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भारत को एक समावेशी पेंशन प्रणाली तैयार करने की आवश्यकता

Lokesh Pal June 19, 2025 05:00 6 0

संदर्भ:

आर्थिक सर्वेक्षण 2025-26 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत की पेंशन संपत्तियाँ सकल घरेलू उत्पाद का केवल 17% हैं, जबकि अनेक विकसित अर्थव्यवस्थाओं में यह आंकड़ा 80% तक है।

भारत का अविकसित पेंशन परिदृश्य

  • कम पेंशन संपत्तियाँ: भारत की पेंशन संपत्तियाँ सकल घरेलू उत्पाद का केवल 17% है, जो कि अधिकांश विकसित अर्थव्यवस्थाओं में 80% तक की तुलना में काफी कम है (आर्थिक सर्वेक्षण 2025-26)।
  • सीमित कार्यबल समावेशन: वर्तमान में, भारत के केवल 12% कार्यबल को औपचारिक पेंशन योजनाओं के तहत शामिल किया गया है। हालांकि यह समावेशन मुख्यतः सार्वजनिक और संगठित रूप से निजी क्षेत्रों में केंद्रित है, जिन्हें कई समानांतर योजनाओं का लाभ मिलता है।
  • असंगठित क्षेत्र का बहिष्कार: असंगठित क्षेत्र, जो देश की लगभग 85% श्रम शक्ति का हिस्सा है और आधे से अधिक सकल घरेलू उत्पाद का उत्पादन करता है, मुख्य रूप से राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (NPS) और अटल पेंशन योजना (APY) जैसी स्वैच्छिक योजनाओं पर निर्भर करता है, जो सामूहिक रूप से वित्त वर्ष 2024 में कुल जनसंख्या के लगभग 5.3% को ही कवर करने में सक्षम हुआ है।
  • संभावित वित्तीय संकट: हालांकि यह बहिष्कार एक बड़ी नीतिगत खामी और एक संभावित वित्तीय संकट भी को चिन्हित करता है, खासकर जब भारत का वृद्धावस्था पर निर्भरता अनुपात 2050 तक 30% तक पहुँचने का अनुमान लगाया गया है।
    •  वृद्धावस्था में गरीबी से सुरक्षा प्रदान करना भारत के लिए 2047 तक विकसित अर्थव्यवस्था का दर्जा प्राप्त करने हेतु अत्यंत आवश्यक है।

पेंशन कवरेज विस्तार के समक्ष प्रमुख चुनौतियाँ:

  • विखंडित अवसंरचना: हालाँकि सरकार ने गिग श्रमिकों के लिए सामाजिक सुरक्षा की शुरुआत की है, जिसमें आंशिक रूप से एग्रीगेटर्स द्वारा वित्तपोषण किया जाता है, लेकिन यह केवल असंगठित क्षेत्र के एक सीमित से हिस्से को ही संबोधित करता है और पहले से ही जटिल प्रणाली में एक और समानांतर योजना जोड़ देता है।
  • जागरूकता की कमी: असंगठित क्षेत्र में वर्तमान पेंशन कवरेज का एक बड़ा हिस्सा स्वैच्छिक होने के कारण, बीमा कवरेज का विस्तार लाभार्थियों की जागरूकता पर निर्भर करता है
  • अपर्याप्त लाभ: विभिन्न अध्ययनों से ज्ञात होता है कि भारत में कई सेवानिवृत्त लोगों को बहुत कम पेंशन राशि मिलती है, जिनमें एक बड़ा हिस्सा प्रति माह 1,500 रुपये से भी कम प्राप्त करता है।
  • बहिष्करण: वर्तमान पेंशन प्रणाली बड़ी आबादी तक, विशेष रूप से असंगठित क्षेत्र में कार्यरत लोगों तक, पहुँच बनाने में कठिनाइयों का सामना कर रही है।
  • स्थिरता संबंधी चिंताएँ: घटती जन्म दर और बढ़ती आयु सीमा पेंशन प्रणालियों की स्थिरता पर दबाव डालती है, क्योंकि सक्षम वर्ग की कमी अधिक संख्या में पेंशनभोगियों का समर्थन करने के लिए उपलब्ध होतीहैं।

विकसित देशों में पेंशन प्रणाली:

  • जापान: यह 20 से 59 वर्ष की आयु के सभी निवासियों के लिए एक अनिवार्य, समान दर वाला अंशदायी योजना संचालित करता है, जिसमें स्व-रोजगार करने वाले, किसान, सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के कर्मचारी तथा उनके आश्रित शामिल किए जाते हैं।
  • न्यूजीलैंड: यह 65 वर्ष या उससे अधिक आयु के निवासियों को एक सार्वभौमिक, समान दर वाली सार्वजनिक पेंशन प्रदान करता है, जिसमें लगभग 10 वर्षों की निवास अवधि संबंधी शर्त आवश्यक होती है। लगभग 40% लोग वृद्धावस्था में इसे अपनी मुख्य आय के रूप में उपयोग करते हैं
  • नीदरलैंड: यह अपने व्यावसायिक पेंशन फंड सक्रिय प्रतिभागियों को अर्जित पेंशन अधिकारों का वार्षिक विवरण प्रदान करता है।
  • यूनाइटेड किंगडम: यह अपने कर्मचारियों के लिए एक ऑप्ट-आउट पेंशन योजना संचालित करता है, जो स्वचालित रूप से सहभागिता को प्रोत्साहित करती है।

आगामी रणनीति:

  • डिजिटल पहुंच: नाइजीरिया द्वारा डिजिटल पेंशन अवसंरचना में किए गए निवेश से सीख लेते हुए, भारत को उपयोगकर्ता-अनुकूल डिजिटल नामांकन प्लेटफ़ॉर्म को प्राथमिकता देनी चाहिए ताकि इसकी पेंशन प्रणाली की पहुँच, विशेष रूप से असंगठित और ग्रामीण क्षेत्रों तक विस्तारित की जा सके।
  • जमीनी स्तर पर जागरूकता: वित्तीय साक्षरता की शुरुआत स्कूल और कॉलेज स्तर से ही की जानी चाहिए। उदाहरण के लिए; ऑस्ट्रेलिया ने अपने पाठ्यक्रम में सुपरएनुएशन योजना को शामिल किया है, ताकि प्रारंभिक जागरूकता विकसित हो और भागीदारी को प्रोत्साहन मिले
    •  पेंशन लाभों का वार्षिक प्रकटीकरण अनिवार्य करना भी जनविश्वास और भागीदारी को उल्लेखनीय रूप से बढ़ा सकता है।
  • पर्याप्त आपूर्ति संबंधी चिंताओं का समाधान: मर्सर सीएफए इंस्टीट्यूट ग्लोबल पेंशन इंडेक्स 2024 रिपोर्ट में भारत के कम समग्र स्कोर (44%) और पर्याप्त आपूर्ति के स्तर में तेज़ गिरावट देखी गई। यह एक सम्मानजनक सेवानिवृत्ति के लिए पर्याप्त संसाधनों की आवश्यकता को दर्शाते हुए, तत्काल सुधारों की मांग करता है।
  • निजी निधियों का उपयोग: चीन की सार्वजनिक पेंशन प्रणाली को निजी फंड समर्थन के बिना बनाए रखने में आई कठिनाइयाँ यह दर्शाती हैं कि एक मजबूत निजी पेंशन बाज़ार वित्तीय सुरक्षा हेतु महत्वपूर्ण है।
    •  नीदरलैंड, डेनमार्क और ऑस्ट्रेलिया जैसे देश अपनी सार्वजनिक प्रणालियों के पूरक के रूप में निजी फंड्स पर सफलतापूर्वक निर्भर रहते हैं।
    •  भारत को भी इसी दिशा में संभावनाएँ तलाशनी चाहिए, साथ ही मजबूत निवेश नियमों और निगरानी प्रणाली को सुनिश्चित करना चाहिए ताकि फंड के प्रदर्शन की निगरानी की जा सके और तरलता सुरक्षित बनी रहे
  • लक्षित ऋण निधियाँ: अमेरिका द्वारा विश्वसनीय रिटर्न सुनिश्चित करने के लिए लक्षित ऋण निधियों का उपयोग एक महत्वपूर्ण सबक हो सकता है।
  • मूलभूत पेंशन गारंटी: यह आधारभूत स्तर सभी के लिए, रोजगार की स्थिति की परवाह किए बिना, एक समान दर वाली अंशदायी पेंशन प्रदान करने हेतु सहयोगी होगी, जिससे न्यूनतम बुनियादी सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।
  • व्यावसायिक पेंशन: यह स्तर नियोक्ता-आधारित योजनाओं को कवर करेगा, जो या तो अनिवार्य हो सकती हैं या न्यूनतम अंशदान मानकों के अधीन ऑटो-नामांकन के साथ ऑप्ट-आउट मॉडल में संचालित हो सकती हैं।
  • स्वैच्छिक पेंशन बचत: अंतिम स्तर तक कर प्रोत्साहनों, बाजार से जुड़ी आय और लचीले उत्पादों के माध्यम से स्वैच्छिक बचत को प्रोत्साहित करेगा, जिससे व्यक्ति अपनी सेवानिवृत्ति आय को पूरक कर सकें

निष्कर्ष:

अतः समाज के प्रत्येक वर्ग, विशेष रूप से असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों सहित, एक सुव्यवस्थित और समावेशी पेंशन प्रणाली सेवानिवृत्ति के बाद की बुनियादी वित्तीय सुरक्षा सुनिश्चित करने और 2047 तक विकसित अर्थव्यवस्था का दर्जा प्राप्त करने के लिए अत्यंत आवश्यक है। नीति निर्धारकों को ऐसी प्रणाली को डिज़ाइन करने के लिए ठोस और निर्णायक कदम उठाने होंगे।

 मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न

प्रश्न. भारत की पेंशन प्रणाली विशेष रूप से असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के लिए कवरेज के मामले में अभी भी अपर्याप्त और विखंडित क्यों बनी हुई है? वृद्धजनों के लिए दीर्घकालिक सेवानिवृत्ति सुरक्षा सुनिश्चित करने हेतु एक समावेशी अवसंरचना का सुझाव दें।

(10 अंक, 150 शब्द)

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