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साइकिल को एक वाहन के रूप में महत्त्व

Lokesh Pal March 27, 2024 05:00 187 0

संदर्भ:

इस लेख के अंतर्गत भारत में साइकिल चलाने के महत्व और आवश्यकता के विषय में चर्चा की गई है, ध्यातव्य है कि साइकिल को न सिर्फ एक डीकार्बोनाइजिंग परिवहन के रूप में ही मान्यता दी जानी चाहिए बल्कि इसे लोगों के जीवन पर परिवर्तनकारी प्रभाव छोड़ने तथा सामाजिक समरूपता का मामला भी माना जाना चाहिए।

मुख्य परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: भारत में सामाजिक समरूपता के रूप में साइकिल का एक वाहन के रूप में उपयोग, आवश्यकता, महत्व और आगे की राह।

साइकिल एक वाहन के रूप में :

  • क्षेत्रीय भिन्नता: राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (1998-99 से 2019-21 तक) के अनुसार, साइकिल चालकों की संख्या में मामूली वृद्धि दर्ज की गई है; यह वृद्धि क्रमशः 48% से 55% है। हालाँकि, कुछ राज्यों में अधिक वृद्धि दर्ज की गई है।
    • उदाहरण: मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्यों में यह, वृद्धि 30% से 75%, उत्तर प्रदेश में 26% से 71% और पश्चिम बंगाल में 53% से 79% तक दर्ज की गई थी ।
  • स्कूली बच्चों द्वारा उपयोग: राष्ट्रीय स्तर पर, स्कूल जाने के लिए साइकिल चलाना 2007 में 6.6% से बढ़कर 2017 में 11.2% हो गया।
    • ग्रामीण क्षेत्रों में यह स्तर लगभग दोगुना हो गया (6.3% से 12.3%), जबकि शहरी क्षेत्रों में यह स्तर स्थिर बना रहा (7.8% से 8.3%)।
  • साइकिल वितरण योजना (BDS) : बीडीएस के तहत, विभिन्न राज्य सरकारें द्वारा बच्चों को नकद हस्तांतरण के माध्यम से मुफ्त में साइकिल प्रदान किया गया। 
    • जिन राज्यों में साइकिल वितरण योजना को लागू किया गया था, वहाँ साइकिल से स्कूल जाने वाले बच्चों की संख्या में वृद्धि देखी गई।
    • उदाहरण: बिहार में, साइकिल वितरण योजना को वर्ष 2006 में लॉन्च किया गया था। बिहार राज्य में इस योजना के लागू किए जाने के बाद से स्कूल तक साइकिल चलाकर जाने वाले बच्चों की संख्या क्रमशः वर्ष 2007 के 3.6% के स्तर से बढ़कर 2017 में 14.2% के स्तर तक पहुँच गया।
    • पश्चिम बंगाल में सबूज साथी योजना (Sabooj Saathi scheme) को वर्ष 2015 में शुरू किया गया था। इस योजना की शुरुआत के बाद से पश्चिम बंगाल राज्य में साइकिल चालकों की संख्या वर्ष 2014 के 15.4% के स्तर से बढ़कर वर्ष 2017 में 27.6% के स्तर तक पहुँच गया।

सामाजिक परिणाम:

  • स्कूल में लड़कियों का उच्च नामांकन अनुपात: बिहार और कर्नाटक राज्यों में किए गए मूल्यांकन से स्पष्ट होता है कि साइकिल वितरण योजना (BDS) कक्षा नौ में लड़कियों के नामांकन की संख्या और माध्यमिक विद्यालय प्रमाणन परीक्षाओं में बैठने वाली लड़कियों की संख्या में वृद्धि से जुड़ा हुआ है।
  • उच्च स्वीकार्यता: कुछ लोगों के लिए, साइकिल रखना एक विलासिता की वस्तु बन गई है। साइकिल चलाने से शरीर स्वस्थ रहता है और इससे पर्यावरण संबंधी जोखिम भी नहीं होता है, साइकिल के लाभ को देखते हुए वर्तमान में लोगों के मध्य इसकी स्वीकार्यता में वृद्धि हो रही है।
  • बेंगलुरु में, एक एनजीओ ने कपड़ा कारखानों में काम करने वाली 170 कम आय वाली महिलाओं को मुफ्त में साइकिलें गिफ्ट कीं और पाया कि जिन महिलाओं को साइकिल दी गई, उनमें से दो-तिहाई ने कुछ प्रशिक्षण के साथ, काम पर जाने के लिए साइकिल चलाना शुरू कर दिया था ।
    • साइकिल नहीं होने से पहले ये महिलाएँ या तो लंबी दूरी तक पैदल यात्रा करतीं थीं  या बस से परिवहन करती थीं ।

आगे की राह :

  • संसदीय चुनावों में, भारत में राजनीतिक दलों द्वारा साइकिल चालकों को प्रोत्साहित किया जा सकता है ।
  • राज्य सरकारों द्वारा कार्रवाई: देश के अन्य राज्य सरकारों को भी साइकिल वितरण योजना (BDS) जैसी  योजनाएँ  लागू करनी चाहिए, और इनका दायरा बढ़ाया जाना चाहिए (ग्रामीण क्षेत्रों से प्रतिबंध हटाकर शहरी क्षेत्रों तक बढ़ाया जाना चाहिए)। 
    • इसके अतिरिक्त, साइकिल की खरीद पर सब्सिडी या जीएसटी रियायतें भी प्रदान किए जाने की आवश्यकता है।
  • मजदूरों को मुफ्त साइकिल: ऐसे कुछ राज्य हैं जहाँ वयस्कों के लिए साइकिल वितरण से संबंधित योजनाएँ हैं, जैसे- उत्तर प्रदेश, इस राज्य के मजदूरों को मुफ्त में साइकिल प्रदान किया जाता है। 
    • ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि साइकिल वितरण से संबंधित योजना को बड़े पैमाने पर लागू करने पर विचार किए जाने की आवश्यकता है।
  • समर्पित साइकिलिंग बुनियादी ढाँचे का विकास: शहरों में साइकिल ट्रैक, सुरक्षित पार्किंग और मरम्मत की दुकानों जैसे समर्पित साइकिलिंग बुनियादी ढाँचे की स्थापना में निवेश किए जाने की आवश्यकता है।

News Source: The Hindu

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