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भारत-श्रीलंका पाक खाड़ी विवाद और संसाधन साझाकरण

Lokesh Pal November 04, 2024 05:45 30 0

संदर्भ :

हाल ही में 29 अक्तूबर को कोलंबो में मत्स्य पालन पर भारत-श्रीलंका संयुक्त कार्य समूह की छठी बैठक में भारत ने पाक खाड़ी विवाद के स्थायी समाधान के निहितार्थ दोनों देशों के मछुआरों के मध्य वार्ता की आवश्यकता पर बल दिया। जिसके पश्चात् भारत-श्रीलंका संबंध तथा पाक खाड़ी विवाद पर चर्चा पुनः प्रारंभ हो गई है |

संघर्ष की भौगोलिक एवं ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

  • पाक खाड़ी, जो तमिलनाडु (भारत) और श्रीलंका के उत्तरी प्रांत के मध्य एक संकीर्ण जलडमरूमध्य है, में लंबे समय से दोनों तरफ के मछुआरों का आवागमन होता रहा हैं। 
  • वर्ष 1974 और 1976 के समझौतों द्वारा एक अंतर्राष्ट्रीय समुद्री सीमा रेखा (IMBL) की स्थापना के तहत मत्स्यन हेतु अलग-अलग क्षेत्रों का निर्माण हुआ। हालाँकि तमिलनाडु के मछुआरे अक्सर बेहतर मत्स्यन की तलाश में इस सीमा को पार करते रहे । 

  • इसके अतिरिक्त श्रीलंका के गृहयुद्ध (वर्ष 1983-2009) के दौरान, उत्तरी क्षेत्र के मछुआरों के  विस्थापन और नौसेना की गश्त में कमी के कारण सीमा पार करने के दौरान तमिलनाडु के मछुआरों की बड़े पैमाने पर चेकिंग नहीं की जा सकी।
  • 2009 में युद्ध की समाप्ति के बाद, श्रीलंकाई मछुआरों के उनके जल क्षेत्र में भारतीय मछुआरों की खोज के निहितार्थ लौटने से, गश्त और गिरफ्तारियों के साथ-साथ संघर्ष और तनाव में भी  वृद्धि हुई ।

वर्तमान स्थिति

  • वर्ष 2009 के बाद से तमिलनाडु के मछुआरों (विशेष रूप से रामनाथपुरम के) को IMBL पार करने के लिए लगातार गिरफ्तारी का सामना करना पड़ा है। 
  • अपराध को बार-बार अंजाम देने वालों के लिए कठोर दंड के साथ गिरफ्तारियाँ भी बढ़ी हैं। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन के अनुसार  27 अक्तूबर तक 140 भारतीय मछुआरे और 200 नावें श्रीलंका के हिरासत में हैं। 
  • तमिलनाडु सरकार द्वारा नियमित रूप से केंद्रीय सहायता की मांग की जाती रही है और भारत सरकार द्वारा स्थायी समाधान की आवश्यकता को रेखांकित करते हुए सुरक्षित रिहाई हेतु  हस्तक्षेप भी किया जाता रहा है।

प्रमुख मुद्दे और चिंताएँ

  • आजीविका संबंधी चिंताएँ : 
    • पाक खाड़ी के दोनों किनारों पर स्थित समुदायों के लिए मछली पकड़ना उनकी प्राथमिक आजीविका मानी जाती रही है। 
    • भारतीय जल क्षेत्र में संसाधनों की कमी के कारण भारतीय मछुआरों द्वारा अक्सर IMBL पार किए जाने के कारण गिरफ्तारियाँ होती हैं और उनके परिवारों को आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। 
  • पर्यावरणीय चिंताएँ : 
    • श्रीलंकाई मछुआरे (विशेष रूप से उत्तरी प्रांत के)  तमिलनाडु के मछुआरों द्वारा किए जाने वाले “विनाशकारी समुद्रतल मत्स्यन ” को लेकर चिंतित हैं, जिसके तहत ट्रॉलर जैसे उन्नत उपकरणों का उपयोग किया जाता है। 
    • यह विधि मत्स्य भंडारण को समाप्त कर समुद्री पारिस्थितिक तंत्र को नुकसान पहुँचाती है एवं वयस्क मछलियों, उनके अंडों और यहाँ तक ​​कि अन्य समुद्री जंतुओं का  अविवेकपूर्ण दोहन कर जैव विविधता को क्षति पहुँचाती है।

नोट : प्रति वर्ष 15 अप्रैल से 14 जून तक मत्स्य प्रजनन और संसाधन संरक्षण हेतु भारत सरकार द्वारा पाक खाड़ी में 61 दिनों तक मत्स्यन पर प्रतिबंध लगाया जाता है। प्रतिबंध के पश्चात् मछली पकड़ने संबंधी गतिविधि में हुई अचानक वृद्धि से अधिकांशतः संघर्ष बढ़ जाता है।

संभावित समाधान और सिफारिशें

  • सरकारी सहयोग : भारत द्वारा आपसी समझ और सतत प्रथाओं को बढ़ावा देने के लिए भारतीय और श्रीलंकाई मछुआरों के मध्य प्रत्यक्ष बैठकों का प्रस्ताव दिया गया है, जिससे धीरे-धीरे बॉटम ट्रॉलिंग जैसे तरीकों को समाप्त किया जा सके।
    • 2010 का एक समझौता, तमिलनाडु के मछुआरों को श्रीलंकाई सीमाओं का सम्मान करते हुए विकल्प अपनाने का समय प्रदान करता है।
  • मत्स्यन की वैकल्पिक प्रथाएँ : 
    • भारत को अपनी 2017 की गहरे समुद्र में मत्स्यन की परियोजना को आगे बढ़ाना चाहिए, जिससे तमिलनाडु के मछुआरों को तटीय सीमा से परे मत्स्यन की अनुमति मिल सके और पाक खाड़ी पर निर्भरता कम हो सके । 
    • समुद्री पिंजरा कृषि, समुद्री शैवाल की खेती और समुद्री पशुपालन जैसे स्थायी विकल्प आय स्रोतों में विविधता लाने के साथ-साथ पाक खाड़ी के मत्स्यन दबाव को कम कर सकते हैं।

मत्स्यन की वैकल्पिक प्रथाएँ

  • समुद्री पिंजरा संस्कृति (नेट-पेन संस्कृति) : 
    • यह समुद्र में मछलियों को जाल में बंद करके पालने की एक विधि है, जिससे जल का प्रवाह स्वतंत्र रूप से हो सके। 
    • ये पिंजरे एक फ्लोटिंग फ्रेम, नेट और मूरिंग सिस्टम से बने होते हैं जो आकार और माप में भिन्न हो सकते हैं।
  • समुद्री शैवाल की कृषि : 
    • समुद्री शैवाल समुद्र के अद्भुत पौधे होते हैं जो कई गुना पोषण, औद्योगिक, जैव चिकित्सा, कृषि और व्यक्तिगत देखभाल अनुप्रयोगों के साथ-साथ  भोजन, ऊर्जा, रसायनों और दवाओं के नए नवीकरणीय स्रोत होते हैं। 
  • समुद्री पशुपालन : 
    • यह एक ऐसी प्रथा है, जिसमें नियंत्रित वातावरण में मछलियों को पालना और फिर उन्हें बढ़ने और पैदावार के लिए समुद्र में छोड़ देना शामिल है I


  • कानूनी ढाँचे को सुदृढ़ करना : 
    • मत्स्य पालन के संबंध में, भारत-श्रीलंका संयुक्त कार्य समूह के माध्यम से निरंतर वार्ता द्वारा मत्स्यन से संबंधित स्पष्ट समझौते स्थापित किए जा सकते हैं, पारिस्थितिक उल्लंघनों के लिए दंड लागू और सतत पर्यावरणीय प्रथाओं के लिए प्रोत्साहन प्रदान किया जा सकता है। 
    • यह एक व्यापक कानूनी ढाँचा, गिरफ्तारी को रोकने और संघर्ष समाधान की दिशा में सहायता प्रदान करेगा, जिसमें पारिस्थितिक उल्लंघनों के लिए दंड और सतत प्रथाओं के लिए प्रोत्साहन शामिल होंगे। 
    • सरकारी सब्सिडी द्वारा धारणीय मत्स्यन के लिए आवश्यक गहरे समुद्र वाले जहाजों की उच्च लागत को समर्थन प्रदान किया जा सकता है।
  • श्रीलंकाई मछुआरों के लिए सहायता : 
    • भारत, श्रीलंका के उत्तरी प्रांत के मछुआरों (गृहयुद्ध के उपरांत वर्तमान में भी इनके द्वारा संघर्ष जारी) को बुनियादी ढाँचे, वित्तीय सहायता और आधुनिक उपकरणों के साथ सहायता कर सकता है। 
    • इस तरह के समर्थन से सद्भावना को बढ़ावा मिलेगा और श्रीलंका को तमिलनाडु के मछुआरों की चिंताओं को दूर करने एवं सीमा पार सहयोग को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकेगा।

निष्कर्ष

पाक खाड़ी विवाद के समाधान, आजीविका संतुलन, धारणीय मत्स्यन प्रथाओं को बढ़ावा देने और सद्भावना में अभिवृद्धि हेतु भारत एवं श्रीलंका के मध्य एक सहयोगात्मक दृष्टिकोण को अपनाना आवश्यक है। यह दोनों पक्षों के मछुआरों के लिए एक सहकारी भविष्य सुनिश्चित करेगा।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न  

भारत और श्रीलंका के बीच पाक खाड़ी मत्स्यन संबंधी विवाद को संबोधित करने की दिशा में संलग्न प्रमुख चुनौतियों पर चर्चा कीजिए। बताइए कि मछुआरों को शामिल करने वाला सहयोगात्मक  दृष्टिकोण स्थायी समाधान में कैसे योगदान कर सकता है?

(10 अंक, 150 शब्द)

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