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भारत : ताप विद्युत उत्सर्जन को विनियमित करने की आवश्यकता

Lokesh Pal February 07, 2025 05:00 107 0

संदर्भ: 

हाल ही में, भारत के पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने पर्यावरण  संरक्षण नियमों में संशोधन किया है, जिसके तहत ताप विद्युत संयंत्रों के लिए SO2 उत्सर्जन मानदंडों को पूरा करने की समय-सीमा तीन वर्ष बढ़ा दी गई है। 

SO2 उत्सर्जन मानदंडों की उत्पत्ति और विकास:

  • 2015 के व्यापक संशोधित मानदंड: भारत के ताप विद्युत संयंत्रों के लिए उत्सर्जन मानदंडों में दिसंबर 2015 में व्यापक संशोधन किया गया। 
    • पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफसीसी) ने कण पदार्थ उत्सर्जन पर कठोर सीमाएं लागू कीं और पहली बार सल्फर डाइऑक्साइड (SO₂) उत्सर्जन के लिए मानदंड निर्धारित किए।
  • 2015 के मानदंडों की मुख्य विशेषताएं:
    • कठोर सीमाएं: संशोधित सभी नए नियम अंतर्राष्ट्रीय सर्वोत्तम प्रथाओं के अनुरूप होंगे, जो मुख्यतया ऑस्ट्रेलिया, चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका के नियमों के समान होंगे।
    • अनुपालन समयसीमा: नियमों के मुताबिक प्रारंभ में, बिजली संयंत्रों को दिसंबर 2017 तक अनुपालन करना आवश्यक था। हालांकि, बुनियादी ढांचे और तकनीकी सीमाओं के कारण समयसीमा को व्यापक रूप से तर्कसंगत नहीं माना गया था।

कार्यान्वयन संबंधी चुनौतियाँ:

  • कम सल्फर वाले कोयले की धारणा: भारत के कोयले परिदृश्य में, सल्फर की मात्रा अपेक्षाकृत कम है, जिससे अनुपालन आसान हो जाना चाहिए था। हालांकि, प्राथमिक समाधान के रूप में फ़्लू गैस डिसल्फ़राइज़ेशन (FGD) पर ध्यान केंद्रित किया गया।
  • लागत एवं आपूर्ति श्रृंखला संबंधी मुद्दे:
    • फ़्लू गैस डिसल्फ़राइज़ेशन (एफजीडी) प्रौद्योगिकी के लिए उच्च लागत और समयसीमा प्रमुख बाधाएं बनने लगी हैं।
    • आवश्यक उपकरण और विशेषज्ञता की सीमित उपलब्धता के कारण कार्यान्वयन में और देरी हुई।
  • संकुचित नीतिगत फोकस: भारतीय परिस्थितियों के लिए उपयुक्त विभिन्न उत्सर्जन नियंत्रण विधियों की खोज करने के बजाय, चर्चाओं में फ़्लू गैस डिसल्फ़राइज़ेशन (FGD) प्रौद्योगिकी से संबंधित तार्किक और वित्तीय चिंताओं का मुद्दा आम हो गया। 
    • इस बदलाव ने वैकल्पिक उपायों को सीमित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई, जो भारत के ऊर्जा क्षेत्र के लिए अधिक लागत प्रभावी और अनुकूलनीय हो सकते थे।

भारत के SO2 उत्सर्जन अनुपालन में विलंब के प्रमुख कारण:

  • परस्पर विरोधी दृष्टिकोण: केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (सीईए) की रिपोर्ट (2020 और 2021) ने एक समान राष्ट्रव्यापी मानकों की व्यवहार्यता पर सवाल उठाये और इसके द्वारा वर्ष 2035 तक पूर्ण अनुपालन बढ़ाने का प्रस्ताव रखा।
    • केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण के द्वारा आईआईटी दिल्ली के माध्यम से एक अध्ययन सम्पन्न करवाया, जिसमें एफजीडी के लाभों को मान्यता दी गई, लेकिन लागत संबंधी चिंताओं और बढ़ते उत्सर्जन के कारण चरणबद्ध कार्यान्वयन की सिफारिश की गई।
  • नीति आयोग का आकलन (2024): सीएसआईआर-राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान से अध्ययन करवाया गया। इसके माध्यम से SO₂ मानदंडों की आवश्यकता को चुनौती देने की बजाय पार्टिकुलेट मैटर उत्सर्जन को प्राथमिकता देने की वकालत की गई।
  • वैज्ञानिक सहमति का अभाव: वर्ष 2015 में विभिन्न मानदंडों को लागू करने से पहले साक्ष्य-आधारित नीति निर्धारण सुनिश्चित करने के बजाय, परस्पर विरोधी अध्ययनों और एजेंसी के दृष्टिकोण ने संबंधित चर्चाओं को और भी अधिक समय लेने वाला बना दिया।
  • सरकार की अनिच्छा: सरकार की अनुपालन लागू करने की अनिच्छा के कारण समय-सीमा को बार-बार बढ़ाया गया, जिससे पर्यावरण नीति की विश्वसनीयता में कमी देखी गई।
  • बार-बार समयसीमा को बढ़ाना : SO2 अनुपालन की समयसीमा बढ़ाने का पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) का हालिया निर्णय 2015 के मानदंडों के लागू होने के बाद से संशोधनों की चौथी अवस्था में पहुंच चुका है। जिसके तहत बार-बार SO2 और पार्टिकुलेट मैटर उत्सर्जन के लिए अलग-अलग समयसीमाएँ निर्धारित की गई हैं।
  • विरोधाभासी कार्यान्वयन: संशोधित नियमों के अनुसार, पार्टिकुलेट मैटर मानदंडों का अनुपालन दिसंबर 2024 तक अनिवार्य किया गया था , कुछ संयंत्रों को 2022 या 2023 तक अनुपालन करना आवश्यक था।
    • हालांकि, प्रवर्तन अभी भी कमजोर बना हुआ है, तथा प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा अनुपालन की सक्रियता से पुष्टि करने के संबंध में भी पर्याप्त साक्ष्यों का अभाव बना हुआ हैं।
  • विनियामक अंतराल: पर्यावरण मानदंडों का खंडित और असंगत प्रवर्तन विनियामक प्रभावकारिता के बारे में गंभीर चिंताओं को उजागर करता है। थर्मल पावर प्लांट की अनुपालन स्थिति पर कोई स्पष्ट सार्वजनिक प्रकटीकरण नहीं है। 
    • कठोर निगरानी के बिना यह स्पष्ट नहीं है कि संयंत्र वास्तव में उत्सर्जन कम कर रहे हैं या केवल बार-बार विस्तार से लाभान्वित हो रहे हैं।

विलंब की आर्थिक और सार्वजनिक स्वास्थ्य लागत:

  • लागत पास-थ्रू तंत्र: विनियामकों ने थर्मल प्लांटों को फ़्लू गैस डिसल्फ़राइज़ेशन (एफजीडी)  इंस्टॉलेशन की लागत बिजली उपभोक्ताओं पर स्थानांतरित करने की अनुमति दी है। यह प्लांट संचालकों को वित्तीय दंड से बचाता है जबकि उच्च टैरिफ के माध्यम से बोझ को अंतिम उपभोक्ताओं पर स्थानांतरित करता है।
  • अनुचित उपभोक्ता लागत: कुछ संयंत्र जिन्होंने फ़्लू गैस डिसल्फ़राइज़ेशन (एफजीडी)  स्थापित किए हैं, वे उच्च परिचालन लागत के कारण उन्हें संचालित नहीं कर सकते हैं । उपभोक्ताओं को प्रदूषण नियंत्रण उपकरणों के लिए भुगतान करना पड़ता है जो अप्रयुक्त बने रहते हैं, जबकि वायु गुणवत्ता लगातार खराब होती रहती है।
  • एफजीडी कार्यान्वयन की वर्तमान स्थिति: 
    • 22 गीगावाट ताप विद्युत संयंत्रों में पहले ही फ़्लू गैस डिसल्फ़राइज़ेशन (एफजीडी)  स्थापित किए जा चुके हैं।
    • 102 गीगावाट कुल स्थापित क्षमता का लगभग 50% ) फ़्लू गैस डिसल्फ़राइज़ेशन (एफजीडी)  स्थापना के उन्नत चरणों में है।
  • संशोधित अनुपालन समय-सीमा: SO₂ मानदंडों को पूरा करने की सबसे प्रारंभिक समय-सीमा अब 31 दिसंबर, 2027 निर्धारित की गई है । हालांकि पिछले उदाहरणों को देखते हुए, आगे भी देरी की संभावना बनी हुई है।
  • प्रदूषण: थर्मल पावर प्लांट SO2 का एक प्रमुख स्रोत हैं, जो वायु की गुणवत्ता को खराब करने में योगदान देता है।
  • द्वितीयक एरोसोल का निर्माणSO₂ अन्य प्रदूषकों के साथ प्रतिक्रिया करके सूक्ष्म कण पदार्थ (PM2.5) बनाता है, जिससे प्रदूषण का स्तर बढ़ जाता है।
  • श्वसन और हृदय संबंधी रोग: SO₂ के लंबे समय तक संपर्क में रहने से अस्थमा, ब्रोंकाइटिस और फेफड़ों में संक्रमण हो सकता है। उच्च प्रदूषण वाले क्षेत्रों में हृदय रोग, स्ट्रोक और समय से पहले मृत्यु का जोखिम बढ़ने की संभावना है।
  • कमज़ोर समूहों पर प्रभाव: इन मानकों से बच्चे, बुज़ुर्ग और पहले से ही बीमार लोग सबसे ज़्यादा प्रभावित होते हैं। कई प्रभावित थर्मल प्लांट घनी आबादी वाले शहरी केंद्रों के पास स्थित हैं, जिससे सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट और भी बदतर हो गया है।

निष्कर्ष:

जब तक भारत की नियामक संस्थाएं उत्सर्जन विनियमन हेतु निर्णायक कार्रवाई नहीं करतीं, तब तक देश में विलंब और शिथिलता का यह चक्र दोहराए जाने का खतरा बना रहेगा, जिसके नागरिकों और पर्यावरण दोनों के लिए गंभीर परिणाम होंगे।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न: भारत की ताप विद्युत उत्सर्जन विनियमन गाथा पर्यावरण संरक्षण, आर्थिक विचारों और शासन चुनौतियों के बीच जटिल अंतर्संबंध को दर्शाती है। इस संदर्भ में, विभिन्न हितधारकों की भूमिका का आलोचनात्मक विश्लेषण करें और पर्यावरणीय और विकासात्मक दोनों लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए एक संतुलित दृष्टिकोण सुझाएँ।

(15 अंक, 250 शब्द)

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