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भारत और दुर्लभ मृदा तत्व (REE)

Lokesh Pal December 25, 2025 05:00 9 0

संदर्भ:

भारत ने एक एकीकृत, 6,000 मीट्रिक टन प्रति वर्ष (MTPA) क्षमता वाली ‘दुर्लभ मृदा स्थायी चुंबक’ निर्माण इकाई स्थापित करने के लिए 7,280 करोड़ रुपये की योजना को स्वीकृति दी है।

दुर्लभ मृदा तत्वों (REEs) के बारे में:

  • परिभाषा: REE आवर्त सारणी के 17 धात्विक तत्वों का एक समूह है, जिसमें पृथ्वी की पर्पटी (Crust) में पाए जाने वाले 15 लैंथेनाइड्स (Lanthanides – लैंथेनम से लेकर लुटेटियम तक), स्कैंडियम और यट्रियम शामिल हैं।
  • दुर्लभता का कारण: ये तत्व वास्तव में अपनी उपलब्धता में दुर्लभ नहीं हैं, बल्कि ये आर्थिक रूप से व्यवहार्य और संकेंद्रित भंडारों के रूप में दुर्लभ हैं। अपने समान रासायनिक गुणों के कारण इन्हें एक-दूसरे से पृथक करना कठिन होता है।

REEs का महत्त्व:

  • मात्रा से अधिक सुभेद्यता: दुर्लभ मृदा तत्वों की कुल मात्रा बहुत अधिक नहीं है, लेकिन कुछ ‘महत्वपूर्ण खनिज’ स्वच्छ ऊर्जा और उन्नत प्रौद्योगिकियों के लिए अपरिहार्य इनपुट हैं।
  • हरित संक्रमण के प्रवर्तक: REE उच्च दक्षता वाले विद्युतीकरण, नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन और नई ऊर्जा अर्थव्यवस्था को सक्षम बनाकर वैश्विक ‘हरित संक्रमण’ का आधार बनते हैं।
  • रणनीतिक अनुप्रयोग: ये इलेक्ट्रिक वाहन (EV) मोटर, पवन टर्बाइन जनरेटर, बैटरी सिस्टम, रक्षा उपकरण और उन्नत इलेक्ट्रॉनिक्स के निर्माण के लिए अपरिहार्य हैं।

REEs की पर्यावरणीय विडंबना:

  • स्वच्छ तकनीक, दोषपूर्ण निष्कर्षण: जहाँ ये इलेक्ट्रिक वाहनों और नवीकरणीय ऊर्जा के लिए आवश्यक हैं, वहीं REE का निष्कर्षण और प्रसंस्करण विषाक्त अपशिष्ट, भू-जल संदूषण और विकिरण संकट उत्पन्न करता है।
  • मुख्य दुविधा: यह संसाधन-गहन और पर्यावरण को नुकसान पहुँचाने वाले खनन के माध्यम से पर्यावरणीय स्थिरता प्राप्त करने का एक ‘विरोधाभास’ उत्पन्न करता है, जो संधारणीय निष्कर्षण, पुनर्चक्रण और ‘चक्रीय अर्थव्यवस्था’ की आवश्यकता पर बल देता है।

बाधा — चीन का प्रभुत्व (The Bottleneck):

  • आपूर्ति श्रृंखला का अवरोध बिंदु: मुख्य बाधा उच्च-प्रदर्शन वाले स्थायी चुंबकों, विशेष रूप से नियोडिमियम-आयरन-बोरॉन (NdFeB) चुंबकों में है, जो EV मोटर्स और पवन टर्बाइनों के लिए महत्वपूर्ण हैं।
  • आघात का संचरण: जब आपूर्ति में व्यवधान आता है, तो केवल REE ही नहीं, बल्कि ये रणनीतिक चुंबक आगत ही अर्थव्यवस्थाओं में आर्थिक आघात का संचार करते हैं।
  • खनन विस्तार की सीमाएं: केवल नई दुर्लभ मृदा खदानें खोलने से आपूर्ति सुरक्षा सुनिश्चित नहीं होती है, क्योंकि देश प्रायः शोधन, पृथक्करण और चुंबक निर्माण के लिए दूसरों पर निर्भर रहते हैं।
  • चीन कारक: चीन REE मूल्य श्रृंखला (Value chain) पर प्रभावी है, जो वैश्विक शोधन और प्रसंस्करण क्षमता के 80-90% को नियंत्रित करता है। अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में खनन गतिविधियों के बावजूद, चीन पृथक्करण प्रौद्योगिकियों और उच्च-मूल्य वाले स्थायी चुंबक निर्माण जैसे महत्वपूर्ण चरणों में अग्रणी है।

भारत का 2025 का नीतिगत बदलाव:

  • खनन से विनिर्माण की ओर: 2025 के उत्तरार्ध में, भारत ने खनन पर संकीर्ण ध्यान देने के स्थान पर चुंबक निर्माण को प्राथमिकता देकर अपनी महत्वपूर्ण खनिज रणनीति को पुनर्गठित किया है।
  • एकीकृत चुंबक निर्माण योजना: सरकार ने प्रति वर्ष 6,000 टन ‘सिंटर्ड दुर्लभ मृदा स्थायी चुंबक’ (Sintered rare-earth permanent magnets) का उत्पादन करने में सक्षम एक एकीकृत पारिस्थितिकी तंत्र बनाने के लिए ₹7,280 करोड़ की योजना प्रारंभ की है।
  • आयात निर्भरता कम करना: इस पहल का उद्देश्य उच्च प्रदर्शन वाले चुंबकों के लिए आयात पर निर्भरता को कम करना है, जो भारत की स्वच्छ ऊर्जा और इलेक्ट्रॉनिक्स आपूर्ति श्रृंखलाओं में एक बड़ी कमजोरी है।
  • डाउनस्ट्रीम औद्योगिक गहनता: इस नीति से इलेक्ट्रिक वाहनों, पवन ऊर्जा घटकों और उन्नत इलेक्ट्रॉनिक्स में ‘डाउनस्ट्रीम’ विनिर्माण को गति मिलने की उम्मीद है।

भारत के समक्ष चुनौतियाँ:

  • मोनाजाइट-परमाणु ऊर्जा जुड़ाव: भारत के REE बड़े पैमाने पर थोरियम और अन्य परमाणु-लिंक्ड खनिजों के साथ तटीय रेत के भंडारों में पाए जाते हैं। इसके कारण यह क्षेत्र एक सख्त शासन व्यवस्था के अधीन है, जिसमें परमाणु ऊर्जा विभाग (DAE), इंडियन रेयर अर्थ्स लिमिटेड (IREL), नियामकों और स्थानीय समुदायों के बीच समन्वय की आवश्यकता होती है।
  • पर्यावरणीय और सामाजिक शासन (ESG): अपशिष्ट प्रबंधन, विकिरण सुरक्षा और सामुदायिक सहभागिता को मुख्य औद्योगिक आगत के रूप में माना जाना चाहिए, न कि केवल अनुपालन के मुद्दों के रूप में।
  • लैब-टू-लैंड अंतराल: हालांकि ‘राष्ट्रीय महत्वपूर्ण खनिज मिशन’ ने 2031 तक अन्वेषण परियोजनाओं का विस्तार किया है, लेकिन भारत को भूवैज्ञानिक ज्ञान को व्यावसायिक पृथक्करण और विनिर्माण क्षमता में परिवर्तित करना होगा।
  • बाजार व्यवहार्यता: EV और इलेक्ट्रॉनिक्स फर्मों के साथ दीर्घकालिक ‘ऑफटेक समझौतों’ के माध्यम से चुंबक निर्माण को वित्तीय रूप से व्यवहार्य बनाना और दुर्लभ तत्वों पर निर्भरता कम करने के लिए नवाचार करना एक बड़ी चुनौती है।

निष्कर्ष:

हरित संक्रमण का अगला चरण उन देशों को पुरस्कृत करेगा जो आपूर्ति श्रृंखलाओं का विस्तार कर सकते हैं, पर्यावरणीय अनुपालन से समझौता नहीं करते और जोखिम को केंद्रित करने के स्थान पर वितरित करते हैं। भारत को अपनी नीति और प्रयोजन को पर्यावरणीय विश्वसनीयता के साथ औद्योगिक क्षमता में बदलना चाहिए।

मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न

प्रश्न: दुर्लभ मृदा तत्व (REE) जलवायु लक्ष्यों, औद्योगिक नीति और वैश्विक राजनीति के एक अजीब चौराहे पर खड़े हैं। ये प्रतिच्छेदन कारक भारत के लिए घरेलू दुर्लभ मृदा तत्व आपूर्ति श्रृंखला विकसित करने में चुनौतियाँ और अवसर दोनों कैसे प्रस्तुत करते हैं?

(15 अंक, 250 शब्द)

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