प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: जीवन का अधिकार, इच्छामृत्यु और इसके प्रकार ।
मुख्य परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: इच्छामृत्यु और लिविंग विल को लागू करने में चुनौतियाँ ।
संदर्भ :
हाल ही में केरल के त्रिशूर शहर के करीब तीस लोगों द्वारा अपनी लिविंग विल्स (living wills) को निष्पादित किया गया।
भारत में लिविंग विल्स की पृष्ठभूमि:
लिविंग विल्स की वैधता: भारत में लिविंग विल्स को वर्ष 2018 से कानूनी रूप से वैध करार दिया गया था, सर्वोच्च न्यायालय द्वारा लिविंग विल्स को कानूनी रूप से वैधता दिए जाने के पीछे मूल वजह उन मरीजों के लिए था जो कि असाध्य रूप से बीमार हैं या जिनके इलाज की कोई उम्मीद नहीं थी, उस दौरान इसे इलाज रोकने या वापस लेने और सम्मान के साथ मरने की अनुमति देने इत्यादि के लिए वैध बनाया गया था।
लिविंग विल का उद्देश्य: इसका प्रमुख उद्देश्यबीमारी के दौरान चूँकि मरीज कई कारणों की वजह से अपनी इच्छाओं को बताने में असमर्थ होते हैं, इस स्थिति में लिविंग विल्स उनको बिमारी के दौरान चिकित्सा देखभाल के बारे में विकल्प चुनने का अधिकार उपलब्ध कराता है, जिसका उपयोग चिकित्सकों द्वारा जब वे किसी असाध्य बिमारी से पीड़ित हैं के दौरान किया जाना है।
न्यायालय प्रक्रिया की अनुपलब्धता: भारत के उच्चतम न्यायालय द्वारा लिविंग विल्स को कानूनी रूप से वैध करार दिए जाने संबंधी फैसले के छह वर्ष बाद भी, भारत के अधिकांश हिस्सों में न्यायालय की यह प्रक्रिया उपलब्ध नहीं है।
कार्यान्वयन: राज्य सरकारों के सीधे आदेशों और मार्गदर्शन के बिना अधिकारियों द्वारा लिविंग विल्स संबंधी प्रक्रिया को लागू करने की संभावना नहीं के बराबर है।
सुप्रीम कोर्ट का 2018 का फैसला
गरिमा के साथ मरने के अधिकार को मान्यता:सर्वोच्च न्यायालय ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के मौलिक अधिकार के हिस्से के रूप में गरिमा के साथ मरने के अधिकार को मान्यता दी।
इच्छामृत्यु के प्रकार
एक्टिव यूथेनेसिया (Active euthanasia): यह तब होता है जब चिकित्सा कर्मी या कोई अन्य व्यक्ति जानबूझकर रोगी की मृत्यु का कारण बनता है।
पैसिव यूथेनेसिया (Passive Euthanasia): इसमें किसी एक मरीज की मृत्यु सिर्फ इस वजह से हो जाती है क्योंकि उसे चिकित्सक द्वारा मरीज को जीवित रखने के लिए किसी भी प्रकार की कोई सहायता नहीं की गई अथवा चिकित्सक मरीज के उपचार के लिए कुछ ऐसा करना बंद कर देते हैं जो मरीज को जीवित रखता है।
पैसिव यूथेनेसिया:न्यायालय ने कृत्रिम साधनों के माध्यम से जीवन को लंबा खींचे बिना मृत्यु की प्राकृतिक प्रक्रिया की अनुमति देते हुए निष्क्रिय इच्छामृत्यु को वैध बना दिया है और लिविंग विल्स को क्रियान्वित करने के लिए दिशानिर्देश दिए हैं।
न्यायालय की प्रक्रिया:
जटिल प्रक्रिया: शुरूआती दिनों में, लिविंग विल्स के लिए सुप्रीम कोर्ट की प्रक्रिया काफी जटिल थी, जिसकी वजह से इसके कार्यान्वयन में बाधा आ रही थी।
प्रक्रिया के संबंध में चिंताएँ: गलत मानसिकता रखने वाले लोगों द्वारा इस लिविंग विल्स का दुरूपयोग किए जाने की संभावना है इसके साथ ही एक चिंता का विषय न्यायिक मजिस्ट्रेट के प्रति हस्ताक्षर की आवश्यकता जैसे नौकरशाही उपाय भी हैं ।
प्रक्रिया को सरल बनाना:2023 में, न्यायालय ने लिविंग विल्स पर गवाहों के सामने हस्ताक्षर करने और नोटरी या राजपत्रित अधिकारीयों द्वारा इसको सत्यापित करने की आवश्यकता करके प्रक्रिया को सरल बना दिया ।
संरक्षक की नियुक्ति:एक सक्षम प्राधिकारी को संरक्षक के रूप में नामित करना और लाइलाज बीमारी की स्थिति में इलाज करने वाले डॉक्टरों से प्रमाणीकरण प्राप्त करना इस प्रक्रिया को सरल बना देता है।
कार्यान्वयन में चुनौतियाँ:
प्रभावशीलता का अभाव: अधिकांश स्थानीय सरकारों द्वारा लिविंग विल्स के लिए चयनित संरक्षकों का चयन नहीं किया गया है, जिसकी वजह से संरक्षकों की उपयोगिता सीमित हो जाती है।
प्रोटोकॉल का अभाव: डिजिटल स्वास्थ्य रिकॉर्ड को प्रमाणित करने संबंधी नियम की कमी प्रक्रिया को और भी अधिक जटिल बना देता है।
प्रमाणन प्रक्रिया:दिशानिर्देशों के अनुसार उपचार में देरी या वापसी पर निर्णय प्रक्रिया को प्रमाणित करने के लिए प्राथमिक और माध्यमिक मेडिकल बोर्ड की आवश्यकता होती है।
कानूनी प्रावधानों के साथ अस्पष्टता: स्पष्ट कानूनी परिभाषाओं की कमी, जटिलता को बढ़ाती है, जैसे – ‘निकटतम रिश्तेदार’ कौन है?,
स्पष्ट परिभाषाओं की कमी की वजह से संघर्ष और कानूनी कठिनाइयाँ होती हैं।
अधिकारियों द्वारा अनिच्छा:जीवन के अंत की देखभाल एक संवेदनशील मुद्दा है, इसलिए अधिकारी और राज्य सरकारें इसे प्रदान करने से कतराती हैं।
राज्य और स्थानीय सरकारों की विफलता: छह वर्ष पूर्व सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बावजूद सरकारें कार्यान्वयन की दिशा में आवश्यक कदम उठाने में विफल रही हैं।
डॉक्टरों की चिंताएँ:कानूनी परिणामों के बारे में डॉक्टरों का डर जो उनके मरीजों के सर्वोत्तम हित में कार्य करने की उनकी क्षमता को सीमित करता है।
आगे की राह :
स्पष्ट दिशानिर्देशों की आवश्यकता: सक्षमता के अंतर को पाटने और सफल कार्यान्वयन की सुविधा के लिए केंद्र सरकार से स्पष्ट मार्गदर्शन और विशिष्ट प्रोटोकॉल की आवश्यकता है।
हरियाणा: सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का पालन करने के लिए राज्य भर के सिविल सर्जनों को निर्देश जारी किए गए लेकिन इसे कैसे लागू किया जाए, इस पर आवश्यक मार्गदर्शन या प्रोटोकॉल नहीं तय किए गए।
ओडिशा: राज्य सरकार ने लिविंग विल्स संबंधी फैसले को लागू करने के लिए विस्तृत मसौदा आदेशों पर विचार करने के लिए विशेषज्ञों की एक समिति का गठन किया है।
निष्कर्ष:
निष्कर्षतः गरिमा के साथ मरने के अधिकार को लागू करने में विफलता सक्रिय सरकारी पहल के महत्त्व को उजागर करती है। कानूनी अनिश्चितता को कम करने और चिकित्सकों को अपने मरीजों द्वारा लिविंग विल्स में व्यक्त की गई प्राथमिकताओं का सम्मान करने के लिए और उसे सशक्त बनाने के लिए प्रभावी दिशानिर्देशों, मानदंडों और लगातार कार्रवाई की आवश्यकता है।
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