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चीन की जीडीपी में गिरावट से भारत को लाभ (India benefits from decline in China’s GDP)

Samsul Ansari January 31, 2024 11:12 157 0

संदर्भ

यह लेख इस बात पर प्रकाश डालता है कि चीन की सापेक्ष अर्थव्यवस्था में आ रही गिरावट से क्या भारत को वैश्विक अर्थव्यवस्था के नेतृत्व  का अवसर प्राप्त हो सकता है।

मुख्य परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: चीन की आर्थिक गिरावट का भारत एवं विश्व पर प्रभाव।

चीन का विकास पथ

  • विश्व GDP में हिस्सेदारी : विश्व की जीडीपी में चीन की हिस्सेदारी वर्ष 1990 में लगभग 2% से बढ़कर वर्ष 2021 में लगभग 18.4% हो गई और अब यह घटकर 17% रह गई है।
    • यह अनुमानित है कि जनसांख्यिकी में गिरावट, बाजार विरोधी हस्तक्षेप, ऋण के उच्च स्तर और श्रमिक उत्पादकता में गिरावट आदि के कारण चीन की GDP हिस्सेदारी में गिरावट जारी रहेगी।
  • विश्व की कार्यशील आयु वाली आबादी में हिस्सा: दुनिया की कामकाजी उम्र वाली आबादी में चीन की हिस्सेदारी लगभग एक दशक से गिर रही है और यह फिलहाल  लगभग 19% है।
  • साथ ही अगले तीन दशकों में इसके  घटकर 10% रह जाने की संभावना व्यक्त की जा रही है।
  • वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में जहाँ चीन की हिस्सेदारी घट रही है वहीं अन्य देशों की हिस्सेदारी बढ़ रही है :
  • भारत, इंडोनेशिया, मैक्सिको, ब्राजील और पोलैंड जैसे कई उभरते बाजारों द्वारा  विगत वर्ष  वैश्विक अर्थव्यवस्था के विस्तार में लगभग आधे का योगदान दिया गया था।
  • अमेरिका द्वारा काफी प्रभावशाली दर से विकास करने के कारण  वैश्विक अर्थव्यवस्था के शेष आधे हिस्से का अधिकांश हिस्सा अमेरिका की अर्थव्यवस्था के पास है। 
  • विगत वर्ष, अमेरिका द्वारा अपने सकल घरेलू उत्पाद में 1.6 ट्रिलियन डॉलर की वृद्धि दर्ज की गई, जो दक्षिण कोरियाई अर्थव्यवस्था के आकार के बराबर आँकी गई है।

अमेरिकी जीडीपी से चीन के आगे निकलने के संबंध में

  • निकट भविष्य में संभव नहीं: अभी तक परंपरागत रूप से यह माना जाता था कि चीन जल्द ही अमेरिकी जीडीपी से आगे निकल जाएगा लेकिन वर्तमान परिदृश्य को देखते हुए यह अब निकट भविष्य में संभव नहीं लगता।
  • नवीनतम आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2023 में अमेरिकी अर्थव्यवस्था के 28 ट्रिलियन डॉलर और चीन की अर्थव्यवस्था के 18 ट्रिलियन डॉलर होने की बात कही गई है और आगे का अनुमान है कि चीन की GDP में अभी और गिरावट होने की भी संभावना है।
  • शक्तिपूर्ण दृष्टिकोण का प्रभाव: क्षेत्रीय मुद्दों पर अपने पड़ोसियों के प्रति चीन के बलपूर्ण दृष्टिकोण ने अमेरिका के लिए अपने गठबंधनों को पुनर्जीवित करने और नई एशियाई साझेदारी निर्मित करने के लिए अवसर तथा रास्ता प्रदान कर दिया है।
  • व्यावहारिक परिणाम: अमेरिका फिर से अपनी मजबूत आर्थिक स्थिति हासिल कर रहा है और साथ ही वह वैश्विक भू-पटल पर राजनीतिक रूप से भी अधिक आश्वस्त है।
  • चीन और अमेरिका के बदलते आर्थिक परिदृश्य यह संकेत देते हैं कि विश्व के द्वि-ध्रुवीय या G2 विश्व में रूपांतरित होने की अभी संभावना नहीं है।

वर्तमान वैश्विक अर्थव्यवस्था परिदृश्य के एशिया के निहितार्थ

  • पूर्ववर्ती चीन केंद्रित एशिया की धारणा: हाल-फिलहाल तक, चीन केंद्रित एशिया की धारणा जरुरी लगती थी क्योंकि लगभग हमेशा से चीन की अर्थव्यवस्था में वृद्धि उसके अधिकांश पड़ोसियों की तुलना में अधिक रही है। इन परिदृश्यों द्वारा क्षेत्रीय राजनीति में इन विचारों को बल मिला कि एशिया को चीन आर्थिक शक्ति के साथ सामंजस्य स्थापित करना चाहिए और उसके प्रभुत्व वाली क्षेत्रीय व्यवस्था को स्वीकार करना चाहिए।
  • वर्तमान परिदृश्य: चीन की आर्थिकी में आई सापेक्षिक गिरावट से पता चलता है कि एशिया के पास अन्य विकल्प भी मौजूद हैं। भारत, इंडोनेशिया, वियतनाम और फिलीपींस में तीव्र गति से हो रहे आर्थिक विकास से पता चलता है कि “बहुध्रुवीय एशिया” की अवधारणा वास्तविक रूप से संभव हो सकती है।
  • हालाँकि चीन की अर्थव्यवस्था, एशिया की सबसे महत्त्वपूर्ण अर्थव्यवस्था बनी रहेगी I

भारत के लिए महत्त्वपूर्ण सीख

  • आर्थिक अंतर में कमी लाना: चीन अर्थव्यवस्था की धीमी वृद्धि और भारत के तीव्र आर्थिक विकास का अर्थ यह होगा कि भारत द्वारा चीन के साथ अपने आर्थिक अंतर में लगातार कमी लाई जा सकती है।
  • आत्मविश्वास: यदि भारत अपनी राष्ट्रीय क्षमताओं के निर्माण को जारी रखने के साथ क्वाड और अन्य क्षेत्रीय गठबंधनों को मजबूत करने का प्रयास करे, तो वह चीनी शक्ति का अधिक आत्मविश्वास के साथ सामना कर सकता है।
  • पुनर्विचार का समय: भारत को शक्ति के वैश्विक वितरण और उसके परिणामों से संबंधित अपनी कई धारणाओं पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है।
  • अमेरिका के संबंध में: भारत को यह बात समझ लेनी चाहिए कि फिलहाल अमेरिका का पतन संभव नहीं है।
  • चीन के संबंध: हालाँकि चीन का उदय प्रभावशाली रहा है, लेकिन वर्तमान में उसकी शक्तियों की सीमाएँ भी विश्व के समक्ष देखने को मिल रही हैं।
  • संतुलन के संबंध में: चीन के एशियाई पड़ोसियों में हुई आर्थिक वृद्धि ने आंतरिक रूप से अधिक संतुलित क्षेत्र की स्थापना संबंधी संभावनाओं को बढ़ाया है।

निष्कर्ष

चीन की जीडीपी में गिरावट भारत के लिए एक अवसर के रूप में सामने आई  है जिसका लाभ उठाने की त्वरित आवश्यकता है। भारत को शांत रह कर अपनी ताकत में वृद्धि के साथ-साथ उस तरह के राष्ट्रवादी अहंकार से बचने की जरूरत है, जिसने चीन के आर्थिक गतिविधि को कमजोर बना दिया है।

                                                                                    News Source: The Indian Express

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