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भारत में गिग वर्कर्स: असंगठित रोज़गार और असुरक्षा के मध्य व्याप्त संघर्ष

Lokesh Pal July 04, 2025 05:15 18 0

संदर्भ:

केंद्र सरकार ने पहली बार राज्य सरकार की मंजूरी के अधीन, एग्रीगेटर्स के माध्यम से बाइक टैक्सियों के उपयोग की अनुमति दी है। इस कदम को बाइक टैक्सी संचालकों के लिए कुछ राहत के रूप में देखा जा रहा है, विशेष रूप से कर्नाटक जैसे राज्यों में जहाँ हाल ही में बाइक टैक्सियों पर प्रतिबंध के कारण हजारों गिग श्रमिकों की आय का प्राथमिक स्रोत छिन गया था।

गिग वर्कर्स के बारे में

  • गिग वर्कर अस्थायी, कार्य-आधारित कार्य में शामिल व्यक्ति होते हैं, जिन्हें प्रायः डिजिटल प्लेटफॉर्म द्वारा सुविधा प्रदान की जाती है।
  • विश्व आर्थिक मंच (WEF) ने गिग वर्क को डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से व्यक्तियों या कंपनियों के बीच धन के लिए श्रम के आदान-प्रदान के रूप में परिभाषित किया है, जो प्रदाताओं को अल्पावधि और कार्य-दर-भुगतान के आधार पर ग्राहकों से सक्रिय रूप से जोड़ता है।

भारत में गिग वर्कर्स

  • गिग श्रमिकों को आमतौर पर स्व-नियोजितके रूप में वर्गीकृत किया जाता है, जिसका अर्थ है कि वे पारंपरिक श्रम कानूनों के अंतर्गत नहीं आते हैं।
    • वे ड्राइविंग, भोजन वितरण, प्लंबिंग, सौंदर्य सेवाएँ और सामग्री लेखन जैसी सेवाएँ प्रदान करते हैं।
  • 2020 में भारत में लगभग 3 मिलियन गिग वर्कर थे।
  • अनुमान है, कि 2030 तक यह संख्या बढ़कर 23 मिलियन हो जाएगी, जो गैर-कृषि कार्यबल का लगभग 7% होगी।

गिग कार्य के प्रकार

  • वेब-आधारित गिग कार्य: सामग्री लेखन, सॉफ्टवेयर विकास और डिजिटल मार्केटिंग जैसे आभासी कार्य।
  • स्थान-आधारित गिग कार्य: भौतिक सेवाएँ जैसे सवारी उपलब्ध कराना (जैसे- उबर, ओला), भोजन वितरण, और घरेलू सेवाएँ (जैसे- अर्बन कंपनी)।

गिग वर्क के बढ़ने के कारण

  • कार्य-जीवन संतुलन: कार्य के घंटे चुनने की स्वतंत्रता, विशेष रूप से उपयोगी, जहाँ औपचारिक नौकरियाँ सीमित हैं।
  • आय सुलभता: यह उन क्षेत्रों में आजीविका के अवसर प्रदान करता है, जहाँ औपचारिक रोज़गार की कमी है।
  • कमजोर समूहों का सशक्तीकरण: गिग कार्य आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों और महिलाओं के लिए रोजगार के अवसरों को महत्त्वपूर्ण रूप से बढ़ाता है।
    • महिलाएँ घरेलू कार्यों के अनुरूप कार्य घंटों को समायोजित कर सकती हैं और अक्सर पारंपरिक भुगतान भेदभाव के बिना बेहतर आय की संभावना पाती हैं।
  • कार्य का औपचारीकरण: भुगतान आमतौर पर डिजिटल होते हैं, जिससे कार्यबल का एक हिस्सा औपचारिक अर्थव्यवस्था में आ जाता है, जिससे कार्य की निगरानी और सामाजिक सुरक्षा उपायों की योजना बनाना सुलभ हो जाता है।

गिग वर्कर्स से संबंधित चुनौतियाँ

  • कोई श्रम अधिकार नहीं: वर्तमान में, भारतीय श्रम विनियम केवल तीन प्राथमिक श्रेणियों के कर्मचारियों को मान्यता देते हैं, अर्थात सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम (PSU), सरकारी कर्मचारी और निजी क्षेत्र के कर्मचारी।
    • इसलिए, गिग श्रमिक प्रमुख श्रम कानूनों जैसे कि न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, 1948 के अंतर्गत कवर नहीं होते हैं, जो औपचारिक कर्मचारियों को न्यूनतम मजदूरी सुरक्षा की गारंटी देता है।
  • छद्म स्व-रोजगार: प्लेटफ़ॉर्म उन्हें उत्तरदायित्वों से बचने के लिए स्वतंत्र ठेकेदारों के रूप में वर्गीकृत करते हैं। इसका परिणाम कम वेतन और रोज़गार की असुरक्षा है।
    • भारत में स्वरोजगार का अर्थ अनिवार्यतःस्वतंत्रताया आजादी नहीं है।
  • जोखिम के प्रति संवेदनशीलता:
    • पर्यावरणीय खतरे: कठोर परिस्थितियों, जैसे- अत्यधिक गर्मी, के दौरान कोई सुरक्षा नहीं।
    • सड़क दुर्घटनाएँ: अपर्याप्त बीमा के साथ उच्च जोखिम वाली डिलीवरी अनुसूची।
    • मनमाना निष्क्रियण: श्रमिकों को बिना किसी कारण या उचित प्रक्रिया के निष्क्रिय किया जा सकता है, जिसके परिणामस्वरूप अचानक आय की हानि हो सकती है।
  • भेदभाव: कई लोगों को जाति या वर्ग-आधारित भेदभाव का सामना करना पड़ता है
    • उदाहरण: इमारतों और बुनियादी सुविधाओं तक पहुँच से इनकार।
  • सामूहिक सौदेबाजी का अभाव: श्रमिकों के पास कोई आवाज़ या यूनियन का समर्थन नहीं है। प्लेटफ़ॉर्म बिना परामर्श के वेतन संरचना या डीकमीशन खातों को बदल सकते हैं।

गिग श्रमिकों के लाभ के लिए वर्तमान विधायी प्रयास

  • केंद्र सरकार:
    • सामाजिक सुरक्षा संहिता (2020) में जीवन और दिव्यांगता कवर, दुर्घटना बीमा, स्वास्थ्य और मातृत्व लाभ, वृद्धावस्था सुरक्षा और क्रेच जैसे अन्य लाभों का प्रस्ताव है।
    • संहिता में एक राष्ट्रीय सामाजिक सुरक्षा बोर्ड के गठन का भी प्रावधान है, जिसका कार्य गिग श्रमिकों के लिए कल्याणकारी योजनाओं की सिफारिश करना है।
    • इन प्रावधानों के बावजूद, वास्तविकता में कार्यान्वयन खराब रहा है।
  • राज्य स्तरीय पहल:
    • राजस्थान: राजस्थान प्लेटफॉर्म आधारित गिग वर्कर्स (पंजीकरण और कल्याण) अधिनियम, 2023 के तहत नियोक्ताओं और एग्रीगेटर्स को राज्य में गिग वर्कर्स के लाभ के लिए मासिक कल्याण उपकर जमा करना आवश्यक है।
    • तेलंगाना: सामाजिक सुरक्षा बढ़ाने के लिए गिग श्रमिकों के पंजीकरण हेतु विधेयक का मसौदा तैयार किया गया।
    • श्रमिकों को समर्थन देने के लिए भी कानून प्रस्तुत किया गया।

आगे की राह

  • राष्ट्रव्यापी डेटा विकसित करना: आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण जैसे सर्वेक्षणों के माध्यम से गिग श्रमिकों की सामाजिक-आर्थिक स्थितियों को समझने के लिए एक व्यापक राष्ट्रीय डेटाबेस तैयार करना।
  • श्रमिक वर्गीकरण का पुनर्मूल्यांकन: उन्हें श्रम सुरक्षा के अंतर्गत शामिल करने के लिए स्व-नियोजितलेबल का पुनर्मूल्यांकन करें।
  • सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करना: अनिवार्य आधार पर न्यूनतम मजदूरी, स्वास्थ्य कवरेज और बीमा सुरक्षा प्रदान करें।
  • श्रमिकों को सशक्त बनाना: सामूहिक सौदेबाजी की शक्ति को सक्षम बनाने और एल्गोरिदम संबंधी पूर्वाग्रहों से सुरक्षा प्रदान करने तथा शिकायत निवारण तंत्र स्थापित करने के लिए उन्हें सक्षम बनाना।
  • साझा उत्तरदायित्व को बढ़ावा देना: श्रमिकों को स्वास्थ्य और पर्यावरणीय जोखिमों से बचाने के लिए राज्य और प्लेटफॉर्म्स के बीच सहयोग को प्रोत्साहित करना।

निष्कर्ष

गिग वर्कर बढ़ती डिजिटल अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं। हालाँकि, पर्याप्त सुरक्षा के बिना लचीलापन शोषण का आवरण बन जाता है। एक वास्तविक समावेशी और न्यायसंगत गिग अर्थव्यवस्था को नवाचार तथा अधिकारों के मध्य संतुलन स्थापित करना होगा तथा यह सुनिश्चित करना होगा, कि भारत की तकनीकी प्रगति में कोई भी श्रमिक पीछे न छूट जाए।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न

श्रम के प्लेटफ़ॉर्म आधारित उपयोग ने पुराने असंगठित श्रमिकों का एक नया वर्ग निर्मित किया है। भारत में श्रम अधिकारों और रोज़गार सुरक्षा पर गिग इकॉनमी विकास के प्रभावों की जाँच कीजिए।

(10 अंक, 150 शब्द)

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