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भारत में अपराधों का महिमामंडन

Lokesh Pal November 07, 2024 05:15 52 0

संदर्भ :

पिछले कुछ दिनों से लॉरेंस बिश्नोई, सुकेश चंद्रशेखर और विकास दुबे जैसे अपराधियों के महिमामंडन ने गंभीर सार्वजनिक चिंता की स्थिति उत्पन्न कर दी है, क्योंकि इससे समाज, विशेषकर संवेदनशील युवा दर्शकों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ने का खतरा है।

गिरोह संस्कृति की पृष्ठभूमि

  • ब्रिटिश युग की उत्पत्ति : 
    • भारत में गिरोह संस्कृति औपनिवेशिक काल से चली आ रही है, जब ब्रिटिश कंपनियों ने समय पर कार्य पूरा करने के लिए प्रभावशाली गिरोह नेताओं को अवसंरचना निर्माण हेतु ठेके दिए थे।
    • इससे भ्रष्टाचार और सत्ता संघर्ष को बढ़ावा मिला, जिनमें परियोजनाओं में गुप्त सौदे शामिल होते थे।
  • आधुनिक आपराधिक उद्यम :   
    • हाल के दशकों में उत्तर प्रदेश, पंजाब, दिल्ली और मुंबई जैसे क्षेत्रों में गिरोह की गतिविधियाँ तेज़ हो गई हैं, जहाँ त्वरित धन और शक्ति का लालच व्यक्तियों को आपराधिक गतिविधयों की ओर ले जाता है।
    • आज के गिरोह तस्करी से लेकर उच्च-प्रतिष्ठित हत्याओं तक कई तरह की अवैध गतिविधियों में लिप्त हैं।

गिरोह संस्कृति के उदय हेतु उत्तरदायी कारक

  • मीडिया : आपराधिक गतिविधियों का व्यापक समाचार कवरेज अपराधियों को प्रसिद्ध करती है, उन्हें एक महान व्यक्ति के रूप में प्रस्तुत करती है।
    • यह चित्रण युवाओं के बीच प्रशंसा को बढ़ाता है, जो उन्हें आदर्श मानने लगते हैं या गिरोह में शामिल होने की आकांक्षा रखते हैं।
  • सोशल मीडिया का प्रभाव : “लॉरेंस बिश्नोई जिंदाबाद” और “विकास दुबे अमर रहे” जैसे पेज अपराधियों का जश्न मनाते हैं, ऐसे प्रशंसक आधार बनाते हैं जो उनके कार्यों को सराहनीय या वीरतापूर्ण मानते हैं।
  • मनोरंजन उद्योग : फ़िल्में और ओटीटी प्लेटफ़ॉर्म अक्सर अपराधियों को एक करिश्माई नायक के रूप में दिखाने का प्रयास करते हैं, जो आपराधिक जीवन को रोमांटिक बना देते हैं। 
    • उदाहरण : मिर्जापुर के “गुड्डू भैया” जैसे किरदार इस प्रवृत्ति को दर्शाते हैं।
  • हिंसक वीडियो गेम : कुछ ऑनलाइन गेमों में अत्यधिक हिंसा होती है, जो खिलाड़ियों को हिंसक गतिविधयों के प्रति असंवेदनशील बना सकती हैं।
    • यह हिंसक व्यवहार को सामान्य बनाता है, सहानुभूति को कम करता है और मनोरंजन के रूप में आपराधिक कार्यों को स्वीकार करने की प्रवृत्ति को बढ़ावा देता है।
  • जीवनशैली प्रदर्शन के लिए एक उपकरण के रूप में सोशल मीडिया : अपराधी सोशल मीडिया का उपयोग अपने सुव्यवस्थित जीवनशैली को दिखाने के लिए करते हैं, जिसमें धन और शक्ति का प्रदर्शन होता है ।
    • सामान्यतः संगीत के साथ गैंगस्टरों की गिरफ़्तारी के वीडियो उनके प्रभाव को और बढ़ाते हैं, जिससे प्रभावशाली युवा आपराधिक जीवनशैली की ओर आकर्षित होते हैं।

गिरोह संस्कृति का प्रभाव

  • किशोरों का शोषण : अपराधी सामान्यतः अपने कार्यों में नाबालिगों (12 से 16 वर्ष की आयु वाले) का उपयोग करते हैं, यह जानते हुए कि किशोर कानून के तहत उन्हें न्यूनतम सजा मिलेगी।
    • छोटे-मोटे हिंसक कार्यों से शुरू होकर ये किशोर गंभीर अपराधों की ओर बढ़ जाते हैं, जैसा कि बाबा सिद्दीकी की हत्या जैसे मामलों में देखा गया है। 
    • पिछले पाँच वर्षों में किशोर अपराध दर में तकरीबन 42% की वृद्धि दर्ज की गई है।
  • मनोवैज्ञानिक असंवेदनशीलता : सोशल मीडिया, वीडियो गेम और फिल्मों के माध्यम से हिंसा के लगातार संपर्क में रहने से भावनात्मक प्रतिक्रियाएँ सुस्त हो जाती हैं, जिससे सहानुभूति कम हो जाती है और वास्तविक जीवन की त्रासदियों से भावनात्मक अलगाव पैदा हो जाता है, जिसमें उनके परिवार को प्रभावित करने वाली त्रासदियाँ भी शामिल हैं। 
  • आक्रामकता का सामान्यीकरण : हिंसक वीडियो गेम और कंटेंट एक ऐसे वातावरण का निर्माण कर देती हैं,  जहाँ की आक्रामक व्यवहार को सामान्य बना दिया जाता है, जिससे अपराध अधिक स्वीकार्य या रोमांचक लगने लगता है।

समाधान और रोकथाम

  • कंटेंट का विनियमन :
    • युवाओं पर इसके नकारात्मक प्रभाव को रोकने के लिए सिनेमा तथा ओटीटी प्लेटफॉर्म्स में आयु-उपयुक्त कंटेंट फ़िल्टरिंग और सख्त सेंसरशिप लागू किए जाने की आवश्यकता है। 
      • मीडिया में व्यापक हिंसा प्रदर्शन करने वाली खबरों से बचा जाना चाहिए।
  • पारिवारिक संबंध : परिवार के साथ डिवाइस-मुक्त समय को प्रोत्साहित करने पर बल दिया जाना चाहिए, मुख्य रूप से तब जबकि भोजन ग्रहण कर रहें हों इस दौरान साझा गतिविधियों को बढ़ावा दिए जाने की आवश्यकता है। मजबूत पारिवारिक बंधन सोशल मीडिया और हिंसक सामग्री के नकारात्मक प्रभावों के लिए एक सुरक्षात्मक प्रतिकार के रूप में कार्य कर सकते हैं।
  • सहानुभूति निर्माण : युवाओं को वास्तविक पीड़ितों की कहानियों संबंधी चर्चा में शामिल करें और सामाजिक कार्य को प्रोत्साहित करें, जिससे उन्हें अपराध के वास्तविक परिणामों को समझने और सहानुभूति को बढ़ावा देने में मदद मिले।
  • मीडिया का उत्तरदायित्व : कंटेंट निर्माता और मीडिया आउटलेट को टीआरपी से ज़्यादा युवाओं के कल्याण को प्राथमिकता देनी चाहिए।
    • आपराधिक गतिविधियों की जिम्मेदारीपूर्ण रिपोर्टिंग और चित्रण से अपराधियों की प्रसिद्धि को कम करने में मदद मिल सकती है।
  • युवाओं में जागरूकता का प्रचार-प्रसार : युवाओं को क्षणभंगुर प्रसिद्धि और स्थायी सम्मान के बीच के अंतर के बारे में शिक्षित किए जाने की आवश्यकता है। सफलता को सकारात्मक योगदान से, न कि आपराधिक व्यवहार का महिमामंडन करके परिभाषित किया जाना चाहिए ।
  • सामाजिक मूल्य : समाज को अपने नायकों का पुनर्मूल्यांकन करने की आवश्यकता है। हमें अपराधियों को आदर्श बनाने के बजाय भगत सिंह जैसे क्रांतिकारियों का जश्न मनाना चाहिए। सोशल मीडिया को उन नेताओं को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए जो प्रेरणा देते हैं, न कि उन लोगों पर जो अपराध को बढ़ावा देते हैं।
  • सामूहिक कार्रवाई : युवाओं को एक उज्जवल, अपराध-मुक्त भविष्य की ओर ले जाने के लिए समाज को एकजुट होकर कार्य करना चाहिए । आपराधिक महिमामंडन के बढ़ते प्रभाव से निपटने के लिए सामुदायिक प्रयास, शिक्षा और सामाजिक सुधार आवश्यक हैं।

निष्कर्ष 

अपराधियों का महिमामंडन सामाजिक मूल्यों और युवा विकास को कमजोर करता है। यह समाज के नैतिक ताने-बाने की रक्षा के लिए मीडिया चित्रण, सामाजिक प्रभावों और सामुदायिक जागरूकता में सामूहिक परिवर्तन की आवश्यकता को दर्शाता है। 

मुख्या परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न 

मनोरंजन और समाचार मीडिया में अपराधियों का महिमामंडन किस तरह न्याय और सत्य को बनाए रखने के नैतिक कर्तव्य के साथ टकराव पैदा करता है? युवाओं पर इसके प्रभाव पर चर्चा करें और निवारक रणनीति सुझाएँ।

(15 अंक, 250 शब्द) 

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