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मानव-पशु संघर्ष

Lokesh Pal August 13, 2025 05:00 7 0

संदर्भ:

सुप्रीम कोर्ट ने नगर निकायों को आठ सप्ताह के भीतर दिल्ली-एनसीआर की सड़कों से सभी आवारा कुत्तों को हटाने का निर्देश दिया है तथा उन्हें राजधानी के कुत्तों के आश्रय स्थलों में आश्रय प्रदान करने का भी निर्देश दिया है, लेकिन कुछ कार्यकर्ताओं का कहना है कि यह आदेश पशु जन्म नियंत्रण नियम, 2013 का उल्लंघन करता है, तथा इससे जन स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचने का खतरा है।

  • बढ़ता हुआ मानव-पशु संघर्ष वर्तमान में एक गंभीर मुद्दा बन गया है हालाँकि सर्वोच्च न्यायालय का आदेश जनहित में है, जोकि रेबीज और कुत्ते के काटने के मामलों की लगातार बढ़ रही घटना से संबंधित हैं।

दार्शनिक आधार:

  • अपने मूल में, यह संघर्ष एक मौलिक नैतिक विकल्प पर प्रकाश डालता है: क्या मानवता मूक प्राणियों की रक्षा करेगी या उनका बहिष्कार करेगी
  • महाभारत में, कमजोर और वफादार प्राणियों की सुरक्षा को एक धार्मिक कर्तव्य के रूप में प्रस्तुत किया गया है।
  • यह सिद्धांत मनुष्य के प्राकृतिक विश्व के संरक्षक के रूप में कार्य करने की नैतिक अनिवार्यता को रेखांकित करता है।

मुख्य समस्या:

  • तेजी से बढ़ती मानव जनसंख्या और शहरों का निरंतर विस्तार सीधे तौर पर पशु आवासों के विनाश का कारण बनता है
  • मनुष्य तेजी से उन क्षेत्रों पर अतिक्रमण कर रहे हैं जहां पारंपरिक रूप से जानवर रहते थे
  • यह विस्थापन वन्यजीवों, जिनमें कुत्तों जैसे पालतू जानवर भी शामिल हैं, को मानव-प्रधान स्थानों पर जाने के लिए मजबूर करता है, जिससे टकराव और असुविधा की स्थिति उत्पन्न होती है।
  • वर्तमान में भारत की स्थिति चिंताजनक बनी हुई है: विश्व में रेबीज से होने वाली 35% मौतें भारत में होती हैं, जिनमें से 97% कुत्तों के काटने के कारण होती हैं, तथा इनमें से 75% मौतें आवारा कुत्तों के काटने से होती हैं।

आवारा कुत्तों के प्रबंधन से संबंधित न्यायिक निर्णय:

  • सुप्रीम कोर्ट का निर्णय(2024) और पशु जन्म नियंत्रण (ABC) नियम 2023: सितंबर 2024 में, सुप्रीम कोर्ट ने आवारा कुत्तों को हटाने की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि वे एक अंतर्निहित खतरा नहीं हैं।
    • न्यायालय ने पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 के तहत बनाए गए पशु जन्म नियंत्रण (ABC) नियम 2023 का पालन अनिवार्य कर दिया
      • इन नियमों में यह प्रावधान किया गया है कि आवारा कुत्तों की आबादी नियंत्रित करने और रेबीज से बचाव के लिए उनका बंध्याकरण और टीकाकरण किया जाना चाहिए, तथा उन्हें उनके मूल क्षेत्रों में वापस भेज दिया जाना चाहिए।
      • स्थायी निष्कासन की अनुमति केवल पागल या आक्रामक कुत्तों के लिए है, और तब भी, नागरिक निकायों को निर्धारित प्रक्रियाओं का पालन करना होगा।
      • यह दृष्टिकोण इस समझ पर आधारित है कि किसी क्षेत्र से कुत्तों को हटाना अप्रभावी है, क्योंकि नए आवारा कुत्ते या अन्य जानवर, खाली जगह को भर देते हैं और पारिस्थितिक संतुलन को बिगाड़ देते हैं।
  • 2025 सुप्रीम कोर्ट का फैसला: 11 अगस्त 2025 को दिल्ली-एनसीआर के संबंध में दिए गए फैसले ने एक महत्वपूर्ण बदलाव को चिह्नित किया।
    • इस फैसले में सभी आवारा कुत्तों को पकड़ने, पिंजरे में बंद करने और आश्रय देने का आदेश दिया गया, जो ABC नियमों पर बल देने की तुलना में एक अधिक कठोर निर्देश है।

2025 के फैसले के विपक्ष में तर्क:

  • सामूहिक टीकाकरण की प्रभावशीलता: सार्वजनिक तथा सामूहिक स्तर पर कुत्तों का टीकाकरण रेबीज को नियंत्रित करने का सबसे प्रभावी और किफायती तरीका है, जो मुख्य रूप से कुत्ते के काटने से फैलता है।
    • उदाहरण: बांग्लादेश और तंजानिया में बड़े पैमाने पर कुत्तों के टीकाकरण कार्यक्रमों के संचालन के कारण रेबीज से संबंधित मौतों में उल्लेखनीय कमी देखी गई है।
    • कुत्तों को मार देना या उनका स्थानान्तरण करना अप्रभावी है, क्योंकि उनकी आबादी शीघ्र ही पुनः बढ़ जाती है। 
      • उदाहरण: केरल में कुत्तों को मारने के प्रयास रेबीज से होने वाली मौतों को कम करने में विफल रहे और कुत्तों की आबादी फिर से चरम स्तर पर पहुँच गई।
  • अव्यवहारिकता और संसाधन की कमी: आवारा कुत्तों की विशाल संख्या के कारण उन सभी को पकड़ना और आश्रय देना अव्यावहारिक है।
    • इस तरह के उपक्रम के प्रबंधन के लिए पर्याप्त आश्रय सुविधाओं, कर्मचारियों और संसाधनों का अभाव है।
  • क्रूरता और उत्पीड़न का जोखिम बढ़ना: 2025 के सुप्रीम कोर्ट के आदेश से कुत्तों के प्रति क्रूरता का जोखिम काफी बढ़ गया है।
    • इससे पशु कल्याण की वकालत करने वाले व्यक्तियों के प्रति उत्पीड़न का खतरा भी उत्पन्न होता है।
  • नैतिक सामान्यीकरण: कुछ व्यक्तियों के कार्यों के लिए पूरी प्रजाति को दंडित करना अन्यायपूर्ण है।
    • जिस प्रकार समाज कुछ लोगों द्वारा किए गए अपराधों के लिए सभी मनुष्यों को जेल में नहीं डालता, उसी प्रकार आवारा कुत्तों के काटने की कुछ घटनाओं के कारण सभी कुत्तों को दंडित करना अतार्किक और भेदभावपूर्ण है।

मानव-प्रकृति संघर्ष का वैश्विक पारिस्थितिक संकट:

यह मुद्दा आवारा कुत्तों से कहीं आगे तक विस्तृत है, तथा यह मानव-प्रकृति के बीच गहरे, व्यापक संघर्ष को दर्शाता है:

  • आवास विनाश और पारिस्थितिक असंतुलन: व्यापक स्तर पर वनों की कटाई, पशु आवासों की क्षति, तथा मानव द्वारा अत्यधिक उपभोग पृथ्वी के पारिस्थितिक संतुलन को गंभीर रूप से प्रभावित कर रहीं हैं।
  • प्राकृतिक आपदाओं में वृद्धि: यह असंतुलन चरम मौसम की घटनाओं और बादल फटने जैसी प्राकृतिक आपदाओं में वृद्धि में योगदान देता है
    • 1993 से 2022 तक के आंकड़ों से यह पता चलता है कि ऐसी घटनाओं के परिणामस्वरूप 765,000 मौतें हुई हैं और 4.2 ट्रिलियन डॉलर का आर्थिक नुकसान हुआ है।
  • असंवहनीय विकास मॉडल: औद्योगिक क्रांति के बाद से, प्रचलित वैश्विक विकास मॉडल, विशेष रूप से विकसित देशों में, मूल रूप से प्रकृति के प्रतिकूल रहा है।

भविष्य के लिए नैतिक निहितार्थ:

  • कुत्तों को “असुविधाजनक/बाधा” मानने की वर्तमान धारणा एक खतरनाक मिसाल कायम करती है।
  • यदि समाज अन्य प्रजातियों के अधिकारों और कल्याण की उपेक्षा करना जारी रखता है, तो यह उपेक्षापूर्ण रवैया अन्य कमजोर समूहों तक फैल सकता है
  • भविष्य में, इसमें गरीब, कमजोर या दिव्यांग व्यक्ति भी शामिल हो सकते हैं, और अंततः, स्वयं मनुष्य भी शामिल हो सकते हैं, क्योंकि कृत्रिम बुद्धिमत्ता और मशीनें प्रमुख हो जाएगें।
  • इसलिए, मानव-पशु संघर्ष को संबोधित करने के लिए एक व्यापक नैतिक ढांचे की आवश्यकता है जो सभी जीवित प्राणियों की भलाई को प्राथमिकता दे और सामंजस्यपूर्ण सह-अस्तित्व को बढ़ावा दे।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न: दिल्ली-एनसीआर में आवारा कुत्तों को पिंजरे में बंद करने के सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश ने जन सुरक्षा संबंधी चिंताओं को पशु कल्याण के सिद्धांतों के साथ सामंजस्य बिठाने के बहस को तेज कर दिया है। शहरी भारत में बढ़ते मानव-पशु संघर्षों के संदर्भ में चर्चा कीजिए और इस समस्या के समाधान के लिए व्यावहारिक उपाय सुझाइए।

(15 अंक, 250 शब्द)

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