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भारत-नेपाल सम्बन्ध

Lokesh Pal July 16, 2024 05:00 114 0

संदर्भ:

भारत और नेपाल के बीच 2015 से सम्बन्धों में काफी उतार-चढ़ाव देखे गये हैं, जब नरेंद्र मोदी और खड्ग प्रसाद ओली दोनों प्रधानमंत्री थे। 15 जुलाई 2024 को खड्ग प्रसाद शर्मा ओली के एक बार फिर से नेपाल के 38 वें  प्रधानमंत्री बनने से नेपाल-भारत सम्बन्ध विश्व पटल पर पुनः चर्चा में हैं।  

प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रासंगिकता : लिम्पियाधुरा-कालापानी त्रिकोण, महाकालेश्वर मंदिर, नेपाल-भारत सीमा मानचित्र, दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन, आदि।

मुख्य परीक्षा के लिए प्रासंगिकता : भारत-नेपाल संबंध, भारत-नेपाल संबंधों को पुनः स्थापित करने की आवश्यकता, आदि।

 भारत-नेपाल संबंधो का पुनर्निर्धारण:

  • दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों के लिए अपने पिछले प्रधानमंत्री कार्यकाल में ख़राब हुए सम्बन्धों  को फिर से ‘सकारात्मक’ और ‘स्थिर’ बनाने का यह एक अवसर है, क्योंकि श्री मोदी लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री पद पर काबिज हुए है और श्री ओली भी अपनी पार्टी सीपीएन-यूएमएल और नेपाली कांग्रेस के सहयोग से प्रधानमंत्री पद पर काबिज हुए हैं।
  • भारत-नेपाल के द्विपक्षीय सम्बन्धों में टकराव की शुरुआत 2015 में नेपाल की संविधान सभा द्वारा नए संविधान को अपनाए जाने के साथ हुई, जिसे नई दिल्ली संशोधित कराना चाहती थी।
  • ऐसा प्रतीत होता है कि नेपाली राजनेताओं ने अपने नई दिल्ली दौरे के दौरान श्री मोदी से भारत की चिंताओं को हल करने के वादे तो किए थे, लेकिन अंत में उन्होंने बिना संशोधन किए ही संविधान मसौदा जारी कर दिया।
  • तराई के मैदानों के मधेशी आंदोलनकारियों को तथाकथित नई दिल्ली के समर्थन और नेपाल को आपूर्ति करने वाले मार्गों पर आर्थिक नाकेबंदी, जो लगभग छह महीने तक चली जिसका नेपाली अर्थव्यवस्था पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा। 
  • अतः तत्कालीन नेपाली प्रधानमंत्री श्री  ओली ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की और बदले में बीजिंग के साथ व्यापार, पारगमन से लेकर बिजली और परिवहन तक 10 समझौतों पर हस्ताक्षर किए।
  • नाकाबंदी समाप्त होने के बाद दोनों प्रधानमंत्रियों के बीच मुलाकात हुई, लेकिन श्री ओली के कुछ अनावश्यक वक्तव्यों जैसे वास्तविक ऐतिहासिक अयोध्या वर्तमान नेपाल में है, या यह कि भारत के आक्रामक रुख के कारण राष्ट्रीय आदर्श वाक्य ‘सत्यमेव जयते’ के स्थान पर ‘सिंहमेव जयते’ की आवश्यकता है आदि वक्तव्यों ने सम्बन्धों में सुधार की प्रगति को धीमा किया।
  • अक्टूबर 2019 में भारत द्वारा प्रकाशित अद्यतन राजनीतिक मानचित्र के बाद, नेपाल के संविधान में संशोधन करके उत्तर-पश्चिम में लिम्पियाधुरा-कालापानी त्रिभुज को अपने मानचित्र में जोड़ लिया गया।

शक्ति और पराक्रम:

  • भारतीय प्रधानमंत्री की विदेश नीति और राष्ट्रीय सुरक्षा टीमों में कोई विशेष बदलाव नहीं किया गया है अतः यह सवाल अभी भी अनुउत्तरित है कि क्या वे श्री ओली के प्रति नरम रुख अपनाएंगे या भाजपा के व्यापक जनाधार में आई कमी को देखते हुए राष्ट्रीय सुरक्षा और गौरव के प्रति अधिक साहसी और कठोर रूख अपनाएंगे।  
  • दोनों प्रधानमंत्रियों को दिल्ली और काठमांडू में अपने नेतृत्व के अवसर का उपयोग गतिरोध को दूर करने के लिए करना चाहिए।
  • ‘पड़ोसी पहले’ की श्री मोदी की पहल को अभी तक अपेक्षित सफलता नहीं मिल पाई है ऐसे में नेपाल उनके लिए भी एक अवसर प्रस्तुत करता है, जहां  श्री मोदी भारत-नेपाल सम्बन्धों की  ऐतिहासिकता और सांस्कृतिक संबद्धता को देखते हुए नीतिगत सुधारों के साथ शुरुआत करते हुए सम्बन्धों में सुधार सुनिश्चित कर सकते हैं।
  • नेपाल को भारतीय विदेश नीति में प्रारंभ से ही एक अपवाद के रूप में देखा जाता है। इसका ऐतिहासिक आधार श्री जवाहरलाल नेहरू के आदेशों से लेकर श्री मोदी और काठमांडू के असहमत राजनेताओं तक देखा जा सकता है अतः नई दिल्ली को अब तक यह समझ जाना चाहिए था कि नेपाल में आम सहमति बनाना लगभग नामुमकिन है।
  • नेपाल की आतंरिक राजनीति और शासन में भारत का निरंतर जुड़ाव विदेश नीति के अहस्तक्षेप के सिद्धांत (पंचशील सिद्धांत) के विरुद्ध है।
  • नई दिल्ली को यह भी समझना चाहिए कि हस्तक्षेप न करने की नीति से नेपाल स्वतः ही राजनीतिक रूप से स्थिर और आर्थिक रूप से सक्रिय हो जाएगा, जिससे भारत की अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा और नेपाल के सीमावर्ती भारतीय राज्यों की अर्थव्यवस्था को लाभ होगा।
  • नेपाल भारत पर पूर्णरूपेण आश्रित पड़ोसी नहीं है जैसा की अधिकांश भारतीय मानते है।
  • यह उत्तर प्रदेश और बिहार से लेकर ओडिशा तक, इसके सबसे गरीब हिस्सों में आजीविका उपलब्ध कराने में मदद करता है।
  • इस परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो नई दिल्ली का दबंग रवैया शक्ति पर आधारित प्रतीत होता है, पराक्रम पर नहीं।

अन्य संबंधित तथ्य :

  • निरंतर जारी राजनीतिक अराजकता के बीच, काठमांडू के राजनीतिक दल, नागरिक समाज, नौकरशाही और यहां तक ​​कि सुरक्षा बलों की भारतीय समकक्षों के साथ समान स्तर पर बात करने की क्षमता गंभीर रूप से क्षीण हो गई है।
  • पिछले कई दशकों में नेपाल के राजनीतिक नेतृत्व में कमजोर और अविश्वास्पात्र लोग आते रहे हैं, लेकिन सबसे बुरी स्थिति हाल ही में समाप्त हुए माओवादी नेता पुष्प कमल दहल (‘प्रचंड’) के प्रधानमंत्री पद के कार्यकाल में आई, जिन्होंने शुरू में ही नई दिल्ली के साथ “यथास्थिति” में रहने की अपनी इच्छा जाहिर कर दी थी।
  • जून 2023 में नई दिल्ली की आधिकारिक यात्रा से लौटने पर, श्री दहल ने स्वीकार किया कि उन्होंने ऐसे मुद्दों को उठाने से परहेज किया है जो श्री मोदी की नीतियों को प्रभावित कर सकते हैं। 
  • यात्रा के दौरान, वह प्रत्येक लंबित द्विपक्षीय मामले को उठाने में विफल रहे, जिनमें नेपाल के भैरहवा और पोखरा में अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डों के लिए हवाई मार्ग, लिम्पियाधुरा-कालापानी पर गहराता क्षेत्रीय विवाद, तथा प्रख्यात व्यक्तियों के समूह (ईपीजी) की धूल फांक रही रिपोर्ट शामिल थी।
  • श्री दहल ने एक विद्युत व्यापार समझौता किया, जो नई दिल्ली को चीनी ऋण से निर्मित जलविद्युत संयंत्रों या अंतर्राष्ट्रीय बोली के तहत चीनी ठेकेदारों से आयात से इनकार करने की अनुमति देता है।
  • उन्होंने काठमांडू स्थित भारतीय दूतावास को 20 करोड़ नेपाली रुपये तक का अनुदान स्वतंत्र रूप से वितरित करने की अनुमति दे दी है, जो सुविधा किसी अन्य दूतावास को उपलब्ध नहीं है।
  • इस बीच, नई दिल्ली काठमांडू में नेपाल के जलविद्युत को उसके जल संसाधन से अलग करने के लिए अभियान चला रही है, ताकि द्विपक्षीय समझौतों के लिए संसद के दो-तिहाई अनुमोदन की आवश्यकता न हो।
  • अब जबकि श्री ओली काठमांडू में सत्ता संभाल रहे हैं, उन्हें अपने पूर्ववर्ती के घातक संकोच को त्यागना होगा, तथा नेपाल के लिए खड़ा होना होगा और दक्षिण एशिया के कल्याण के लिए मुद्दों को बुलंद करना  होगा।
  • सभी द्विपक्षीय मामले जो लंबित हैं, उन्हें विश्वास के साथ बातचीत की मेज पर लाया जाना चाहिए ताकि उन्हें उठाया जा सके और समाधान किया जा सके।
  • उन्हें श्री मोदी को दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन को पुनर्जीवित करने के महत्व के बारे में भी समझना होगा, जो कि दक्षिण एशिया के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि दक्षिण एशिया में विश्व की एक-चौथाई जनसंख्या रहती है।
  • नई दिल्ली को यह समझना होगा कि यद्यपि नेपाल की बीजिंग के साथ मित्रता पर कोई समझौता नहीं हो सकता, लेकिन यह कभी भी भारत की कीमत पर नहीं होगा।
  • इस बीच, यह असंगत है कि नई दिल्ली काठमांडू पर चीन से जुड़ी जलविद्युत, हवाई अड्डों और एयरलाइनों के लिए दबाव डाल रही है, जबकि चीन भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बनकर उभर रहा है।
  • श्री मोदी और ओली ने ही 2017 में आठ सदस्यीय भारत-नेपाल प्रतिष्ठित व्यक्ति समूह को नामित किया था।
  • समूह ने अगले वर्ष अपनी सर्वसम्मति रिपोर्ट को अंतिम रूप दिया, जिसके कार्यान्वयन से द्विपक्षीय संबंधों के पारदर्शी, विश्वासपूर्ण और समान भागीदारी की ओर बढ़ने की उम्मीद थी।
  • यदि मोदी और उनका नामित समूह रिपोर्ट को जारी करने में विलंब करता है, जैसा कि मामला है, तो इसकी विषय-वस्तु तक पहुंचने के लिए अनौपचारिक साधन तलाशने होंगे।
  • अतः  नेपाल को अपनी आवाज उठानी होगी और नई दिल्ली को इस बात पर विचार करना होगा कि राजनीति और शासन में हस्तक्षेप की असफल नीति ने नेपाल को किस तरह से बर्बाद कर दिया है।

शांतिपूर्ण दक्षिण एशिया:

  • नेपाली राज्य और वहां के लोगों की ‘डिफ़ॉल्ट सेटिंग’ भारत और भारतीयों के प्रति सौहार्दपूर्ण रवैया है, लेकिन नई दिल्ली इससे सहमत नहीं दिखती।
  • चीन के साथ 1962 की पराजय से उत्पन्न एक सतत ‘हिमालयी भ्रम’, नई दिल्ली के थिंक-टैंकों में भू-रणनीतिक असुरक्षा को बढ़ावा दे रहा है।
  • इसलिए, वे नेपाल को हिमालय की प्राचीर को लांघकर रेलमार्ग और सड़क मार्ग के माध्यम से चीनी मुख्य भूमि तक संपर्क के भावी प्रवेशद्वार के रूप में देखने से कोसों दूर हैं।
  • नई दिल्ली के अर्थशास्त्री इस बात पर गंभीरता से ध्यान नहीं देते हैं कि हिमालय के मध्य भाग में नेपाल की उपस्थिति के कारण सैन्य व्यय में भारी बचत हो रही है – जो कि भारतीय राजकोष की सैन्य लागत और पेंशन वहन करने में असमर्थता के बारे में चल रही चिंता के बीच और भी अधिक प्रासंगिक है।
  • खुली नेपाल-भारत सीमा भविष्य में शांतिपूर्ण दक्षिण एशिया का प्रारूप है, भले ही नई दिल्ली के विश्लेषक लगातार इस बात पर जोर देते रहे हैं कि यह भारत के लिए असुरक्षा का विषय है।
  • वास्तव में, नेपाल को ही नुकसान उठाना पड़ा है, क्योंकि माओवादियों ने नेपाली राज्य के खिलाफ एक दशक के विद्रोह के दौरान अनियमित सीमा पार पनाह ली है।
  • हर साल गर्मियों में भारतीय मीडिया में इस बात को लेकर चर्चा होती है कि नेपाल मानसून का पानी गंगा के मैदान में छोड़ रहा है, लेकिन नेपाल में कोई महत्वपूर्ण भंडारण बांध नहीं है और गंडकी और कोसी पर बने दो बैराजों पर नई दिल्ली का नियंत्रण है।
  • भारत में ‘नेपाल की भौगोलिक-सांस्कृतिक समृद्धता का अध्ययन’ एक अकादमिक विषय के रूप में मौजूद नहीं है, यही एक कारण है कि भारतीय नागरिक नेपाल को एक गरीब, कृतघ्न और यहां तक ​​कि द्वेषपूर्ण पड़ोसी मानते हैं।
  • काठमांडू का काम लोगों तक पहुंचना, गलतफहमियों को दूर करना और संभावनाओं का सुझाव देना है।
  • हताश नेपाली भारत को ‘बड़े भाई’ की भूमिका से बदलकर केवल ‘भाई’ बनते देखना चाहेंगे।
  • नई दिल्ली के नीति निर्माता यह स्वीकार करके अपनी भूमिका निभा सकते हैं कि नेपाल आखिरकार एक अलग देश है।

निष्कर्ष :

भारत-नेपाल सम्बन्धों को स्थिरता, आर्थिक विकास और क्षेत्रीय शांति प्राप्त करने के लिए अतीत की शिकायतों से आगे बढ़कर पारस्परिक सम्मान और सहयोग की दिशा में पुनः संतुलित करने की आवश्यकता है।

मुख्य परीक्षा पर आधारित प्रश्न :

प्रश्न : भारत और नेपाल के बीच अनोखा रिश्ता है, जिसकी विशेषता खुली सीमाएँ और सांस्कृतिक सम्बन्ध हैं, फिर भी हाल के वर्षों में तनाव में वृद्धि देखी गई है। इन तनावों के अंतर्निहित कारणों की आलोचनात्मक जाँच करें। 

(15 अंक, 250 शब्द)

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