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भारत-चीन संबंध तथा उसमें अमेरिका की विशिष्ट भूमिका

Lokesh Pal March 25, 2025 05:00 44 0

“अगर शेर बोल सकता, तो हम उसे समझ नहीं पाते।” – लुडविग विट्गेन्स्टाइन

संदर्भ:

हाल ही में, पीएम मोदी ने चीन पर वर्षों में अपनी सबसे गर्मजोशी भरी टिप्पणी की, एक स्थिर, सहयोगी संबंध बनाने के लिए बातचीत की वकालत की।

भारत-चीन संबंधों की पृष्ठभूमि

  • डोकलाम गतिरोध (2017): 2017 में 73 दिनों का सैन्य गतिरोध तब उत्पन्न हुआ, जबकि चीनी सैनिकों ने डोकलाम क्षेत्र में सड़क बनाने का प्रयास किया, जो चीन और भूटान के बीच विवादित है लेकिन भारत के लिए रणनीतिक चिंता का विषय है| व्यापक कूटनीतिक वार्ता के पश्चात दोनों पक्ष अलग हो गए।
  • गलवान घाटी संघर्ष (2020): लद्दाख में चीन की घुसपैठ के कारण हिंसक झड़पें हुईं, जिसके परिणामस्वरूप 20 भारतीय सैनिक मारे गए।
    • सैन्य तनाव बढ़ गया, जिससे दोनों देशों के मध्य कूटनीतिक गतिरोध उत्पन्न हो गया।
  • वुहान अनौपचारिक शिखर सम्मेलन (2018): डोकलाम संकट के बाद, दोनों नेताओं ने संबंधों को पुनः स्थापित करने और रणनीतिक संचार पर बल देने के लिए वुहान में वार्ता की।
  • चेन्नई अनौपचारिक शिखर सम्मेलन (2019): चर्चा व्यापार, निवेश और वैश्विक शासन के मुद्दों पर केंद्रित थी, जो चल रही रणनीतिक चिंताओं के बावजूद चीन के साथ जुड़ने की भारत की आकांक्षा को दर्शाता है।
  • रणनीतिक हेजिंग: मोदी की टिप्पणियों के कुछ दिनों बाद, भारत के चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ ने क्वाड भागीदारों (ऑस्ट्रेलिया, जापान, अमेरिका) के साथ वार्ता की, जिससे निरंतर रणनीतिक हेजिंग का संकेत मिला।

चीन के प्रति भारत के सकारात्मक दृष्टिकोण के कारण

  • मोदी युग की कूटनीति: यह स्पष्ट नहीं है, कि प्रधानमंत्री मोदी की टिप्पणी नीतिगत परिवर्तन का संकेत है या सिर्फ़ व्यवहार में बदलाव है। 
    • प्रारंभ में, वर्तमान केंद्र सरकार ने चीन के साथ घनिष्ठ संबंध बनाने की कोशिश की, नीतिगत संबंध सुनिश्चित करने के लिए शी जिनपिंग के साथ शिखर सम्मेलन आयोजित किए।
  • तनाव कम करना: सैन्य वार्ता के कारण कई संघर्ष स्थलों से सैनिकों की वापसी हुई। अक्तूबर 2024 में दोनों देश अंतिम दो घुसपैठ स्थलों से सैनिकों को वापस बुलाने पर सहमत हुए, जिससे संकट का औपचारिक समाधान हो गया।
    • राजनीतिक तनाव के बावजूद, द्विपक्षीय व्यापार में वृद्धि जारी रही, जो उच्चतम स्तर पर पहुँच गया।
  • आर्थिक विचार: भारत आर्थिक विकास को प्राथमिकता देता है और चीन के साथ लंबे समय तक सैन्य टकराव से बचने की कोशिश कर सकता है।
    • चीन की अर्थव्यवस्था भारत की तुलना में चार गुना बड़ी है, विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने स्थिर संबंधों की आवश्यकता पर बल दिया है।
  • नीति में अनिश्चितता: नई दिल्ली राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के वाशिंगटन के बदलते दृष्टिकोण पर नज़र रख रही है।
    • चीन पर ट्रम्प का आर्थिक दबाव (टैरिफ के माध्यम से) रक्षा क्षेत्र तक नहीं बढ़ा है, जिससे क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए अमेरिकी प्रतिबद्धता के बारे में अनिश्चितता बढ़ रही है।
  • बजट में कटौती: जापान और ताइवान को अमेरिकी रक्षा समर्थन पर निर्भर रहने की बजाय सैन्य व्यय बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करना। 
    • चीन और रूस को शामिल करते हुए वैश्विक रक्षा बजट में भारी कटौती का सुझाव देना।
  • अमेरिका-चीन समझौते की संभावना: ट्रम्प ने प्रतिद्वंद्वी शक्तियों के साथ समझौता करने में रुचि दिखाई है, जैसा कि उनके यूक्रेन शांति प्रस्ताव में रूसी रणनीतिक हितों का पक्ष लेते हुए देखा गया है।
    • इससे यह चिंता उत्पन्न होती है, कि वह वाणिज्यिक लाभ के लिए एशिया में अमेरिकी प्रभाव से समझौता करते हुए चीन के साथ इसी तरह की समझ पर वार्ता कर सकते हैं।
  • अविश्वसनीय: अमेरिकी प्राथमिकताओं में परिवर्तन से भारत के लिए एक रणनीतिक साझेदार के रूप में वाशिंगटन की विश्वसनीयता पर संदेह उत्पन्न होता है।
    • भारत अमेरिकी सुरक्षा गारंटी पर निर्भर नहीं है, लेकिन सीमा पर चीन की गतिविधियों की निगरानी में अमेरिकी खुफिया सहायता से लाभान्वित हुआ है।
    • अमेरिका के निरंतर समर्थन पर अनिश्चितता के साथ, भारत के पास चीन के साथ संबंधों को स्थिर करने और अधिक स्वतंत्र दृष्टिकोण अपनाने के पीछे अनेक वजहें हैं।

महत्त्वपूर्ण खनिज (Critical Minerals)

  • ये खनिज आधुनिक समय की आवश्यक प्रौद्योगिकियों के निर्माण खंड हैं और सीमित वैश्विक उत्पादन तथा भू-राजनीतिक कारकों के कारण आपूर्ति शृंखला में व्यवधान का खतरा है। 
    • उदाहरण के लिए, लिथियम, कोबाल्ट, निकल, तांबा, दुर्लभ पृथ्वी तत्त्व आदि।

अमेरिका, रूस-यूक्रेन संघर्ष को क्यों समाप्त करना चाहता है?

महत्त्वपूर्ण खनिजों में रणनीतिक रुचि

  • यूक्रेन की खनिज संपदा में लिथियम, टाइटेनियम, दुर्लभ पृथ्वी तत्त्व (आरईई), ग्रेफाइट, कोबाल्ट और निकल के विशाल भंडार शामिल हैं – ये सभी निम्नलिखित के लिए महत्त्वपूर्ण हैं:
    • स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकियाँ (ईवी, सौर पैनल, पवन टर्बाइन)
    • अर्द्धचालक और इलेक्ट्रॉनिक्स
    • एयरोस्पेस और रक्षा विनिर्माण
    • ये खनिज चीन पर अमेरिकी निर्भरता को कम करने के लिए आवश्यक हैं, जो कई महत्त्वपूर्ण खनिजों के लिए वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं पर प्रभावी है।
  • रूसी हित: रूस का पूर्वी यूक्रेन पर निरंतर नियंत्रण या अस्थिरता उसे प्रमुख खनिज-समृद्ध क्षेत्रों तक पहुँच प्रदान करेगी तथा पश्चिमी अर्थव्यवस्थाओं पर लाभ प्रदान करेगी।
  • यूएसए एजेंडा: इस प्रकार, यूक्रेन को स्थिर करना भविष्य के ऊर्जा और तकनीकी बाजारों पर चीन-रूस रणनीतिक नियंत्रण को रोकने में अमेरिकी हितों के अनुरूप है।

ट्रम्प का पुनर्संतुलन

  • द्विध्रुवीय व्यवस्था का पतन: सोवियत संघ के पतन के कारण एकध्रुवीय स्थिति उत्पन्न हुई, जिसमें अमेरिका एकमात्र महाशक्ति बन गया।
  • परिणाम: प्रतिसंतुलन की कमी के कारण अन्य उभरती शक्तियों (रूस, चीन) में नाराजगी पैदा हुई-
    • अमेरिकी कार्रवाइयों को आधिपत्यपूर्ण माना गया, जिसके कारण विरोध हुआ (उदाहरण के लिए, चीन का उदय तथा यूक्रेन, सीरिया में रूस की प्रमुखता)
    • रणनीतिक समानता की अनुपस्थिति के कारण क्षेत्रीय हथियारों की दौड़, साइबर युद्ध और कूटनीतिक टकराव हुए|
  • चीन और रूस: सैन्य संघर्षों को कम करने तथा क्षेत्रीय संतुलन के लिए जगह बनाने का समर्थन किया गया।
    • सैन्य रूप से चुनौती देने की बजाय विरोधियों के साथ रणनीतिक समझौते करना चाहता था|
    • हथियार नियंत्रण वार्ता के माध्यम से यू.एस.-रूस के बीच तनाव कम करने का प्रयास किया|
    • चीन के साथ व्यापार रियायतें और टैरिफ समायोजन की पेशकश की|

आगे की राह

  • संतुलित दृष्टिकोण: चीन के प्रति एक समझौतावादी दृष्टिकोण नीति निर्माताओं को सैन्य आधुनिकीकरण को प्राथमिकता न देने के लिए प्रेरित कर सकता है।
    • हालाँकि, पिछले एक दशक में भारत के रक्षा व्यय में सकल घरेलू उत्पाद के हिस्से के रूप में लगातार कमी आई है।
    • लद्दाख संकट ने भारत की सैन्य तैयारियों में कमियों को रेखांकित किया, फिर भी तत्काल सुधार और निवेश में देरी हो रही है।
  • निरंतर सैन्य निवेश: आधुनिकीकरण के लिए दीर्घकालिक योजना की आवश्यकता होती है, पनडुब्बियों और लड़ाकू विमानों जैसी क्षमताओं को विकसित होने में वर्षों, यहाँ तक कि दशकों का समय लगता है। 
    • रक्षा निवेश में देरी से प्रतिरोध कमज़ोर होता है, जिससे चीन का हौसला बढ़ सकता है।
  • संचालन सहयोग: अमेरिकी नीति में अनिश्चितताओं के बावजूद, भारत को क्वाड राष्ट्रों (अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया) जैसे भागीदारों के साथ सैन्य समन्वय को सुदृढ़ करना चाहिए।
    • समुद्र और स्थल पर संयुक्त अभ्यास भारत को कठोर गठबंधनों में शामिल किए बिना अंतर-संचालन और रणनीतिक समाधान को बढ़ाते हैं।

निष्कर्ष

चीन की आक्रामकता का ऐतिहासिक उदाहरण प्रदर्शित करता है, कि अकेले कूटनीति से स्थायी शांति सुनिश्चित नहीं की जा सकती। स्थिरता को विश्वसनीय बनाने के लिए, भारत को कूटनीतिक पहुँच के साथ-साथ स्थायी सैन्य ताकत भी दिखानी होगी। मज़बूत रक्षा दृष्टिकोण के बिना, स्थिरीकरण के प्रयास रणनीतिक समर्पण में बदल सकते हैं।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न 

चीन के प्रति भारत का दृष्टिकोण कूटनीतिक सुलह और रणनीतिक प्रतिरोध के बीच संतुलन कैसे बनाता है, इसकी जाँच कीजिए। आर्थिक अंतरनिर्भरता, सीमापार तनाव और बदलती वैश्विक शक्ति गतिशीलता के बीच इस दुहरी रणनीति की स्थिरता का मूल्यांकन कीजिए।

(15 अंक, 250 शब्द)

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