन से जुड़ी चुनौतियों का आलोचनात्मक परिक्षण कीजिए।

(15 अंक, 250 शब्द)

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