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तमिलनाडु की राजनीति में नायक पूजा

Lokesh Pal October 01, 2025 06:00 9 0

संदर्भ:

फिल्मी सितारों से राजनेता बने विजय की एक झलक पाने के लिए एकत्र हुए महिलाओं और बच्चों सहित 41 लोगों की दुखद मौत ने फिल्मी सितारों और राजनेताओं की नायक-पूजा के बारे में बहस को फिर से जन्म दे दिया है।

तमिल संस्कृति में नायक पूजा की पृष्ठभूमि:

  • प्राचीन प्रथा: शिलालेखों और स्रोतों से पता चलता है कि “नायक” का विचार तमिल परंपरा का केंद्रीय अंग रहा है।
    • लोक नायक और शाही व्यक्तित्व: स्टुअर्ट ब्लैकबर्न लोक नायकों (वर्ग हितों का प्रतिनिधित्व करते हुए) और शाही व्यक्तित्व दोनों पर प्रकाश डालते हैं।
    • साहित्यिक योगदान: के. कैलाशपति जैसे विद्वानों ने तमिल वीर काव्य पर कार्य किया है, जबकि लोक कथा विशेषज्ञ एन. वनाममलाई ने तमिलों के बीच प्रचलित वीर स्मारकों, लोकगीतों और लोक मान्यताओं के बारे में लिखा है।
    • सांस्कृतिक परंपरा: इन अध्ययनों से संकेत मिलता है कि साहित्यिक, मौखिक और दृश्य प्रथाओं के माध्यम से शहीद नायकों का सम्मान करना तमिल परंपरा का एक अभिन्न अंग रहा है।
  • आधुनिक प्रथा: अभिनेताओं और राजनेताओं को जानबूझकर ” जीवन से बड़ा” या “सुपरहीरो” की छवि प्रदान की जाती है।
    • यह PR (पब्लिक रिलेशन) अभियान, बड़े पैमाने पर प्रचार, ब्रांडिंग और फैन क्लबों के माध्यम से प्राप्त किया जाता है, जिसका उद्देश्य अक्सर एक समर्पित वोट बैंक विकसित करना होता है।

द्रविड़ राजनीति और देवत्व का संस्थागतकरण:

  • सिद्धांतों का विरोधाभास: यद्यपि द्रविड़ आंदोलन तर्कवादी और नास्तिक सिद्धांतों पर आधारित था, लेकिन विडंबना यह है कि इसने अपने राजनीतिक चरण में देवत्व की संस्कृति को संस्थागत प्रदान किया।
  • राजनीतिक उपकरण के रूप में सिनेमा: फिल्मों, गीतों और संवादों का व्यवस्थित रूप से अपनी विचारधारा को बढ़ावा देने और जनता से जुड़ने के लिए उपयोग किया गया
    • इस आंदोलन से उभरी द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम (डीएमके) पार्टी ने बाद में व्यापक प्रचार के माध्यम से मानव नेताओं (जैसे एमजीआर) को देवताओं या भगवान के समकक्ष दर्शाना शुरू कर दिया।
  • तमिलनाडु में सिनेमा-राजनीति गठजोड़: एमजीआर की अद्वितीय सफलता ने कई फिल्मी सितारों को राजनीति में प्रवेश करने के लिए प्रेरित किया, हालाँकि अधिकांश लोग सिनेमा को राजनीतिक नेतृत्व के साथ जोड़ने में उनकी उपलब्धि को दोहरा नहीं सके।
    • फिल्म उद्योग के नेताओं को प्रतीकात्मक उपाधियों से सम्मानित किया जाता था, जैसे करुणानिधि को “चोल राजा”, एमजीआर को “पारी वल्लाल” और जयललिता को “इधायधेवम अम्मा” के रूप में।
    • तमिलनाडु में फिल्म संस्कृति और राजनीतिक संस्कृति अविभाज्य हो गई, सिनेमा के संवाद, गीत और चित्र राज्य के सार्वजनिक जीवन में गहराई से समा गए।

तमिलनाडु में सिनेमा-राजनीति गठजोड़ का प्रभाव:

  • द्रविड़ पार्टियों के चुनाव अभियानों में फिल्मी सितारे नियमित रूप से शामिल होते रहे, जिससे सिनेमा एक प्रभावशाली जन-आंदोलनकारी शक्ति बना रहा।
  • सांस्कृतिक कार्यक्रम: यहाँ तक कि आधिकारिक सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भी फिल्मी सितारे वक्ता के रूप में शामिल होते हैं, जो सिनेमा और शासन के बीच संबंध को मजबूत करते हैं।
  • स्वतंत्र संस्कृति का अभाव: इस निरंतर गठजोड़ ने राज्य में वास्तविक स्वतंत्र सार्वजनिक संस्कृति के विकास को प्रभावित किया।
  • अन्य द्वारा अनुकरण: अन्य क्षेत्रीय और राष्ट्रीय दलों ने भी तमिलनाडु मॉडल का अनुकरण करना शुरू कर दिया, तथा राजनीतिक प्रचार और मतदाताओं तक पहुँच बनाने के लिए सिनेमा तथा अभिनेताओं का उपयोग करना शुरू कर दिया।

सिनेमा-राजनीति गठजोड़ से संबंधित चिंताएँ:

  • आधुनिक राजनीति में चापलूसी/चाटुकारिता: आधुनिक फिल्मी सितारों और राजनेताओं की नायक पूजा सांस्कृतिक परंपरा से आगे बढ़कर अब राजनीतिक चापलूसी बन गई है।
  • आलोचना को कमजोर करता है: यह बहस, चर्चा और आलोचना को हतोत्साहित करता है ; जो लोग नेता की आलोचना करते हैं उन्हें देशद्रोही या “पार्टी विरोधी” करार दिया जाता है।
  • नीति की जगह भावनाएँ: चर्चाएँ मूल मुद्दों या आंकड़ों के बजाय भावनात्मक बदलाव और व्यक्तित्व पर केंद्रित होती हैं।
  • वंशवादी राजनीति को बढ़ावा: यह वंशवादी राजनीति को जारी रखने का समर्थन करता है, जहाँ नेता के परिवार के सदस्यों को उत्तराधिकारी के रूप में तैयार किया जाता है।
  • योग्यता का क्षरण: यह व्यक्ति की वास्तविक योग्यता और क्षमताओं को प्रभावित करता है।

आगे की राह:

  • तत्काल उपाय: भीड़ सुरक्षा नियमों और दायित्व संबंधी दिशा-निर्देशों को लागू करना; रैली में उपस्थिति पर चुनाव आयोग की निगरानी सुनिश्चित करना; अभिनेताओं/राजनेताओं को सनसनीखेज बनाने या महिमामंडित करने से बचने के लिए मीडिया पर संयम बरतना।
  • दीर्घकालिक उपाय: नागरिक शिक्षा और आलोचनात्मक सोच को बढ़ावा देना ; एक स्वतंत्र नागरिक समाज को मजबूत करना ; राजनीतिक दलों के भीतर आंतरिक लोकतंत्र को प्रोत्साहित करना

निष्कर्ष:

जैसा कि बी.आर. अंबेडकर ने चेतावनी दी थी, राजनीति में नायक-पूजा लोकतंत्र को कमजोर कर सकती है। करूर त्रासदी इस बात का उदाहरण है कि कैसे अत्यधिक पंथवादी राजनीति जवाबदेही और नागरिक कल्याण को खतरे में डाल सकती है।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न: डॉ. बी.आर. आंबेडकर ने आगाह किया था कि धर्म में भक्ति मोक्ष का मार्ग हो सकती है, लेकिन राजनीति में यह ‘पतन और अंततः तानाशाही का निश्चित मार्ग’ है। इस कथन के आलोक में, भारतीय राजनीति में व्यक्ति-पूजा के उदय और लोकतांत्रिक जवाबदेही एवं संवैधानिक नैतिकता पर उनके प्रभावों का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिए।

(15 अंक, 250 शब्द)

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