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भारतीय शिक्षा प्रणाली और उसके विनियमन की आवश्यकता

Lokesh Pal May 07, 2025 05:00 7 0

संदर्भ:

भारत की स्कूली शिक्षा प्रणाली, जो लंबे समय से अकुशलताओं से ग्रस्त है, ने कोविड-19 महामारी के दौरान व्यापक शिक्षण संकट को उजागर होते देखा है। वृहद निवेश के बावजूद, जवाबदेही की कमी और अप्रभावी विनियमन के कारण परिणाम वांक्षनीय नहीं हैं।

भारत में शिक्षा का संकट

  • प्रारंभिक समस्या: कोविड-19 महामारी ने शिक्षा संबंधी समस्या को उजागर तो किया, परंतु उत्पन्न नहीं किया।
  • अधिगम निर्धनता (Learning Poverty): मूलभूत पठन-पाठन में असमर्थ 10-वर्षीय बच्चे 2019 में पहले से ही 55% थे और महामारी के बाद 70% तक इनकी संख्या बढ़ गई।
  • प्रणालीगत विफलताएँ और खराब परिणाम: पर्याप्त वित्त पोषण के बावजूद, भारतीय स्कूल गुणवत्ता संकेतकों पर खराब प्रदर्शन करते हैं।
  • विद्यार्थियों की सफलता में चूक: शिक्षा प्रणाली में जवाबदेही का अभाव है तथा परिणामों (जैसे- विद्यार्थी अधिगम) की तुलना में इनपुट/आगत (जैसे- बुनियादी ढाँचे या अवसंरचना विकास) पर अधिक ध्यान दिया जाता है।
  • सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों में जवाबदेही का अंतर: कोई शुल्क संरचना नहीं, कमजोर जवाबदेही, सुधार के लिए कम प्रोत्साहन।
    • अप्रासंगिक क्षेत्रों (जैसे- भूमि मानदंड) में अत्यधिक विनियमित, अधिगम परिणामों पर अल्प विनियमन।
    • इस क्षेत्र में नवाचार और निवेश अवरुद्ध हो गया है।
  • वैश्विक मानकों के अनुपालन में विफलता: भारत RAPID फ्रेमवर्क जैसे वैश्विक मानकों, विशेष रूप से गुणवत्ता और परिणामों, को पूरा करने में विफल रहा है।
  • प्रिंसिपल-एजेंट समस्या:
    • भ्रष्टाचार का पता लगाना कठिन है।
    • सरकारी भ्रष्टाचार प्रायः अदृश्य होता है, जैसे- पानी के नीचे पानी पीने वाली मछली।
    • अकेले व्यक्तिगत निष्ठा ही विश्वसनीय सुरक्षा नहीं है।
    • शिक्षा – एक अनियमित क्षेत्र: अपनी महत्ता के बावजूद, शिक्षा में विनियमन का अभाव है। इससे गुणवत्ता और राष्ट्रीय प्रगति दोनों को खतरा होता है।
    • आवश्यकता:
      • लोक कल्याण क्षेत्रों पर निगरानी की आवश्यकता है।
      • जहाँ प्रणालियाँ विफल हो जाती हैं, वहाँ स्वतंत्र नियामक जवाबदेही सुनिश्चित करते हैं।

आवश्यक कार्यवाही

  • स्वतंत्र विनियमन की आवश्यकता: शिक्षा क्षेत्र प्रिंसिपल-एजेंट समस्या से प्रभावित है – जिन लोगों को सार्वजनिक हित को सुनिश्चित करने का काम सौंपा गया है, वे अक्सर जाँच से बचते हैं।
    • वित्त जैसे अन्य क्षेत्रों को स्वतंत्र नियामकों से लाभ मिला है (उदाहरण के लिए, 1990 के बाद का आरबीआई संकट)।
    • शिक्षा में अभी भी इस महत्त्वपूर्ण निगरानी का अभाव है।
  • प्रस्तावित सुधारात्मक कार्यवाही – राज्य स्कूल मानक प्राधिकरण (SSSA): एनईपी-2020 में उल्लिखित, SSSA के कार्य हैं:
    • स्वतंत्र गुणवत्ता रेटिंग प्रदान करना।
    • सार्वजनिक और निजी स्कूलों में एक समान मानक सुनिश्चित करना।
    • सूचना विषमता को कम करना।
  • वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं को अपनाने की आवश्यकता: यदि वैश्विक उदाहरणों की बात करें तो, चिली के एजेंसिया डे ला कैलिडैड डे ला एजुकेशन ने पारदर्शी स्कूल प्रदर्शन डेटा के माध्यम से सुधार को प्रेरित किया है।
  • RAPID फ्रेमवर्क का पालन: विश्व बैंक की ‘RAPID’ रणनीति में मुख्य पाँच चरण बताए गए हैं:
    • प्रत्येक बच्चे को स्कूल भेजें और उन्हें स्कूल में रखें।
    • नियमित रूप से अधिगम स्तर का परीक्षण करें।
    • मूलभूत (fundamentals) बिंदुओं को पढ़ाने पर प्राथमिकता दें।
    • अनुदेशनात्मक दक्षता में वृद्धि।
    • मनोसामाजिक (psychosocial) स्वास्थ्य और कल्याण का विकास करना।
  • विनियमन को वित्तीय प्रोत्साहन से जोड़ना: केवल पारदर्शिता ही पर्याप्त नहीं है – प्रोत्साहन भी महत्त्वपूर्ण है।
    • एनईपी ने SSSA मूल्यांकन को वित्त आयोग के आवंटन से जोड़ने की सिफारिश की है।
    • उदाहरण: शिक्षण परिणामों में सुधार के लिए 15वें वित्त आयोग द्वारा ₹4,800 करोड़ के समर्थन की सिफारिश की गई।
  • SSSA को प्रभावी ढंग से क्रियान्वित करना: यह स्वतंत्र और सक्रिय होना चाहिए, शिक्षा विभागों तक सीमित नहीं होना चाहिए।
    • इसे नौकरशाहों के लिए सेवानिवृत्ति का पद बनने से बचना चाहिए – वास्तविक स्वायत्तता और सत्यनिष्ठा आवश्यक है।
  • सुधार और वास्तविक जवाबदेही की आवश्यकता: भारत को इनपुट-आधारित प्रणाली से परिणाम-आधारित विनियमन की ओर बढ़ना होगा।
    • एक पारदर्शी, प्रोत्साहन से संबद्ध, स्वायत्त नियामक ढाँचे की तत्काल आवश्यकता है।
  • प्रौद्योगिकी के उपयोग करने की आवश्यकता:
    • सटीक विद्यार्थी-विद्यालय मानचित्रण के लिए आधार-सक्षम UIDAI प्रणाली।
    • डेटा विश्लेषण और पूर्वानुमान के लिए राष्ट्रीय डिजिटल शिक्षा वास्तुकला (NDEAR)
    • डिजिटल उपकरण अनुपालन बोझ को कम करते हैं।

निष्कर्ष

अधिगम परिणामों को प्राथमिकता देकर, एक स्वतंत्र विनियामक प्राधिकरण की स्थापना और प्रदर्शन को वित्तपोषण से जोड़कर अपने शैक्षिक प्रशासन में तत्काल सुधार करना चाहिए। केवल एक साहसिक परिवर्तन ही प्रत्येक विद्यार्थी के लिए समान, उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा सुनिश्चित कर सकता है।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न

सरकारी स्कूलों में शिक्षा गुणवत्ता सुधारने में जवाबदेही की भूमिका पर चर्चा कीजिए। बाज़ार-संचालित प्रणाली की अनुपस्थिति में भारत जवाबदेही उपायों को प्रभावी ढंग से किस प्रकार लागू कर सकता है?

(15 अंक, 250 शब्द)

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