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भारत को विश्व स्तर पर मान्यता प्राप्त सार्वजनिक नीति संस्थाओं की आवश्यकता

Lokesh Pal November 16, 2024 05:15 23 0

संदर्भ :

विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने के बावजूद, भारत में वैश्विक स्तर पर मान्यता प्राप्त सार्वजनिक नीति संस्थाओं का अभाव है, जबकि अमेरिका और ब्रिटेन जैसे राष्ट्रों में हार्वर्ड कैनेडी और LSE जैसे प्रतिष्ठित विद्यालय हैं, जो शिक्षा व्यवस्था के लिए बेहतर ढंग से कार्यरत हैं ।

सार्वजनिक नीति संस्थाएँ और उनकी भूमिका

  • सार्वजनिक नीति संस्थाएँ वे संगठन हैं, जो सरकारी नीतियों को तैयार, क्रियान्वित और उनका मूल्यांकन करते हैं।
  • इनमें थिंक टैंक, शोध निकाय, सरकारी विभाग और सलाहकार बोर्ड शामिल हैं।
  • ये संस्थाएँ सामाजिक मुद्दों का विश्लेषण करती हैं, साक्ष्य-आधारित सिफ़ारिशें प्रदान करती हैं और सार्वजनिक चिंताओं को दूर करने के लिए नीतियाँ तैयार करने में मदद करती हैं।

सार्वजनिक नीति संस्थाओं की स्थापना संबंधी प्रमुख चुनौतियाँ

  • सत्ता का केंद्रीकरण : भारत में निर्णय लेने की प्रक्रिया कार्यपालिका में अत्यधिक केंद्रीकृत है, जिससे नीति टिप्पणीकारों, शिक्षाविदों और नागरिक समाज समूहों के लिए नीति को प्रभावित करने के लिए सीमित स्थान ही शेष बचता है।
    • यह अमेरिका जैसे देशों के विपरीत है, जहाँ विकेंद्रीकृत विधायी प्रक्रिया थिंक टैंक और नीति संस्थानों को महत्त्वपूर्ण प्रभाव डालने की अनुमति देती है।
  • सीमित विधायी निरीक्षण : कार्यपालिका की देखरेख में भारतीय विधायिका की भूमिका सीमित है, जिससे निर्णय लेने को प्रभावित करने के लिए नीतिगत चर्चा और विश्लेषण के अवसर कम हो जाते हैं।
    • अधिक संस्थागत लोकतंत्रों में विधायिका नीति को आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
  • राजनीतिक नियंत्रण और शासन में अस्थिरता : भारत में निर्णय लेने की प्रक्रिया पर प्रभाव सामान्यतः सत्तारूढ़ दल के राजनीतिक नेतृत्व से जुड़ा हुआ होता है।
    • जब किसी भी शासन में बदलाव आता है, तो पिछली सरकार के तहत प्रभावशाली रहे लोगों को दरकिनार किया जा सकता है, जिससे नीति पारिस्थितिकी तंत्र में अस्थिरता पैदा होती है।
    • यह कमज़ोरी पश्चिमी लोकतंत्रों में थिंक टैंक और नागरिक समाज समूहों के अधिक स्थिर प्रभाव के विपरीत है।
  • राजनीति और नीति के बीच अलगाव : भारत की राजनीतिक प्रणाली कम औपचारिक है, जिससे राजनीति और नीति के मध्य अलगाव की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
    • यह नीति पेशेवरों की भूमिका को कमज़ोर करती है, जिनकी अन्य देशों में निर्णय लेने की प्रक्रियाओं तक अधिक सीधी पहुँच हो सकती है।
  • गैर-पक्षपातपूर्ण स्थान का अभाव : भारत में राजनीतिक वैधता और प्रभाव सत्ता से निकटता पर आधारित होते हैं, जिससे चाटुकारिता, लालफीताशाही और अस्थिरता की स्थिति पैदा हो सकती है।

आगे की राह 

भारत में विश्व स्तरीय सार्वजनिक नीति संस्थान स्थापित करने के लिए निम्नलिखित कदम उठाए जाने की आवश्यक है :

  • भारत की राजनीतिक वास्तविकताओं पर केंद्रित नीतिगत पाठ्यक्रम : पाठ्यक्रम में भारत के राजनीतिक परिदृश्य को शामिल किया जाना चाहिए, जिसमें अनौपचारिक नेटवर्क, जातिगत पदानुक्रम और जमीनी स्तर के आंदोलन शामिल हैं।
    • इसमें आदर्शवाद और व्यावहारिकता के मध्य संतुलन स्थापित करना सिखाया जाना चाहिए।
  • सहानुभूति और राष्ट्र निर्माण : संस्थान को सहानुभूति को प्राथमिकता देनी चाहिए, ऐसे राजनेताओं  का चयन करना चाहिए जो भारत के नागरिकों की वास्तविकताओं के विषय में चिंता करते हों।
    • इसका प्रमुख उद्देश्य ऐसे नेताओं को प्रशिक्षित करना है जो स्थानीय चुनौतियों को समझते हों और ऐसी नीतियों का निर्माण करते हों जो लोगों को लाभ पहुँचाती हों, न कि ऊपर से नीचे तक समाधान थोपते हों।
  • गैर-पक्षपातपूर्ण, राजनीतिक रूप से जागरूक स्थान : संस्थाओं को एक गैर-पक्षपातपूर्ण वातावरण को बढ़ावा देना चाहिए जहाँ प्रभाव नीतिगत हस्तक्षेपों की गुणवत्ता पर आधारित हो, न कि राजनीतिक सत्ता से निकटता पर।
    • राजनीतिक, शैक्षणिक, नागरिक समाज और मीडिया जैसे क्षेत्रों में भागीदारी का निर्माण यह सुनिश्चित करेगा कि संस्थान शासन परिवर्तन के बावजूद प्रासंगिक बना रहे।
  • संस्थागत भागीदारी और सहयोग : थिंक टैंक, मीडिया और नागरिक समाज के साथ सहयोग से पाठ्यक्रम और संस्थान के प्रभाव को समृद्ध किया जाएगा।
    • ये भागीदारी एक मजबूत नीति पारिस्थितिकी तंत्र बनाएगी, जो संबंधित नीति-निर्माताओं को विविध दृष्टिकोणों से जोड़ेगी।
  • नीति नवाचार : भारत की विशिष्ट चुनौतियों के लिए रचनात्मक समस्या समाधान को प्रोत्साहित करने से संस्थान नीति नवाचार केंद्र के रूप में स्थापित होगा।
    • इसे भारत के विविध क्षेत्रों में प्रभावी कार्यान्वयन के लिए अनुसंधान और समाधान-संचालित दृष्टिकोण पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
  • दीर्घकालिक प्रभाव और स्थिरता : संस्थाओं को दीर्घकालिक सहभागिता सुनिश्चित करनी चाहिए | इससे एक स्थिर, उच्च-गुणवत्ता वाले नीति पारिस्थितिकी तंत्र निर्माण और बदलते राजनीतिक परिदृश्य में अपनी प्रासंगिकता बनाए रखने में मदद मिलेगी।

निष्कर्ष 

अतः स्पष्ट है कि सूचित, सहानुभूतिपूर्ण और गैर-पक्षपातपूर्ण नीति-निर्माण के लिए एक मंच प्रदान करके, भारत एक मजबूत पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण कर सकता है, जो अपनी विकास चुनौतियों का समाधान करने और वैश्विक शासन को प्रभावित करने में सक्षम हो।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न 

भारत में सार्वजनिक नीति संस्थाओं की संरचनात्मक और कार्यात्मक सीमाओं का विश्लेषण कीजिए । ये सीमाएँ शासन और राष्ट्र-निर्माण को प्रभावित करने की उनकी क्षमता को कैसे प्रभावित करती हैं? टिपण्णी कीजिए |

(15 अंक, 250 शब्द)

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