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बाल श्रम को समाप्त करने में वेलपुर की कहानी का महत्त्व

Lokesh Pal June 13, 2025 05:30 13 0

संदर्भ:

12 जून को प्रतिवर्ष विश्व बाल श्रम निषेध दिवस (WDACL) के रूप में मनाया जाता है।

विश्व बाल श्रम निषेध दिवस (WDACL):

  • संबंधित संस्थान: यह दिवस अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के तत्वावधान में मनाया जाता है।
  • उद्देश्य: बाल श्रम के खिलाफ संघर्ष में सरकारों, नियोक्ताओं, श्रमिक संगठनों और नागरिक समाज को एकजुट करना ही डब्ल्यूडीएसीएल का प्रमुख उद्देश्य है।
  • वैश्विक लक्ष्य: सतत विकास लक्ष्य (SDG) 8.7 के अंतर्गत 2025 तक बाल श्रम समाप्त करने के आह्वान के बावजूद, विश्व इस उद्देश्य को प्राप्त करने में अभी अत्यधिक दूर है।

बाल श्रम का प्रचलन

  • वैश्विक प्रभाव: बाल श्रम वैश्विक स्तर पर बच्चों को उनके बचपन, गरिमा और संपूर्ण विकास की संभावनाओं से वंचित कर देता है।
  • अनुमानित संख्या: अनुमान है कि विश्वभर में लगभग 16 करोड़ बच्चे बाल श्रम में संलग्न हैं, जो हर दस में से एक बच्चे का प्रतिनिधित्व करते हैं।
  • क्षेत्रीय एकाग्रता: अफ्रीका, एशिया और प्रशांत क्षेत्र मिलकर बाल श्रम में लगे लगभग प्रत्येक दस बच्चों में से नौ बच्चों के लिए ज़िम्मेदार हैं।
  • कोविड-19 महामारी का प्रकोप: कोविड-19 महामारी ने कई वंचित बच्चों की स्थिति को और भी गंभीर बना दिया, जिससे उनका स्कूल जाना बंद हो गया और बच्चों को परिवार की आमदनी में सहयोग करने के लिए मजबूरी में काम करना पड़ता है। रिपोर्टों से ज्ञात होता है कि इनमें से अधिकांश बच्चे अब तक स्कूल में वापस लौटकर नहीं आ पाए हैं।

भारत में विधायी और नीतिगत संरचना:

  • बाल श्रम (निषेध एवं विनियमन) अधिनियम (सी.एल.पी.आर.ए.) 1986: प्रारंभ में इसका उद्देश्य निषेध एवं विनियमन के साथ पुनर्वास पर ध्यान केंद्रित करना था।
  • राष्ट्रीय बाल श्रम नीति, 1987: एक क्रमिक दृष्टिकोण, सी.एल.पी.आर.ए. के कड़े प्रवर्तन, और उच्च बाल श्रम प्रकोप से संबंधित क्षेत्रों में राष्ट्रीय बाल श्रम परियोजना (एन.सी.एल.पी.) के क्रियान्वयन की वकालत की।
  • बाल श्रम (निषेध एवं विनियमन) संशोधन अधिनियम, 2016: सी.एल.पी.आर.ए. को प्रतिस्थापित करते हुए, 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों और 14-18 वर्ष के किशोरों को अनुसूचित खतरनाक कार्यों में रोजगार करने पर प्रतिबंध लगाया गया।
  • शिक्षा का अधिकार: 6-14 वर्ष की आयु के सभी बच्चों के लिए निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान किया गया।

वेलपुर मॉडल:

  • उदाहरण के लिए: निजामाबाद जिले (अब तेलंगाना) का वेलपुर मंडल, जो कभी बाल श्रम के लिए कुख्यात था, वह नाटकीय रूप से एक अनूठा उदाहरण बन गया।
  • समुदाय-संचालित अभियान (2001): जून 2001 में, एक सामुदायिक अभियान शुरू हुआ, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि 5-15 वर्ष की आयु के सभी बच्चे स्कूल जाएँ और कोई भी बाल श्रम में न लगे।
  • बाल श्रम मुक्त मंडलकी घोषणा: लगातार 100 दिनों के निरंतर अभियान के बाद, 2 अक्टूबर, 2001 को वेलपुर को “बाल श्रम मुक्त मंडल” घोषित किया गया।
  • निरंतर सफलता (24 वर्ष बाद): चौबीस वर्षों के बाद, वेलपुर के स्कूलों में 100% छात्रों को बनाए रखने का दावा करता है और यह बाल श्रम से मुक्त बना हुआ है।
  • समर्पित अधिकारी: स्कूल से बाहर बच्चों की पहचान और नामांकन अभियान का नेतृत्व शुरू से ही समर्पित अधिकारियों द्वारा किया गया है।
  • बड़े पैमाने पर प्रतिरोध: प्रारंभ में इसका काफी विरोध हुआ, गांवों में बाल अपहरण के रैकेट्स की अफवाहें फैलने लगीं।
  • लगातार प्रयास: निरंतर प्रयासों और संवादों के माध्यम से समुदाय का सहयोग प्राप्त किया गया, जिससे यह पहल उनके अपने आंदोलन में बदल गई।
  • ब्रिज स्कूलों की व्यवस्था: काम करने वाले बच्चों को राष्ट्रीय बाल श्रम परियोजना (NCLP) के तहत ब्रिज स्कूलों में भेजा गया।
  • जन जागरूकता: सार्वजनिक बैठकों में शिक्षा और बच्चों के स्कूल जाने के महत्व पर जोर दिया गया।
  • साथियों का दबाव: पूर्व नियोक्ताओं ने साथियों के दबाव में सार्वजनिक रूप से उन ऋणों (मुख्य राशि, ब्याज और दंडात्मक ब्याज) को माफ करने की घोषणा की, जो माता-पिता द्वारा बच्चों को श्रम के रूप में गिरवी रखा था।
  • शिक्षा के लिए समर्थन: नियोक्ताओं ने बच्चों को स्कूल स्टेशनरी भी वितरित की।
  • महत्वपूर्ण ऋण माफी: एक अध्ययन में पाया गया कि इस अच्छे काम के लिए लगभग ₹35 लाख की राशि माफ की गई।
  • सरपंच और सरकार के समझौते: सभी सरपंचों ने सरकार के साथ समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए (जिला कलेक्टर की मौजूदगी में जिला शिक्षा अधिकारी), ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि 5-14 वर्ष की आयु के बच्चे स्कूलों में अध्ययन करें।
  • सरकारी प्रतिबद्धता: सरकार ने बदले में बच्चों को शिक्षा, अवसंरचना और शिक्षकों की सुविधा प्रदान करने का संकल्प लिया। यह सरपंचों और सरकार के बीच पहला ऐसा समझौता था।
  • सामुदायिक स्वामित्व: समुदाय अपनी बाल श्रम मुक्त स्थिति की कड़ी निगरानी करता है, प्रत्येक गांव में इस संबंध में बोर्ड लगवाये जाते हैं कि हमारे गांव में कोई बाल श्रम नहीं है।

मान्यता और पुनरावृत्ति

  • 20-वर्षीय उपलब्धि का उत्सव: 8 अक्टूबर 2021 को वी.वी. गिरी राष्ट्रीय श्रम संस्थान (VVGNLI) ने निज़ामाबाद में वेलपुर की 20 वर्षों की सफलता का जश्न मनाने के लिए एक कार्यक्रम आयोजित किया।
  • योगदानकर्ताओं का सम्मान: सरपंचों, जाति के बुजुर्गों, जिला परिषद सदस्यों और अभियान में शामिल सभी लोगों को सम्मानित किया गया।
  • कोई बाल श्रम नहीं पाया गया: स्थानीय मीडिया को एक भी स्कूल न जाने वाला बच्चा खोजने की चुनौती दी गई, लेकिन वह इस चुनौती में सफल नहीं हुए।
  • व्यापक प्रशंसा: वेलपुर की कहानी का अच्छे से दस्तावेजीकरण हुआ है और इसे अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) तथा मीडिया द्वारा सराहा गया है। अनेक विशेषज्ञ भी समय -समय पर अध्ययन हेतु यहाँ क्षेत्रीय दौरे पर आए हैं।
  • राष्ट्रपति और NHRC की प्रशंसा: भारत के पूर्व राष्ट्रपति, ए.पी.जे. अब्दुल कलाम और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) के सदस्यों ने प्रशंसा पत्र प्रेषित किए।
  • प्रशिक्षण कार्यक्रमों में समाहित: वेलपुर मॉडल, जो समुदाय की पूर्ण भागीदारी पर आधारित है, वी.वी. गिरी राष्ट्रीय श्रम संस्थान (VVGNLI) के सभी प्रशिक्षण कार्यक्रमों का अभिन्न हिस्सा है
  • संसदीय मान्यता: श्रम, वस्त्र एवं कौशल विकास पर संसद की स्थायी समिति ने नवंबर 2022 में तत्कालीन जिलाधिकारी की प्रस्तुति के बाद इस मॉडल की सफलता की प्रशंसा की।

निष्कर्ष:

अतः इस प्रकार वेलपुर मॉडल एक समुदाय-प्रेरित सफलता की कहानी है, जो यह दर्शाता है कि किसी भी सामाजिक समस्या का स्थायी और प्रभावी समाधान तभी संभव है, जब वह जन सहभागिता से एक व्यापक जन आंदोलन में बदल जाए।

 मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न

प्रश्न. हाल ही में बाल श्रम उन्मूलन में वेलपुर मॉडल की सफलता इस बात को रेखांकित करती है कि प्रशासनिक पहल और नागरिक समाज के समर्थन के बीच समन्वय कितना महत्वपूर्ण है। विश्लेषण करें कि ऐसे मॉडल किस प्रकार बचाए गए बच्चों की दीर्घकालिक सुरक्षा और सामाजिक पुनर्वास को सुनिश्चित कर सकते हैं।

(10 अंक, 150 शब्द)

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