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वैश्विक भूख सूचकांक : भारत की स्थिति एवं चुनौतियाँ

Lokesh Pal October 17, 2024 05:45 96 0

संदर्भ :

वैश्विक भूख सूचकांक (जीएचआई) 2024 में भारत का स्थान 127 देशों में से 105वां है, जो देश की आर्थिक वृद्धि के बावजूद कुपोषण और व्यापक भूख के उच्च स्तर को दर्शाता है।

नोट : वैश्विक भूख सूचकांक (जीएचआई), मापन की एक पद्धति है जिसका उपयोग अंतर्राष्ट्रीय मानवीय एजेंसियों द्वारा विभिन्न देशों में कुपोषण और बाल मृत्यु दर संबंधी संकेतकों के आधार पर वैश्विक भूख सूचकांक के साथ भूख के स्तर को मापने और ट्रैक करने के लिए किया जाता है।

वैश्विक भूख सूचकांक में भारत की स्थिति और कारण

  • 2024 वैश्विक भूख सूचकांक  में भारत को “गंभीर” भूख स्तर (स्कोर 27.3) वाले 127 देशों में से 105वें स्थान पर रखा गया है, हालांकि अतिरिक्त कारकों के आधार पर स्थिति को “बेहद चिंताजनक” माना जा सकता है।
  • रिपोर्ट के अनुसार, भारत की 13.7% आबादी कुपोषित है, 35.5% बच्चे बौने हैं और 18.7% कमज़ोर हैं।
  • इसके अतिरिक्त, 2.9% बच्चे अपने पांचवें जन्मदिन से पहले ही मर जाते हैं, जिससे भारत दुनिया भर में सबसे ज़्यादा बाल मृत्यु दर वाले  देशों में से एक बन गया है।

वैश्विक भूख सूचकांक रिपोर्ट में इन चिंताजनक आंकड़ों के लिए कई कारकों को जिम्मेदार ठहराया गया है, जिनमें शामिल हैं :

  • अंतर-पीढ़ीगत कुपोषण :
    • माताओं की खराब पोषण स्थिति सीधे उनके बच्चों के स्वास्थ्य को प्रभावित करती है, जिससे कुपोषण का चक्र चलता रहता है।
    • कई माताओं को गर्भावस्था के दौरान पर्याप्त पोषण ण मिलने के कारण वजन में गिरावट का अनुभव होता है, जिसके परिणामस्वरूप शिशुओं का जन्म कम वजन के साथ होता है।
  • आर्थिक असमानताएँ :
    • आर्थिक विकास के बावजूद, जीडीपी वृद्धि और बेहतर पोषण सुरक्षा के बीच कोई प्रत्यक्ष संबंध सुनिश्चित नहीं है।
    • वित्त वर्ष 2024 में भारत 4 ट्रिलियन डॉलर की जीडीपी के साथ सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक होने के बावजूद, भूख और कुपोषण कायम है।
    • भारत की प्रति व्यक्ति आय 2,485 डॉलर वैश्विक औसत से बहुत कम है, जो व्यापक आय असमानता को दर्शाती है, जो खाद्य असुरक्षा संबंधी जोखिम को और बढ़ाती है।
  • आर्थिक मंदी : खाद्य मुद्रास्फीति में वृद्धि
    • खराब मौसम और फसल क्षति के कारण खाद्य मुद्रास्फीति वित्त वर्ष 2022 में 3.8% से दोगुनी होकर वित्त वर्ष 24 में 7.5% हो गई, इसके बावजूद भारत ने मुख्य रूप से चावल और गेहूं से 332 मिलियन टन का रिकॉर्ड खाद्य उत्पादन हासिल किया। 
    • हालांकि, सब्जियों और दालों के उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा, जिससे उनकी कमी हो गई और खाद्य मुद्रास्फीति में वृद्धि हुई।
  • संवैधानिक विफलता : 
    • अनुच्छेद 47 राज्य को नागरिकों के पोषण और जीवन स्तर में सुधार करने का अधिकार देता है, लेकिन भूख और कुपोषण से निपटने में भारत की असमर्थता इस संवैधानिक कर्तव्य को पूरा करने में विफलता को दर्शाती है।

संकट से निपटने के उपाय

  • खाद्य सुरक्षा जाल तक बेहतर पहुँच : खाद्य सुरक्षा को बढ़ाने के लिए सार्वजनिक वितरण योजना (पीडीएस), पीएम गरीब कल्याण योजना (पीएमजीकेएवाई) और एकीकृत बाल विकास सेवा (आईसीडीएस) जैसे कार्यक्रमों को मजबूत करना।
  • कृषि में निवेश : अधिक टिकाऊ खाद्य प्रणाली सुनिश्चित करने के लिए बाजरा जैसे पोषक अनाजों सहित विविध पौष्टिक खाद्य उत्पादन को बढ़ावा देना।
  • मातृ-शिशु स्वास्थ्य पर ध्यान केंद्रित करना : मातृ और बाल स्वास्थ्य परिणामों को बढ़ाने के लिए बेहतर जल, स्वच्छता और अनिवार्य प्रथाओं के साथ-साथ स्वास्थ्य सेवा में निवेश को प्राथमिकता देना।
  • लिंग और जलवायु परिवर्तन को संबोधित करना : पोषण और खाद्य सुरक्षा पर लिंग असमानता और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को पहचानना और प्रभावों को कम करना।

वैश्विक भूख सूचकांक  रिपोर्ट पर भारत सरकार की प्रतिक्रिया

  • कार्यप्रणाली की आलोचना : सरकार ने “गंभीर कार्यप्रणाली संबंधी मुद्दों” को चिन्हित किया है और रिपोर्ट की आलोचना करते हुए उस पर  “दुर्भावनापूर्ण इरादे” का आरोप लगाया।
  • मात्र तीन विशिष्ट बाल स्वास्थ्य संकेतकों पर निर्भरता  : वैश्विक भूख सूचकांक का मुख्य ध्यान मात्र तीन विशिष्ट बाल स्वास्थ्य संकेतकों पर बहुत अधिक निर्भर करता है: बाल स्टंटिंग, बाल दुर्बलता और बाल मृत्यु दर। सरकार का तर्क है कि ये मीट्रिक पूरी आबादी की पोषण स्थिति का व्यापक दृष्टिकोण प्रदान नहीं करते हैं |
  • सीमित नमूने पर आधारित : “अल्पपोषित आबादी का अनुपात” एक सीमित नमूने पर आधारित है, जिससे इसकी सटीकता पर संदेह होता है।

वैश्विक भूख सूचकांक रिपोर्ट पर की गई सरकार की आलोचनाओं के बावजूद, यह उल्लेखनीय है कि बांग्लादेश और नेपाल जैसे पड़ोसी देशों ने भारत से बेहतर रैंकिंग हासिल की है। यह वास्तविकता भारत की पोषण नीतियों और परिणामों पर आत्मनिरीक्षण करने का कारण बनती है।

निष्कर्ष 

ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2024, भारत के लिए गंभीर चिंताएँ पैदा करता है। यह दर्शाता है कि वास्तविक विकास का आशय केवल जीडीपी वृद्धि नहीं है, बल्कि सभी के लिए भोजन और पोषण जैसी बुनियादी ज़रूरतों तक पहुँच सुनिश्चित करने में है। इस सूचकांक के मुताबिक न्यायपूर्ण और समतापूर्ण समाज के लिए भूख से निपटना ज़रूरी है।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न :

प्रश्न : “उच्च आर्थिक वृद्धि का अर्थ आवश्यक रूप से बेहतर सामाजिक संकेतकों में परिवर्तित होना नहीं होता है ।” वैश्विक भूख सूचकांक 2024 में, भारत की रैंकिंग के आलोक में, आर्थिक वृद्धि और सामाजिक विकास के बीच संबंधों की आलोचनात्मक जांच करें।

(15 अंक, 250 शब्द)

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