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हिमालयी जनजातियाँ और उनकी सुरक्षा : एक गंभीर समस्या

Lokesh Pal March 06, 2025 05:15 24 0

संदर्भ:

हाल ही में नॉर्वे की संसद ने सामी, क्वेन और फॉरेस्ट फिन लोगों को लक्षित करने वाली अपनी समावेशन नीतियों के लिए औपचारिक माफी/क्षमा माँगी है।

नॉर्वे की जनजातीय नीति

  • उद्देश्य: नॉर्वेजियनकरण नीतियों (Norwegianisation policies): 1850-1960 का उद्देश्य स्वदेशी भाषाओं और संस्कृतियों को दबाना या उनका उन्मूलन था
  • उपाय: सरकार ने 2027 से स्वदेशी भाषाओं की सुरक्षा और समावेशन प्रयासों की निगरानी के लिए उपाय प्रस्तावित किए हैं।
  • चुनौतियाँ: सामी संसद जैसे प्रतीकात्मक अधिकारों के बावजूद सामी भाषाएँ खतरे में हैं। स्वदेशी समूहों को स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा और भूमि अधिकारों में असमानताओं का सामना करना पड़ता है

नॉर्डिक और हिमालयी जनजातियों से जुड़ी चुनौतियाँ

  • जलवायु-जनित आपदाएँ और संसाधन दोहन दोनों क्षेत्रों को प्रभावित करते हैं। हिमालयी क्षेत्र (अफ़गानिस्तान से पूर्वोत्तर भारत तक 2,500 किलोमीटर तक विस्तृत) में विभिन्न जातीय समूहों के 52 मिलियन लोग रहते हैं।
  • हिमालयी समुदाय: इनमें निम्नलिखित समूह शामिल हैं:
    • गद्दीस, किन्नौरस (हिमाचल प्रदेश)।
    • लेप्चा, भूटिया, मॉन्स (सिक्किम, लद्दाख)।
    • अबोर, आका, अपातानी, मिशमी (अरुणाचल प्रदेश)।
    • खास, कलाश (अफगानिस्तान, पाकिस्तान, नेपाल)।
  • औपनिवेशिक प्रभाव: ब्रिटिश व्यापार और वन कानूनों ने स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं को बाधित किया:
    • पूर्वोत्तर में चाय, सोना, रेशम, अफीम आदि के व्यापार से बाधित।
    • व्यापारिक नाकेबंदी से सांस्कृतिक और आर्थिक गतिविधियाँ प्रभावित हुईं।
    • रेलवे विस्तार के लिए वनों की कटाई (1853-1910) से गढ़वाल और कुमाऊँ में व्यापक वनक्षेत्र नष्ट हो गए।

भारत में स्वतंत्रता पश्चात नीतियाँ

  • नेहरू का दृष्टिकोण (1950-60 का दशक):  आदिवासी जीवन शैली का सम्मान करने को लक्षित किया। उन्होंने कहा कि “उनसे श्रेष्ठता का भाव लेकर संपर्क करना हमारी ओर से घोर दुस्साहस है।”
  • संसाधन दोहन: 1970 और 1980 के दशक में 5वीं और 6वीं पंचवर्षीय योजनाओं के दौरान, तीव्र संसाधन निष्कर्षण ने स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र तथा संस्कृतियों को बाधित कर दिया।
  • आर्थिक दबाव: अन्य राज्यों के विपरीत, हिमालयी राज्यों में औद्योगिक आधार का अभाव था तथा उन्हें राजस्व उत्पन्न करने के लिए दबाव का सामना करना पड़ा। पर्यटन और जलविद्युत प्रमुख हो गए, जिससे पर्यावरण निम्नीकरण हुआ

हिमालय क्षेत्र में आदिवासियों के समक्ष चुनौतियाँ

  • आर्थिक प्राथमिकताएँ: अरुणाचल प्रदेश के जलविद्युत विस्तार (2015) से प्रतिवर्ष ₹445 करोड़ की आय तथा भारत की 40% विद्युत की माँग पूर्ण होने की संभावना है।
  • मुख्य समस्याएँ: आदिवासी भूमि कानूनों की अनदेखी, कॉर्पोरेट और राजनीतिक गठजोड़ भूमि अधिग्रहण को सुविधाजनक बना रहे हैं, जिससे पारंपरिक आदिवासी प्रथाएँ  हाशिए पर जा रही हैं
  • हाइड्रो-क्रिमिनलिटी,  स्वदेशी अधिकारों पर आर्थिक लाभ को प्राथमिकता देने वाले शोषण को संदर्भित करता है।
  • सांस्कृतिक दमन: आर्थिक परियोजनाओं के माध्यम से स्वीकृत सांस्कृतिक दमन की ऐतिहासिक नीतियों को प्रतिबिंबित करता है।

उपाय एवं उत्तरदायित्व

  • मान्यता: नॉर्वे की संसद ने सामी, क्वेन और फॉरेस्ट फिन लोगों से औपचारिक क्षमा  माँगकर अतीत में हुए अन्याय को स्वीकार किया। 
    • यह कदम ऐतिहासिक गलतियों की पहचान, सामंजस्य और क्षतिपूर्ति के महत्त्व को रेखांकित करता है।
  • आत्मसात नीति: संसाधन निष्कर्षण, वनोन्मूलन और जलविद्युत परियोजनाओं के माध्यम से दशकों के शोषण ने स्थानीय समुदायों को हानि पहुँचाई है।

निष्कर्ष

स्पष्ट है कि सतत, समावेशी विकास की ओर परिवर्तन आवश्यक है। नॉर्वे की भाँति, अतीत में हुए  अन्याय को पहचानने से ऐसी नीतियाँ बन सकती हैं, जो आदिवासी अधिकारों, सांस्कृतिक विरासत और पर्यावरणीय स्थिरता की सुरक्षा करती हैं

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न

नॉर्वे द्वारा स्वदेशी सामी लोगों से माफ़ी मांगने से हिमालयी समुदायों के साथ भारत के व्यवहार पर प्रश्न उठते हैं। हिमालयी स्वदेशी समूहों द्वारा सामना किए जाने वाले ऐतिहासिक शोषण, वर्तमान विकास मॉडल और पारिस्थितिक चुनौतियों की आलोचनात्मक जाँच कीजिए। सतत और सांस्कृतिक रूप से संवेदनशील शासन के लिए एक स्पष्ट रूपरेखा सुझाइए।

(15 अंक, 250 शब्द)

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