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आप्रवास और विदेशियों से संबंधित (छूट) नियम, 2025

Lokesh Pal September 13, 2025 05:15 15 0

संदर्भ:

केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा 1 सितंबर, 2025 को अधिसूचित ‘आप्रवास एवं विदेशियों से संबंधित (छूट) नियम, 2025’ भारत के आप्रवास ढांचे (इमिग्रेशन फ्रेमवर्क) से जुड़े कुछ मसलों पर ज्यादा स्पष्टता प्रदान करता है।

उद्देश्य:

  • यह नियम कुछ समूहों को छूट देता है, जिससे उन्हें बिना पासपोर्ट या वीज़ा के भारत में प्रवेश करने, ठहरने और बाहर निकलने की अनुमति मिलती है।
  • यह अनिवार्य रूप से इन व्यक्तियों को भारत में रहने के लिए एक “विशेष पास” प्रदान करता है।

लाभार्थी:

  • निर्दिष्ट भारतीय नागरिक।
  • नेपाल और भूटान के नागरिक।
  • तिब्बती शरणार्थी।
  • अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के छह धार्मिक अल्पसंख्यक।
  • श्रीलंकाई तमिल।

श्रीलंकाई तमिलों की पृष्ठभूमि:

  • ऐतिहासिक तनाव: स्वतंत्रता के बाद, श्रीलंका में सिंहली बहुसंख्यक और तमिल हिंदू अल्पसंख्यक के बीच तनाव बढ़ गया, जिसका आंशिक कारण ब्रिटिश की ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति और भाषा तथा अधिकारों को लेकर तमिलों की चिंताएँ थीं।
  • गृह युद्ध (1983): 1983 में, इन तनावों के परिणामस्वरूप गृह युद्ध शुरू हो गया, जिसमें तमिल उग्रवादी समूहों (जैसे प्रभाकरन के नेतृत्व में LTTE) ने तमिलों के व्यापक उत्पीड़न के बीच एक अलग राज्य की मांग की।
  • भारत की ओर पलायन: अपने जीवन पर खतरे का सामना करते हुए, कई श्रीलंकाई तमिलों ने अपने घरों से भागकर भारत में शरण ली, मुख्यतः इसकी भौगोलिक निकटता और मजबूत सांस्कृतिक और भाषाई संबंधों के कारण।
  • वर्तमान स्थिति: लाखों लोग 30 वर्षों से अधिक समय से तमिलनाडु के शरणार्थी शिविरों में रह रहे हैं, और “न यहां के हैं न वहां के” जैसी अनिश्चित का सामना कर रहे हैं।

श्रीलंकाई तमिलों पर प्रभाव:

  • सीमित राहत: यह नियम पात्र श्रीलंकाई तमिल शरणार्थियों को श्रीलंका में जबरन स्वदेश वापसी से कुछ राहत प्रदान करता है।
    • यह पात्र शरणार्थियों को अप्रत्यक्ष रूप से संकेत देता है कि वे भारत में सुरक्षित हैं और उन्हें निर्वासित नहीं किया जाएगा।
  • शर्तें: यह छूट केवल उन लोगों पर लागू होती है जो 9 जनवरी, 2015 से पहले भारत आए थे और जिन्होंने अपना पंजीकरण कराया था।

आदेश से संबंधित मुद्दे:

  • अवैध प्रवासी का टैग: पात्र श्रीलंकाई तमिलों पर अभी भी “अवैध प्रवासी” (Illegal Migrant) का टैग लगा हुआ है, जो एक बड़ी बाधा बना हुआ है। यह स्थिति प्रभावी रूप से उन्हें भारतीय नागरिकता प्राप्त करने से रोकती है।
    • नागरिकता अधिनियम 1955: भारत का नागरिकता अधिनियम  (1955) धारा 5 (भारतीय मूल के लोगों के लिए पंजीकरण) या धारा 6 (उन लोगों के लिए देशीयकरण जो वैध दस्तावेजों के साथ लंबे समय तक भारत में रहे हैं) के माध्यम से नागरिकता की अनुमति देता है।
      • हालांकि, ये दोनों धाराएँ उन लोगों पर लागू नहीं होती हैं जो बिना वैध दस्तावेजों के प्रवेश किए, जैसा कि इन शरणार्थियों ने किया।
    • वर्तमान रुख: सरकार अनिवार्य रूप से उन्हें रहने की अनुमति देती है लेकिन उन्हें नागरिकता देने से इनकार करती है।
  • CAA से संबंध: नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 ने पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यकों के लिए नागरिकता को तेजी से आगे बढ़ाया, यह दावा करते हुए कि उन्हें धार्मिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ा।
    • कुछ लोग सवाल उठाते हैं कि श्रीलंकाई तमिल शरणार्थियों को CAA से बाहर क्यों रखा गया, उनका तर्क है कि सरकार द्वारा “आतंकवाद” और “गृहयुद्ध” के बीच अंतर करने के बावजूद, उन्हें भी गृहयुद्ध के दौरान उत्पीड़न का सामना करना पड़ा था।
  • दीर्घकालिक वीज़ा (LTVs) संबंधी बाधाएँ: यदि नागरिकता नहीं भी दी जाती है, तो भी श्रीलंकाई तमिल शरणार्थी दीर्घकालिक वीज़ा (LTVs) के लिए पात्र नहीं हैं, जो उन्हें सामान्य जीवन (जैसे, बैंक खाते खोलना, संपत्ति खरीदना, उचित नौकरियाँ सुरक्षित करना, उच्च शिक्षा तक पहुँच प्राप्त करना) की अनुमति देगा।
    • भारत में 30 वर्ष रहने के बाद भी वे असहाय अवस्था में हैं तथा समाज में पूर्ण रूप से भाग लेने में असमर्थ हैं।

आगे की राह:

  • दीर्घकालिक वीज़ा (LTVs) को उदार बनाना: यदि पूर्ण नागरिकता संभव नहीं है, तो सरकार को कम से कम LTVs या समान पहचान दस्तावेज प्रदान करने चाहिए।
    • उदाहरण: तिब्बती शरणार्थियों को एक “पहचान प्रमाण पत्र” (Certificate of Identity) जारी किया जाता है जो उन्हें यात्रा करने और कार्य करने की अनुमति देता है; इसी तरह का मॉडल श्रीलंकाई तमिलों के लिए अपनाया जा सकता है।
  • स्वैच्छिक प्रत्यावर्तन: जो लोग श्रीलंका वापस लौटना चाहते हैं, उनके लिए भारत और श्रीलंका को एक “संरचित सहायता योजना” पर कार्य करना चाहिए, ताकि उन्हें पुनः एकीकृत करने में मदद मिल सके, आवास और रोजगार के लिए सहायता प्रदान की जा सके।
  • स्थानीय एकीकरण: जिन लोगों ने भारत को अपना घर बना लिया है और वापस नहीं लौटना चाहते हैं, उन्हें कानूनी दर्जा प्रदान करके और नागरिकता प्रक्रिया को सरल बनाकर धीरे-धीरे समाज में एकीकृत किया जाना चाहिए।
    • यह “वसुधैव कुटुम्बकम” (विश्व एक परिवार है) की भारतीय भावना के अनुरूप है।

निष्कर्ष:

राष्ट्रीय सुरक्षा और मानवीय सरोकारों के बीच संतुलन, मानव-केंद्रित दृष्टिकोण के साथ, अत्यंत महत्वपूर्ण है। जैसा कि डॉ. बी.आर. आंबेडकर ने कहा था, “बंधुत्व” एकता और एकजुटता सुनिश्चित करता है, और सुरक्षा एवं सामाजिक सद्भाव के लिए सरकारी निर्णयों का मार्गदर्शन करता है।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न: आप्रवासन एवं विदेशी (छूट) आदेश, 2025, श्रीलंकाई तमिल शरणार्थियों सहित कुछ समूहों को छूट प्रदान करता है। भारत के आप्रवासन एवं शरणार्थी प्रबंधन ढाँचे के संदर्भ में इस आदेश के महत्व का परीक्षण कीजिए।

(10 अंक, 150 शब्द)

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