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भारत और हाई सीज़ संधि

Lokesh Pal July 11, 2024 05:30 102 0

संदर्भ:

हाल ही में भारत सरकार ने इस बात का जिक्र किया है कि वह शीघ्र ही हाई सीज़ संधि पर हस्ताक्षर करेगी तथा उसका अनुसमर्थन करेगी, जो महासागरों की पारिस्थितिकीय को बनाए रखने के लिए एक नई अंतरराष्ट्रीय कानूनी संरचना है।

प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: हाई सीज़ संधि, विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र, समुद्र के कानूनों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन, समुद्री संरक्षित क्षेत्र, क्योटो प्रोटोकॉल आदि।

मुख्य परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: हाई सीज़ संधि के प्रमुख प्रावधान, हाई सीज़ संधि के संभावित प्रभाव, पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA) इत्यादि।

 

भारत हाई सीज़ संधि का अनुमोदन करेगा:

  • पिछले वर्ष सम्पन्न की गई इस संधि का मुख्य उद्देश्य प्रदूषण को कम करना तथा समुद्री जल में जैव विविधता और अन्य समुद्री संसाधनों का संरक्षण और सतत उपयोग को बढ़ावा देना है।
  • हाई सीज़ किसी भी देश के राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र से बाहर के क्षेत्र होते हैं, जिसके कारण इस संधि को राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र से बढकर जैव विविधता समझौते (BBNJ) के रूप में भी जाना जाता है।
  • इसे औपचारिक रूप से राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र के अलावा अन्य क्षेत्रों की समुद्री जैव विविधता के संरक्षण और सतत उपयोग पर समझौता कहा जाता है।
  • अधिकांश देशों की तरह भारत भी लगभग 20 वर्षों की वार्ता में शामिल था, जिसके परिणामस्वरूप पिछले वर्ष संधि को अंतिम रूप दिया गया। 
  • इस प्रकार, संधि पर हस्ताक्षर और अनुसमर्थन का निर्णय अप्रत्याशित नहीं है । 
  • 91 देश पहले ही इस संधि पर हस्ताक्षर कर चुके हैं, जबकि आठ देशों ने इसका अनुसमर्थन भी कर दिया है।

पृष्ठभूमि :

  • हाई सीज़ संधि की तुलना इसके महत्त्व और संभावित प्रभाव के आधार पर जलवायु परिवर्तन पर वर्ष 2015 के पेरिस समझौते से की जाती है।
  • यह संधि केवल उन महासागरों से संबंधित है जो किसी देश के राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र से बाहर हैं।
  • आमतौर पर, राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र समुद्र तट से 200 समुद्री मील (370 कि.मी.) तक फैले होते हैं, जिसे विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र या EEZ कहा जाता है। 
  • प्रत्येक देश के EEZ के बाहर के क्षेत्रों को हाई सीज़ या अंतरराष्ट्रीय जल क्षेत्र के रूप में जाना जाता है। 
  • ये कुल महासागरीय क्षेत्र का लगभग 64%, यानि मोटे तौर पर दो-तिहाई, हिस्सा हैं और इन्हें वैश्विक साझा संपत्ति माना जाता है।
  • यह क्षेत्र किसी विशेष राष्ट्र अथवा देश के अधिकार क्षेत्र में नहीं आते हैं और इस क्षेत्र में सभी देशों को नौवहन, उड़ान, आर्थिक गतिविधियों, वैज्ञानिक अनुसंधान या समुद्र के नीचे केबल बिछाने इत्यादि जैसे बुनियादी ढाँचे के निर्माण के लिए समान अधिकार प्राप्त है।
  • लेकिन चूँकि ये क्षेत्र किसी एक विशेष देश अथवा राष्ट्र के अधिकार क्षेत्र में नहीं आते हैं, जिसकी वजह से खुले समुद्र भी किसी की जिम्मेवारि नहीं बनती है कि वे इनकी रक्षा सुनिश्चित करें। 
  • परिणामस्वरूप, इनमें से कई क्षेत्र संसाधनों के अतिदोहन, जैव विविधता की हानि, प्लास्टिक के डंपिंग सहित प्रदूषण, महासागरीय अम्लीकरण तथा कई अन्य समस्याओं से ग्रस्त हैं। 
  • संयुक्त राष्ट्र के अनुमान के अनुसार, वर्ष 2021 में लगभग 17 मिलियन टन प्लास्टिक महासागरों में डंप किया गया और आने वाले वर्षों में इसके बढ़ने की ही संभवना है।
  • ऐसा नहीं है कि महासागरों के लिए  कोई अंतरराष्ट्रीय शासन तंत्र नहीं है।
  • 1982 का संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून सम्मेलन, या UNCLOS, एक व्यापक अंतरराष्ट्रीय कानून है जो हर जगह समुद्रों और महासागरों पर वैध व्यवहार और उनके उपयोग के लिए व्यापक रूपरेखा निर्धारित करता है ।
  • यह महासागरों में गतिविधियों के संबंध में राष्ट्रों के अधिकारों और कर्तव्यों को परिभाषित करता है तथा संप्रभुता, मार्ग पर अधिकार और विशेष आर्थिक उपयोग के अधिकार जैसे मुद्दों को भी प्रबंधित करता है। 
  • प्रादेशिक जल और EEZ का सीमांकन UNCLOS का परिणाम है।
  • UNCLOS समुद्री संसाधनों की न्यायसंगत पहुँच और उपयोग, तथा जैव विविधता एवं समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा और संरक्षण के लिए सामान्य सिद्धांत भी निर्धारित करता है।
  • लेकिन इसमें यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि इन उद्देश्यों को कैसे प्राप्त किया जाएगा। 
  • इसी वजह से हाई सीज़ संधि को स्वीकार किया गया है, और इसके कार्यान्वयन की बात की जा रही है | 
  • एक बार लागू हो जाने बाद से यह संधि UNCLOS के तहत कार्यान्वयन समझौतों में से एक के रूप में कार्य करेगी।

संरक्षण और पहुँच:

  • हाई सीज़ संधि का उद्देश्य तीन मूलभूत उद्देश्यों को प्राप्त करना है: 
    • समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र का संरक्षण एवं सुरक्षा।
    • समुद्री आनुवंशिक संसाधनों से लाभ का निष्पक्ष एवं न्यायसंगत बंटवारा।
    • समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को संभावित रूप से प्रदूषित या नुकसान पहुँचाने वाली किसी भी गतिविधि के लिए अनिवार्य पर्यावरणीय प्रभाव आकलन की प्रथा की स्थापना।
  • इसका चौथा उद्देश्य, विकासशील देशों को क्षमता निर्माण और समुद्री प्रौद्योगिकियों का हस्तांतरण भी है
  • इससे उन्हें महासागरों के लाभों का पूरा उपयोग करने में मदद मिलेगी, साथ ही उनके संरक्षण में भी योगदान मिलेगा।
  • समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा और संरक्षा, राष्ट्रीय उद्यानों या वन्यजीव रिजर्वों की तरह,  समुद्री संरक्षित क्षेत्रों (MPA) के सीमांकन के माध्यम से प्राप्त किया जाना चाहिए।
  • M.P.A. में गतिविधियों को विनियमित किया जाएगा, तथा संरक्षण के प्रयास भी किए जाएंगे। 
  • कुछ संभावित क्षेत्रों की पहचान पहले ही की जा चुकी है, जिन्हें M.P.A. के रूप में मान्यता दी जा सकती है, तथा आने वाले समय में कई और क्षेत्रों को भी इसमें शामिल किए जाने की संभावना है।
  • महासागरों में बहुत बड़ी संख्या में विविध प्रकार के जीव निवास करते हैं, जिनमें से कई मानव के लिए अत्यधिक मूल्यवान हो सकते हैं। 
  • ये समुद्री जीव विकास के बारे में अंतर्दृष्टि प्रदान कर सकते हैं, और उनमें से कुछ दवा की खोज में भी उपयोगी हो सकते हैं, जिसकी वजह से ये व्यावसायिक रूप से लाभदायक हो सकते हैं। 
  • हाई सीज़ संधि का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि इन समुद्री संसाधनों से प्राप्त लाभ, चाहे वैज्ञानिक अनुसंधान के माध्यम से हो अथवा वाणिज्यिक दोहन के माध्यम से, सभी के मध्य समान रूप से साझा किया जाए। 
  • संधि में यह माना गया है कि इन संसाधनों तक पहुँचने या इनके लाभों में लागत शामिल हो सकती है, लेकिन यह स्पष्ट किया गया है कि इन पर किसी भी देश का मालिकाना अधिकार नहीं हो सकता।
  • संधि में यह भी अनिवार्य किया गया है कि ऐसी किसी भी गतिविधि के लिए पूर्व पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA) किया जाए जो समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र या संरक्षण प्रयासों को  संभावित रूप से प्रदूषित या नुकसान पहुँचाती हो।
  • पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA) को सार्वजनिक किए जाने की आवश्यकता है। 
  • यदि प्रभाव उच्च समुद्र में होने की आशंका हो तो राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र के भीतर की गतिविधियों के लिए भी EIA किया जाना चाहिए।

विशेषताएँ :

  • किसी भी अन्य अंतरराष्ट्रीय कानून की तरह, हाई सीज़ संधि तभी लागू होगी जब एक निश्चित न्यूनतम संख्या में देश इसकी पुष्टि करेंगे या इसमें शामिल होंगे। इस संधि के मामले में यह संख्या 60 है। 
  • 60वें अनुसमर्थन प्रस्तुत होने के 120 दिन बाद यह संधि एक अंतरराष्ट्रीय कानून बन जाएगा।
  • अनुसमर्थन वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा कोई देश किसी अंतरराष्ट्रीय कानून के  प्रावधानों से कानूनी रूप से आबद्ध होने के लिए सहमत होता है ।
  • यह किसी अंतरराष्ट्रीय कानून पर  हस्ताक्षर करने से अलग है।
  • हस्ताक्षर करना यह दर्शाता है कि देश संबंधित अंतरराष्ट्रीय कानून के प्रावधानों से सहमत है, तथा उसका पालन करने को तैयार है। 
  • लेकिन जब तक वह इसका अनुमोदन नहीं कर देता, जिसकी प्रक्रिया विभिन्न देशों में अलग-अलग होती है, तब तक वह उस कानून का पालन करने के लिए कानूनी रूप से बाध्य नहीं है।
  • जिन देशों में संसद जैसी विधायी संस्थाएँ हैं, वहाँ अनुसमर्थन के लिए आमतौर पर विधायिका की सहमति की आवश्यकता होती है। 
  • अन्य देशों में, इसे केवल कार्यकारी अनुमोदन या परिग्रहण की आवश्यकता हो सकती है। यह संभव है कि कोई देश किसी संधि पर हस्ताक्षर तो कर दे, लेकिन उसका अनुमोदन न करे। उस स्थिति में, उसे संधि का पक्षकार नहीं माना जाता। 
  • उदाहरण के लिए, संयुक्त राज्य अमेरिका ने पेरिस समझौते के पूर्ववर्ती क्योटो प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर किए, लेकिन उसने इसका अनुसमर्थन नहीं किया, क्योंकि इसकी विधायिका के ऊपरी सदन सीनेट ने इसे अपनी स्वीकृति नहीं दी थी।

निष्कर्ष:

भारत द्वारा हाई सीज़ संधि का अनुसमर्थन, समुद्री जैव विविधता के संरक्षण, संसाधनों के समान बंटवारे को सुनिश्चित करने तथा अंतरराष्ट्रीय जल में पर्यावरणीय प्रभाव आकलन को लागू करने के वैश्विक प्रयासों को उजागर करता है।

मुख्य परीक्षा पर आधारित प्रश्न:

प्रश्न: हाई सीज़ संधि वैश्विक महासागर शासन की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इसके प्रमुख प्रावधानों और समुद्री संरक्षण तथा महासागरीय संसाधनों के सतत उपयोग पर संभावित प्रभावों का आलोचनात्मक विश्लेषण करें। (15 अंक, 250 शब्द)

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