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भारत-पाकिस्तान संबंध तथा पाकिस्तान की रणनीतिक दुविधा

Lokesh Pal October 21, 2025 05:15 90 0

सन्दर्भ:

हाल ही में, 2,600 किलोमीटर लंबी पाकिस्तान-अफगानिस्तान सीमा पर तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) तथा पाकिस्तान के सशस्त्र बलों के बीच झड़पें हुईं।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

  • पाकिस्तान का भू-रणनीतिक उद्देश्य: पाकिस्तान का प्राथमिक लक्ष्य हमेशा से अफगानिस्तान में रणनीतिक गहराई हासिल करना रहा है।
    • अपनी संकीर्ण भौगोलिक स्थिति के कारण, पाकिस्तान को भय था कि भारतीय हमले की स्थिति में उसकी सेनाओं को पीछे हटने, पुनः संगठित होने और जवाबी हमला करने के लिए अफगान क्षेत्र की आवश्यकता होगी।
  • कठपुतली शासन की आवश्यकता: रणनीतिक गहराई हासिल करने के लिए काबुल में एक ऐसी सरकार की आवश्यकता थी, जो पाकिस्तान के दिशा-निर्देशों का पालन करे तथा उसके क्षेत्रीय हितों के साथ संरेखित हो।
  • सोवियत हस्तक्षेप और छद्म युद्ध (1979-1989)
    • वर्ष 1979 में सोवियत संघ ने हस्तक्षेप किया और बबरक करमल के नेतृत्व में कम्युनिस्ट शासन स्थापित किया।
    • अमेरिका के सहयोगी पाकिस्तान ने इस शासन का विरोध किया तथा एक मित्रवत इस्लामी सरकार स्थापित करने की माँग की।
    • छद्म युद्ध (1979-1989): अमेरिका (ऑपरेशन साइक्लोन), पाकिस्तान की ISI, सऊदी अरब और मुजाहिद्दीन ने सोवियत समर्थित अफगान सरकार के खिलाफ लड़ाई लड़ी।
  • वापसी के बाद गृह युद्ध: यूएसएसआर की वापसी (1989) के बाद मुजाहिदीन गुटों में आपस में संघर्ष आरंभ हुआ।
    • पाकिस्तान ने शुरू में गुलबुद्दीन हिकमतयार को अपने पसंदीदा सरदार के रूप में समर्थन दिया था।

तालिबान का उदय (1994)

  • गठन: सऊदी अरब के वित्त पोषण से पाकिस्तानी मदरसों से गठित तालिबान 1994 में शरिया कानून का वादा करके सत्ता में आया।
  • पाकिस्तान का दृष्टिकोण: पाकिस्तान ने तालिबान को अधिक विश्वसनीय सहयोगी मानते हुए अपना समर्थन परिवर्तित कर दिया।

तालिबान शासन संबंधी मुद्दे (1996-2001)

  • डूरंड रेखा विवाद: तालिबान ने डूरंड रेखा को आधिकारिक सीमा के रूप में मान्यता देने से इनकार कर दिया।
    • पाकिस्तान अफगान दावों को लेकर असुरक्षित रहा, क्योंकि दोनों ओर पश्तून रहते हैं।
  • अफगान राष्ट्रवाद का उदय: पाकिस्तान के हस्तक्षेप ने अफगान राष्ट्रवाद और पाकिस्तान विरोधी भावना को बढ़ावा दिया।

“अच्छा तालिबान / बुरा तालिबान” नीति

  • 9/11 के बाद दुहरी नीति: 9/11 के बाद पाकिस्तान सार्वजनिक रूप से अमेरिका के नेतृत्व वाले आतंकवाद के विरुद्ध युद्ध में शामिल हो गया, लेकिन गुप्त रूप से अफगानिस्तान में तालिबान गुटों को सहायता देना जारी रखा।
  • विभेदीकरण:
    • अच्छा तालिबान: वे जो अफगानिस्तान में अमेरिकी सेना से लड़ रहे हैं।
    • बुरा तालिबान (TTP): वे लोग जो पाकिस्तान में शरिया कानून के लिए लड़ रहे हैं।
  • नीतिगत प्रभाव: यह दृष्टिकोण उल्टा पड़ गया क्योंकि अफगान तालिबान के पुनरुत्थान ने पाकिस्तान के भीतर तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान को मजबूत कर दिया।
  • पाकिस्तान की रणनीति का पतन: 2021 तक, जब तालिबान ने सत्ता हासिल कर ली, तो उन्होंने पाकिस्तान के निर्देशों का पालन करने से इनकार कर दिया।
  • 1989 के बाद का बदलाव: सोवियत संघ के विघटन के बाद, पाकिस्तान इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि कश्मीर में एक बेहतर सेना के खिलाफ मुजाहिद्दीन का प्रयोग कारगर हो सकता है।

पाकिस्तान की आंतरिक और क्षेत्रीय सुरक्षा संबंधी चुनौतियाँ

  • तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान और तालिबान गठजोड़ का उदय: तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP), अफगान तालिबान के साथ वैचारिक तथा परिचालन संबंध साझा करता है, जिसका उद्देश्य पाकिस्तान में शरिया कानून लागू करना है।
    • इससे आंतरिक अस्थिरता उत्पन्न हुई है और सीमापार आतंकवाद की वही समस्या सामने आई है जो पाकिस्तान ने पहले भारत के खिलाफ निर्देशित की थी।
  • सशस्त्र संघर्षों में वृद्धि: काबुल के अंदर पाकिस्तान के हवाई हमलों के परिणामस्वरूप अफगान तालिबान ने पाकिस्तानी सीमा चौकियों पर जवाबी हमले शुरू कर दिए।
    • इन झड़पों के कारण दोनों पक्षों में लोग हताहत हुए हैं, द्विपक्षीय तनाव में वृद्दि और अफगानिस्तान में पाकिस्तान विरोधी भावना को बढ़ावा मिला है।
  • आंतरिक सुरक्षा संकट: पाकिस्तान एक साथ कई विद्रोही खतरों का सामना कर रहा है – विशेष रूप से उत्तर-पश्चिम में तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) और दक्षिण-पश्चिम में बलूच अलगाववादियों से, जिससे उसका सुरक्षा तंत्र और सीमावर्ती क्षेत्रों में राज्य का नियंत्रण कमजोर हो रहा है।
  • वैश्विक सुरक्षा के लिए खतरा: तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) द्वारा पाकिस्तान के परमाणु शस्त्रागार पर प्रभाव या नियंत्रण प्राप्त करने की संभावना एक गंभीर अंतरराष्ट्रीय चिंता का विषय है, क्योंकि यह न केवल दक्षिण एशिया बल्कि व्यापक वैश्विक सुरक्षा वातावरण को अस्थिर कर सकता है।

भारत के लिए आगे की राह:

  • सीमा सतर्कता को मजबूत करना: भारत को अपनी पश्चिमी सीमाओं पर मजबूत निगरानी बनाए रखनी चाहिए तथा अस्थिर पाकिस्तानी क्षेत्रों से होने वाली घुसपैठ तथा आतंकी खतरों को रोकने के लिए सक्रिय रक्षात्मक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए।
  • अफगानिस्तान के साथ रणनीतिक साझेदारी को मजबूत करना: भारत को अफगानिस्तान सरकार के साथ मजबूत राजनीतिक और विकासात्मक संबंध बनाने चाहिए, ताकि पाकिस्तान को काबुल में रणनीतिक गहराई को पुनः स्थापित करने से रोका जा सके तथा क्षेत्रीय स्थिरता को बढ़ावा दिया जा सके।
  • आतंकवाद-रोधी तैयारियों का विस्तार: भारत को सीमापार हमलों के खिलाफ त्वरित और निर्णायक जवाबी कार्रवाई के लिए तैयार रहना चाहिए, जैसा कि ऑपरेशन सिंदूर 2.0 में देखा गया है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि किसी भी आक्रामक कार्रवाई के तत्काल दंडात्मक परिणाम हों।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न: हाल ही में पाकिस्तान-अफग़ानिस्तान सीमा पर हुए संघर्ष दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय सुरक्षात्मक कमज़ोरियों को उजागर करते हैं। चर्चा कीजिए, कि तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) कारक किस प्रकार द्विपक्षीय संबंधों को अस्थिर कर रहा है तथा आतंकवाद-रोधी सहयोग को जटिल बना रहा है।

(10 अंक, 150 शब्द)

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