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भारतीय शिक्षा व्यवस्था और जनजातीय विकास

Lokesh Pal March 15, 2025 05:30 7 0

संदर्भ:

महाराष्ट्र का एकमात्र स्कूल, जो गोंडी (गोंड जनजाति की भाषा) भाषा में शिक्षा प्रदान करता है, बंद होने की कगार पर है।

मुख्य बिंदु

  • समस्या स्कूल बंद करने से कहीं अधिक है: महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले के पाँचवी अनुसूची के तहत शामिल क्षेत्र में स्थित मोहगाँव में एकमात्र गोंडी-माध्यम स्कूल को बंद करने का फ़ैसला आदिवासी भाषाओं और संस्कृतियों के संरक्षण के बारे में महत्त्वपूर्ण प्रश्न उठाता है।
  • स्कूल के बारे में: स्कूल की स्थापना 2019 में ग्राम पंचायत के एक प्रस्ताव के बाद की गई थी, जिसका उद्देश्य आदिवासी विद्यार्थियों को उनकी मातृभाषा गोंडी में प्राथमिक शिक्षा प्रदान करना था।
  • संवैधानिक अधिकार: यह पहल भारतीय संविधान के अनुच्छेद 29 और अनुच्छेद 350(A) के तहत की गई थी।
    • अनुच्छेद 29: अलग-अलग भाषाओं, लिपियों और संस्कृति को संरक्षित करने का अधिकार|
    • अनुच्छेद 350(A): राज्य को अल्पसंख्यक विद्यार्थियों के लिए उनकी मातृभाषा में शिक्षा प्रदान करने का अधिकार|
  • निशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार (RTE) अधिनियम, 2009 गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को अनिवार्य बनाता है, लेकिन इसमें आदिवासी भाषाओं के लिए कोई प्रावधान शामिल नहीं हैं।

गोंडी भाषा

  • आदिवासी भाषा: गोंडी एक आदिवासी भाषा है, जो मुख्य रूप से मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, ओडिशा, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश सहित भारत के कई राज्यों में गोंड जनजाति  के लोगों द्वारा बोली जाती है।
  • आँकड़ें: 2011 की जनगणना के अनुसार गोंडी भाषा 2.9 मिलियन से अधिक लोगों द्वारा बोली जाती है।
  • संवैधानिक स्थिति: यह भाषा भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल नहीं है।
  • राज्य-स्तरीय मान्यता का अभाव: गोंडी को कोई राज्य-स्तरीय मान्यता या समर्थन नहीं दिया गया है, जिससे आधिकारिक स्तर पर इसका प्रचार और संरक्षण सीमित हो गया है।

स्कूल बंद करने के लिए सरकार का तर्क

  • स्थानीय प्रशासन ने तर्क दिया है, कि निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम (RTE), 2009 के तहत मान्यता के बिना स्कूल का संचालन जारी नहीं रखा जा सकता है।
  • पंजीकरण के बिना स्कूल संबंधी मानकों की निगरानी नहीं की जा सकती है तथा विद्यार्थियों को उच्चतर शिक्षा में संक्रमण में कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है।
  • एक शिक्षा अधिकारी ने सुझाव दिया, कि यदि गोंडी-माध्यम स्कूल बंद कर दिया जाता है तो विद्यार्थियों को अन्य स्कूलों में समायोजित किया जा सकता है। हालाँकि, यह सुझाव शिक्षा संबंधी गहन मुद्दों की अनदेखी करता है।

नौकरशाही बाधा या व्यवस्थागत पूर्वाग्रह

  • स्कूल को मान्यता न देने का मुद्दा केवल प्रक्रिया से जुड़ा नहीं है, बल्कि मूल रूप से सत्ता का प्रश्न  है।
  • स्कूल को मान्यता देने से इनकार करना आदिवासी समुदायों, मुख्य रूप से उनकी भाषा और संस्कृति की संरचनात्मक तथा सामाजिक-राजनीतिक अधीनता को दर्शाता है।
  • आदिवासी भाषाओं के खिलाफ राज्य का मानक पूर्वाग्रह इस अधीनता को और बढ़ाता है। यह स्थिति नौकरशाही (अधिकार-तंत्र) के इस निर्णय के नैतिक और राजनीतिक संदर्भ पर संकेन्द्रण  देने की माँग करती है।

आदिवासी समुदायों के लिए जवाहरलाल नेहरू का दृष्टिकोण

  • जवाहरलाल नेहरू का दृढ़ विश्वास था, कि आदिवासी समुदायों को अपनी परंपराओं के साथ सामंजस्य बिठाकर आगे बढ़ने की अनुमति दी जानी चाहिए। उनके विचार औपनिवेशिक हिंसा के इतिहास से प्रभावित थे, जिसने कई आदिवासी समुदायों को लगभग विलुप्त होने की कगार पर पहुँचा दिया था।
  • भारतीय संविधान आदिवासी जीवन शैली की रक्षा के लिए विशिष्ट प्रावधान प्रदान करता है, जिसमें भूमि, भाषा, संस्कृति और रीति-रिवाजों पर उनके अधिकार शामिल हैं। इन प्रावधानों का उद्देश्य आदिवासी समुदायों को अपनी पहचान खोए बिना राष्ट्र निर्माण में भाग लेने में सक्षम बनाना है।

अन्य शक्तियाँ: धर्मनिरपेक्ष और धार्मिक

  • धर्मनिरपेक्ष शक्ति: जनजातीय समुदायों को प्रायः राज्य और बाज़ार दोनों द्वारा मुख्यधारा में धकेल दिया जाता है, जिससे उनकी अनूठी सांस्कृतिक प्रथाओं और जीवन शैली को हानि होती है।
  • धार्मिक शक्ति: धार्मिक क्षेत्र में, आदिवासी मान्यताओं का विरूपण और उन्मूलन होता है, क्योंकि बाह्य धार्मिक शक्तियाँ स्वदेशी आध्यात्मिक परंपराओं को कमज़ोर करने का प्रयास करती हैं।
  • प्रभाव: धर्मनिरपेक्ष और धार्मिक दोनों शक्तियाँ आदिवासी पहचान को कमज़ोर करती हैं एवं  सांस्कृतिक विरासत को नष्ट करती हैं, जिससे स्वदेशी संस्कृतियों और भाषाओं के अस्तित्व को खतरा होता है।

नियमगिरि मामला

  • नियमगिरि मामला ओडिशा के नियमगिरि पहाड़ियों में वेदांता रिसोर्सेज द्वारा प्रस्तावित बॉक्साइट खनन परियोजना पर एक विधिक मुद्दा था। 
  • स्थानीय आदिवासी समुदायों ने इसका विरोध किया, उनका तर्क था कि यह उनकी पवित्र भूमि को नष्ट कर देगा और वन अधिकार अधिनियम के तहत उनके अधिकारों का उल्लंघन करेगा।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने परियोजना पर समुदाय से सहमति प्राप्त करने के लिए प्रभावित ग्राम सभाओं के बीच जनमत संग्रह कराने का आदेश दिया, जिन्होंने सर्वसम्मति से इसके खिलाफ मतदान किया।

आदिवासी भाषाओं का महत्त्व

  • आदिवासी समुदायों की एक मौखिक परंपरा है, जिसमें उनके मिथक, धार्मिक विश्वास और इतिहास शामिल हैं। हालाँकि, वनोन्मूलन, शहरीकरण और बाज़ार की शक्तियों के कारण आदिवासी पहचान में कमी संबंधी समस्या के साथ ये मौखिक परंपराएँ और भाषाएँ खतरे में हैं।
  • आदिवासी भाषा के उपयोग न होने से पूरी सांस्कृतिक पहचान का अपरिवर्तनीय विलोपन हो सकता है। इसलिए, आदिवासी भाषाओं को उनकी सुरक्षा और अस्तित्व सुनिश्चित करने के लिए विशेष दर्जा दिया जाना चाहिए।

संवैधानिक नैतिक विफलता

  • संस्कृत संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल है और इसे राज्य द्वारा प्रोत्साहन दिया जाता है, जबकि यह देश के लगभग 25,000 लोगों की प्राथमिक या द्वितीयक भाषा है। इसके विपरीत 2.9 मिलियन से अधिक लोगों द्वारा बोली जाने वाली गोंडी को राज्य स्तर पर न तो मान्यता दी गई है और न ही बढ़ावा दिया गया है।
  • यह विडंबना है, कि भारतीय संविधान संस्कृत को देवभाषा (देवताओं की भाषा) के रूप में मान्यता देता है, लेकिन यह आदिवासी समुदायों की जनभाषा (लोगों की भाषा) की रक्षा और संवर्द्धन करने में विफल रहता है।

आगे की राह 

  • इस समस्या का समाधान करने की दिशा में पहला कदम गोंडी-माध्यम स्कूल को मान्यता देना और उसका समर्थन करना तथा देश भर में ऐसे स्कूलों का विस्तार करना है।
  • सरकार को ऐसी विशेष नीतियों को लागू करना चाहिए, जो आदिवासी नेतृत्व वाली शैक्षिक पहलों के माध्यम से आदिवासी संस्कृति को संरक्षित करने और बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित करें।
  • यह जनजातीय समुदायों सहित अल्पसंख्यक समूहों के अधिकारों की रक्षा करने के संवैधानिक अधिदेश के अनुरूप होगा।

निष्कर्ष 

भारतीय संविधान की मूल लोकतांत्रिक संरचना का सम्मान करने के लिए, आदिवासी भाषाओं और उनकी सांस्कृतिक पहचान को संरक्षित करने वाली शैक्षिक पहलों को मान्यता देना तथा उनकी रक्षा करना अनिवार्य है। ऐसी मान्यताओं के माध्यम से ही हम यह सुनिश्चित कर सकते हैं, कि आदिवासी समुदाय अपनी अनूठी विरासत को खोए बिना आधुनिक विश्व में अपना विकास जारी रखें।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न

हाल ही में महाराष्ट्र में गोंडी-माध्यम विद्यालय के बंद होने से भाषाई अल्पसंख्यकों से संबंधित संवैधानिक प्रावधानों को लागू करने में चुनौतियों पर प्रकाश डाला गया है। आदिवासी समुदायों की भाषाई और सांस्कृतिक विरासत की रक्षा में संवैधानिक सुरक्षा उपायों और सरकारी पहलों की प्रभावशीलता का मूल्यांकन कीजिए।

(15 अंक, 250 शब्द)

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