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Lokesh Pal
July 20, 2024 05:30
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अनियंत्रित और असंवहनीय प्रथाओं के कारण वन संसाधनों के दोहन ने वन परिदृश्यों की स्थिति को ख़राब कर दिया है, ऐसे में पुनर्निर्देशित प्रेरणाओं और रणनीतियों पर ज़ोर दिया जा रहा है जो वनों की पारिस्थितिक प्रणालियों में परिवर्तन लाने में मदद कर सकते हैं, और ऐसे लचीले वनों का निर्माण कर सकते हैं जिनमें विविध क्षमताएं और योग्यताएं हों।
प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: वन क्षरण, स्वस्थ पर्यावरण के लिए वृक्षारोपण, कार्बन पृथक्करण, वन महोत्सव, कार्बन सिंक, वन ट्रिलियन प्रोजेक्ट, “चीन की महान हरित दीवार”, “10 बिलियन ट्री सुनामी”, “बॉन चैलेंज, पेरिस समझौता, 2021-2030 संयुक्त राष्ट्र द्वारा पारिस्थितिकी तंत्र बहाली के दशक के रूप में, मोनोकल्चर, आदि। मुख्य परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: वन क्षरण और वृक्षारोपण में भारत का योगदान और आंकड़े, आवश्यकता, महत्व, चुनौतियां, की गई कार्रवाई और उठाए जाने वाले उपाय, कार्बन सिंक की अवधारणा आदि। |
वन महोत्सव कार्यक्रम (1950) : पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने में वृक्षों की इस अपरिहार्य भूमिका को ध्यान में रखते हुए, तत्कालीन भारतीय कृषि मंत्री के.एम. मुंशी ने जुलाई 1950 में वन महोत्सव (‘वृक्षों का त्योहार’) कार्यक्रम शुरू किया।
अर्थात केवल विभिन्न कार्यक्रमों के तहत मात्र वृक्षारोपण करने से ही पर्यावरण की सुरक्षा सम्बन्धी विविध आवश्यक उपायों को पूरा नहीं किया जा सकता हैं प्रभावी रूप से पौधरोपण के बाद के उपायों और वृक्षों की वृद्धि की निगरानी का पर्याप्त प्रावधान किया जाना अति महत्वपूर्ण है। पुनर्स्थापना के अधिक लाभकारी दृष्टिकोण और अन्य वैकल्पिक कम लागत वाले उपायों खासकर वृक्ष द्वीपों पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है, जिसमें पृथ्वी के छोटे-छोटे खंडों या द्वीपों में पौधे लगाना इत्यादि शामिल है।
प्रश्न: हालांकि वृक्षारोपण पहल को सामान्यतः जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण क्षरण के लिए अधिक उपयोगी उपाय माना जाता है, किन्तु इस पहल की प्रभावशीलता पर लगातार सवाल उठते रहते हैं। भारत में बड़े पैमाने पर चलाए जाने वाले वृक्षारोपण अभियानों की चुनौतियों और सीमाओं का आलोचनात्मक परिक्षण कीजिए, और उनके पारिस्थितिक एवं सामाजिक प्रभाव को बढ़ाने के उपाय सुझाएँ।
(15 अंक, 250 शब्द)
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