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आयकर विधेयक, 2025 और उसकी विषयवस्तु

Lokesh Pal March 05, 2025 05:00 9 0

“कहा जाता है, कि कोई भी वृक्ष तब तक स्वर्ग तक नहीं पहुँच सकता जब तक उसकी जड़ें नरक तक न पहुँच जाएँ” – सी.जी. जुंग

संदर्भ:

हाल ही में केंद्रीय वित्त मंत्री ने संसद में आयकर विधेयक, 2025 प्रस्तुत किया। यदि यह विधेयक पारित हो जाता है, तो यह आयकर अधिनियम, 1961 का स्थान लेगा। 

आयकर विधेयक, 2025

  • उद्देश्य: आयकर अधिनियम, 1961 अनेक प्रावधानों, अपवादों और खंडों के कारण जटिल और अस्पष्ट हो गया है। नए विधेयक का उद्देश्य लंबित न्यायिक मामलों को कम करना और अधिक निष्पक्ष, पूर्वानुमानित कर प्रणाली निर्मित करना है।
  • समस्याएँ: सरलीकरण के दावों के बावजूद, 1961 के अधिनियम की कई अस्पष्टताएँ और जटिलताएँ अभी भी बनी हुई हैं। विधेयक सरकार की शक्तियों का विस्तार भी करता है, जिससे सत्तावादी प्रावधानों पर चिंताएँ बढ़ जाती हैं।
  • वैश्विक उदाहरण: विश्व में कई न्यायिक क्षेत्र कानूनों को अधिक सुलभ और पारदर्शी बनाने के लिए सरल भाषा में मसौदा तैयार करने की दिशा में बढ़ रहे हैं। सरलीकृत कानून सरकारी उत्तरदायित्व को बढ़ाते हैं तथा अनुपालन में सुधार करते हैं।
    • उदाहरण के लिए, यूनाइटेड किंगडम ने वर्ष 2009 में कर कानूनों को सरल बनाया है।
  • अनुपालन में सुधार: कुछ विशेषज्ञ तर्क देते हैं, कि तकनीकी कानूनी भाषा अधिक सटीकता सुनिश्चित करती है। हालाँकि, वैश्विक उदाहरण बताते हैं कि स्पष्ट कर कानून विवादों को कम कर सकते हैं और सटीकता का त्याग किए बिना अनुपालन में सुधार कर सकते हैं।

विधेयक से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ 

  • स्पष्टता का अभाव: स्पष्टता और सुगमता के दावों के बावजूद आयकर विधेयक, 2025 जटिल और अस्पष्ट बना हुआ है। 
    • मात्र शब्दों का प्रतिस्थापन (जैसे- ’बावजूद’ के स्थान पर ’अपरिहार्य’ रखना) सामान्य करदाता की समझ में कोई सार्थक सुधार नहीं करता है।
  • अल्प सुधार: कुछ पुराने प्रावधानों को हटा दिया गया है तथा कुछ परिभाषाओं को सरल बनाया गया है। समय-सीमा और अनुपालन आवश्यकताओं को तालिकाओं तथा अनुसूचियों में समेकित किया गया है। 
    • हालाँकि, ये परिवर्तन पूर्ण विधायी सुधार की बजाय संशोधनों के माध्यम से प्रस्तुत और लागू किए जा सकते थे
  • लंबित मामलों की समस्या: अनुपालन विवरण को तालिकाओं और अनुसूचियों में स्थानांतरित करने से कानूनी अस्पष्टताएँ समाप्त नहीं होती हैं। विभिन्न अनुभागों में क्रॉस-रेफरेंस अभी भी कानून की व्याख्या करना कठिन बनाते हैं और विवादों को बढ़ावा देते हैं
  • प्रतिधारण: विधेयक में आयकर अधिनियम, 1961 के प्रावधानों को सम्मिलित किया गया है, जिससे निरसन अप्रभावी हो गया है
    • उदाहरण: धारा 2(49) के तहत ’आय’ की परिभाषा अभी भी आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 2(24) को संदर्भित करती है। यह नए कानून के उद्देश्य को विफल करता है, क्योंकि करदाताओं को अभी भी पुराने कानून का संदर्भ लेना होगा
  • लंबित मामलों में वृद्धि: विधेयक में पूर्व अधिनियम के मूल दर्शन को बरकरार रखा गया है, जबकि इसके शब्दों में संशोधन किया गया है। पुराने कानून पर आधारित न्यायिक निर्णयों की पुनर्व्याख्या की आवश्यकता हो सकती है, जिससे कानूनी अनिश्चितता उत्पन्न हो सकती है
    • उदाहरण: कर निर्धारण को पुनः खोलना अब ‘सूचना’ पर निर्भर करता है, यह शब्द अनिर्धारित कार्यकारी रणनीतियों से जुड़ा हुआ है, जिससे विवादों की संभावना बढ़ जाती है
  • तलाशी और जब्ती की शक्तियाँ: विधेयक डिजिटल संपत्तियों की तलाशी और जब्ती के लिए कर अधिकारियों की शक्तियों को व्यापक बनाता है। अधिकारी इलेक्ट्रॉनिक मीडिया या कंप्यूटर प्रणाली में संगृहीत किसी भी जानकारी का निरीक्षण कर सकते हैं, जिसमें शामिल हैं:
    • ईमेल
    • सोशल मीडिया अकाउंट
    • डिजिटल अनुप्रयोग
    • अधिकारी प्रवेश पाने के लिए एक्सेस कोड को दरकिनार कर सकते हैं, जो वर्तमान कानून में एक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन है।
  • गोपनीयता: सर्वोच्च न्यायालय ने के. एस. पुट्टस्वामी वाद (2017) में गोपनीयता के अधिकार को मूल अधिकार के अंतर्गत रखा, जिससे अनियंत्रित तलाशी कानूनी रूप से संदिग्ध हो गई।
  • निगरानी का अभाव: विधेयक में डिजिटल घुसपैठ पर कोई न्यायिक निगरानी निर्धारित  नहीं की गई है। इससे अधिकारी तलाशी लेने के कारणों को छिपा सकते हैं, जिससे दुरुपयोग की चिंता बढ़ जाती है

उपयुक्त समाधान और अनुशंसाएँ

  • पूर्व कानून में संशोधन: आयकर अधिनियम, 1961 में पूर्ण परिवर्तन करने की बजाय, उसमें लक्षित संशोधन करें।
  • सरल एवं स्पष्ट भाषा: करदाताओं की पहुँच बढ़ाने के लिए सरल एवं सटीक भाषा में कर कानूनों का मसौदा तैयार करना।
  • न्यायिक निगरानी: तलाशी और जब्ती शक्तियों के मनमाने प्रयोग के विरुद्ध सुरक्षा उपाय लागू करें। डिजिटल तलाशी लेने या एक्सेस कोड को ओवरराइड करने से पहले कर अधिकारियों को न्यायिक मंज़ूरी लेने की आवश्यकता होती है।
  • कठोर प्रावधानों में संशोधन: कर निर्धारण को पुनः खोलने और पूछताछ के लिए ‘सूचना’ को परिभाषित करने में अत्यधिक कार्यकारी विवेकाधिकार को हटाएँ।

निष्कर्ष

पूर्ण परिवर्तन की बजाय आयकर अधिनियम, 1961 में लक्षित संशोधन अधिक प्रभावी हो सकता है। कर संहिता को सरल बनाने में विधेयक की विफलता तथा तलाशी और जब्ती पर इसके सत्तावादी प्रावधानों के कारण संसदीय चयन समिति द्वारा इस पर गंभीरता से पुनर्विचार करना आवश्यक है।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न

आयकर विधेयक, 2025 प्रशासनिक दक्षता और नागरिक अधिकारों के बीच तनाव को दर्शाता है। आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए, कि भारत में राजकोषीय प्रावधान किस प्रकार राजस्व संग्रह को गोपनीयता संबंधी चिंताओं, न्यायिक निरीक्षण और सुशासन के सिद्धांतों के साथ संतुलित करते हैं।

(15 अंक, 250 शब्द)

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