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भारत की बेटियाँ विज्ञान और नवाचार के क्षेत्र में सफलता कैसे हासिल कर रही हैं?

Lokesh Pal September 30, 2025 05:00 105 0

संदर्भ:

अंतर्राष्ट्रीय बेटी दिवस प्रतिवर्ष 28 सितम्बर को मनाया जाता है, इसका उद्देश्य समाज में उस पुरानी सोच को खत्म करना है जो यह मानता है कि बेटा एक वरदान है, जबकि बेटी एक बोझ है।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:

  • भास्करा और लीलावती: बारहवीं सदी में, गणितज्ञ भास्करा ने लीलावती नामक एक गणितीय ग्रंथ की रचना की, जो एक काव्य रचना है। मान्यताओं के अनुसार, यह ग्रंथ उनकी बेटी को समर्पित है।
  • व्यपगत का सिद्धांत: इसके अनुसार कोई भी रियासत जो ईस्ट इंडिया कंपनी के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष नियंत्रण में थी, जहाँ शासक के पास कानूनी पुरुष उत्तराधिकारी नहीं था, कंपनी द्वारा कब्ज़ा कर लिया जाता था। इससे पितृसत्ता में वृद्धि हुई।
    • रानी लक्ष्मीबाई द्वारा इस सिद्धांत का विरोध किया गया, क्योंकि उनका पुत्र दत्तक था।

स्वतंत्रता के बाद सुधार:

  • 1951 में कम भागीदारी: उच्च शिक्षा में नामांकित कुल संख्या में महिलाओं की संख्या बहुत कम थी।
  • हालाँकि अब महिलाएँ कुल नामांकन का लगभग 48% हैं, और कई स्नातक विज्ञान पाठ्यक्रमों में उनकी संख्या पुरुषों के लगभग बराबर है।
  • अनुसंधान एवं विकास में महिलाएँ: भारत में अनुसंधान और विकास (R&D) कर्मचारियों में महिलाओं की संख्या लगभग एक-छठे हिस्से के बराबर हैं, और महिला मुख्य शोधकर्ताओं की संख्या भी लगातार बढ़ रही है, हालांकि “लीकी पाइपलाइन(रिसाव की समस्या)” की समस्या अभी भी बनी हुई है।
    • “लीकी पाइपलाइन” से तात्पर्य उस स्थिति से है, जिसमें लोग, खासकर महिलाएँ और कम प्रतिनिधित्व वाले अल्पसंख्यक, अपने करियर के विभिन्न चरणों में, विशेष रूप से STEM और शिक्षा के क्षेत्र में, कार्य छोड़ देते हैं।

विज्ञान और अनुसंधान के क्षेत्र में भारतीय महिलाएँ:

  • विज्ञान के क्षेत्र विद्यमान में बाधाओं को तोड़ना: 1930 के दशक में, कमला सोहोनी ने इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस में प्रवेश पाने के लिए लैंगिक भेदभाव के विरुद्ध संघर्ष किया और बायोकेमिस्ट्री में पीएचडी करने वाली पहली भारतीय महिला बनीं।
  • प्रारंभिक महिला वैज्ञानिक: इसके कुछ समय बाद, वनस्पति विज्ञान में जानकी अम्माल, रसायन विज्ञान में असीमा चटर्जी, ब्रह्मांडीय किरण अनुसंधान में विभा चौधरी और मौसम विज्ञान में अन्ना मणि जैसी महिलाओं ने यह साबित कर दिया कि महिलाएँ वैज्ञानिक शोध के उच्चतम स्तर पर भी उत्कृष्ट प्रदर्शन कर सकती हैं।

विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में महिलाएँ:

  • अंतरिक्ष विज्ञान: ऋतु करिधल और एम. वनिता ने मंगल ग्रह यान मिशन (MOM) और चंद्रयान-2 में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जबकि चंद्रयान-3 की चंद्रमा पर सफल लैंडिंग में महिला वैज्ञानिकों की भूमिका महत्त्वपूर्ण रही।
  • जैव प्रौद्योगिकी: किरण मजूमदार-शॉ ने बायोकॉन को एक वैश्विक दवा कंपनी बनाया, जबकि गगनेदीप कांग वैक्सीन रिसर्च में अपने योगदान के लिए रॉयल सोसाइटी की पहली भारतीय महिला फेलो बनीं।
  • रक्षा: मिसाइल विकास कार्यक्रमों में नेतृत्व के लिए टेसी थॉमस को “भारत की मिसाइल वुमन” की उपाधि से सम्मानित किया गया।
  • चिकित्सा: इंदिरा हिंदूजा ने 1986 में भारत में पहली बार टेस्ट-ट्यूब बेबी का जन्म कराया।
  • गणित और भौतिकी: सुजाता रामदोरई और रोहिणी गोडबोले ने उन्नत अनुसंधान के क्षेत्र में भारत की वैश्विक पहचान स्थापित की।

इंजीनियरिंग, उद्योग और नेतृत्व में महिलाएँ:

  • इंजीनियरिंग और सामाजिक प्रभाव: सुधा मूर्ति ने फैक्ट्री में काम करने वाली पहली महिला इंजीनियरों में से एक बनकर कई बाधाओं को तोड़ा और बाद में इंफोसिस फाउंडेशन के माध्यम से शिक्षा के अवसरों को बढ़ावा दिया।
  • AI में नेतृत्व: शालिनी कपूर भारत की पहली महिला IBM फेलो बनीं, जिन्होंने कृत्रिम बुद्धिमत्ता में महिला नेतृत्व का उदाहरण प्रस्तुत किया।
  • विज्ञान और पर्यावरण सक्रियता: वंदना शिवा ने वैज्ञानिक प्रशिक्षण को पर्यावरण सक्रियता से जोड़ा और इस तरह पर्यावरणीय आंदोलनों को बौद्धिक गहराई प्रदान की।
  • औद्योगिक नेतृत्व एवं परोपकार: लीला पूनावाला और अनु आगा ने प्रदर्शित किया कि किस प्रकार महिला टेक्नोक्रेट औद्योगिक नेतृत्व को शिक्षा और परोपकार के साथ सफलतापूर्वक मिश्रित कर सकती हैं।

विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में महिला प्रतिनिधित्व के समक्ष विद्यमान चुनौतियाँ:

  • IITs में नेतृत्व पदों पर महिलाओं की कमी: 2025 तक, किसी भी इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (IIT) में नियमित महिला निदेशक नहीं रही हैं, केवल IIT मद्रास के ज़ांजीबार कैंपस में प्रीति अघालयम अपवाद के रूप में हैं।
  • विज्ञान अकादमियों में कम प्रतिनिधित्व: भारत की शीर्ष विज्ञान अकादमियों में महिलाओं की संख्या केवल 5 से 10 प्रतिशत है, जो उच्चतम स्तर पर महिलाओं के कम प्रतिनिधित्व को दर्शाता है।
  • संस्थागत और संरचनात्मक बाधाएँ: अपर्याप्त बाल देखभाल सहायता, सीमित मान्यता और लैंगिक पूर्वाग्रह जैसी संस्थागत बाधाएँ महिलाओं के नेतृत्व के पदों पर पहुंचने में बाधा बनती रहती हैं।

STEM (विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित) में महिलाओं को बढ़ावा देने संबंधी पहल:

  • सरकारी पहल: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग महिलाओं के शोध करियर को समर्थन देने के लिए महिला वैज्ञानिक योजना और किरण कार्यक्रम का संचालन करता है।
    • इन पहलों का उद्देश्य विज्ञान और प्रौद्योगिकी में लैंगिक अंतर को कम करना है, लेकिन सामने आने वाली चुनौतियों की तुलना में इनका स्तर तथा पहुँच अपर्याप्त है।
  • बदलते सामाजिक दृष्टिकोण: जो परिवार कभी लड़कियों को विज्ञान की पढ़ाई करने से हतोत्साहित करते थे, अब वे अपनी बेटियों की उपलब्धियों का जश्न मनाने लगे हैं।
    • माता-पिता गर्व से बताते हैं कि उनकी बेटियां इसरो, एम्स या अग्रणी स्टार्टअप में कार्य कर रही हैं, जो एक सांस्कृतिक बदलाव को दर्शाता है।
    • कई महिला शोधकर्ता कठिन वैज्ञानिक कार्य के साथ-साथ पारिवारिक जिम्मेदारियों को भी संतुलित रूप से संभालती हैं, तथा लैंगिक भूमिकाओं के बारे में रूढ़िवादी धारणाओं को चुनौती देती हैं।

निष्कर्ष:

बेटियों का सम्मान करना, खासकर विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में आगे बढ़ने वाली बेटियों का, सिर्फ़ पुरानी गलतियों को सुधारने के बारे में नहीं है, बल्कि यह मानव क्षमता को उभारने के बारे में है। जब हर बेटी सीख सके, खोज कर सके और नेतृत्व कर सके, तो भारत समानता से आगे बढ़कर महानता की ओर बढ़ता है।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न: भारतीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी प्रतीकात्मक शामिल होने से लेकर वास्तविक योगदान तक की एक कहानी है। इस कथन के आलोक में, ‘लीकी पाइपलाइन’ जैसी चुनौतियों का गहराई से विश्लेषण करें जो अभी भी महिलाओं को STEM क्षेत्रों में नेतृत्व की स्थिति तक पहुँचने से रोकती हैं। चर्चा करें कि भारत को राष्ट्रीय उत्कृष्टता और नवाचार के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए इन समस्याओं का समाधान करना क्यों महत्वपूर्ण है।

(15 अंक,250 शब्द)

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