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हरित क्रांति

Lokesh Pal August 07, 2025 05:00 10 0

संदर्भ:

हाल ही में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भारत की हरित क्रांति के अग्रणी वास्तुकार, भारत रत्न डॉ. एम.एस. स्वामीनाथन की जन्म शताब्दी के अवसर पर 100 रुपये का स्मारक सिक्का और डाक टिकट जारी किया।

  • उन्होंने प्रोफेसर एम.एस.स्वामीनाथन की पुस्तक इन सर्च ऑफ बायोहैप्पीनेस के विशेष शताब्दी संस्करण का भी अनावरण किया।

स्वतंत्रता के बाद खाद्य संकट:

  • स्वतंत्रता के बाद खाद्य असुरक्षा: खाद्यान्न आत्मनिर्भरता सबसे तात्कालिक और मौलिक चुनौती थी जिसका सामना भारत और उसके 330 मिलियन जनता ने स्वतंत्रता के तुरंत बाद अनुभव किया।
  • बाह्य सहायता पर अत्यधिक निर्भरता: भारत के अस्तित्व को जहाज से मुंह तक की स्थिति के रूप में वर्णित किया गया था, क्योंकि यह वस्तुतः खाद्य शिपमेंट, विशेष रूप से अमेरिका से गेहूं, के अपने बंदरगाहों पर पहुंचने की प्रतीक्षा करता था।
  • कृषि विरोधाभास: अमेरिकी खाद्य सहायता कार्यक्रम पीएल-480 पर इस अत्यधिक निर्भरता ने एक ऐसे राष्ट्र की भयावह तस्वीर पेश की, जहां 70% से अधिक आबादी कृषि कार्य में कार्यरत थी, फिर भी वह अपना पेट भरने में असमर्थ थी।
  • राष्ट्रीय गरिमा और विदेश नीति के समक्ष बाधाएं: यह निर्भरता राष्ट्रीय गरिमा के लिए एक प्रत्यक्ष अपमान थी, जिसने भारत की अपनी विदेश नीति को स्वतंत्र रूप से लागू करने की क्षमता को सीमित कर दिया।

हरित क्रांति:

  • 1960 के दशक के मध्य में शुरू की गई हरित क्रांति एक परिवर्तनकारी पहल थी जिसका उद्देश्य खाद्य आत्मनिर्भरता हासिल करना था।
  • इसकी शुरुआत मुख्य रूप से पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश से हुई, जो इस कृषि क्रांति का केंद्र बन गया।

हरित क्रांति के प्रमुख स्तंभ:

  • उच्च उपज देने वाली किस्में (HYVs): खाद्य उत्पादन बढ़ाने के लिये उच्च उपज वाले किस्म (High-Yield Variety- HYV) के बीजों का उपयोग करना।
    • उदाहरण: गेहूं के लिए, फसलों को रोगों से बचाने में रतुआ प्रतिरोधी किस्में महत्वपूर्ण थीं।
  • सिंचाई: नहरों और नलकूपों के निर्माण से फसलों को समय पर जल की आपूर्ति सुनिश्चित हो सकी, जो पैदावार बढ़ाने के लिए आवश्यक थी।
  • उर्वरक और कीटनाशक: रासायनिक उर्वरकों के बढ़ते उपयोग से मृदा उत्पादकता में वृद्धि हुई, जबकि कीटनाशकों ने फसलों को कीटों से बचाया, जिससे महत्वपूर्ण नुकसान को रोका जा सका।
    • चावल और गेहूं के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) जैसी सरकारी नीतियों ने भी सहायक भूमिका निभाई।

हरित क्रांति का परिवर्तनकारी प्रभाव:

  • खाद्य उत्पादन में आश्चर्यजनक वृद्धि: गेहूं का उत्पादन 1960 के दशक के मध्य में 12 मिलियन टन से बढ़कर 1970-71 तक 21 मिलियन टन हो गया, तथा 1990 के दशक के अंत तक 76 मिलियन टन हो गया।
    • चावल की पैदावार भी आश्चर्यजनक रूप से बढ़ी, जो 1960 के दशक में लगभग 2 टन/हेक्टेयर से बढ़कर 1990 के दशक के मध्य तक लगभग 6 टन/हेक्टेयर हो गयी।
  • आयातक से निर्यातक: 1980 के दशक के अंत तक भारत खाद्य सहायता पर निर्भर आयातक से आत्मनिर्भर खाद्य निर्यातक में परिवर्तित हो गया।
    • आज भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा खाद्यान्न उत्पादक देश है, अनाज के मामले में आत्मनिर्भर है तथा लगभग 52 बिलियन डॉलर मूल्य के कृषि उत्पादों का निर्यात करता है।
  • संप्रभुता का दावा: यह उपलब्धि केवल वैज्ञानिक विजय नहीं थी; यह एक सामाजिक-आर्थिक और भू-राजनीतिक विजय भी थी।
    • भारत अब खाद्य निर्भरता के कारण अपनी विदेश नीति के संबंध में बाह्य दबाव के प्रति संवेदनशील नहीं रहा, और वर्तमान में वह अपनी संप्रभुता का दावा करने और स्वतंत्र निर्णय लेने में पूर्ण रूप से सक्षम है।
    • कृषि, जो कभी भारत की कमजोरी का प्रतीक थी, उसकी आर्थिक और कूटनीतिक ताकत की आधारशिला बन गयी।

‘अगली क्रांति’ के लिए जनादेश:

हरित क्रांति ने जहाँ महत्वपूर्ण लाभ पहुँचाए, वहीं इसके कुछ प्रतिकूल दुष्प्रभाव भी हुए जिन पर भविष्य की प्रगति के लिए तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है। कृषि परिवर्तन के अगले चरण में निम्नलिखित पर ध्यान केंद्रित करना होगा:

  • समावेशिता: 80% से अधिक भारतीय कृषि भूमि छोटे किसानों के हैं, जिनकी विशेषता कम इनपुट, कम आउटपुट प्रणाली है।
    • ये छोटे किसान जलवायु परिवर्तन, नीतिगत बदलावों और अन्य कृषि जोखिमों के प्रति अत्यधिक संवेदनशील होते हैं, तथा अक्सर उनके पास पर्याप्त संसाधनों का अभाव होता है।
    • यह अभी भी जनता द्वारा उत्पादन की कहानी है, बड़े पैमाने पर उत्पादन की नहीं।
    • भविष्य की रणनीतियों में यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि इन किसानों को एकीकृत किया जाए और उन्हें समर्थन दिया जाए।
  • स्थायित्व: उर्वरकों और कीटनाशकों के व्यापक प्रयोग तथा सिंचाई के लिए अत्यधिक भूजल दोहन के कारण जल और भूमि संसाधनों पर अत्यधिक दबाव पड़ा है।
    • इससे मृदा उत्पादकता में गिरावट आई है तथा भूजल स्तर में भी उल्लेखनीय गिरावट दर्ज की गई है।
    • दीर्घकालिक कृषि व्यवहार्यता के लिए पर्यावरण अनुकूल तरीकों को अपनाना महत्वपूर्ण है।
  • लाभप्रदता: किसान अक्सर अपनी उपज के लिए उचित मूल्य न मिलने की शिकायत करते हैं, जिसके कारण उन्हें अक्सर मजबूरी में अपना फसल कम कीमतों पर बेचना पड़ता है।
    • न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की गारंटी की मांग इस मुद्दे को दर्शाती है।
    • सरकार को अपने किसानों के लिए उचित मूल्य सुनिश्चित करने के लिए नए तथा व्यवहारिक समाधान पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
  • विविधीकरण: हरित क्रांति के दौरान केवल गेहूं और चावल के उत्पादन पर बल देने से कई क्षेत्रों में फसल विविधीकरण में कमी आई है।
    • भविष्य के प्रयासों में विविध फसल प्रणालियों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए जो अधिक लचीली और कम संसाधन-गहन हों।

अमेरिका द्वारा टैरिफ:

हालाँकि विडंबना यह है कि 7 अगस्त से अमेरिका द्वारा भारतीय वस्तुओं पर 25% पारस्परिक टैरिफ लगाया जाएगा, जिसमें प्रमुख कृषि निर्यात भी शामिल हैं।

  • अमेरिकी व्यापार प्रतिस्पर्धा: अमेरिका ने प्रमुख कृषि निर्यातों सहित भारतीय वस्तुओं पर 50% टैरिफ लगाया है।
    • इसका असर निर्यातोन्मुखी उत्पादों जैसे समुद्री खाद्य, बासमती चावल और मसालों पर पड़ता है, जिनका उत्पादन अक्सर छोटे किसानों द्वारा किया जाता है।
    • ओडिशा का झींगा निर्यात, जिसका 95% से अधिक हिस्सा अमेरिकी बाजार में जाता है, उच्च जोखिम में है, इससे हजारों छोटे उत्पादकों/किसानों की आजीविका खतरे में पड़ गई है, साथ ही इनके पास ऐसे समस्याओं का सामना करने के लिए संसाधनों का अभाव है।
  • व्यापक आर्थिक स्तर पर, अनुमानित 7-8 बिलियन डॉलर का वार्षिक नुकसान भारत के सकल घरेलू उत्पाद के 0.2% से भी कम है, जिसका समाधान करने में हमारी राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था सक्षम है।
    • लेकिन छोटे पैमाने के उत्पादकों के लिए, जिनकी जोखिम उठाने की क्षमता पहले से ही कम है, परिणाम कहीं अधिक गंभीर हो सकते हैं
    • इन किसानों और कृषि निकायों के पास आय की हानि को झेलने के लिए सीमित साधन उपलब्ध हैं।

निष्कर्ष:

हरित क्रांति पर पुनर्विचार का अर्थ केवल अधिक उत्पादन करना ही नहीं है, बल्कि बेहतर उत्पादन करना और अधिक समझदारी से क्रियान्वयन करना भी है।

 मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न: भारत की हरित क्रांति ने इसे खाद्य सहायता पर निर्भर राष्ट्र से वैश्विक कृषि क्षेत्र में अग्रणी बना दिया है। हरित क्रांति की प्रमुख उपलब्धियों और इससे उत्पन्न चुनौतियों का विश्लेषण कीजिए। कृषि परिवर्तन के अगले चरण के लिए एक रोडमैप सुझाइए जिससे लचीलापन और स्थायित्व सुनिश्चित हो सके।

(15 अंक, 250 शब्द)

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