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भारत और यूरोप के संबंध महत्व एवं विकास के प्रमुख क्षेत्र

Lokesh Pal July 15, 2025 05:15 13 0

संदर्भ:

तेजी से विखंडित हो रही वैश्विक व्यवस्था में, भारत और यूरोप – दोनों महत्वाकांक्षी मध्यम शक्तियां – एक बहुध्रुवीय, नियम-आधारित और समतापूर्ण विश्व को आकार देने के लिए अपनी साझेदारी को मजबूत कर रहे हैं।

विकसित होती वैश्विक शतरंज की बिसात:

  • ट्रान्साटलांटिक क्षेत्र का पतन: पारम्परिक रूप से अमेरिका के नेतृत्व वाला ट्रान्साटलांटिक क्षेत्र रणनीतिक बहाव का अनुभव कर रहा है।
  • अमेरिकी विदेश नीति में अनिश्चितता: अमेरिकी राष्ट्रपति के लेन-देन संबंधी वैश्विक दृष्टिकोण, नाटो के प्रति संदेह और सहयोगियों के प्रति अलगाव ने यूरोप को अस्थिर कर दिया है।
  • G-7 सर्वसम्मति में व्यवधान: वर्तमान शिखर सम्मेलन यह दर्शाते हैं कि G-7 वैश्विक सर्वसम्मति से आंतरिक विवाद की ओर बढ़ गया है
  • पश्चिमी शक्तियों द्वारा पूर्व की ओर स्थानांतरण:
    • कनाडा का पुनर्गठन: कनाडा अतीत के तनावों के बावजूद यूरोप और भारत जैसी उभरती शक्तियों के साथ गहरे संबंध स्थापित करना चाहता है।
    • ब्रिटेन की रणनीतिक पुनः सहभागिता: ब्रिटेन ब्रेक्सिट के बाद के भ्रमों पर नियंत्रण स्थापित कर रहा है, यूरोप के साथ पुनः सहभागिता कर रहा है, तथा भारत को एक विश्वसनीय साझेदार के रूप में देख रहा है।
    • जर्मनी की रणनीतिक जागृति: जर्मनी लंबे समय तक निष्क्रियता के बाद रक्षा और औद्योगिक परिवर्तन में निवेश कर रहा है।
  • यूरोप की सामरिक आकांक्षा: यूरोप शक्ति का एक स्वतंत्र ध्रुव बनने का प्रयास कर रहा है।
  • सामरिक स्वायत्तता का उदय: बर्लिन, वारसॉ और ब्रुसेल्स जैसी प्रमुख यूरोपीय राजधानियों में सामरिक स्वायत्तता गति पकड़ रही है।
  • भारत की विदेश नीति में बदलाव: भारत विदेश नीति में गुटनिरपेक्षता से बहु-गठबंधन की ओर संक्रमण कर रहा है।

अभिसरण और सहयोग के प्रमुख स्तंभ

  • राजनयिक और संस्थागत जुड़ाव:
    • यूरोप के प्रति भारत की रणनीतिक धुरी: प्रधानमंत्री मोदी की G-7 बैठकों और मंत्रिस्तरीय संपर्क जैसे उच्च स्तरीय कूटनीति द्वारा प्रदर्शित हो रही है।
    • भारत-यूरोपीय संघ वार्ता का विस्तार: इसमें व्यापार, प्रौद्योगिकी, सुरक्षा और जलवायु परिवर्तन जैसे क्षेत्र शामिल हैं।
    • गहन होते द्विपक्षीय संबंध: फ्रांस, जर्मनी, इटली तथा नॉर्डिक एवं पूर्वी यूरोप के देशों के साथ भारत के संबंध रणनीतिक रूप से मजबूत हो रहे हैं।
  • मजबूत आर्थिक संबंध:
    • वर्ष 2015 और 2022 के बीच: भारत में यूरोपीय संघ का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश 70% बढ़ा, भारत में फ्रांस का निवेश 373% बढ़ा। भारत से यूरोपीय संघ का आयात तीन वर्षों में दोगुना हो गया है।
    • भारत यूरोपीय संघ व्यापार और निवेश समझौतों को शीघ्रता से आगे बढ़ाया जाना चाहिए, जिसकी शुरुआत शीघ्र फसल सौदे से सम्पन्न की जा सकती है।
    • यूरोपीय कार्बन सीमा समायोजन तंत्र (CBAM) को जलवायु संरक्षणवाद के बजाय समानता के नज़रिए से देखा जाना चाहिए। आयातक देशों को हरित तकनीक हस्तांतरण के लिए धन की आवश्यकता है।
    • भारत मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारे (IMEC) को आधुनिक सिल्क रोड के रूप में पुनर्जीवित किया जाना चाहिए, जिससे हिंद-प्रशांत क्षेत्र में पारदर्शी और संप्रभु अवसंरचनात्मक ढांचे को सक्षम बनाया जा सके।
  • तकनीकी साझेदारी:
    • साझा डिजिटल दृष्टिकोण: दोनों पक्ष डिजिटल अवसंरचना को सार्वजनिक वस्तु के रूप में देखते हैं, न कि बिग टेक के स्वामित्व के रूप में।
    • पूरक शक्तियां: यूरोप डीप टेक, सेमीकंडक्टर और डिजिटल विनिर्माण में अग्रणी है; भारत सॉफ्टवेयर, डिजिटल सार्वजनिक वस्तुओं और प्लेटफार्मों में अग्रणी है।
    • तकनीकी सामंजस्य के प्रमुख क्षेत्र: सहयोग से स्वच्छ ऊर्जा, जैव प्रौद्योगिकी, महासागर स्थिरता, खाद्य सुरक्षा और स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों में नवाचार को बढ़ावा मिल सकता है।
  • मानव गतिशीलता और प्रतिभा विनिमय:
    • गतिशीलता समझौते की आवश्यकता: छात्रों, शोधकर्ताओं और पेशेवरों के लिए एक व्यापक प्रतिभा विनिमय ढांचा महत्वपूर्ण है।
    • प्रतिभा विनिमय ढाँचे के लाभ: इससे प्रतिभा पूल समृद्ध होगा, भारत में बेरोजगारी की समस्या से निपटा जा सकेगा और नवाचार को बढ़ावा मिलेगा।
    • सीमापार ज्ञान अर्थव्यवस्था: आज के विचार-संचालित विश्व में, सीमापार का ज्ञान एवं विचारक सीमापार की पूंजी की तरह ही महत्वपूर्ण हैं।
  • रक्षा और आतंकवाद-रोधी सहयोग तंत्र:
    • रक्षा आपूर्ति श्रृंखला संपर्क: यूरोप भारत के लिए एक महत्वपूर्ण हथियार आपूर्तिकर्ता बना हुआ है।
    • आत्मनिर्भरता के लिए प्रयास: भारत का आत्मनिर्भर भारत और यूरोप का रीआर्म 2025 सह-विकास और तकनीकी हस्तांतरण के लिए महत्त्वपूर्ण अवसर प्रदान करते हैं।
    • सुरक्षा सहयोग के प्रमुख क्षेत्र: सहयोग में समुद्री सुरक्षा, साइबर रक्षा, अंतरिक्ष और आतंकवाद-निरोध शामिल हैं।
    • आतंकवाद पर राजनीतिक इच्छाशक्ति की आवश्यकता: यूरोप को इस्लामिक उग्रवाद को पाकिस्तान के समर्थन पर कड़ा रुख अपनाना चाहिए।

एक स्थिर और न्यायसंगत विश्व व्यवस्था को आकार देना:

  • नियम-आधारित व्यवस्था के संयुक्त संरक्षक: बढ़ती शक्ति राजनीति के बीच भारत और यूरोप को नियम-आधारित वैश्विक व्यवस्था को बढ़ावा देना चाहिए।
  • यथार्थवादी गठबंधन का दृष्टिकोण: उनका दृष्टिकोण गठबंधन के माध्यम से स्थिरता पर आधारित है, न कि दबाव पर।
  • साझा वैश्विक विश्वास:
    • बहुपक्षवाद के प्रति प्रतिबद्धता जताना।
    • द्विआधारी भू-राजनीति का प्रतिरोध करना।
    • वैश्विक दक्षिण को सशक्त बनाने पर ध्यान केंद्रित करना।
  • वैश्विक मंचों पर ऐतिहासिक नेतृत्व: इस साझा नैतिकता को संयुक्त राष्ट्र, विश्व व्यापार संगठन और वैश्विक एआई शासन प्लेटफार्मों पर संयुक्त नेतृत्व का मार्गदर्शन करना चाहिए।

नीतियों से परे: बदलती धारणाएँ:

  • एक सफल साझेदारी के लिए नीतिगत संरेखण से अधिक की आवश्यकता होती है; इसके लिए धारणा में परिवर्तन की आवश्यकता है।
  • जनभावना, मीडिया की कहानियां और राजनीतिक ध्यान रणनीतिक इरादे के साथ संरेखित होना चाहिए।
  • भारत को यूरोप के जटिल बदलावों को अधिक सूक्ष्मता से समझने की आवश्यकता है, तथा यूरोप को भारत को एक अनिच्छुक साझेदार मानने की पुरानी धारणा से आगे बढ़ना होगा।
  • हाल के सकारात्मक घटनाक्रम, जैसे मार्सिले में रायसीना वार्ता और यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन की दिल्ली यात्रा, भारत -यूरोप के मध्य घनिष्ठ सहयोग की दिशा में आशाजनक कदम का संकेत देते हैं।

निष्कर्ष:

आने वाला दशक उद्देश्य की भावना की माँग करता है। भारत और यूरोप, जो लंबे समय से एक-दूसरे के साथ जुड़े हुए हैं, को अब कदम से कदम मिलाकर चलना होगा। उनके साझा मूल्य और रणनीतिक बाध्यताएँ एक ऐसी साझेदारी का निर्माण करती हैं जो सुविधा की नहीं, बल्कि गहरे विश्वास की है, जो सभी के लिए एक अधिक स्थिर, समावेशी और समतापूर्ण विश्व का वादा करती है।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न: बदलती वैश्विक व्यवस्था और बढ़ते भू-राजनीतिक मतभेदों के संदर्भ में भारत-यूरोप संबंधों की विकासशील प्रकृति पर चर्चा कीजिए। परीक्षण कीजिए कि गहन सहयोग किस प्रकार वैश्विक अनिश्चितताओं से निपटने और एक स्थिर, समावेशी अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था को बढ़ावा देने में सहायक हो सकता है।

(15 अंक, 250 शब्द)

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