हाल ही में सिलीगुड़ी में प्रतियोगी परीक्षा (एसएससी) देने आए दो छात्रों को कुछ स्थानीय लोगों ने धमकाया और उन पर हमला किया। हालांकि छात्रों द्वारा माफ़ी मांगने के बाद भी हमलावर नहीं रुके। बाद में पता चला कि उन पर इसलिए हमला किया गया क्योंकि वे बिहार से थे और उनसे जबरन इस बात का जवाब मांगा जा रहा था कि वे परीक्षा देने पश्चिम बंगाल क्यों आए हैं।
संवैधानिक प्रावधान : आज़ादी के 75 साल हो चुके हैं और जबकि हमारा संविधान देश में कहीं भी यात्रा करने, बसने और उचित प्रतिबंधों के साथ रोजगार की तलाश करने के अधिकार की गारंटी देता है, फिर भी ऐसी घटनाएँ होती रहती हैं। इसके लिए कौन ज़िम्मेदार है? क्या वे राजनेता हैं जो वोट हासिल करने के लिए पहचान के नाम पर समुदायों के बीच नफ़रत भड़काते हैं या कोई और यह महत्त्वपूर्ण विषय है।
हालिया अन्य घटनाएं : हाल ही में इसी तरह के मामले सामने आए हैं, जैसे कि कर्नाटक में अलग झंडे की माँग।
प्रत्येक व्यक्ति या समुदाय विशेष को अपनी क्षेत्रीय और स्थानीय पहचान बनाए रखने का अधिकार यह स्वाभाविक रूप से गलत भी नहीं है; हमारी विविधता हमारी संस्कृति का एक मूलभूत पहलू है, और हम इस पर गर्व करते हैं। हालाँकि, यह विश्वास कि हम दूसरों से श्रेष्ठ हैं और वे हमारे अधिकार छीन रहे हैं, सोचना गलत है।
क्षेत्रीय पहचान को राष्ट्रीय पहचान से ऊपर रखना हमारे राष्ट्र की एकता और अखंडता को कमजोर करता है।
“भूमिपुत्र” की अवधारणा : इसी तरह, कई राज्यों में प्रचलित “भूमिपुत्र” सिद्धांत इस बात पर जोर देता है कि नौकरियों और संसाधनों का प्राथमिक अधिकार उस क्षेत्र के स्थानीय निवासियों को दिया जाना चाहिए। जबकि इस दृष्टिकोण का उद्देश्य स्वदेशी आबादी को सशक्त बनाना और स्थानीय विकास को बढ़ावा देना है, इसलिए यह निष्पक्षता और समावेशिता के बारे में महत्वपूर्ण प्रश्न उठाता है।
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