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भारतीय उद्योग तथा इसके नवाचार की आवश्यकता

Lokesh Pal February 24, 2025 05:00 66 0

संदर्भ:

भारत में प्रमुख व्यावसायिक (कॉर्पोरेट) नेताओं अथवा प्रमुखों ने कार्य के घंटों को बढ़ाने का समर्थन किया है।

मुख्य बिन्दु 

  • कार्य के घंटों को बढ़ाने के लिए व्यावसायिक संस्थानों द्वारा बढ़ाया जा रहा दबाव अनजाने में एक महत्त्वपूर्ण सत्यता, कि भारतीय उद्योग अपनी प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त के लिए प्रौद्योगिकी या नवाचार के बजाय सस्ते श्रम पर निर्भर बना हुआ है, को उजागर करता है।
  • विकसित देशों में अधिशेष निष्कर्षण मॉडल (surplus extraction model) विकसित हुआ, जिसमें उन्नत प्रौद्योगिकियों तथा प्रबंधन के माध्यम से उच्च दक्षता पर ध्यान केंद्रित किया गया। 
  • इसके विपरीत, भारत में अधिक मुनाफा कमाने के लिए कम वेतन और लंबे कार्य के घंटों पर निर्भर रहते हुए पुरानी पद्धतियों से कार्य जारी है।

विभिन्न अध्ययन 

  • सर्वेक्षण रिपोर्ट : लुधियाना, पंजाब में प्रवासी औद्योगिक श्रमिकों का अध्ययन किया  गया। वस्त्र निरमा, ऑटो कंपोनेंट निर्माण और अन्य उत्पादों में शामिल ये श्रमिक प्रतिदिन 11 से 12 घंटे कार्य करते हैं। 
  • आराम के लिए समय नहीं : कार्य की अधिकता के कारण ये श्रमिक अक्सर कई दिनों तक लगातार कार्य करते हैं, जिससे आराम के लिए बहुत कम समय या नहीं मिलता है। कार्य के अलावा, उनके दिन का अधिकांश समय खाना पकाने और कार्यस्थल पर आने-जाने में ही निकल जाते हैं।

विकसित देशों में

  • ब्रिटेन : जबकि 19वीं शताब्दी के दौरान श्रमिक संघों के दबाव और तकनीकी प्रगति के कारण ब्रिटेन में कार्य स्थिति में सुधार हुआ, वहीं वर्तमान में कई विकसित देशों में श्रमिक अधिक उत्पादकता के साथ कम घंटे कार्य करते हैं।
  • कार्य के घंटे : अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) ने 2024 की अपनी एक रिपोर्ट में बताया, कि संयुक्त राज्य अमेरिका में औसत साप्ताहिक कार्य घंटे 38 घंटे और जापान में 36.6 घंटे थे, जबकि भारत में यह 46.7 घंटे था।

भारत के संबंध में

  • PLFS डेटा : 2023-24 के आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) के अनुसार, भारत के केवल 21.7% श्रमिक नियमित वेतन वाले रोज़गार में नियोजित हैं। शेष श्रमिक या तो आकस्मिक मजदूर हैं या स्वरोज़गार करते हैं।
  • संगठित किन्तु असुरक्षित : नियमित रोज़गार में भी, आधे श्रमिकों को अनौपचारिक कार्य स्थितियों का सामना करना पड़ता है, जैसे- कोई लिखित रोज़गार अनुबंध या सामाजिक सुरक्षा लाभ नहीं मिलना।
  • भारतीय विनिर्माण क्षेत्र : कोयंबटूर और लुधियाना जैसे औद्योगिक समूहों में, 10 से कम श्रमिकों वाली छोटी इकाइयाँ प्रमुख हैं। इन क्षेत्रों में सैकड़ों मशीनें छोटे शेडों में कार्य करती हैं, जो बड़ी फर्मों के लिए पुर्जे बनाती हैं। 
    • भारत का 70% से अधिक विनिर्माण कार्यबल (2021-22 में 68 मिलियन) छोटे, गैर-पंजीकृत उद्यमों में कार्यरत है।
  • छोटी फर्मों का संघर्ष : भारत में छोटी और बड़ी फर्मों के बीच संबंध परस्पर लाभकारी नहीं रहे हैं। छोटी फर्मों के मालिक अक्सर बड़ी कंपनियों से भुगतान में देरी की शिकायत करते हैं, जिससे उनकी आर्थिक समस्याएँ बढ़ जाती हैं। 
    • उत्पादन लागत में वृद्धि के बावजूद, बड़ी कंपनियाँ पार्ट्स (कलपुर्जों) के लिए अधिक भुगतान करने से मना कर देती हैं, जिससे छोटी कंपनियों को उसी कीमत पर उत्पादन के लिए मजबूर होना पड़ता है।
    • यह प्रक्रिया अपर्याप्त सरकारी समर्थन के साथ मिलकर, छोटी फर्मों को कमजोर  और उन्हें सस्ते आयातों से प्रतिस्पर्धा के प्रति असुरक्षित बनाती है।
  • संविदा श्रमिकों की संख्या में वृद्धि : भारतीय कंपनियों में संविदा श्रमिकों पर निर्भरता बढ़ती जा रही है, जो 2011-12 के बाद कुल कार्यबल का 56% हिस्सा बन गए हैं।
    • श्रम नियमों द्वारा संरक्षित न होने के कारण ये संविदा श्रमिक प्रत्यक्ष रूप से नियोजित श्रमिकों की तुलना में कम मज़दूरी अथवा वेतन पाते हैं।
  • वस्त्र उद्योग : भारत का वस्त्र उद्योग, जो देश के श्रम अधिशेष के बावजूद बाजार में विशेष भागीदारी करने में विफल रहा है। 
    • भारत की स्थिर भागीदारी : वैश्विक वस्त्र निर्यात बाजार में भारत की हिस्सेदारी पिछले दो दशकों से 3.1% पर स्थिर बनी हुई है, जबकि चीन, बांग्लादेश और वियतनाम जैसे देशों ने भारत से बेहतर प्रदर्शन किया है।
  • उच्च लाभ और कम निर्यात : भारत के कारखाना क्षेत्र में, मूल्यवर्धन के हिस्से के रूप में लाभ 2019-20 में 31.6% से बढ़कर 2021-22 में 46.4% हो गया, फिर भी निर्यात कम बना हुआ है।
  • तकनीकी स्थिरता : सस्ते श्रम की सुलभ उपलब्धता ने भारतीय उद्योग को तकनीकी और प्रबंधकीय प्रगति की उपेक्षा करने हेतु प्रेरित किया है। इससे आईटी जैसे उभरते क्षेत्रों में भी विकास स्थिर अथवा धीमा हो गया है। 
    • कम मजदूरी और लंबे कार्य घंटों ने श्रमिक वर्ग की क्रय शक्ति को कम कर दिया है, जिससे घरेलू बाजार में और अधिक गिरावट आई है तथा विकास में बाधा उत्पन्न हुई है।
  • असतत चक्र : लाभ की चाह में कार्य दिवस को बढ़ाना तथा श्रमिकों को पर्याप्त आराम से वंचित करना गलत है। 
    • अल्पकालिक लाभ बनाम दीर्घकालिक लाभ : हालाँकि कम्पनियों को अल्पकालिक लाभ मिल सकता है, लेकिन गरीब श्रमिकों की बढ़ती संख्या अंततः उद्योग के विकास और नवाचार को बाधित करेगी। 

निष्कर्ष

सस्ते श्रम पर भारत की अत्यधिक निर्भरता ने इसके दीर्घकालिक विकास को अवरुद्ध कर दिया है, मुख्य रूप से उन उद्योगों में जिन्हें नवाचार और आधुनिकीकरण की आवश्यकता है। आधुनिकीकरण निष्पक्ष श्रम प्रथाओं और नवाचार के लिए आवश्यक है, यह कार्यबल और उद्योगों  दोनों के लिए बेहतर होगा।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न

सस्ते श्रम पर निर्भरता और तकनीकी नवाचार की कमी के कारण भारत के विनिर्माण क्षेत्र के सामने आने वाली चुनौतियों पर चर्चा कीजिए। यह अति-निर्भरता वैश्विक बाजार में भारतीय उद्योगों की प्रतिस्पर्धात्मकता को कैसे प्रभावित करती है?

(15 अंक, 250 शब्द)

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