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भारत-ईरान संबंध (India-Iran relations)

Samsul Ansari January 20, 2024 11:10 193 0

संदर्भ

  • भारत एवं ईरान के मध्य वर्तमान में हो रहे उच्च स्तरीय आदान-प्रदान के दौरान भारत के विदेश मंत्री द्वारा हाल ही में ईरान का दौरा किया गया।
  • हाल ही में, पाकिस्तान द्वारा इस बात की घोषणा की गई है कि उसने ईरान के सिस्तान-बलूचिस्तान प्रांत में सशस्त्र समूहों के ठिकानों के खिलाफ “खुफिया ऑपरेशन” चलाया है।

मुख्य परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: भारत-ईरान संबंध- महत्त्व, चुनौतियाँ तथा आगे की राह।

इस यात्रा के मुख्य बिंदु:

  • समुद्री सुरक्षा चिंता: इस दौरान क्षेत्रीय समुद्री नौवहन के खतरों से जुड़ी चिंताओं के समाधान का प्रयास किया गया।
  • चाबहार बंदरगाह विकास योजना: भारत और ईरान के मध्य इस योजना से संबंधित एक नए समझौते पर हस्ताक्षर किया गया।
  • नया दीर्घकालिक समझौता उस मूल अनुबंध (वार्षिक रूप से नवीनीकृत) का स्थान लेगा, जिसके तहत पहले भारत का संचालन केवल चाबहार बंदरगाह स्थित शाहिद बेहेश्टी टर्मिनल तक ही सीमित था।
  • नए समझौते की वैधता दस साल तक की है और इसे स्वचालित रूप से बढ़ाया जा सकेगा।
  • संयुक्त परिवहन समिति का प्रस्ताव: इससे सहयोग बढ़ाने के क्रम में  मदद मिलेगी तथा यह पारगमन क्षमताओं में वृद्धि कर उत्तर-दक्षिण गलियारे के उपयोग को सक्षम बना सकेगा।
  • गाजा की स्थिति पर मानवीय पहलू: भारत द्वारा गाजा की अत्यधिक दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति के बारे में चिंताएँ व्यक्त की गई हैं, जिसमें नागरिक जीवन, विशेषकर महिलाओं और बच्चों के संबंध में हुई क्षति पर विशेष ध्यान दिया गया है।

चर्चा के अन्य क्षेत्र: 

  • आतंकवाद और संगठित अपराध का मुकाबला। 
  • अफगानिस्तान में स्थिरता और सुरक्षा स्थापित करना। 
  • अंतरराष्ट्रीय व्यापार को मजबूत करना विशेषकर राष्ट्रीय मुद्राओं के संबंध में।

भारत-ईरान द्विपक्षीय संबंध

  • ऐतिहासिक संबंध: प्राचीन काल में सिंधु घाटी सभ्यता के समय से दोनों देशों के मध्य संबंध देखे हैंI फारस की खाड़ी और अरब सागर के माध्यम से दक्षिणी ईरान और भारत के तट के मध्य व्यापारिक संबंध स्थापित थे।
  • राजनीतिक आयाम: 15 मार्च, 1950 को भारत एवं ईरान के मध्य एक ‘मैत्री संधि’ पर हस्ताक्षर किए गए I तेहरान घोषणा’ के अंतर्गत  “न्यायसंगत, बहुलवादी और सहकारी अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था” के लिए एक दृष्टिकोण साझा किया गया।
  • भू-रणनीतिक स्थिति: ईरान की विशेष भौगोलिक स्थिति भारत को मध्य एशिया, अफगानिस्तान और यूरेशिया के बाजारों तक पहुँच बनाने में सहूलियत प्रदान करती है।
  • ऊर्जा सुरक्षा: ईरान, गैस भंडार के मामले में विश्व में दूसरे स्थान पर है I गैस भंडार की यह उपलब्धता वर्ष  2030 तक ईंधन के विविधीकरण, डीकार्बोनाइजेशन और भारत के ऊर्जा संबंधी मिश्रण में गैस की हिस्सेदारी के लिए एक अवसर उपलब्ध कराती है।
  • आर्थिक संबंध: वर्ष 2022 में दोनों देशों के मध्य द्विपक्षीय व्यापार 2.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर था, जो वर्ष 2021 से 48% की हुई वृद्धि को दर्शाता है।
  • भारतीय निर्यात: ईरान को भारत से चीनी, मानव निर्मित स्टेपल फाइबर, विद्युत मशीनरी और कृत्रिम आभूषण आदि का निर्यात।
  • भारतीय आयात: ईरान से भारत को सूखे मेवे, रसायन और काँच के बर्तन आदि का आयात।
  • ईरान द्वारा  भारत को उन देशों की सूची में शामिल किया गया है, जिनके नागरिकों को यात्रा करने के लिए वीजा की आवश्यकता नहीं होगी।
  • दोनों देशों के लोगों के मध्य सांस्कृतिक संबंध: ईरान में वर्ष 2013 में भारतीय सांस्कृतिक केंद्र की स्थापना की गई थी और वर्ष 2018 में इसका नाम परिवर्तित कर स्वामी विवेकानंद सांस्कृतिक केंद्र (SVCC) कर दिया गया था I 
  • भारत द्वारा  हाल ही में नई शिक्षा नीति के तहत फारसी को नौ शास्त्रीय भाषाओं में से एक के रूप में शामिल करने का निर्णय लिया गया है।

चुनौतियाँ

  • ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंध: अमेरिकी प्रतिबंधों द्वारा ईरानी तेल निर्यात प्रभावित हुआ  है और इससे ईरान के दक्षिण-पूर्वी चाबहार बंदरगाह के विकास के संबंध में भारत-ईरानी सहयोग में भी बाधा उत्पन्न हुई है।
  • चीन फैक्टर: चीन ने 25 साल के व्यापक सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर करके ईरान के साथ अपने संबंधों को मजबूत किया है। अमेरिकी प्रतिबंधों के बावजूद चीन द्वारा लगातार ईरानी तेल की खरीद की जा रही है।
  • इजरायली फैक्टर: भारत के इजरायल के साथ करीबी रिश्ते हैं, जिसे देखते हुए ईरान के साथ भारत को अपने संबंधों को संतुलित करना एक चुनौतीपूर्ण कार्य हैI
  • सुरक्षा चिंता: ईरान द्वारा हमास, हिजबुल्लाह और हूती विद्रोही समूहों का समर्थन किया जाता रहा है। हाल ही में, ईरान द्वारा एक’MV कैंप प्लेटो’ टैंकर-को निशाना बनाए जाने के कारण भारतीय समुद्री शिपिंग के लिए चुनौती उत्पन्न हो गईं है।
  • अफगानिस्तान मुद्दा: अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी ने भारत की अफगान रणनीति के संबंध में चुनौतियाँ उत्पन्न कर दी हैं, जो अपने अफगान हितों के लिए अमेरिका-ईरान सहयोग पर निर्भर थीं।

आगे की राह

  • ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करना: भारत को संस्थागत ढाँचे के संबंध में आगे बढ़कर कार्य करने की आवश्यकता है और साथ ही भारत को ऊर्जा सुरक्षा के लिए तुर्कमेनिस्तान- अफगानिस्तान- पाकिस्तान- भारत (TAPI) गैस पाइपलाइन परियोजना को आगे बढ़ाने की भी जरूरत है।
  • व्यापार में वृद्धि : भारत को द्विपक्षीय वाणिज्यिक संबंधों को बढ़ाने के लिए तरजीही व्यापार समझौतों (Preferential Trade Agreement) के माध्यम से ईरान की कृषि वस्तुओं पर टैरिफ कम करने की आवश्यकता है।
  • बुनियादी ढाँचे के निर्माण में सहयोग: ईरानी तेल और पेट्रोकेमिकल्स में निवेश, समुद्री लाइनों के विकास और तकनीकी तथा इंजीनियरिंग सेवाओं के निर्यात से भारत एवं ईरान के मध्य द्विपक्षीय व्यापार का विस्तार होगा।
  • आतंकवाद पर अंकुश: दोनों देशों को आतंकवाद से लड़ने और क्षेत्र में शांति, स्थिरता तथा सुरक्षा निर्माण के लिए आपसी सहयोग की आवश्यकता है।
  • कनेक्टिविटी को बढ़ावा देना: दोनों देशों को मौजूदा परिवहन गलियारों(Transport Corridor) के विकास  के लिए रूसी संघ और अन्य मध्य एशिया और काकेशस देशों के साथ संयुक्त प्रयासों को बढ़ावा देना चाहिए।
  • बहुपक्षीय मंचों के माध्यम से क्षेत्रीय सहयोग बढ़ाना: भारत, महत्त्वपूर्ण क्षेत्रीय मुद्दों पर चर्चा करने के लिए ब्रिक्स और शंघाई सहयोग संगठन के मंचों का उपयोग कर सकता है।

मुख्य परीक्षा पर आधारित प्रश्न : पश्चिम एशिया की भू-राजनीति को देखते हुए भारत एवं ईरान के मध्य सांस्कृतिक एवं रणनीतिक संबंधों का विकास दोनों देशों की प्रगति के लिए आवश्यक हैंI टिप्पणी कीजिएI

                                                                                       News Source: The Indian Express

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