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भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका संबंध तथा H-1B मुद्दा

Lokesh Pal September 22, 2025 05:15 7 0

संदर्भ:

ट्रम्प प्रशासन ने H-1B वीजा पर $100,000 डॉलर का वार्षिक शुल्क लगाया है, यह निर्णय भारत की आईटी दिग्गजों और बिग टेक की वेतन मध्यस्थता योजनाओं के व्यापार मॉडल को समाप्त करने के उद्देश्य से बनाया गया है।

  • हालाँकि, 22 सितंबर, 2025 तक अमेरिकी सरकार ने स्पष्ट किया है, कि नया $100,000 शुल्क एकमुश्त भुगतान है, जो केवल 21 सितंबर, 2025 को या उसके बाद दायर की गई नई H-1B वीज़ा याचिकाओं पर लागू होता है।

H-1B के बारे में:

  • परिचय: H-1B वीज़ा को 1990 के आव्रजन अधिनियम के माध्यम से तेजी से बढ़ते अमेरिकी प्रौद्योगिकी क्षेत्र में विशेष श्रम की कमी को दूर करने के लिए आरंभ किया गया था।
  • उद्देश्य: इसका उद्देश्य विदेशी प्रतिभाओं को संयुक्त राज्य अमेरिका में लाना तथा उन भूमिकाओं को भरना है जिन्हें घरेलू कामगार पर्याप्त रूप से पूरा नहीं कर सकते।
  • पात्रता: यह वीज़ा विशेषज्ञ व्यवसायों के लिए है, जिसके लिए सूचना प्रौद्योगिकी (IT), इंजीनियरिंग, चिकित्सा या अनुसंधान जैसे क्षेत्रों में स्नातक की डिग्री या उच्चतर की आवश्यकता होती है
  • आवंटन और चयन: संयुक्त राज्य अमेरिका प्रतिवर्ष 85,000 H-1B वीजा जारी करता है, लेकिन आवेदन अक्सर 5 लाख से अधिक हो जाते हैं, जिनका चयन लॉटरी प्रणाली द्वारा किया जाता है
  • भारतीय भागीदारी: 70% से अधिक H-1B वीजा भारतीय पेशेवरों को प्रदान किए जाते हैं, जो अमेरिकी तकनीकी कार्यबल में भारत के महत्त्वपूर्ण योगदान को दर्शाता है।

नए H-1B नियम:

  • दुरुपयोग की चिंताएँ: अमेरिकी राजनेताओं का तर्क है, कि अमेरिकी कंपनियाँ विशेषज्ञ प्रतिभाओं की बजाय सस्ते श्रम का आयात करने के लिए H-1B प्रावधानों का दुरुपयोग कर रही हैं।
  • भारतीय कम्पनियाँ: TCS और Infosys जैसी भारतीय कम्पनियों पर विशेष रूप से अमेरिकी परियोजनाओं के लिए H-1B वीजा के माध्यम से कम लागत वाले भारतीय इंजीनियरों को नियुक्त करने का आरोप है, बजाय उच्च लागत वाले स्थानीय अमेरिकी इंजीनियरों को नियुक्त करने के
  • घरेलू राजनीतिक प्रभाव: इन चिंताओं ने इस मुद्दे को अमेरिकी घरेलू राजनीति में प्रमुख बना दिया है, जिसमें दावा किया गया है कि H-1B नीति अमेरिकी वेतन में कमीऔर अमेरिकी नागरिकों के लिए रोज़गार के अवसरों को कम करती है
  • नीतिगत परिवर्तन: अमेरिकी सरकार ने सभी नए H-1B आवेदनों के लिए $100,000 (1 लाख अमेरिकी डॉलर) शुल्क की घोषणा की है, जिसका भुगतान प्रायोजक कंपनी द्वारा किया जाना चाहिए।
  • स्पष्टीकरण: भ्रम की स्थिति उत्पन्न होने पर व्हाइट हाउस ने स्पष्ट किया, कि यह शुल्क एक बार का है और केवल 21 सितम्बर, 2025 के बाद प्रस्तुत किए गए नए आवेदनों पर ही लागू होगामौजूदा वीज़ा धारकों पर नहीं

नए H-1B नियमों के परिणाम:

  • भारतीय पेशेवरों पर प्रभाव: भारतीय पेशेवर सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं, विशेषकर वे लोग जिन्होंने अमेरिका में अध्ययन के लिए शिक्षा ऋण लिया था।
  • अमेरिकी व्यवसायों पर प्रभाव: हालाँकि बड़ी कंपनियाँ शुल्क वहन कर सकती हैं, लेकिन छोटे अमेरिकी स्टार्टअप और मध्यम उद्यमों को भारतीय प्रतिभाओं को नियुक्त करने में कठिनाई होगी।
    • H-1B कार्यबल ने सिलिकॉन वैली के निर्माण में प्रमुख भूमिका निभाई।
    • इस प्रतिभा पर प्रतिबंध लगाने से वैश्विक स्तर पर अमेरिकी नवाचार और प्रतिस्पर्धात्मक लाभ कम हो सकता है।
    • यह नीति प्रमुख निगमों और छोटे स्टार्टअप्स के मध्य असमानता को भी बढ़ाती है।
  • भू-राजनीतिक प्रभाव: जो प्रतिभाशाली व्यक्ति अमेरिका नहीं जा सकते, वे चीन जैसे अन्य देशों में अवसर तलाश सकते हैं, जिससे उन अर्थव्यवस्थाओं को लाभ होगा।
  • भारत पर प्रभाव: कुछ लोग इस प्रतिबंध को भारत के लिए एक लाभ के रूप में देखते हैं, जिससे संभावित रूप से प्रतिभा पलायन की बजाय “प्रतिभा शेष” हो सकती है।
  • व्यापार और कूटनीति: H-1B नीति भारत के साथ व्यापार समझौते पर चर्चा के दौरान अमेरिका के लिए एक वार्ता कार्ड के रूप में कार्य करती है (उदाहरण के लिए, कृषि व्यापार रियायतों के लिए H-1B रियायतों का आदान-प्रदान)।
  • भारतीय आईटी दिग्गजों पर प्रभाव: TCS और Infosys जैसी कंपनियाँ, जो अपनी अमेरिकी परियोजनाओं के लिए भारत से प्राप्त सस्ते श्रम पर निर्भर हैं, को नुकसान का सामना करना पड़ेगा क्योंकि उन्हें स्थानीय अमेरिकी नागरिकों को काम पर रखने हेतु बाध्य होना पड़ेगा।

आगे की राह:

  • नीतिगत स्पष्टता: अमेरिकी सरकार को H-1B नीति के कार्यान्वयन के संबंध में मौजूदा अराजकता को हल करने के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश जारी करने चाहिए।
  • उद्योग लॉबिंग: भारत को नीतिगत निर्णयों को प्रभावित करने के लिए अमेरिका में उद्योग लॉबिंग को प्राथमिकता देनी चाहिए, क्योंकि लॉबिंग वहाँ एक स्वीकृत प्रथा है।
  • कूटनीतिक संलग्नता: सरकार को कूटनीतिक दबाव का उपयोग करना चाहिए और रियायतों के लिए अमेरिका के साथ वार्ता आदि करनी चाहिए
  • घरेलू आईटी सुदृढ़ीकरण: भारत को विदेशी H-1B अवसरों पर निर्भरता कम करने के लिए अपने घरेलू आईटी पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
  • घरेलू योजनाओं को समर्थन: भारत को स्थानीय रोजगार के अवसर प्रदान करने के लिए स्टैंड अप इंडियास्टार्टअप इंडिया और मेक इन इंडिया जैसी घरेलू पहलों को सुदृढ़ करना चाहिए।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न: “H-1B वीज़ा से जुड़ा हालिया विवाद केवल एक आव्रजन मुद्दा नहीं है, बल्कि परिवर्तित वैश्विक आर्थिक गतिशीलता तथा प्रवासी भारतीयों पर उनके प्रभाव का प्रतिबिंब है”, चर्चा कीजिए। बताइए कि भारत आत्मनिर्भर भारत के निर्माण के अवसर के रूप में संभावित ‘रिवर्स ब्रेन ड्रेन’ का लाभ कैसे उठा सकता है?

(15 अंक, 250 शब्द)

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