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भारत के लिए खाड़ी देशों का महत्त्व

Lokesh Pal December 19, 2024 05:30 12 0

संदर्भ:

प्रधानमंत्री मोदी की हालिया कुवैत यात्रा भारत की विदेश नीति में खाड़ी क्षेत्र के बढ़ते सामरिक महत्त्व को उजागर करती है, जो भारत तथा मध्य-पूर्व के देशों के मध्य द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत बनाने में प्रभावकारी सिद्ध हो सकता है ।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि 

  •  इराक द्वारा कुवैत पर आक्रमण  : 1990 का खाड़ी युद्ध इराक द्वारा कुवैत पर आक्रमण के साथ शुरू हुआ, जिसके मुख्य कारण निम्नलिखित हैं:
    1. ओपेक और तेल की कीमतें : इराक ने कुवैत पर ओपेक उत्पादन कोटा पार करने का आरोप लगाया, जिसके कारण तेल की कीमतों में गिरावट आई, परिणामस्वरूप इराक की युद्धग्रस्त अर्थव्यवस्था को और अधिक नुकसान पहुँचा।
    2. क्षैतिज ड्रिलिंग के आरोप : इराक ने कुवैत पर इराक के तेल क्षेत्र में ’तिरछी ड्रिलिंग’ के लिए उन्नत प्रौद्योगिकी का उपयोग करने और इराकी क्षेत्र से संसाधनों को निकालने का आरोप लगाया।
    3. ऐतिहासिक दावे : इराक कुवैत को अपने क्षेत्र का अभिन्न अंग मानता था। प्रथम विश्व युद्ध के बाद ब्रिटिश औपनिवेशिक शक्तियों ने सीमाओं को पुनः निर्मित किया, जिससे कुवैत एक अलग इकाई बन गया। इराक ने इस विभाजन को अवैध माना और क्षेत्र को वापस प्राप्त करने का प्रयास किया ।
  • सद्दाम हुसैन ने इन परिस्थितियों का लाभ उठाकर 2 अगस्त, 1990 के आक्रमण को उचित ठहराया। इस आक्रमण की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर व्यापक निंदा हुई, जिसके फलस्वरूप इराकी सेनाओं को खदेड़ने तथा कुवैत की संप्रभुता को बहाल करने के लिए अमेरिका के नेतृत्व में एक गठबंधन का निर्माण  किया गया।

कुवैत और खाड़ी क्षेत्र के साथ भारत के संबंध

  • 1990 के खाड़ी युद्ध पर प्रतिक्रिया: सद्दाम हुसैन के कुवैत पर आक्रमण के प्रति भारत की सतर्क प्रतिक्रिया, इराक के साथ उसके ऐतिहासिक गठबंधन को प्रतिबिंबित करती है। 
    • अफगानिस्तान पर सोवियत आक्रमण (वर्ष 1979) और यूक्रेन में रूस की कार्रवाइयों (वर्ष 2022) के दौरान भी इसी तरह की हिचकिचाहट देखी गई थी। 
    • शीत युद्ध के दौरान भारत ने इराक और सीरिया में कट्टरपंथी राष्ट्रवादी शासनों के साथ मजबूत संबंध बनाए, जो साझा साम्राज्यवाद-विरोधी, समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष आदर्शों पर आधारित थे। 
    • परिणामस्वरूप संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब जैसे खाड़ी राजतंत्रों के साथ इसका संबंध सीमित रहा, जो क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्विता से प्रभावित था।
  • कुवैत और खाड़ी क्षेत्र के साथ संबंधों में परिवर्तन : 1990 के दशक में कुवैत के साथ भारत के संबंध सामान्य थे, लेकिन 2000 के दशक में उच्च स्तरीय यात्राओं के कारण इनमें सुधार हुआ। 
    • प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की 1981 ई. की यात्रा के बाद उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी की वर्ष 2009 की यात्रा लगभग 30 वर्षों में सबसे महत्त्वपूर्ण यात्रा थी। 
    • यूपीए सरकार के तहत भारत ने ओमान, कतर और सऊदी अरब जैसे खाड़ी देशों के साथ संबंध बढ़ाए, जिन्होंने खाड़ी युद्ध के दौरान कुवैत का समर्थन किया था।
    • वर्तमान में साझा आर्थिक, ऊर्जा और सुरक्षा हितों के कारण खाड़ी देश भारत को एक प्रमुख साझेदार के रूप में देखते हैं।
  • प्रधानमंत्री मोदी की सक्रिय कूटनीति : पदभार ग्रहण करने के बाद से प्रधानमंत्री मोदी ने लगातार यात्राओं के माध्यम से खाड़ी संबंधों को पुनर्जीवित किया है, जिनमें संयुक्त अरब अमीरात की सात बार यात्राएँ, कतर और सऊदी अरब की दो-दो बार यात्राएँ तथा बहरीन और ओमान की एक-एक बार की गई यात्राएँ प्रमुख हैं।
    • उनकी सक्रिय भागीदारी ने खाड़ी में एक महत्त्वपूर्ण साझेदार के रूप में भारत की स्थिति को मजबूत किया है तथा कुवैत और क्षेत्र के साथ संबंधों में परिवर्तन लाया है।

आगे की राह

  • क्षेत्रीय गतिशीलता का आकलन : 
    • भारत को उदारवादी अरब राज्यों और ईरान, इज़राइल तथा तुर्की जैसे अन्य क्षेत्रीय शक्तियों के मध्य जटिल गतिशीलता को सावधानीपूर्वक समझने की आवश्यकता है।
    • अरब राज्य ऑटोमन नियंत्रण या ईरानी प्रभुत्व की किसी भी वापसी तथा कट्टरपंथी इस्लामी शासन का विरोध करते हैं। 
    • वे फिलिस्तीनी मुद्दों पर इज़राइल के पक्ष का भी विरोध करते हैं।
  • अरब-इज़राइल सहयोग को प्रोत्साहन
    • इज़राइल की ओर से अधिक लचीलापन संभावित रूप से अरब-इज़राइल सहयोग को बढ़ावा दे सकता है, जो मध्य- पूर्व को स्थिर करने में योगदान देगा।
    • अमेरिका की मध्यस्थता में हुए अब्राहम समझौते (Abraham Accords) से इज़राइल और यूएई के बीच संबंध सामान्य हो गए। 
      • इज़राइल और सऊदी अरब के बीच भी इसी प्रकार के सामान्यीकरण की संभावनाएँ थीं, लेकिन हमास और इज़राइल के बीच हिंसा में वृद्धि के कारण ये समस्याएँ और उग्र हुईं।
    • भारत को इज़राइल को अरब चिंताओं का समाधान करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए, क्योंकि इससे भारत खाड़ी देशों और इज़राइल दोनों के साथ अपने संबंधों को संतुलित कर सकेगा तथा मध्य-पूर्व की उभरती भू-राजनीति में एक प्रमुख देश के रूप में स्थापित हो सकेगा।

निष्कर्ष

अंततः भारत और खाड़ी देशों के मध्य संबंध ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और रणनीतिक आधार पर मजबूत हैं। ऊर्जा सुरक्षा, व्यापार, प्रवासी भारतीय समुदाय और साझा विकास परियोजनाएँ इन संबंधों को सुदृढ़ करती हैं। खाड़ी देश भारत के सबसे बड़े ऊर्जा आपूर्तिकर्ता हैं, जबकि भारत उनके लिए श्रमिक शक्ति और आर्थिक साझेदारी का प्रमुख स्रोत है।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न

अरब खाड़ी देशों के साथ भारत के कूटनीतिक संबंधों से उत्पन्न चुनौतियों का परीक्षण कीजिए। यह संबंध  भारत के ऊर्जा सुरक्षा, आर्थिक सहयोग और क्षेत्रीय स्थिरता पर बढ़ते लक्ष्यों को किस प्रकार सुनिश्चित  करता है?

(15 अंक, 250 शब्द)

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