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भारत और ईरान: प्राचीन सभ्यताएँ तथा नए क्षितिज

Lokesh Pal September 09, 2025 05:00 11 0

संदर्भ:

वैश्विक व्यवस्था परिवर्तन के दौर से गुजर रही है, जिसमें व्यापार युद्ध, संस्थागत पतन, पर्यावरणीय संकट तथा वित्तीय, तकनीकी और मीडिया आधारित नियंत्रण उपकरणों की घटती प्रभावशीलता के कारण पश्चिमी नेतृत्व आधारित प्रभुत्व समाप्त हो रहा है।

वैश्विक दक्षिण का उदय:

  • वैश्विक दक्षिण (ग्लोबल साउथ) के राष्ट्र प्रभुत्व और भेदभाव के विरुद्ध स्वतंत्रता का दावा कर रहे हैं।
  • वे स्वदेशी विज्ञान और प्रौद्योगिकी का निर्माण, रक्षा क्षेत्र को सुदृढ़ तथा विकास के स्थानीय मॉडल अपना रहे हैं।
  • वैश्विक मामलों में एक आत्मनिर्भर और स्वतंत्र मार्ग की शुरुआत है।

भारत और ईरान की सभ्यता आधारित भूमिका:

  • ऐतिहासिक प्रभाव: भारत और ईरान ने शासन, दर्शन, साहित्य और वास्तुकला के माध्यम से वैश्विक संस्कृति को आकार दिया।
  • शांति के प्रति प्रतिबद्धता: दोनों ने शांति को महत्त्व दिया, केवल रक्षा के लिए लड़ाई लड़ी, तथा विजेताओं को सांस्कृतिक रूप से नया स्वरूप दिया।
  • साझा सभ्यतागत मूल्य: विविधता, आध्यात्मिक विकास, प्रकृति के प्रति श्रद्धा और बुराई पर अच्छाई की विजय प्रमुख मान्यताएँ हैं।
  • इस्लाम का उदय: ईरान के सभ्यतागत मूल्य इस्लाम के अधीन जारी रहे, जबकि भारत ने इस्लामी परंपराओं को आत्मसात कर लिया।

आधुनिक इतिहास पर प्रभाव:

  • भारत का प्रतिरोध: भारत ने उपनिवेशवाद का विरोध और गुटनिरपेक्ष आंदोलन का नेतृत्व किया।
  • ईरान द्वारा विरोध: ईरान ने तेल राष्ट्रीयकरण और इस्लामी क्रांति के माध्यम से पश्चिमी प्रभुत्व का विरोध किया
  • दबाव के विरुद्ध सहनशीलता: दोनों राष्ट्रों को प्रतिबंधों और शत्रुता का सामना करना पड़ा, लेकिन उन्होंने संप्रभुता तथा पहचान को संरक्षित रखा।

न्यायसंगत वैश्विक व्यवस्था के लिए साझा दृष्टिकोण:

  • दक्षिण-दक्षिण सहयोग: भारत और ईरान वैश्विक दक्षिण की एकजुटता को बढ़ावा दे सकते हैं।
  • ब्रिक्स की भूमिका: ब्रिक्स पश्चिमी ढाँचों के विकल्प के रूप में कार्य कर सकता है |
  • परिवर्तनकारी संपर्क: अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (INSTC), यूरेशिया, अफ्रीका और पश्चिम एशिया में संपर्क को मजबूत करता है।
  • मानवीय सिद्धांत: साझा मूल्यों के माध्यम से एक न्यायसंगत, सहभागी और मानवीय व्यवस्था का निर्माण किया जा सकता है।

फिलिस्तीन समस्या:

  • वैश्विक दक्षिण की मुख्य चिंता: फिलिस्तीन आधिपत्य और वर्चस्व के खिलाफ सबसे प्रमुख संघर्ष है।
  • प्रतिरोध का प्रतीक: फिलिस्तीनी युद्ध वैश्विक दक्षिण के उत्पीड़न का प्रतिरोध करने के अधिकार का प्रतिनिधित्व करती है।
  • विकास का अधिकार: ईरान द्वारा शांतिपूर्ण परमाणु ऊर्जा की रक्षा दक्षिण के प्रगति के अधिकार को प्रतिबिंबित करती है।

रणनीतिक विकल्प के रूप में ब्रिक्स और INSTC:

  • पश्चिमी प्रभुत्व का प्रतिकार: ब्रिक्स प्रतिबंधों, व्यापार युद्ध और डॉलर के प्रभुत्व को चुनौती देता है।
  • समावेशन का वादा: यह एक स्वतंत्र, लोकतांत्रिक और भागीदारीपूर्ण व्यवस्था प्रदान करता है।
  • सभ्यतागत आधार: INSTC यूरेशिया, भारत, अफ्रीका और पश्चिम एशिया को जोड़ता है।
  • क्षेत्रीय स्थिरता: यह गलियारा शांति सुनिश्चित करता है और पश्चिमी व्यापार मार्गों पर निर्भरता कम करता है।

पश्चिम और दक्षिण एशिया में अमेरिकी हस्तक्षेप:

  • पश्चिम एशिया में अस्थिरता: अमेरिका ने ज़ायोनिज़्म का समर्थन किया और फिलिस्तीन, लेबनान, इराक, सीरिया, यमन तथा ईरान में अस्थिरता को बढ़ावा दिया।
  • ईरान का सभ्यतागत प्रतिरोध: ईरान ने हस्तक्षेप के विरुद्ध संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा की।
  • दक्षिण एशिया में आतंकवाद: अमेरिका ने रणनीतिक लाभ के लिए आतंकवादी समूहों का निर्माण तथा विस्तार किया।
  • चयनात्मक हस्तक्षेप: वाशिंगटन ने अपने हितों के आधार पर चरमपंथियों से युद्ध किया और उन्हें सशक्त बनाया।

एक सभ्यतागत भविष्य की ओर:

  • मानवता एक निर्णायक मोड़ पर है, जहाँ उभरती शक्तियाँ और प्राचीन सभ्यताएँ वैश्विक व्यवस्था को पुनर्परिभाषित कर रही हैं। भारत और ईरान, सभ्यतागत बुद्धिमत्ता और रणनीतिक स्वायत्तता के माध्यम से न्याय, समानता और संप्रभुता पर आधारित भविष्य का निर्माण कर सकते हैं।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न

“मौजूदा पश्चिमी नेतृत्व वाली वैश्विक व्यवस्था अनेक चुनौतियों का सामना कर रही है। इन चुनौतियों पर चर्चा कीजिए और स्पष्ट कीजिए, कि भारत और ईरान, दक्षिण-दक्षिण सहयोग के माध्यम से एक न्यायसंगत तथा समतामूलक वैश्विक व्यवस्था को आकार देने में किस प्रकार योगदान दे सकते हैं।

(10 अंक, 150 शब्द)

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