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भारत में उच्चतर शिक्षा एवं इसकी आवश्यकता

Lokesh Pal November 04, 2024 05:30 35 0

संदर्भ :

भारत में शिक्षा की बढ़ती लागत और उच्चतर शिक्षा तक सीमित पहुँच जैसे कारक परिवारों को अपनी क्षमता से अधिक वित्तीय बलिदान देने के लिए मजबूर कर रहे हैं, जो शिक्षा प्रणाली में व्याप्त  चुनौतियों को उजागर करते हैं।

उत्प्रेरक के रूप में शिक्षा

  • भारतीय परिवारों, विशेष रूप से निम्न-मध्यम वर्गीय पृष्ठभूमि के परिवारों द्वारा शिक्षा को ऐतिहासिक रूप से उच्च महत्त्व दिए जाने को सामाजिक-आर्थिक गतिशीलता के मार्ग के रूप में देखा जा रहा है।
  • यह प्रवृत्ति भारतीय स्वतंत्रता के बाद उभर कर आयी, क्योंकि सीमित संसाधनों के बावजूद परिवारों द्वारा अक्सर अपनी वित्तीय सुरक्षा का त्यागकर अपने बच्चों की शिक्षा को प्राथमिकता दिया गया I
  • शिक्षा ने न केवल कौशल विकास के साधन के रूप में बल्कि मूल्यवान नेटवर्क और सामाजिक दायरे में प्रवेश द्वार के रूप में भी कार्य किया है, जो पारंपरिक वर्ग आधारित बाधाओं को तोड़ते हुए ऊर्ध्वाधर गतिशीलता को सक्षम बनाता है। 
  • ये आख्यान पीढ़ी-दर-पीढ़ी गुंजायमान रहते हैं I माता-पिता द्वारा अपने बच्चों की गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्ति की सुनिश्चितता हेतु लगातार बलिदान दिया जाता रहा है, चाहे वह शिक्षा विशिष्ट संस्थानों में हो या विदेशी विश्वविद्यालयों आदि में।

भारत में विद्यालयी शिक्षा की स्थिति

  • भारत ने विद्यालयी शिक्षा में महत्त्वपूर्ण प्रगति दर्ज की है और विभिन्न राज्यों में प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में 100% का सकल नामांकन अनुपात (GER) प्राप्त किया है।
  • व्यापक गुणक लाभों के साथ प्राथमिक शिक्षा को सार्वजनिक कल्याण  के रूप में मान्यता दी गई है। हालाँकि अवधारण दर, शैक्षिक गुणवत्ता आदि के संदर्भ में चुनौतियाँ अभी भी बनी हुई हैं।

भारत में उच्च शिक्षा की वर्तमान स्थिति

  • हालाँकि उच्च शिक्षा के क्षेत्र में भारत का GER 28% से अधिक हो गया है, परन्तु यह अभी भी कम है I साथ ही उच्चतर शिक्षा तक पहुँच बढ़ाने के संदर्भ में चुनौतियाँ अभी भी बनी हुई हैं। 
  • इसकी तुलना में दक्षिण कोरिया जैसे देश, जिसका GER 1970 के दशक में केवल 10% था, ने अब 100% की दर हासिल कर ली है।

उच्च शिक्षा में निम्न नामांकन के कारण

  • सीमित गुणवत्ता वाले संस्थान : गुणवत्तापूर्ण संस्थानों की कमी उच्च शिक्षा तक विद्यार्थियों की पहुँच को प्रतिबंधित करती है, जिससे कई विद्यार्थी व्यवहार्य विकल्पों की अनुपस्थिति के कारण उच्चतर शिक्षा से वंचित रह जाते हैं।
  • शिक्षा-रोजगार लिंक में कमी : भारत में उच्चतर शिक्षा, जो आदर्श रूप में रोजगार प्रदाता होती है, में कमी के कारण कई स्नातकों के पास उद्योग-प्रासंगिक कौशल की कमी होती है, जिससे अपने निवेश पर प्रतिफल चाहने वाले परिवारों पर वित्तीय दबाव बढ़ जाता है।
  • सीमित सीटें और वित्तीय बोझ : भारत के शीर्षस्थ संस्थानों में सीटें कम होने के कारण विद्यार्थियों को विदेशी शिक्षण संस्थानों की ओर रुख करना पड़ता हैं, जिससे उनके परिवार भारी कर्ज में डूब जाते हैं। 
    • मुफ़्त शिक्षा प्रदानकर्ता राष्ट्र यथा- जर्मनी या सुलभ ऋण और सब्सिडी देने वाले अमेरिका एवं नॉर्डिक देशों के विपरीत, भारत सीमित वित्तीय सहायता विकल्प प्रदान करता है।

आगे की राह

  • शिक्षा को बाजार की जरूरतों के साथ संरेखित करना : ऐसे पाठ्यक्रम विकसित करना, जो रोज़गार बाजार की मांगों को पूरा करने के लिए विपणन योग्य कौशल और दक्षताओं पर ध्यान केंद्रित कर सके ।
  • व्यावसायिक प्रशिक्षण बढ़ाना : व्यावहारिक कौशल प्रदान करने वाले व्यावसायिक और तकनीकी प्रशिक्षण कार्यक्रमों को बढ़ावा देना, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि स्नातक विद्यार्थी रोज़गार हेतु तैयार हैं।
  • अल्पकालिक पाठ्यक्रमों तक पहुँच बढ़ाना : अल्पकालिक कौशल-आधारित पाठ्यक्रमों को प्रस्तुत करना ,जो उभरते उद्योगों की मांगों को पूरा करते हो, जिससे व्यक्ति त्वरित और सक्षमता पूर्वक कौशल संवर्द्धन कर सके।
  • उद्योग साझेदारी को सुदृढ़ करना : विद्यार्थियों के लिए इंटर्नशिप और नौकरी प्लेसमेंट के अवसर सृजित करने हेतु शैक्षणिक संस्थानों और उद्योगों के मध्य सहयोग को बढ़ावा देना।
  • वित्तीय सहायता प्रणालियों में सुधार : उच्चतर शिक्षा की इच्छा रखने वाले परिवारों पर वित्तीय बोझ को कम करने के लिए अधिक सुलभ वित्तीय सहायता, छात्रवृत्ति और ऋण प्रणाली की स्थापना आवश्यक है।
  • शिक्षा की गुणवत्ता में वृद्धि : विद्यार्थियों को सार्थक शिक्षा की सुनिश्चितता हेतु मौजूदा संस्थानों में बुनियादी ढाँचे और शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार हेतु निवेश आवश्यक है ।
  • आजीवन अधिगम पर ध्यान देना : आजीवन अधिगम संबंधी संस्कृति को प्रोत्साहित करना, जिससे व्यक्ति उभरते जॉब मार्केट की मांगों के मद्देनज़र अपने कौशल का लगातार अद्यतन कर सके ।

निष्कर्ष

भारत में उच्चतर शिक्षा की बढ़ती लागत सामाजिक-आर्थिक गतिशीलता के लिए एक गंभीर चुनौती प्रस्तुत करती है। भविष्य की सुरक्षा के लिए, एक स्थायी शिक्षण प्रणाली का निर्माण आवश्यक है, जो बाजार की जरूरतों के अनुरूप हो, समान पहुँच को प्राथमिकता दे एवं सभी व्यक्तियों को उनकी आकांक्षाओं को प्राप्त करने हेतु सशक्त बनाए।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न 

भारत में उच्चतर शिक्षा की आवश्यकता पर चर्चा करते हुए, इस क्षेत्र से संबंधित समस्याएँ एवं उनके उचित समाधानों को स्पष्ट कीजिए | 

(10 अंक, 150 शब्द)

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