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कैसे सरकारी तंत्र किसानों की पराली जलाने की समस्या को बढ़ावा दे रहा है

Lokesh Pal April 16, 2025 05:00 14 0

संदर्भ:

हाल के अध्ययनों से यह पता चला है कि पराली जलाने से निकलने वाले प्रदूषित कण दिल्ली में प्रदूषण के स्तर को काफी प्रभावित करते हैं। 

सिंधु-गंगा के मैदान में वायु प्रदूषण: 

  • मौसमी प्रदूषणनवंबर मेंसिंधु-गंगा के मैदान में गंभीर वायु प्रदूषण का सामना करना पड़ता है, जो तापमान में गिरावट और मानसूनी हवाओं  के स्थिर होने से और भी बदतर हो जाता है।
    • वाहन उत्सर्जन, बिजली संयंत्रों से निलकने वाले प्रदूषक, निर्माण कार्यों से निकलने वाले धूल और अन्य कण पदार्थ जैसे प्रदूषकों के कारण एक व्युत्क्रम परत का निर्माण होता है।
  • पराली जलाना: अक्टूबर और नवंबर के दौरान पंजाबहरियाणाराजस्थान और उत्तर प्रदेश में खेतों की पराली, विशेष रूप से चावल की भूसी जलाने से धुंध बढ़ती है, जिससे दिल्ली जैसे शहरों में वायु की गुणवत्ता खराब हो जाती है। 
    • किसान पराली जलाते हैं क्योंकि यह रबी की फसल जैसे गेहूं के लिए मिट्टी तैयार करने का सबसे सस्ता तथा सरल तरीका माना जाता है।

पराली जलाने के कारण:

  • सरकारी अवधारणासुजीत रघुनाथराव जगदले और जावेद एम. शेख द्वारा किए गए एक अध्ययन में सरकारी अवधारणा का उपयोग यह समझाने के लिए किया गया है कि कैसे सरकारी नीतियां अनजाने में पराली जलाने जैसे उप-इष्टतम व्यवहार को बढ़ावा देती हैं।
  • बाजार की विफलताएं: भारत की नवउदारवादी नीतियां , जैसे कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) प्रणाली, एकल-फसल को बढ़ावा देती हैं, जिससे किसानों को अल्पकालिक उत्पादन को अधिकतम करने के लिए पराली जलाने जैसी असंवहनीय प्रक्रियाओं को अपनाने के लिए मजबूर होना पड़ता है।
  • संरचनात्मक कारण: अध्ययन में यह तर्क दिया गया है कि पराली जलाने को व्यक्तिगत लापरवाही के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि इसे विकृत कृषि विपणन प्रणालियों और नव-उदारवादी शासन से उत्पन्न एक प्रणालीगत मुद्दे के रूप में देखा जाना चाहिए, जो किसानों को हाशिए पर डालता है और उन्हें पराली जलाने जैसी हानिकारक जीवन रक्षा युक्तियों की ओर धकेलता है।

अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष:

  • एमएसपी और बिचौलियों पर निर्भरता: अध्ययन में यह बताया गया है कि कैसे न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP)  प्रणाली किसानों की फसलों में विविधता लाने की क्षमता को सीमित करती है, जबकि बिचौलिए (आढ़तिया) मूल्य निर्धारण और ऋण तक पहुँच को नियंत्रित करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप ऋण बंधन होता है। किसानों को अक्सर अपनी फसलों के लिए कम खरीद मूल्य का सामना करना पड़ता है और उन्हें घाटे में बेचना पड़ता है।
  • विरोधाभासी नीतियां : किसान एक ऐसे चक्र में फंसे हुए महसूस करते हैं जहां सरकार पराली जलाने पर दंड लगाती है लेकिन कोई किफायती विकल्प नहीं देती है। 
    • ये शहरी-औद्योगिक हितों के प्रति पूर्वाग्रह भी महसूस करते हैं , जहां औद्योगिक प्रदूषण को नजरअंदाज कर दिया जाता है, जबकि खेतों में पराली जलाने को अनुचित/गलत माना जाता है।

आगे की राह:

  • पराली आधारित उत्पाद: समाधान के रूप में पराली और उससे बने उत्पादों, जैसे चारा ऊर्जा छर्रे और पैकेजिंग सामग्री के लिए बाज़ार बनाने पर ज़ोर देते हैं। इससे जलवायु परिवर्तन को संबोधित करते हुए किसानों की आय में वृद्धि होगी
  • मूल्य श्रृंखला को सुदृढ़ बनाना: सफल होने के लिए, एक सहायक पारिस्थितिकी तंत्र में विविध प्रौद्योगिकियों के साथ एक कुशल मूल्य श्रृंखला के विकास की आवश्यकता है।
  • बाजार तंत्र की कमी: वर्तमान में, कृषि अपशिष्ट के लिए कुशल बाजार तंत्र की कमी है। इस कमी को पूरा करने के लिए नीति और बाजार हस्तक्षेप आवश्यक है।
  • नियामक हस्तक्षेप: विनियमन के तीन स्तर : नियामक हस्तक्षेप की अवधारणा तीन तरीकों से की जा सकती है:
    • पराली जलाने पर पूर्ण रूप से रोक लगाया जाएँ।
    • चुनिंदा परमिट के माध्यम से पराली जलाने का प्रबंधन सुनिश्चित किया जाएँ
    • पराली आधारित उत्पादों के उत्पादन को प्रोत्साहित करके पराली के उपयोग को बढ़ावा देना।
  • राज्य अभिनेताओं की भूमिका: इन हस्तक्षेपों के सफल कार्यान्वयन के लिए राज्य अभिनेताओं की सक्रिय भागीदारी आवश्यक है।
  • बाजार की अक्षमताएँ : एक महत्त्वपूर्ण हस्तक्षेप यह सुनिश्चित करना है कि किसानों को उनकी उपज के लिए उचित मूल्य मिले। भारतीय कमोडिटी बाजार सामाजिक-राजनीतिक संरचनाओं में गहराई से अंतर्निहित है, और मूल्य पारदर्शिता और निष्पक्षता बढ़ाने के लिए राज्य के नेतृत्व वाले प्रयासों की आवश्यकता है।
  • कृषि आय के लिए समर्थन: इन अक्षमताओं को दूर करने से कृषि आय को बढ़ाने में मदद मिलेगी।
  • आकांक्षात्मक उपभोग: किसानों को अक्सर आकांक्षात्मक उपभोग में संलग्न होने के लिए सामाजिक-आर्थिक दबाव का सामना करना पड़ता है, जो सीमित आय के कारण हानिकारक है।
  • सांस्कृतिक परिवर्तन: इस मुद्दे के समाधान के लिए सांस्कृतिक परिवर्तन की आवश्यकता हो सकती है, जहां धार्मिक समूहों सहित सामाजिक-सांस्कृतिक संगठन, गैर-आवश्यक, आकांक्षात्मक उपभोग को कम करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।

निष्कर्ष:

अध्ययन व्यक्तिगत दोष से हटकर दोषपूर्ण विपणन संरचनाओं और नव-उदारवादी शासन   में निहित एक प्रणालीगत मुद्दे की ओर चर्चा को स्थानांतरित करता है। पराली जलाना लापरवाही नहीं है, बल्कि नीतिगत विफलता और आर्थिक हाशिए पर धकेले जाने से उत्पन्न अस्तित्व की एक रणनीति है।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न: विभिन्न सरकारी हस्तक्षेपों के बावजूद, भारत में पराली जलाना एक सतत पर्यावरणीय चिंता बनी हुई है। नीतिगत उपायों, सब्सिडी और दंड पर विशेष जोर देते हुए, इस मुद्दे को संबोधित करने के लिए सरकार के दृष्टिकोण का आलोचनात्मक मूल्यांकन करें। क्या ये रणनीतियाँ दीर्घकालिक रूप से टिकाऊ और प्रभावी हैं?

(15 अंक, 250 शब्द)

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