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वैश्विक शिपिंग द्वारा कार्बन मुक्त होने के प्रयास हेतु विविध प्रयास

Lokesh Pal July 17, 2025 05:00 10 0

संदर्भ:

वैश्विक नौवहन वर्ष 2040-50 तक कार्बन-मुक्त होने की ओर अग्रसर है।

  • यह भारत के लिए एक बड़ा अवसर प्रस्तुत करता है, जिससे वह जीवाश्म ईंधन आयातक से नवीकरणीय ईंधन निर्यातक बन सकेगा, अपनी अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दे सकेगा, तथा एक विश्वसनीय वैश्विक साझेदार के रूप में उभर सकेगा।

वर्तमान ईंधन परिदृश्य और संक्रमणकालीन पथ:

  • व्यापारिक जहाज मुख्यतः वेरी लो सल्फर फ्यूल ऑयल (VLSFO), डीजल या तरल मीथेन गैस के आधार पर संचालित होता हैं
  • अतः महत्वाकांक्षी डीकार्बोनाइजेशन लक्ष्यों को पूरा करने के लिए चरणबद्ध दृष्टिकोण आवश्यक है।
  • तरलीकृत प्राकृतिक गैस (LNG) से संचालित होने वाले इंजन दक्षता में लगभग 5 % का सुधार प्रदान करते हैं और एक महत्वपूर्ण संक्रमणकालीन ईंधन के रूप में काम करते हैं।
  • यह परिवर्तन, हरित अमोनिया, हरित या ई-मेथनॉल और जैव ईंधन जैसे वास्तविक हरित ईंधनों की ओर पूर्ण बदलाव से पहले होगा।

कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए हरित ईंधन आवश्यक:

  • ग्रीन हाइड्रोजन: नवीकरणीय बिजली (जैसे, सौर, पवन ऊर्जा) का उपयोग करके पानी के इलेक्ट्रोलिसिस के माध्यम से उत्पादित किया जाता है।
    • इसकी उच्च अस्थिरता, भंडारण और परिवहन चुनौतियों के साथ-साथ व्यापक इंजन को पुनः डिजाइन करने की आवश्यकता के कारण जहाजों में इसका प्रत्यक्ष उपयोग वर्तमान में अव्यावहारिक है।
  • ग्रीन अमोनिया: ग्रीन हाइड्रोजन को नाइट्रोजन के साथ प्रतिक्रिया करके तैयार किया जाता है।
    • यह हरित हाइड्रोजन की तुलना में अधिक स्थिर है।
    • भारत सरकार न केवल शिपिंग के लिए बल्कि उर्वरक उत्पादन के लिए तरलीकृत प्राकृतिक गैस (LNG) आयात पर निर्भरता को कम करने के लिए भी हरित अमोनिया उत्पादन को सक्रिय रूप से बढ़ावा दे रही है।
  • ग्रीन मेथनॉल: सीमेंट या इस्पात उद्योग जैसे औद्योगिक स्रोतों से प्राप्त कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) के साथ ग्रीन हाइड्रोजन की प्रतिक्रिया से तैयार किया जाता है।

शिपिंग उद्योग द्वारा पसंदीदा ईंधन:

  • शिपिंग उद्योग स्वाभाविक रूप से रूढ़िवादी है और नई तकनीकों को धीरे-धीरे अपनाता है। इस दृष्टिकोण के आधार पर, ग्रीन मेथनॉल वर्तमान में सबसे आशाजनक विकल्प प्रतीत होता है।
  • अपनाने में आसानी: ग्रीन अमोनिया इंजन के विपरीत, जो कि एक नवाचार है जिसके लिए व्यापक ऑनबोर्ड प्रक्रियाओं और इंजन में बदलाव की आवश्यकता होती है, ग्रीन मेथनॉल VLSFO के लिए लगभग एकड्रॉप-इन प्रतिस्थापनहो सकता है।
    • इसके लिए मौजूदा इंजन और ईंधन प्रणालियों में न्यूनतम संशोधन की आवश्यकता होती है।
  • भंडारण और हैंडलिंग: ग्रीन मेथनॉल को पारंपरिक ईंधन के समान, सामान्य परिवेश के तापमान पर तरल के रूप में संग्रहीत किया जा सकता है, जिससे जटिल तापमान विनियमन की आवश्यकता समाप्त हो जाती है।
    • यह तरलीकृत प्राकृतिक गैस (LNG) या ग्रीन अमोनिया के विपरीत है, जिनकी भंडारण आवश्यकताएं अधिक कठिन होती हैं।
  • उद्योग समर्थन: 360 से अधिक जहाज पहले से ही मेथनॉल क्षमता पर काम कर रहे हैं या उन्हें मेथनॉल क्षमता का ऑर्डर दिया गया है
    • Maersk, CMA, CGM, और Evergreen सहित प्रमुख कंटेनर शिपिंग कंपनियां मेथनॉल का पुरजोर समर्थन करती हैं।
    • हालांकि हरित मेथनॉल अभी भी लगभग 10% CO2 उत्सर्जित करता है, लेकिन इसे हरित अमोनिया जैसे शून्य-उत्सर्जन ईंधन की ओर बढ़ने से पहले एक व्यावहारिक कदम के रूप में देखा जा रहा है।

हरित मेथनॉल अपनाने के मार्ग में प्रमुख चुनौतियाँ:

  • उच्च उत्पादन लागत: इसके लाभों के बावजूद, लागत एक महत्वपूर्ण बाधा बनी हुई है।
    • एक टन ई-मेथनॉल की कीमत लगभग 1,950 डॉलर है, जबकि वेरी लो सल्फर फ्यूल ऑयल (VLSFO) की कीमत 560 डॉलर है।
    • यह उच्च लागत निम्नलिखित कारणों से उत्पन्न होती है:
      • नवीकरणीय बिजली का किफायती न होना: सौर या पवन ऊर्जा से बिजली उत्पादन की लागत वर्तमान में पारंपरिक उत्पादन विधियों की तुलना में अधिक है। प्रत्येक टन हरित ई-मेथनॉल के लिए 10-11 मेगावाट बिजली की आवश्यकता होती है।
      • उच्च अग्रिम पूंजी निवेश: मेथनॉल उत्पादन के लिए बड़े पैमाने पर इलेक्ट्रोलाइजर सुविधाएं स्थापित करने के लिए पर्याप्त प्रारंभिक निवेश की आवश्यकता होती है।
      • आपूर्ति-माँग का अंतर: इस क्षेत्र के विभिन्न अनुमान बताते हैं कि वर्ष 2028 तक हरित मेथनॉल की मांग 14 मिलियन टन से अधिक हो जाएगी, लेकिन अनुमानित आपूर्ति लगभग 11 मिलियन टन तक ही सीमित रह सकती है। माँग-आपूर्ति के इस असंतुलन से कीमतों में और वृद्धि होने की संभावना है।

भारतीय नौवहन क्षेत्र की डीकार्बोनाइजेशन योजनाएँ:

  • भारत अपने घरेलू शिपिंग क्षेत्र को कार्बन मुक्त बनाने तथा हरित ईंधन आपूर्ति में वैश्विक स्तर पर अग्रणी राष्ट्र के रूप में अपनी स्थिति स्थापित करने की दिशा में सक्रिय रूप से काम कर रहा है।
  • घरेलू फोकस: भारत अपने घरेलू शिपिंग के लिए हरित प्रौद्योगिकी अपनाने के प्रस्ताव हेतु प्रतिबद्ध है। वह तूतीकोरिन के वी.ओ. चिदंबरनार बंदरगाह और कांडला बंदरगाह जैसे प्रमुख बंदरगाहों पर हरित ईंधन बंकरिंग प्वाइंट (जहाजों के लिए ईंधन भरने वाले स्टेशन) विकसित कर रहा है।
  • अंतर्राष्ट्रीय सहभागिता: भारत स्थानीय स्तर पर निर्मित हरित मेथनॉल के निर्यात की संभावना तलाशने के लिए सिंगापुर, जो एक प्रमुख वैश्विक जहाज ईंधन केंद्र है (जो वैश्विक जहाज ईंधन का लगभग एक चौथाई हिस्सा है) के साथ सहभागिता कर रहा है।
    • सिंगापुर स्वयं हरित ईंधन आपूर्तिकर्ता बनने के लिए प्रतिबद्ध है और उसे लाखों टन हरित ईंधन की आवश्यकता होगी।
  • सामरिक लाभ: भारत के पास पर्याप्त भू-संसाधन, सौर ऊर्जा में विशेषज्ञता और बढ़ती नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता है
    • इसके अलावा, इसे अपने लौह, इस्पात और सीमेंट उद्योगों से CO2 का एक महत्वपूर्ण स्रोत भी प्राप्त होता है, जिसे एकत्रित करके हरित मेथनॉल उत्पादन के लिए उपयोग किया जा सकता है।

भारत को हरित ईंधन केंद्र बनाने की प्रमुख रणनीतियाँ:

  • स्वदेशी हरित हाइड्रोजन का उत्पादन: भारत को सौर पैनलों और इलेक्ट्रोलाइजर के आयात पर निर्भर रहने के बजाय हरित हाइड्रोजन के उत्पादन के लिए अपनी क्षमता विकसित करने की आवश्यकता है।
  • सौर ऊर्जा की सफलता से सीख: भारत की सौर क्षमता में उल्लेखनीय वृद्धि, जो वर्ष 2014 की 2.82 गीगावाट से बढ़कर वर्ष 2025 में 105 गीगावाट हो गई, एक महत्त्वपूर्ण संकेत प्रस्तुत करती है। इस सफलता के महत्त्वपूर्ण कारक इस प्रकार हैं:
    • संप्रभु गारंटी का अवसर: सरकार निवेशकों को हरित ऊर्जा परियोजनाओं में निवेश के जोखिम को कम करने की गारंटी देती है, जिससे उन्हें कम ब्याज दरों पर अंतर्राष्ट्रीय पूंजी बाजारों तक पहुंच प्राप्त हो सकती है (उदाहरण के लिए, घरेलू बैंकों से 9-10% की तुलना में 4% से कम)।
    • ऑफ-टेक आश्वासन: संयंत्र के चालू होने से पहले ही उत्पाद (जैसे, ग्रीन मेथनॉल) खरीदने के लिए समझौते, जिससे बाजार में मांग सुनिश्चित हो सके।
  • आपूर्ति श्रृंखलाओं का समर्थन: आयात निर्भरता और समग्र लागत को कम करने के लिए स्थानीय आपूर्ति श्रृंखलाओं को मजबूत किया जा रहा है।
  • नवीन वित्तीय उपकरण:
    • इलेक्ट्रोलाइजर्स के लिए उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (PLI) योजनाएं स्थानीय विनिर्माण को बढ़ावा दे सकती हैं, आपूर्ति श्रृंखला की बाधाओं को दूर कर सकती हैं और कच्चे माल की परिवहन लागत को कम कर सकती हैं।
    • कार्बन कैप्चर, उपयोग और भंडारण (CCUS) प्रोत्साहन, पृथक CO2 से हरित मेथनॉल उत्पादन को अधिक व्यवहार्य बनाते हैं, साथ ही साथ वायुमंडलीय ग्रीनहाउस गैसों को कम करते हैं।
  • स्थानीय क्षमता का विस्तार करना: सरकार द्वारा 1.5 गीगावाट की स्थानीय इलेक्ट्रोलाइजर विनिर्माण क्षमता विकसित करने तथा इस्पात और सीमेंट उद्योगों से CO2 संग्रहण का विस्तार करने का प्रयास एकीकृत हरित ईंधन केन्द्रों के लिए महत्वपूर्ण है।
  • बहुपक्षीय विकास बैंकों का लाभ उठाना: बहुपक्षीय विकास बैंकों (MDB) से कम ब्याज दरों (लगभग 4%) पर वित्तपोषण प्राप्त करना घरेलू ऋणों (10-12%) की तुलना में अधिक लागत प्रभावी है।

भारत के जहाज स्वामित्व और जहाज निर्माण क्षेत्रों को पुनर्जीवित करने के लिए हरित ईंधन का उपयोग:

  • भारतीय जहाज स्वामित्व और जहाज निर्माण डीकार्बोनाइजेशन प्रयासों को बढ़ावा देने से भारत के जहाज निर्माण क्षेत्र को पुनर्जीवित करने का अवसर भी मिलेगा।
  • मांग-पक्ष का समर्थन: हरित ईंधन-सक्षम जहाजों की मांग उत्पन्न करने के लिए सरकारी प्रोत्साहन से पैमाने की अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा।
  • विदेशी सहयोग: भारत की जहाज निर्माण क्षमताओं को बढ़ाने के लिए दक्षिण कोरिया और जापान के वैश्विक जहाज निर्माताओं के साथ साझेदारी आवश्यक है।
  • जहाजी बेड़े का आधुनिकीकरण: इस रणनीति में हरित ईंधन अनुकूलता के लिए मौजूदा जहाजों को पुनः तैयार करना और हरित ईंधन के लिए डिजाइन किए गए नए जहाजों का निर्माण करना शामिल है
    • भारत 10 अरब डॉलर मूल्य के 110 से अधिक जहाज खरीदने की योजना बना रहा है।
  • सरकारी प्रोत्साहन: सरकार इस उद्योग को प्रोत्साहन प्रदान करती है, इसलिए इनमें से 10-20% हरित ईंधन-सक्षम हैं, भारतीय शिपयार्ड में निर्मित हैं, तथा भारतीय ध्वज वाले हैं।

निष्कर्ष:

अतः बहुआयामी व सम्मिलित प्रयास न केवल वैश्विक डीकार्बोनाइजेशन लक्ष्यों में योगदान देंगे, बल्कि भारत के घरेलू विनिर्माण उद्योग को भी बढ़ावा देंगे, रोजगार सृजन करेंगे और भारत को हरित ऊर्जा और टिकाऊ शिपिंग में वैश्विक नेतृत्वकर्ता के रूप में स्थापित करेंगे।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न: वर्ष 2040-2050 तक वैश्विक शिपिंग क्षेत्र को कार्बन-मुक्त करने में आने वाली प्रमुख चुनौतियों का परीक्षण कीजिए। इस परिवर्तन में प्रभावी योगदान देने के लिए भारत को कौन-सी रणनीतियाँ और नीतिगत हस्तक्षेप अपनाने चाहिए?

(10 अंक, 150 शब्द)

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